मुरादाबाद । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर राकेश सिंघल की
हो रही फजीहत से डिस्ट्रिक्ट 3100 में एक व्यक्ति को बड़ी खुशी हो रही है,
क्योंकि राकेश सिंघल की फजीहत में उन्हें अपने लिए बड़ा फायदा होता दिख रहा
है । वह व्यक्ति हैं दीपक बाबू - डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवार दीपक बाबू ।
दीपक बाबू की खुशी का कारण उनके समर्थक ही बता रहे हैं, जिनका कहना है कि
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए दीपक बाबू को यदि दिवाकर अग्रवाल से
चुनाव लड़ना पड़ता तो उनके लिए मुश्किल होती और दिवाकर अग्रवाल से उन्हें
पराजय का ही सामना करना पड़ता; लेकिन जो हालात हैं उसमें दिवाकर अग्रवाल से
लड़ने का जिम्मा चूँकि राकेश सिंघल ने खुद ही ले लिया है तो अब दीपक बाबू को
कुछ करने की जरूरत ही नहीं हैं - और कुछ न करते हुए भी वह पूरी तरह
आश्वस्त हो सकते हैं । राकेश सिंघल की उस घोषणा के बाद से तो दीपक बाबू
पूरी तरह आश्वस्त हो गए हैं जिसमें राकेश सिंघल ने कहा है कि वह
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर हैं और वह जो चाहेंगे, वह करेंगे । दीपक बाबू अच्छी तरह
जान/समझ रहे हैं कि राकेश सिंघल किसी भी कीमत पर दिवाकर अग्रवाल की
उम्मीदवारी को मान्य नहीं करेंगे और ऐसे में वह बिना कुछ किये-धरे ही
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी बन जायेंगे ।
मुजफ्फरनगर में हुए हल्ले-हंगामे के बाद से तो दीपक बाबू ने
अपने आप को वर्ष 2016-17 का डिस्ट्रिक्ट गवर्नर मानना/समझना भी शुरू कर
दिया है । दीपक बाबू के खुश होने और आश्वस्त होने का कारण भी है : राकेश
सिंघल मानते हैं और कहते भी हैं कि डिस्ट्रिक्ट में उनके खिलाफ जो बबाल हो
रहा है वह दिवाकर अग्रवाल के समर्थक कर रहे हैं । मुजफ्फरनगर में हुए हल्ले-हंगामे का सारा ठीकरा उन्होंने दिवाकर अग्रवाल के समर्थकों के सिर ही फोड़ा है ।
राकेश सिंघल की बात कुछ हद तक सही भी है - लेकिन पूरा सच यह है कि
डिस्ट्रिक्ट के बहुत से लोग जो दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी के समर्थक
नहीं होने के बावजूद राकेश सिंघल के रवैये के खिलाफ हैं । राकेश सिंघल ने
अपने व्यवहार और अपने रवैये से प्रायः हर किसी को नाराज किया हुआ है । उनसे
नाराज लोगों के अपने अपने कारण हैं । इसी वजह से राकेश सिंघल
डिस्ट्रिक्ट में अलग-थलग पड़े हुए हैं । अपने व्यवहार और अपने रवैये से
राकेश सिंघल डिस्ट्रिक्ट के उन प्रमुख लोगों को भी अपने साथ नहीं जोड़ पा
रहे हैं जिन्हें दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी से कोई मतलब नहीं है ।
राकेश सिंघल की बदकिस्मती यह है कि जिन दीपक बाबू को फायदा पहुँचाने के लिए उन्होंने आफत और बदनामी मोल ली है, उन दीपक बाबू और उनके समर्थकों ने भी राकेश सिंघल से किनारा कर लिया है । मुजफ्फरनगर का कार्यक्रम एक तरह से डिस्ट्रिक्ट रोटरी फाउंडेशन चेयरमैन डॉक्टर पल्लव अग्रवाल का कार्यक्रम था, जो दीपक बाबू के सबसे बड़े समर्थक के रूप में पहचाने जाते हैं । उक्त कार्यक्रम में जब राकेश सिंघल लोगों के गुस्से और विरोध का शिकार होना शुरू हुए थे तब डॉक्टर पल्लव अग्रवाल मंच पर राकेश सिंघल के पास में ही खड़े हुए थे, लेकिन जैसे ही मामला बढ़ा - डॉक्टर पल्लव अग्रवाल चुपचाप सरक कर किनारे हो गए और तमाशा देखने लगे । उस हल्ले-हंगामे को देख कर दीपक बाबू की तो मानों बाछें खिल गई थीं - मंच पर राकेश सिंघल मुसीबत में फँसे थे, लेकिन दीपक बाबू उनकी मुसीबत में अपने लिए गवर्नर की कुर्सी को पक्का होता हुआ 'देख' रहे थे । कार्यक्रम-स्थल पर शोर मचा हुआ था, डिस्ट्रिक्ट गवर्नर राकेश सिंघल मुसीबत में फँसे हुए थे और अकेले थे - लेकिन दीपक बाबू पीछे खड़े होकर वर्ष 2016-17 की डिस्ट्रिक्ट टीम 'बना' रहे थे । अपने आसपास उन्हें जो कोई राकेश सिंघल के खिलाफ गुस्सा दिखाता हुआ मिल/दिख रहा था, उसे वह नाम लेकर संबोधित कर रहे थे - इतना गुस्सा क्यों हों, डिस्ट्रिक्ट में साथ मिल कर काम करेंगे । दीपक बाबू की तरफ से यह इशारा था कि गुस्सा छोड़ों और उनकी डिस्ट्रिक्ट टीम के लिए अपना नाम लिखवाओ ।
राकेश सिंघल की बदकिस्मती यह है कि जिन दीपक बाबू को फायदा पहुँचाने के लिए उन्होंने आफत और बदनामी मोल ली है, उन दीपक बाबू और उनके समर्थकों ने भी राकेश सिंघल से किनारा कर लिया है । मुजफ्फरनगर का कार्यक्रम एक तरह से डिस्ट्रिक्ट रोटरी फाउंडेशन चेयरमैन डॉक्टर पल्लव अग्रवाल का कार्यक्रम था, जो दीपक बाबू के सबसे बड़े समर्थक के रूप में पहचाने जाते हैं । उक्त कार्यक्रम में जब राकेश सिंघल लोगों के गुस्से और विरोध का शिकार होना शुरू हुए थे तब डॉक्टर पल्लव अग्रवाल मंच पर राकेश सिंघल के पास में ही खड़े हुए थे, लेकिन जैसे ही मामला बढ़ा - डॉक्टर पल्लव अग्रवाल चुपचाप सरक कर किनारे हो गए और तमाशा देखने लगे । उस हल्ले-हंगामे को देख कर दीपक बाबू की तो मानों बाछें खिल गई थीं - मंच पर राकेश सिंघल मुसीबत में फँसे थे, लेकिन दीपक बाबू उनकी मुसीबत में अपने लिए गवर्नर की कुर्सी को पक्का होता हुआ 'देख' रहे थे । कार्यक्रम-स्थल पर शोर मचा हुआ था, डिस्ट्रिक्ट गवर्नर राकेश सिंघल मुसीबत में फँसे हुए थे और अकेले थे - लेकिन दीपक बाबू पीछे खड़े होकर वर्ष 2016-17 की डिस्ट्रिक्ट टीम 'बना' रहे थे । अपने आसपास उन्हें जो कोई राकेश सिंघल के खिलाफ गुस्सा दिखाता हुआ मिल/दिख रहा था, उसे वह नाम लेकर संबोधित कर रहे थे - इतना गुस्सा क्यों हों, डिस्ट्रिक्ट में साथ मिल कर काम करेंगे । दीपक बाबू की तरफ से यह इशारा था कि गुस्सा छोड़ों और उनकी डिस्ट्रिक्ट टीम के लिए अपना नाम लिखवाओ ।
मुजफ्फरनगर में मचे हाय-हल्ले के बाद दीपक बाबू जिन लोगों से भी मिले हैं, उनमें से जिनसे भी
इन पंक्तियों के लेखक की बात हो सकी है उन सभी ने इस बात को खास तौर से
रेखांकित किया कि दीपक बाबू ने तो डिस्ट्रिक्ट गवर्नर की तरह बात/व्यवहार
करना शुरू कर दिया है । कुछेक पूर्व गवर्नर तक ने दीपक बाबू के तेवरों
में आये बदलाव को महसूस किया और बताया कि दीपक बाबू तो अपने आप को गवर्नर
मानने लगे हैं । रोटरी के इतिहास में शायद यह पहला मौका होगा जबकि एक
संभावित उम्मीदवार की उम्मीदवारी अधिकृत रूप से अभी घोषित भी नहीं हुई है,
लेकिन वह अपने आप को विजेता न सिर्फ मानने लगा है, बल्कि विजेता की तरफ
बात/व्यवहार भी करने लगा है ।
दीपक बाबू को यह हौंसला राकेश सिंघल के रवैये से मिला है । डिस्ट्रिक्ट
गवर्नर राकेश सिंघल ने जिन नियम/कानून का हवाला देकर दिवाकर अग्रवाल की
उम्मीदवारी को संदेह के घेरे में ला दिया है, उन्हीं नियम/कानून के तहत
दीपक बाबू की उम्मीदवारी भी निरस्त होती है - इसे लेकर बाकायदा शिकायत भी
दर्ज करवाई गई है । दीपक बाबू को लेकिन भरोसा है कि राकेश सिंघल उनकी
उम्मीदवारी को लेकर हुई शिकायत पर कोई कार्रवाई नहीं करेंगे और दिवाकर
अग्रवाल को छोड़ेंगे नहीं ।
मजे की बात है कि दीपक बाबू ने इस वर्ष अपनी उम्मीदवारी के पक्ष में समर्थन बनाने/जुटाने हेतु कोई सक्रियता नहीं दिखाई । इस कारण से बीच में बहुत दिनों तक तो लोगों के बीच यही चर्चा रही कि दीपक बाबू की उम्मीदवारी प्रस्तुत नहीं होगी । इस चर्चा के पीछे लोगों का यही तर्क रहा कि कोई यदि अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत करना चाहता है तो इस तरह से डिस्ट्रिक्ट की गतिविधियों और कार्यक्रमों से लगातार गायब नहीं रह सकता । लेकिन जब डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए नामांकन करने का समय आया और दीपक बाबू की उम्मीदवारी प्रस्तुत हुई तो हर किसी को हैरानी हुई कि दीपक बाबू ने किसके भरोसे अपना नामांकन दिया है । मोटे तौर पर यह मान लिया गया कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर ने मदद का भरोसा देकर दीपक बाबू को उम्मीदवार बनवा दिया है । इस तरह की बातें होती ही हैं इसलिए इस पर कोई खास गहमागहमी नहीं हुई । लेकिन दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी पर निरस्ती की तलवार लटका कर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर ने मामले को गर्मा दिया । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर अधिकृत रूप से फैसला अभी तक भी नहीं ले सके हैं - इससे जाहिर है कि अपने 'तरीके' पर उन्हें खुद भरोसा नहीं है । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर राकेश सिंघल के रवैये ने अपने आपको ही विवाद के केंद्र में खड़ा कर लिया है ।
मजे की बात है कि दीपक बाबू ने इस वर्ष अपनी उम्मीदवारी के पक्ष में समर्थन बनाने/जुटाने हेतु कोई सक्रियता नहीं दिखाई । इस कारण से बीच में बहुत दिनों तक तो लोगों के बीच यही चर्चा रही कि दीपक बाबू की उम्मीदवारी प्रस्तुत नहीं होगी । इस चर्चा के पीछे लोगों का यही तर्क रहा कि कोई यदि अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत करना चाहता है तो इस तरह से डिस्ट्रिक्ट की गतिविधियों और कार्यक्रमों से लगातार गायब नहीं रह सकता । लेकिन जब डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए नामांकन करने का समय आया और दीपक बाबू की उम्मीदवारी प्रस्तुत हुई तो हर किसी को हैरानी हुई कि दीपक बाबू ने किसके भरोसे अपना नामांकन दिया है । मोटे तौर पर यह मान लिया गया कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर ने मदद का भरोसा देकर दीपक बाबू को उम्मीदवार बनवा दिया है । इस तरह की बातें होती ही हैं इसलिए इस पर कोई खास गहमागहमी नहीं हुई । लेकिन दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी पर निरस्ती की तलवार लटका कर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर ने मामले को गर्मा दिया । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर अधिकृत रूप से फैसला अभी तक भी नहीं ले सके हैं - इससे जाहिर है कि अपने 'तरीके' पर उन्हें खुद भरोसा नहीं है । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर राकेश सिंघल के रवैये ने अपने आपको ही विवाद के केंद्र में खड़ा कर लिया है ।
यह स्थिति दीपक बाबू को बहुत रास आ रही है । इस स्थिति के
चलते दीपक बाबू को उम्मीदवार 'बनने' की जरूरत ही नहीं है । उन्हें विश्वास
है कि राकेश सिंघल अब दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी को मान्य होने ही नहीं
देंगे और ऐसे में वह बिना कुछ किये-धरे डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी घोषित हो
जायेंगे । इसीलिए राकेश सिंघल की फजीहत में दीपक बाबू और उनके नजदीकियों को मजा आ रहा है और खुशी मिल रही है ।