नई दिल्ली । विक्रम शर्मा ने ठंड में
ठिठुरते लोगों की चिंता करते हुए जिस मेगा प्रोजेक्ट का आयोजन किया है,
उससे जरूरतमंदों को गर्मी का अहसास तो बाद में होगा - उससे पहले लेकिन
डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के खिलाड़ियों में गर्मी जरूर पैदा हो गई है
। विक्रम शर्मा के इस आयोजन को डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के संबंध में मास्टर स्ट्रोक के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है ।
उनकी उम्मीदवारी के समर्थकों का ही नहीं, विरोधियों का भी मानना और कहना
है कि विक्रम शर्मा ने 'कंबल और स्वेटर वितरण' के कार्यक्रम को जिस
होशियारी से अंजाम दिया है उसके चलते सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की चुनावी दौड़ में उनके नंबर अचानक से बढ़ गए हैं । उनके इस कार्यक्रम की टाइमिंग को पूरी तरह परफेक्ट माना जा रहा है ।
विक्रम शर्मा इस तरह के प्रोजेक्ट्स नियमित रूप से करते रहे हैं । अपने
क्लब में उनका जैसा प्रभाव है तथा समाज के दूसरे सक्रिय लोगों के बीच उनकी
जैसी पैठ है - उसके चलते उनके द्धारा और या उनकी प्रेरणा से अलग-अलग तरह के
प्रोजेक्ट्स समय समय पर होते रहे हैं । इसी कारण से विक्रम शर्मा को
'मैन ऑफ प्रोजेक्ट्स' भी कहा जाता रहा है । प्रोजेक्ट्स के माध्यम से ही
विक्रम शर्मा ने डिस्ट्रिक्ट में अपनी पहचान को न सिर्फ बनाया है बल्कि
अपनी पहचान को निरंतर समृद्ध भी किया है । इस पहचान का लेकिन वह कभी
राजनीतिक फायदा नहीं उठा सके । इस वर्ष भी, विक्रम शर्मा ने जब सेकेंड वाइस
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत करने के संकेत
दिए तो उन्होंने प्रोजेक्ट्स के माध्यम से भी अपनी उम्मीदवारी के लिए
समर्थन जुटाने का प्रयास किया । यह प्रयास लेकिन कामयाब होता हुआ नहीं
दिखा । दरअसल इस 'प्रयास' को जिस राजनीतिक हुनर के साथ इस्तेमाल होना चाहिए
था, वह राजनीतिक हुनर विक्रम शर्मा नहीं सीख पाये या इस्तेमाल नहीं कर
पाये ।
एक जनवरी को होने जा रहे प्रोजेक्ट को विक्रम शर्मा ने चूँकि राजनीतिक ऐंगल से संयोजित किया है - तो उसका असर भी होता 'दिख' रहा है ।
डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के संदर्भ में यह वर्ष खासा दिलचस्प हो गया
है । चुनावी नजरिये से बने खेमों के पास अपने अपने भरोसे के उम्मीदवार ही
नहीं हैं और इस कारण जो उम्मीदवार हैं उनकी स्वीकार्यता को लेकर असमंजस बना
हुआ है । डिस्ट्रिक्ट में पहली बार ऐसा हुआ है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर को
चुनाव में कोई दिलचस्पी नहीं है । उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर
आमतौर पर चुनाव इसलिए चाहते हैं जिससे कि क्लब्स के ड्यूज तो मिल ही जाते
हैं, साथ ही उम्मीदवारों के भरोसे दूसरे कई तरह के खर्चों का जुगाड़ भी हो
जाता है । डिस्ट्रिक गवर्नर को प्रायः अपना एक 'क्लोन' बनाने का भी शौक
होता है, जिसके जरिये वह दिखाता/बताता रहता है कि उसे उसने गवर्नर 'बनाया'
है । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में विजय शिरोहा ने लेकिन न तो
उम्मीदवारों के जरिये खर्चों का जुगाड़ करने में कोई दिलचस्पी दिखाई है और न
उन्होंने अपना कोई 'क्लोन' तैयार करने का विचार किया । इसके चलते 'उनका'
कोई उम्मीदवार नहीं आया और जो आये उनमें से कोई 'उनका' उम्मीदवार बना नहीं ।
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में विजय शिरोहा ने उम्मीदवार
'बनाने' में भले ही दिलचस्पी न ली हो, लेकिन डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति
में उनकी भूमिका को निर्णायक महत्ता जरूर मिली । इसका नतीजा यह रहा कि
डिस्ट्रिक्ट में चुनावी राजनीति के खिलाड़ियों के लिए उम्मीदवार का चुनाव
करना मुश्किल हो गया । विजय शिरोहा की राजनीति के सामने विरोधी खेमे के
नेताओं ने तो कोशिश किये बिना ही समर्पण कर दिया और कोई उम्मीदवार न लाने
की घोषणा कर दी । जिन विक्रम शर्मा को विरोधी खेमे के नजदीक समझा जाता था,
उन विक्रम शर्मा ने लेकिन विजय शिरोहा पर भरोसा करना ज्यादा मुनासिब समझा ।
विरोधी खेमे के नेताओं ने फिर ओंकार सिंह को उम्मीदवार बनाने का प्रयास
किया, लेकिन विजय शिरोहा के प्रभाव को देखते/पहचानते हुए ओंकार सिंह ने
उनके झाँसे में आने से साफ इंकार कर दिया । विरोधी खेमे को तो समर्पण
के लिए मजबूर होना ही पड़ा, सत्ता खेमे के नेताओं के लिए भी उम्मीदवार तय
करना मुश्किल हुआ - और यही वजह है कि अभी तक भी, जबकि चुनाव होने में एक
माह का समय ही रह गया है, उम्मीदवार का 'चयन' नहीं हो सका है ।
ऐसे में, विक्रम शर्मा ने विजय शिरोहा की 'कमजोरी' को पहचाना और मेगा प्रोजेक्ट की रूपरेखा तैयार कर ली । विजय
शिरोहा में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स में आमतौर पर पाई जाने वाली 'कमजोरियाँ'
तो नहीं हैं; किंतु चूँकि हर व्यक्ति में कोई न कोई कमजोरी तो होती ही है
लिहाजा विक्रम शर्मा ने यह पहचानने में देर तो की लेकिन देर से ही सही यह
पहचान लेने में सफलता पाई कि विजय शिरोहा की भी एक बड़ी कमजोरी है और वह यह
कि विजय शिरोहा डिस्ट्रिक्ट में प्रोजेक्ट्स होते हुए देखना चाहते हैं । विक्रम शर्मा ने भाँप लिया कि प्रोजेक्ट को राजनीतिक ट्विस्ट देकर वह विजय शिरोहा का समर्थन पा सकते हैं । एक
जनवरी के प्रोजेक्ट के जरिये विक्रम शर्मा ने एक तरफ डिस्ट्रिक्ट की
गतिविधि से जुड़ने का प्रयास किया और दूसरी तरफ विजय शिरोहा की राजनीतिक
स्थिति को मान्यता और पहचान को स्वीकार किया ।
इस प्रोजेक्ट से विक्रम शर्मा को सचमुच क्या राजनीतिक फायदा होगा - इसका पता तो अभी कुछ दिन बाद मालुम होगा; लेकिन अभी इस प्रोजेक्ट के चलते उनकी उम्मीदवारी के बारे में एक सकारात्मक माहौल तो बन ही गया है ।
इससे जाहिर है कि विक्रम शर्मा का यह दाँव तो ठीक पड़ा है - देखने की बात
यह होगी कि इस दाँव को चलने के बाद उनकी अगली चाल क्या होगी, जिससे कि बाजी
सचमुच में उनके हाथ आ सके ।