नई दिल्ली । विक्रम शर्मा ने
सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए अपनी उम्मीदवारी को हर हाल में
प्रस्तुत करने का दावा करके डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के दोनों खेमों
के नेताओं को राजनीतिक रूप से असमंजस में डाल दिया है, जिसके चलते दोनों खेमों के नेताओं के लिए अपने अपने उम्मीदवार तय कर पाना मुश्किल हो गया है ।
डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में नेताओं के बीच उम्मीदवार को लेकर जैसा
असमंजस इस बार दिख रहा है, वैसा शायद ही कभी रहा/दिखा हो । वोटों की गणना
और अपने प्रभाव क्षेत्र के विस्तार के संदर्भ में बढ़त बनाते दिख रहे सत्ता
खेमे के लिए भी अपने उम्मीदवार का चयन करना चुनौतीपूर्ण बना हुआ है, तो
विरोधी खेमे के लिए तो हालात और भी पतले बने हुए हैं । मजे की बात यह है
कि सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए जो दो उम्मीदवार - विक्रम
शर्मा और आरके शाह - मैदान में दिख रहे हैं उन्हें दोनों ही तरफ समर्थन और
विरोध का सामना करना पड़ रहा है; और इसीलिये दोनों ही तरफ के नेता फैसला
नहीं कर पा रहे हैं ।
विक्रम शर्मा को विरोधी खेमे के नेताओं के नजदीक देखा/माना जाता
रहा है, लेकिन उन्होंने सत्ता खेमे के सबसे प्रभावी केंद्र - डिस्ट्रिक्ट
गवर्नर विजय शिरोहा से नजदीकी बनाने की जो कोशिश की उसके चलते उनके सत्ता
खेमे का उम्मीदवार बनने की संभावना बलवती हुई । सत्ता खेमे के दूसरे
नेताओं को लेकिन उनकी उम्मीदवारी से चूँकि विरोध है इसलिए सत्ता खेमे में
विक्रम शर्मा की उम्मीदवारी को हरी झंडी नहीं मिल पा रही है । मजेदार दृश्य
लेकिन आरके शाह को लेकर बन रहा है । आरके शाह को यूँ तो सत्ता खेमे के
नजदीक माना/पहचाना जाता है लेकिन उनकी उम्मीदवारी को समर्थन सत्ता खेमे से
भी ज्यादा विरोधी खेमे में है । विरोधी खेमे के नेता 'अपना' होने के
बावजूद विक्रम शर्मा की उम्मीदवारी को समर्थन देने को तैयार नहीं दिख रहे
हैं तो इसलिए क्योंकि वे मान/समझ रहे हैं कि विक्रम शर्मा की उम्मीदवारी
उनको कुछ 'देगी/दिलवायेगी' नहीं । 'पराया' होने के बावजूद, आरके शाह की उम्मीदवारी में विरोधी खेमे के नेताओं को सत्ता खेमा चूँकि 'टूटता' हुआ दिख रहा है इसलिए वे आरके शाह की उम्मीदवारी को लेकर ज्यादा उत्साहित हैं । आरके शाह लेकिन सत्ता खेमे से ही उम्मीदवार होने में अपनी भलाई देख रहे हैं ।
आरके
शाह सत्ता खेमे के उम्मीदवार हो भी जाते, यदि वह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विजय
शिरोहा से मिली जिम्मेदारियों का ठीक से निर्वाह कर पाते । अपने खेमे के
'उम्मीदवार' के रूप में आरके शाह को आगे बढ़ाने के उद्देश्य से विजय शिरोहा
ने आरके शाह को महत्वपूर्ण जिम्मेदारियाँ दी थीं; ऐसा करते हुए उन्होंने उम्मीद की थी कि आरके शाह उन जिम्मेदारियों का निर्वाह करते हुए एक उम्मीदवार के रूप में लोगों के बीच अपनी पैठ भी बनायेंगे और इसके साथ ही सत्ता खेमे के नेताओं के बीच अपनी उम्मीदवारी के प्रति स्वीकार्यता भी स्थापित करेंगे ।
आरके शाह लेकिन यह सब करने में चूक गए और इसका फायदा विक्रम शर्मा ने
उठाया । विक्रम शर्मा ने भी लेकिन आधा-अधूरा काम किया - उन्होंने विजय
शिरोहा के यहाँ तो अपनी पैठ बनाई,लेकिन सत्ता खेमे के दूसरे नेताओं को इग्नोर किया । उनके इसी रवैये के कारण उनका बनता हुआ काम रुक-रुक जा रहा है ।
विक्रम शर्मा ने लेकिन 'हर हाल में अपनी उम्मीदवारी' का दाँव चल कर डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में गर्मी ला दी है । उन्होंने लोगों के बीच कहना शुरू कर दिया है कि डिस्ट्रिक्ट के अधिकतर नेताओं का भी और लोगों का भी समर्थन उनके साथ है, इसलिए उनके समर्थन के भरोसे वह अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत करेंगे । विक्रम शर्मा ने कहीं-कहीं
लोगों को कहा/बताया है कि उनके समर्थक चूँकि दोनों खेमों में बँटे हुए हैं
इसलिए खेमेबाजी की राजनीति के चलते उनकी उम्मीदवारी तय नहीं हो पा रही है,
लेकिन उनकी उम्मीदवारी ही खेमेबाजी की दीवारों को तोड़ेगी और उनकी
उम्मीदवारी को हर किसी का समर्थन मिल जायेगा । विक्रम शर्मा के नजदीकियों
के अनुसार, विक्रम शर्मा को यह कॉन्फीडेंस संभवतः इस आधार पर मिला है कि आरके शाह को सत्ता खेमा अपना उम्मीदवार बनाएगा नहीं; विरोधी खेमे की तरफ से आरके शाह उम्मीदवार बनेंगे नहीं; और सत्ता खेमे के नेताओं की किसी तीसरे को उम्मीदवार के रूप में लाने की कोशिश सफल नहीं हो पायेगी । ऐसे में, विक्रम शर्मा के सामने कोई चुनौती बची नहीं रह जायेगी ।
विक्रम शर्मा हालाँकि अभी भी सत्ता खेमे का 'टिकट' पाने का भी
प्रयास कर रहे हैं - यह प्रयास वह दो कारणों से करते लग रहे हैं : एक कारण
तो यह हो सकता है कि उनका प्रयास यदि सफल हो जाता है तो उनका रास्ता और
आसान हो जायेगा; दूसरा कारण यह हो सकता है कि उनका यह प्रयास सत्ता खेमे
में आरके शाह या किसी अन्य की स्वीकार्यता को बनाने में बाधा का काम करता
रहेगा; जिसका फायदा उन्हें संभावित लड़ाई - यदि उसके होने की नौबत आई ही -
में मिल सकेगा ।
विक्रम शर्मा के इस पैंतरे ने दोनों
खेमे के नेताओं को असमंजस में डाला हुआ है । दोनों तरफ के नेताओं के लिए यह
समझना मुश्किल हो रहा है कि विक्रम शर्मा के दावे को वह कितनी तवज्जो दें -
या न दें । विरोधी खेमे के नेताओं के असमंजस का कारण यह है कि जो
विक्रम शर्मा उन्हें महत्व ही नहीं दे रहे हैं और सत्ता खेमे के उम्मीदवार
होने का प्रयास कर रहे हैं, उन्हें वह किस मुँह से समर्थन घोषित करें और
कैसे करें ? सत्ता खेमे के नेताओं के लिए यह समझना मुश्किल हो रहा है कि विक्रम शर्मा की चुनौती कहीं उनका जमा-जमाया खेल तो न बिगाड़ देगी ।
वोटों के गणित के अनुसार, यूँ तो संभावित चुनावी मुकाबले में सत्ता खेमे का पलड़ा भारी नजर आता है;
लेकिन चुनावी मुकाबले में उम्मीदवार की दौड़-भाग भी फैसला करती/करवाती है
और वोटों की बढ़त धरी रह जाती है - इसे चुनावी राजनीति का हर खिलाड़ी
जनता/समझता ही है । इसी बिना पर सत्ता खेमे के नेता यह आकलन करने के
लिए मजबूर हो रहे हैं कि मुकाबले पर यदि विक्रम शर्मा हुए तो आरके शाह या
किसी दूसरे उम्मीदवार को लेकर चुनाव में उतरा जा सकेगा क्या ?
दरअसल इसीलिये विक्रम शर्मा के नए पैंतरे ने चुनावी राजनीति के दिग्गज नेताओं को फैसला करने से फ़िलहाल रोक लिया है ।
दरअसल इसीलिये विक्रम शर्मा के नए पैंतरे ने चुनावी राजनीति के दिग्गज नेताओं को फैसला करने से फ़िलहाल रोक लिया है ।