नई
दिल्ली । यशपाल अरोड़ा के एक बार फिर से सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद
का उम्मीदवार बन जाने से डिस्ट्रिक्ट 321 ए टू के सत्ता खेमे में भारी
उथल-पुथल होने का लोग अनुमान लगा रहे हैं, और प्रतिद्धंद्धी खेमा इस बात का
फायदा उठाने की पुरजोर कोशिश कर रहा है । पिछले दिनों में उम्मीदवारों
की जिस तरह से अदला-बदली हुई है, उसे लेकर डिस्ट्रिक्ट में लोगों के बीच
जो सवाल पैदा हुए हैं - उनके संतोषजनक जबाव दे पाना सत्ता खेमे के नेताओं
के लिए मुश्किल हो रहा है, जिसका नतीजा यह दिख रहा है कि सत्ता खेमे की
एकता सवालों के घेरे में आ रही है । उल्लेखनीय है कि पहले सत्ता खेमे की
तरफ से यशपाल अरोड़ा ही सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के उम्मीदवार थे,
लेकिन करीब दो महीने पहले उनकी उम्मीदवारी अचानक से वापस हो गई - और उनकी
जगह मुकेश गोयल ने ले ली । यशपाल अरोड़ा की उम्मीदवारी के वापस होने का
औपचारिक कारण उनका बीमार होना बताया गया था । लोगों से कहा/बताया गया था कि
अचानक से बीमार होने के कारण डॉक्टर्स ने उन्हें थकान से बचने को कहा है
और इसलिए कई महीनों तक उनके लिए यात्रा करना संभव नहीं होगा - और इस कारण
से उनके लिए एक उम्मीदवार के रूप में सक्रिय रह पाना मुश्किल होगा ।
हालाँकि बीमार होने तथा उम्मीदवारी के वापस होने के कुछ ही दिन बाद यशपाल
अरोड़ा लोगों के बीच सक्रिय दिखने लगे थे । उनकी सक्रियता देख कर लोगों को
शक भी हुआ कि उनकी उम्मीदवारी वापस कराने के मामले में उनकी बीमारी को कहीं
बहाने के रूप में तो इस्तेमाल नहीं किया गया है ?
बाद के दिनों में यशपाल अरोड़ा जिस तरह की बातें करते हुए सुने गए, उससे उक्त शक सच्चाई में बदलता दिखने भी लगा । दरअसल यशपाल अरोड़ा अपने नजदीकियों से कहने/बताने लगे कि कैसे उनकी बीमारी को इस्तेमाल करते हुए उन्हें उम्मीदवारी वापस लेने के लिए 'तैयार' किया गया और उनके साथ धोखा हुआ । यशपाल अरोड़ा ने इसके लिए कभी संकेतों में तो कभी स्पष्ट रूप में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनय गर्ग को जिम्मेदार ठहराया । यशपाल अरोड़ा का आरोप रहा कि विनय गर्ग ने उनकी बीमारी को लेकर उनके परिवार के सदस्यों को इतना डराया कि उनका परिवार उनकी उम्मीदवारी के खिलाफ हो गया और फिर परिवार के दबाव में उन्हें अपनी उम्मीदवारी को वापस लेने के लिए मजबूर होना पड़ा । यशपाल अरोड़ा की शिकायत रही कि विनय गर्ग ने एक तरफ तो उनके परिवार को उनकी उम्मीदवारी के खिलाफ भड़का दिया; और दूसरी तरफ उन पर जल्दी से यह तय करने का दबाव बनाया कि उम्मीदवार रहोगे या नहीं ? इस दोहरे दबाव को यशपाल अरोड़ा झेल नहीं पाए और उनकी उम्मीदवारी वापस हो गई । उम्मीदवारी वापस होने के बाद, यशपाल अरोड़ा ने जब अपने आपको स्वस्थ होते हुए पाया और यह जाना कि उनकी बीमारी ऐसी नहीं थी जिसमें उन्हें लंबे समय तक आराम करने की जरूरत पड़ती; तब उन्हें महसूस हुआ कि उनके साथ धोखा किया गया है ।
उनकी उम्मीदवारी को जल्दी से वापस करवा कर आनन-फानन में मुकेश गोयल को उम्मीदवार 'बनाने' में जो तत्परता दिखाई गई, उसे देख भी यशपाल अरोड़ा को धोखे वाली फीलिंग आई । उस दौरान प्रकाशित 'रचनात्मक संकल्प' ने अपनी एक रिपोर्ट में इस तथ्य को रेखांकित भी किया था कि मुकेश गोयल की उम्मीदवारी को प्रस्तुत करने में जो जल्दीबाजी की जा रही है, उसे लेकर सत्ता खेमे के नेताओं के बीच मतभेद हैं । बीमारी से उबरते उबरते हुए यशपाल अरोड़ा ने जिस तरह की सक्रियता दिखाई, उसके पीछे अपनी उम्मीदवारी को वापस पाने की उनकी इच्छा और कोशिश को भी देखा/पहचाना गया । उन्होंने सत्ता खेमे अपने नजदीकी नेताओं से कहा भी कि इस वर्ष उम्मीदवार होने के लिए उन्होंने बहुत मेहनत और तैयारी की है, और कि उनके लिए इस वर्ष सफल होना आसान है - इसलिए उन्हें इसी वर्ष उम्मीदवार होना है । यशपाल अरोड़ा की खुशकिस्मती रही कि उम्मीदवार के रूप में मुकेश गोयल द्धारा अपनाए/दिखाए जा रहे रवैये से सत्ता खेमे के नेता कोई ज्यादा खुश नहीं हो रहे थे । इससे भी ज्यादा बड़ी खुशकिस्मती की बात यह रही कि इस बीच कुछ ऐसी स्थितियाँ बनी कि सत्ता खेमे के नेताओं को मुकेश गोयल की उम्मीदवारी से पीछा छुड़ाना आसान हो गया ।
'पहले' की तरह ही इस बार भी सत्ता खेमे की तरफ से हालाँकि दिखाया/बताया तो यही गया है कि उम्मीदवारी का ट्रांसफर आपसी सहमति से हुआ है और खेमे में सब ठीक-ठाक है; लेकिन यशपाल अरोड़ा के फिर से उम्मीदवार बन जाने पर मुकेश गोयल के नजदीकी जिस तरह से भड़के हुए हैं - उससे लग रहा है कि सत्ता खेमे में भीतर ही भीतर खासी खलबली है । मुकेश गोयल के नजदीकियों को लग रहा है कि जिन बातों को लेकर मुकेश गोयल की उम्मीदवारी को वापस कराया गया है, वह कोई बहुत गंभीर बातें नहीं हैं; चुनावी राजनीति में आरोप-प्रत्यारोप लगते ही हैं और उनका सामना किया जाता है - मुकेश गोयल को लेकर जो कुछ कहा जा रहा था, उसका जबाव दिया ही जा रहा था और उन बातों को निष्प्रभावी बनाया जा रहा था । लेकिन अचानक से जिस तरह मुकेश गोयल की उम्मीदवारी को वापस करा कर यशपाल अरोड़ा को फिर से उम्मीदवार बना दिया गया है - उससे लग रहा है कि सत्ता खेमे के नेताओं में सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के उम्मीदवारों को लेकर भारी मतभेद हैं । पिछली बार यशपाल अरोड़ा ने अपने साथ हुए धोखे की शिकायत की थी, अब की बार मुकेश गोयल ने अपने आप को ठगा हुआ पाया है । सत्ता खेमे में उम्मीदवारों को लेकर होने वाली इस उथल-पुथल ने प्रतिद्धंद्धी खेमे के नेताओं को खासा उत्साहित किया है, और वह इस स्थिति का फायदा उठाने की कोशिशों में जुट गए हैं ।
बाद के दिनों में यशपाल अरोड़ा जिस तरह की बातें करते हुए सुने गए, उससे उक्त शक सच्चाई में बदलता दिखने भी लगा । दरअसल यशपाल अरोड़ा अपने नजदीकियों से कहने/बताने लगे कि कैसे उनकी बीमारी को इस्तेमाल करते हुए उन्हें उम्मीदवारी वापस लेने के लिए 'तैयार' किया गया और उनके साथ धोखा हुआ । यशपाल अरोड़ा ने इसके लिए कभी संकेतों में तो कभी स्पष्ट रूप में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनय गर्ग को जिम्मेदार ठहराया । यशपाल अरोड़ा का आरोप रहा कि विनय गर्ग ने उनकी बीमारी को लेकर उनके परिवार के सदस्यों को इतना डराया कि उनका परिवार उनकी उम्मीदवारी के खिलाफ हो गया और फिर परिवार के दबाव में उन्हें अपनी उम्मीदवारी को वापस लेने के लिए मजबूर होना पड़ा । यशपाल अरोड़ा की शिकायत रही कि विनय गर्ग ने एक तरफ तो उनके परिवार को उनकी उम्मीदवारी के खिलाफ भड़का दिया; और दूसरी तरफ उन पर जल्दी से यह तय करने का दबाव बनाया कि उम्मीदवार रहोगे या नहीं ? इस दोहरे दबाव को यशपाल अरोड़ा झेल नहीं पाए और उनकी उम्मीदवारी वापस हो गई । उम्मीदवारी वापस होने के बाद, यशपाल अरोड़ा ने जब अपने आपको स्वस्थ होते हुए पाया और यह जाना कि उनकी बीमारी ऐसी नहीं थी जिसमें उन्हें लंबे समय तक आराम करने की जरूरत पड़ती; तब उन्हें महसूस हुआ कि उनके साथ धोखा किया गया है ।
उनकी उम्मीदवारी को जल्दी से वापस करवा कर आनन-फानन में मुकेश गोयल को उम्मीदवार 'बनाने' में जो तत्परता दिखाई गई, उसे देख भी यशपाल अरोड़ा को धोखे वाली फीलिंग आई । उस दौरान प्रकाशित 'रचनात्मक संकल्प' ने अपनी एक रिपोर्ट में इस तथ्य को रेखांकित भी किया था कि मुकेश गोयल की उम्मीदवारी को प्रस्तुत करने में जो जल्दीबाजी की जा रही है, उसे लेकर सत्ता खेमे के नेताओं के बीच मतभेद हैं । बीमारी से उबरते उबरते हुए यशपाल अरोड़ा ने जिस तरह की सक्रियता दिखाई, उसके पीछे अपनी उम्मीदवारी को वापस पाने की उनकी इच्छा और कोशिश को भी देखा/पहचाना गया । उन्होंने सत्ता खेमे अपने नजदीकी नेताओं से कहा भी कि इस वर्ष उम्मीदवार होने के लिए उन्होंने बहुत मेहनत और तैयारी की है, और कि उनके लिए इस वर्ष सफल होना आसान है - इसलिए उन्हें इसी वर्ष उम्मीदवार होना है । यशपाल अरोड़ा की खुशकिस्मती रही कि उम्मीदवार के रूप में मुकेश गोयल द्धारा अपनाए/दिखाए जा रहे रवैये से सत्ता खेमे के नेता कोई ज्यादा खुश नहीं हो रहे थे । इससे भी ज्यादा बड़ी खुशकिस्मती की बात यह रही कि इस बीच कुछ ऐसी स्थितियाँ बनी कि सत्ता खेमे के नेताओं को मुकेश गोयल की उम्मीदवारी से पीछा छुड़ाना आसान हो गया ।
'पहले' की तरह ही इस बार भी सत्ता खेमे की तरफ से हालाँकि दिखाया/बताया तो यही गया है कि उम्मीदवारी का ट्रांसफर आपसी सहमति से हुआ है और खेमे में सब ठीक-ठाक है; लेकिन यशपाल अरोड़ा के फिर से उम्मीदवार बन जाने पर मुकेश गोयल के नजदीकी जिस तरह से भड़के हुए हैं - उससे लग रहा है कि सत्ता खेमे में भीतर ही भीतर खासी खलबली है । मुकेश गोयल के नजदीकियों को लग रहा है कि जिन बातों को लेकर मुकेश गोयल की उम्मीदवारी को वापस कराया गया है, वह कोई बहुत गंभीर बातें नहीं हैं; चुनावी राजनीति में आरोप-प्रत्यारोप लगते ही हैं और उनका सामना किया जाता है - मुकेश गोयल को लेकर जो कुछ कहा जा रहा था, उसका जबाव दिया ही जा रहा था और उन बातों को निष्प्रभावी बनाया जा रहा था । लेकिन अचानक से जिस तरह मुकेश गोयल की उम्मीदवारी को वापस करा कर यशपाल अरोड़ा को फिर से उम्मीदवार बना दिया गया है - उससे लग रहा है कि सत्ता खेमे के नेताओं में सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के उम्मीदवारों को लेकर भारी मतभेद हैं । पिछली बार यशपाल अरोड़ा ने अपने साथ हुए धोखे की शिकायत की थी, अब की बार मुकेश गोयल ने अपने आप को ठगा हुआ पाया है । सत्ता खेमे में उम्मीदवारों को लेकर होने वाली इस उथल-पुथल ने प्रतिद्धंद्धी खेमे के नेताओं को खासा उत्साहित किया है, और वह इस स्थिति का फायदा उठाने की कोशिशों में जुट गए हैं ।