चंडीगढ़ । प्रदीप अग्रवाल ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए प्रस्तुत अपनी उम्मीदवारी के लिए
समर्थन जुटाने वास्ते जो तेजी भरी सक्रियता दिखाई हुई है, उसने नवजीत सिंह
औलख - और उनके राजनीतिक गॉड फादर के रूप में देखे/पहचाने जा रहे मधुकर
मल्होत्रा के लिए भारी समस्या पैदा कर दी है । इनकी समस्या ने डिस्ट्रिक्ट के बड़े वाले गॉड फादर राजेंद्र उर्फ़ राजा साबू
की असमंजसता को सामने लाने का काम किया हुआ है । हाल के दिनों में राजा
साबू हालाँकि शांता क्लॉज तो बने हुए थे, लेकिन अपने लोगों को उपकृत करने
के मामले में उनकी दशा बड़ी सूनी सूनी नजर आई । दुबई में आयोजित हुए रोटरी जोन इंस्टीट्यूट में राजा साबू की अनुपस्थिति का खास नोटिस लिया गया - और वहाँ उनकी इस अनुपस्थिति को उनके डिस्ट्रिक्ट में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट टीके रूबी के मामले में हुई फजीहत से जोड़ कर देखा/पहचाना और बतियाया गया । राजा साबू ने हालाँकि दुबई इंस्टीट्यूट में न पहुँचने का ठीकरा
अपनी पत्नी ऊषा साबू के सिर फोड़ा । उनके नजदीकियों के अनुसार, राजा साबू ने
दुबई इंस्टीट्यूट में न आने/पहुँचने का कारण बताते हुए कहा/बताया है कि
ऊषा जी को बाहर आने-जाने में तकलीफ होने लगी है - और वह उनको साथ लिए बिना कहीं आते-जाते नहीं हैं । इस तर्क को अधिकतर लोगों ने राजा साबू की बहानेबाजी के रूप में ही लिया/समझा, (इंस्टीट्यूट के तुरंत बाद जमशेदपुर में आयोजित हुई डिस्ट्रिक्ट 3250 की डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में ऊषा जी को साथ लिए बिना उनके पहुँचने से यह बात तुरंत ही साबित भी हो गई) और यही माना कि टीके रूबी के मामले में हुई फजीहत से जुड़े सवालों से बचने के लिए ही राजा साबू ने दुबई इंस्टीट्यूट से दूर रहने का फैसला किया है । रोटरी के बड़े कार्यक्रमों में राजा साबू द्धारा की जाने वाली प्रमोशनल 'नाटकबाजी' को देखते आ रहे रोटेरियंस का कहना रहा कि राजा साबू का जोन इंस्टीट्यूट जैसे बड़े कार्यक्रम में न पहुँचना बड़ी 'घटना' है, जो वास्तव में टीके रूबी मामले में हुई फजीहत वाली घटना का 'बॉय प्रॉडक्ट' है ।
टीके रूबी मामले में हुई फजीहत ने ही राजा साबू और उनके सिपहसालारों के लिए इस वर्ष के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में असमंजस की स्थिति पैदा कर दी है - जिसके चलते उनके भरोसे रहने वाले उम्मीदवार मुसीबत में फँस गए हैं ।
डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में तुर्रमखाँ बने रहने वाले पूर्व
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स अपने अपने उम्मीदवारों से बचते/छिपते नजर आ रहे हैं ।
इस समय के डिस्ट्रिक्ट के सबसे बड़े तुर्रमखाँ मधुकर मल्होत्रा की
बेचारगी देख कर उनके भरोसे उम्मीदवारी प्रस्तुत करने वाले नवजीत सिंह औलख
अपनी उम्मीदवारी से पीछे हटते हुए दिख रहे हैं; तो अपने आप को राजा साबू के सबसे ज्यादा नजदीक मानने/समझने वाले शाजु पीटर अपने उम्मीदवार गुरदीप सिंह दीप को राजा साबू का आशीर्वाद दिलवाने में असफल रहने के बाद से बुरी तरह निराश हो गए हैं । गुरदीप सिंह दीप को लेकर शाजु पीटर बड़ी उम्मीद से राजा साबू के पास गए थे, किंतु राजा साबू ने उन्हें टका-सा जबाव देकर यह कहते हुए टरका दिया कि, 'आप तो जानते ही हैं कि डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के झंझट में मैं नहीं पड़ता हूँ ।' राजा साबू के इस बदले रूप को देख कर शाजु पीटर सकते में आ गए और उनके सामने नौ सौ चूहे खा चुकी बिल्ली के हज पर जाने की तैयारी करने वाला दृश्य कौंध गया - गुरदीप सिंह दीप के सामने उनकी जो किरकिरी हुई, सो अलग ।
अपने
अपने गॉड फादर से मदद मिलने की उम्मीद के कमजोर पड़ने के बाद से नवजीत सिंह
औलख और गुरदीप सिंह दीप के प्रचार अभियान में जो ढील पैदा हुई, उसका फायदा
उठाने में प्रदीप अग्रवाल ने जो तत्परता दिखाई - उसने सत्ता खेमे में जरूर
हलचल मचाई है । दरअसल प्रदीप अग्रवाल को भी मधुकर मल्होत्रा के 'आदमी' के रूप में देखा/पहचाना जाता है । इस
नाते से माना/समझा जा रहा है कि प्रदीप अग्रवाल को अवश्य ही मधुकर
मल्होत्रा से हरी झंडी मिली होगी; और उनसे मिली हरी झंडी के बाद ही प्रदीप
अग्रवाल ने तेजी और सक्रियता के साथ अपना अभियान शुरू किया है । मधुकर मल्होत्रा के कुछेक नजदीकियों का कहना है कि नवजीत सिंह औलख असल में मधुकर मल्होत्रा की उम्मीद के अनुसार सक्रिय नहीं हो
सके; कुछेक मौकों पर मधुकर मल्होत्रा उनसे जो पैसे खर्च करवाना चाहते थे -
नवजीत सिंह औलख ने चूँकि उसमें कोई दिलचस्पी नहीं ली, इसलिए मधुकर
मल्होत्रा ने उनकी उम्मीदवारी के समर्थन से हाथ खींच लिया है । कुछेक लोगों
को लेकिन लगता है कि मधुकर मल्होत्रा ने डिस्ट्रिक्ट की राजनीति में अपनी
जगह बढ़ाने के लिए प्रदीप अग्रवाल को आगे कर दिया है, और वह प्रदीप
अग्रवाल को सिर्फ इस्तेमाल कर रहे हैं - नवजीत सिंह औलख और प्रदीप अग्रवाल
में से किसी एक को चुनने की नौबत आएगी, तब देखियेगा कि वह प्रदीप अग्रवाल को धोखा देकर नवजीत सिंह औलख को ही चुनेंगे ।
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में सत्ता खेमे के नेताओं के सामने दरअसल जितेंद्र ढींगरा की उम्मीदवारी से
निपटने की गंभीर चुनौती है । टीके रूबी के मामले में सत्ता खेमे के नेताओं
को रोटरी इंटरनेशनल से जो झटका लगा है, उससे कम से कम सत्ता खेमे के नेताओं
को यह तो समझ में आ गया है कि उनकी मनमानियाँ मनमाने तरीके से तो अब नहीं
चलेंगी । इस माह के अंत तक टीके रूबी के मामले में रोटरी इंटरनेशनल
बोर्ड का जो फैसला आना है, उस पर भी सत्ता खेमे की भविष्य की राजनीति का
भविष्य टिका है । टीके रूबी के मामले में इंटरनेशनल बोर्ड से सत्ता खेमे के नेताओं को यदि ज्यादा तगड़ा झटका लग गया, तो फिर जितेंद्र ढींगरा की उम्मीदवारी को डिस्ट्रिक्ट में ऐसी मनोवैज्ञानिक बढ़त मिल जाएगी - जिससे निपटना सत्ता खेमे के नेताओं के लिए मुश्किल ही होगा । दरअसल इसी बात को समझते हुए सत्ता खेमे के नेताओं ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की इस वर्ष की राजनीति से अभी
अपने आप को पीछे किया हुआ है । वह टीके रूबी मामले में इंटरनेशनल बोर्ड के
फैसले का इंतजार कर लेना चाहते हैं, और उक्त फैसला आने के बाद ही वह तय
करेंगे कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की इस वर्ष की राजनीति में वह अपनी
कैसी क्या भूमिका निभाएँ - और निभाएँ भी या न निभाएँ ! सत्ता खेमे के नेताओं के इस रवैये ने उनके भरोसे रहने वाले डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवारों की मुसीबतों को बढ़ा दिया है । ऐसे में, प्रदीप अग्रवाल की अचानक से पैदा हुई/बनी सक्रियता ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी राजनीति को और दिलचस्प बना दिया है ।