नई दिल्ली । सुशील गुप्ता के
जिस सुझाव को मुद्दा बना कर रमेश अग्रवाल ने विनोद बंसल और संजय खन्ना को
अपमानित करने की कोशिश की, वह रमेश अग्रवाल को उल्टी पड़ी और फिर कई पूर्व
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स ने रमेश अग्रवाल को बुरी तरह 'धोया' । रमेश अग्रवाल
लेकिन चूँकि बेशर्म किस्म का व्यक्ति है, इसलिए यह उम्मीद तो किसी को
नहीं रही कि जो हुआ उससे रमेश अग्रवाल ने कोई सबक लिया होगा - किंतु हर
किसी ने इस बात पर बड़ी निराशा-सी व्यक्त की कि रमेश अग्रवाल को ऐसा शौक
आखिर क्यों है कि अपनी 'पिटाई' के मौके वह खुद बनाता रहता है और अपनी
खिल्ली उड़वाता है ।
मामला पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर सुशील गुप्ता के एक
सुझाव का था । सुशील गुप्ता ने एक पत्र लिख कर काउंसिल ऑफ गवर्नर्स के
सदस्यों के बीच सुझाव रखा कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर (इलेक्ट) को अपने
कार्यक्रमों को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवारों और उनके
क्लब्स से स्पॉन्सर नहीं कराना चाहिए । काउंसिल ऑफ गवर्नर्स की मीटिंग में
रमेश अग्रवाल को पता नहीं क्यों ऐसा लगा कि सुशील गुप्ता के इस सुझाव की आड़
में वह विनोद बंसल और संजय खन्ना को अपमानित कर सकते हैं । रमेश
अग्रवाल को किसी भी विषय पर चूँकि बेसिरपैर की बकवास करने की आदत है, इसलिए
वह सुशील गुप्ता के सुझाव का समर्थन करते हुए तरह-तरह की बकवास करने लगे
और किसी न किसी तरह से विनोद बंसल और संजय खन्ना को लपेटने की कोशिश करने
लगे । उन्हें रोकने की कोशिश करते हुए किसी ने उनसे कहा भी कि सुशील
गुप्ता का जो सुझाव है, उसका यहाँ कोई भी विरोध नहीं कर रहा है इसलिए इस
बारे में इतना हल्ला करने की क्या जरूरत है । किसी ने रमेश अग्रवाल को याद
दिलाया कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में उन्होंने भी तो उम्मीदवारों से
पैसे लिए थे, तो अब इस मामले में इतना क्यों बोल रहे हो ? यह बात
मुहावरे की भाषा में कहें तो रमेश अग्रवाल के मुँह पर सीधा तमाचा था -
लेकिन जैसा कि पहले कहा जा चुका है कि वह इतना बेशर्म किस्म का व्यक्ति है
कि उसे इससे कोई फर्क नहीं पड़ा और उसने उक्त मुद्दे पर अपनी बकवास करना
जारी रखा । दूसरे लोगों ने इससे यही निष्कर्ष निकाला कि रमेश अग्रवाल इस तरह से दरअसल सुशील गुप्ता को खुश करने की कोशिश कर रहे हैं ।
उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवार और उनके क्लब्स डिस्ट्रिक्ट के कार्यक्रमों को स्पॉन्सर करते ही रहे हैं । और ऐसा सिर्फ डिस्ट्रिक्ट 3010 में ही नहीं, बल्कि सभी डिस्ट्रिक्ट्स में होता है । और ऐसा सिर्फ डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवार ही नहीं करते हैं, बल्कि इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के और इंटरनेशनल प्रेसीडेंट पद के उम्मीदवार भी करते हैं । माना/समझा जाता है कि महत्वाकांक्षी और आगे बढ़ने की इच्छा रखने वाले रोटेरियन ही कार्यक्रमों को स्पॉन्सर करने के लिये आगे आयेंगे - और इसीलिए इस 'व्यवस्था' को स्वीकार कर लिया गया है । रोटरी में जो व्यवस्था सर्वमान्य रूप से स्वीकार है - और पहले डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में, तथा फिर इंटरनेशनल डायरेक्टर के रूप में जो सुशील गुप्ता खुद इस व्यवस्था को अपनाये रहे हैं वही अचानक से इस व्यवस्था के खिलाफ क्यों हो गये; यह किसी के लिए भी समझना मुश्किल रहा । अधिकतर लोगों का यही मानना/कहना रहा कि सुशील गुप्ता को समय-समय पर अपनी अहमियत दिखाने का जो शौक है, उसे पूरा करने के लिए वह इसी तरह की 'हरक़तें' करते रहते हैं । दरअसल इसीलिए किसी ने भी सुशील गुप्ता के इस सुझाव को कोई तवज्जो ही नहीं दी - न विरोध किया और न समर्थन किया । रमेश अग्रवाल ने मौका ताड़ा और सुशील गुप्ता को खुश करने के लिए भारी नाटक कर डाला । इस नाटक के जरिये रमेश अग्रवाल ने एक तरफ़ सुशील गुप्ता को खुश करने की कोशिश की तो दूसरी तरफ विनोद बंसल और संजय खन्ना को नीचा दिखाने की कोशिश की ।
उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवार और उनके क्लब्स डिस्ट्रिक्ट के कार्यक्रमों को स्पॉन्सर करते ही रहे हैं । और ऐसा सिर्फ डिस्ट्रिक्ट 3010 में ही नहीं, बल्कि सभी डिस्ट्रिक्ट्स में होता है । और ऐसा सिर्फ डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवार ही नहीं करते हैं, बल्कि इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के और इंटरनेशनल प्रेसीडेंट पद के उम्मीदवार भी करते हैं । माना/समझा जाता है कि महत्वाकांक्षी और आगे बढ़ने की इच्छा रखने वाले रोटेरियन ही कार्यक्रमों को स्पॉन्सर करने के लिये आगे आयेंगे - और इसीलिए इस 'व्यवस्था' को स्वीकार कर लिया गया है । रोटरी में जो व्यवस्था सर्वमान्य रूप से स्वीकार है - और पहले डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में, तथा फिर इंटरनेशनल डायरेक्टर के रूप में जो सुशील गुप्ता खुद इस व्यवस्था को अपनाये रहे हैं वही अचानक से इस व्यवस्था के खिलाफ क्यों हो गये; यह किसी के लिए भी समझना मुश्किल रहा । अधिकतर लोगों का यही मानना/कहना रहा कि सुशील गुप्ता को समय-समय पर अपनी अहमियत दिखाने का जो शौक है, उसे पूरा करने के लिए वह इसी तरह की 'हरक़तें' करते रहते हैं । दरअसल इसीलिए किसी ने भी सुशील गुप्ता के इस सुझाव को कोई तवज्जो ही नहीं दी - न विरोध किया और न समर्थन किया । रमेश अग्रवाल ने मौका ताड़ा और सुशील गुप्ता को खुश करने के लिए भारी नाटक कर डाला । इस नाटक के जरिये रमेश अग्रवाल ने एक तरफ़ सुशील गुप्ता को खुश करने की कोशिश की तो दूसरी तरफ विनोद बंसल और संजय खन्ना को नीचा दिखाने की कोशिश की ।
इस कोशिश में लेकिन रमेश अग्रवाल ने अपना तमाशा बनवा लिया ।
उनका तमाशा दो कारणों से बना - एक कारण तो यह रहा कि उन्होंने मामले को
'आउट ऑफ प्रोपोर्शन' प्रोजेक्ट किया; और दूसरा कारण उनके खिलाफ हुई वह
छींटाकशी बनी जिसमें कहा/सुना गया कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में अभी
पिछले रोटरी वर्ष में खुद उन्होंने क्या किया था ? काउंसिल ऑफ गवर्नर्स
की मीटिंग में कहा/सुना गया कि उम्मीदवार और उनके क्लब्स से 'काम' तो कई
गवर्नर्स ने लिए हैं, लेकिन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में रमेश अग्रवाल ने
तो उम्मीदवारों से सिर्फ़ काम नहीं निकाले बल्कि उन्हें जमकर लूटा ।
पहले समर्थन का सब्जबाग दिखा कर आलोक गुप्ता की 'जेब काटी' और फिर जब आलोक
गुप्ता का कुछ बनता हुआ नहीं दिखा तो गिरगिट की तरह रंग बदल कर जेके गौड़
का समर्थन करना शुरु किया और जेके गौड़ को बुरी तरह लूटा । रमेश अग्रवाल
अकेले डिस्ट्रिक्ट गवर्नर हैं जिन्होंने बाकायदा घोषणा की थी कि वह
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवारों को पेट्स में नहीं ले जायेंगे
- लेकिन फिर अपने ही फैसले को पलटते हुए वह उम्मीदवारों को पेट्स में ले
गये, और सिर्फ इसलिए ले गए ताकि उनसे पैसे बसूल कर सकें । सरोज जोशी और
ललित खन्ना से चूँकि वह पेट्स में पैसे नहीं ले सके इसलिए उनकी उम्मीदवारी
को ही निरस्त करने की नीचता तक करने पर रमेश अग्रवाल उतरे । वह तो जब
तत्कालीन इंटरनेशनल डायरेक्टर यशपाल दास ने रमेश अग्रवाल के 'कान उमेठे' तब
रमेश अग्रवाल ने सरोज जोशी और ललित खन्ना की उम्मीदवारी को स्वीकार किया ।
इस प्रसंग के कारण पूरे रोटरी समाज में रमेश अग्रवाल की भारी थू-थू हुई और
हर किसी का कहना रहा कि ऐसा लालची गवर्नर तो उन्होंने कहीं नहीं देखा ।
यह सच है कि पेट्स में गए उम्मीदवारों से पैसे लेने का काम कुछेक दूसरे
गवर्नर्स ने भी किया है, लेकिन रमेश अग्रवाल ने इस काम को जिस शेखचिल्लीपने
और बेशर्मी के साथ किया - वैसा उदाहरण रोटरी में दूसरा नहीं मिलेगा । काउंसिल
ऑफ गवर्नर्स की मीटिंग में यही बात हुई कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में
जिस रमेश अग्रवाल ने अभी मात्र एक वर्ष पहले शर्मनाक कारस्तानियाँ की थीं
और जिनके कारण भारी बदनामी पाई है - वह रमेश अग्रवाल अब इस मुद्दे पर किस
मुँह से बोल रहा है ?
काउंसिल ऑफ गवर्नर्स की मीटिंग में
रमेश अग्रवाल की जो फजीहत हुई उसने जेके गौड़ के लिए अजीब-सा संकट खड़ा कर
दिया है । अपनी हरकतों के कारण रमेश अग्रवाल को जिस तरह काउंसिल ऑफ
गवर्नर्स के सदस्यों के बीच ही नहीं, बल्कि डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच भी
विरोध का सामना करना पड़ रहा है - जिसकी बानगी अभी हाल ही में सीओएल के
चुनाव में उनकी दोहरी हार के रूप में देखी गई; जिसमें पहले तो वह काउंसिल
ऑफ गवर्नर्स के बीच हुए चुनाव में हारे, और फ़िर लोगों के बीच हुए चुनाव में
लोगों ने भी उन्हें दुत्कार दिया । जेके गौड़ को जैसे आभास है कि वह अपना गवर्नर-काल जिस रमेश अग्रवाल के भरोसे चलाना चाहते हैं उस रमेश अग्रवाल के कारण उन्हें सिर्फ़ बदनामी ही मिलने का खतरा है ।
सीओएल के चुनाव में रमेश अग्रवाल का समर्थन करके जेके गौड़ ने इसे भुगत भी
लिया है । रमेश अग्रवाल को लेकर जेके गौड़ दूसरों के सामने रोना तो रोते
हैं, लेकिन रमेश अग्रवाल का साथ छोड़ते हुए भी नहीं दिखते हैं । जिन लोगों
के सामने जेके गौड़ ने रमेश अग्रवाल का रोना रोया है, उनके लिए हैरानी की
बात यही है कि जेके गौड़ को जब रमेश अग्रवाल का साथ नहीं छोड़ना है तब फ़िर वह
उनका रोना रोते ही क्यों हैं ? कई लोगों ने इस सवाल पर खासी माथापच्ची की है कि जेके गौड़ का रमेश अग्रवाल के साथ आखिर ऐसा कौन सा 'रिश्ता' है जिसने उन्हें मजबूर किया हुआ है कि वह बदनाम होने, अलग-थलग पड़ने और रोना रोने के बावजूद रमेश अग्रवाल से अलग नहीं हो सकते हैं ।
काउंसिल ऑफ गवर्नर्स की मीटिंग में रमेश अग्रवाल की जैसी जो फजीहत हुई
उसने जेके गौड़ के लिए भी खतरे की घंटी बजा दी है - लोगों ने मान लिया है कि
रमेश अग्रवाल ने रोटरी में अपने लिए जिस तरह की बदनामी कमाई है, उसी तरह
की बदनामी वह जेके गौड़ को भी दिलवायेंगे ।