नई दिल्ली । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनोद बंसल ने डिस्ट्रिक्ट के विभाजन को लेकर कार्रवाई करने की जो तेजी दिखाई है, उसने
डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के समीकरणों में खासा उलट-फेर होने के
संकेत दिए हैं और इन संकेतों में डॉक्टर सुब्रमणियन तथा दीपक गुप्ता के लिए
खासे उत्साहपूर्ण नतीजे देखे/पहचाने जा रहे हैं । विनोद बंसल के
प्रयास यदि सचमुच में सफल रहे तो अगले रोटरी वर्ष में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर
नॉमिनी पद के लिए दो चुनाव हो सकते हैं । डिस्ट्रिक्ट के विभाजन को लेकर
जिस फार्मूले को अभी तक व्यापक स्वीकृति मिल रही है उसमें डॉक्टर
सुब्रमणियन और दीपक गुप्ता अलग-अलग डिस्ट्रिक्ट में होंगे; और इस हिसाब से
दीपक गुप्ता तो - अभी तक की स्थिति के अनुसार - हो सकता है कि बिना किसी
मुकाबले के ही डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी हो जाएँ और तब फिर डॉक्टर सुब्रमणियन
के लिए भी मुकाबला उतना चुनौतीपूर्ण नहीं रह जायेगा । विभाजित
डिस्ट्रिक्ट में घाटा शरत जैन को उठाना पड़ेगा, क्योंकि तब उनके समर्थक नेता
तो अपनी तमाम बदनामी के साथ उनके साथ रह जायेंगे, लेकिन उनका समर्थन-आधार
दूसरे डिस्ट्रिक्ट में चला जायेगा । दरअसल डिस्ट्रिक्ट के विभाजन की स्थिति
में तगड़ी चोट अरनेजा गिरोह पर ही पड़ेगी । इस चोट से बचने के लिए अरनेजा गिरोह के सदस्य डिस्ट्रिक्ट के विभाजन की कार्रवाई में बाधा डाल सकते हैं ।
उल्लेखनीय है कि पिछली बार, अमित जैन ने अपने गवर्नर-काल में
डिस्ट्रिक्ट के विभाजन को लेकर जब यही कार्रवाई करनी चाही थी, तब अरनेजा
गिरोह ने ही उसमें अड़ंगा डाला था । मजे की बात लेकिन यह हुई है कि उस
समय विनोद बंसल नए-नए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी चुने गए थे और वह अरनेजा
गिरोह के साथ थे, किंतु अब विनोद बंसल को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में
अरनेजा गिरोह के षड्यंत्रों का सामना करना है । विनोद बंसल डिस्ट्रिक्ट
के विभाजन को लेकर कुछ करने के संकेत तो हालाँकि काफी दिनों से दे रहे थे,
लेकिन किसी को विश्वास हो नहीं रहा था कि वह इस बाबत सचमुच कुछ करेंगे ? इसीलिए अब
जब विनोद बंसल ने इस मामले में फैसला करने को लेकर काउंसिल ऑफ गवर्नर्स
की इमरजेंसी मीटिंग बुला ली है, तो अब लोगों को लग रहा है कि विनोद बंसल
शायद कुछ कर ही देंगे । विनोद बंसल ने जिस अचानक तरीके से इस मामले में
तेजी दिखाई है, उससे अधिकतर लोग हतप्रभ हैं - लेकिन मुकेश अरनेजा और रमेश
अग्रवाल परेशान हैं ।
इनकी परेशानी का कारण डिस्ट्रिक्ट के विभाजन का स्वरूप है । दरअसल
बहुत माथापच्ची के बाद डिस्ट्रिक्ट के विभाजन का जो स्वरूप स्वीकृति पाता
दिख रहा है उसमें उत्तर प्रदेश के संपूर्ण और हरियाणा व दिल्ली के सटे हुए
क्षेत्र के क्लब्स मिल कर एक डिस्ट्रिक्ट बनाते हैं और दिल्ली व हरियाणा के
बाकी बचे क्लब्स दूसरा डिस्ट्रिक्ट बनाते हैं । मुकेश अरनेजा व रमेश
अग्रवाल के लिए मुसीबत की बात यह है कि उनकी टुच्चई की हरकतों को समर्थन तो
मिलता है पहले वाले संभावित डिस्ट्रिक्ट के क्लब्स में, लेकिन वह रहना
चाहते हैं दूसरे वाले संभावित डिस्ट्रिक्ट में, जहाँ उनकी हरकतें उनके काम
नहीं आयेंगी । इसीलिए माना/समझा जा रहा है कि डिस्ट्रिक्ट के विभाजन की
स्थिति में मुकेश अरनेजा और रमेश अग्रवाल की तो राजनीतिक 'दुकान' ही बंद
हो जायेगी ।
डिस्ट्रिक्ट के विभाजन को लेकर जिस तरह की सक्रियता बनी है,
उसमें संभावना व्यक्त की जा रही है कि अगले रोटरी वर्ष में विभाजन के बाद
बनने वाले दोनों डिस्ट्रिक्ट के लिए अलग-अलग चुनाव हो जाएँ । यह संभावना
दीपक गुप्ता के लिए तो लॉटरी लगने जैसी स्थिति होगी । क्योंकि अगले रोटरी
वर्ष के लिए जो उम्मीदवार हैं उनमें अकेले दीपक गुप्ता उस क्षेत्र का
प्रतिनिधित्व कर रहे हैं जो विभाजन के बाद एक डिस्ट्रिक्ट बनता/बनाता है ।
यानि - आज के सीन में - 'उस' नए डिस्ट्रिक्ट के चुनाव के लिए तो दीपक गुप्ता
ही एकमात्र उम्मीदवार होंगे, ऐसा होने पर तो वह निर्विरोध ही चुन लिए जा
सकेंगे । सोने पर सुहागे वाली बात यह भी होगी कि वह एक वर्ष पहले ही
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बन सकेंगे । हालाँकि यह फायदा सुधीर मंगला को भी
मिलेगा और विभाजन के बाद बनने वाले दूसरे डिस्ट्रिक्ट के लिए होने वाले
चुनाव के विजेता को भी मिलेगा । विभाजन की स्थिति में होने वाले चुनाव
में दीपक गुप्ता को चुनौती देने के लिए सकता है कि कोई उम्मीदवार आ भी
जाये, लेकिन उसके आने में इतनी देर हो चुकी होगी कि दीपक गुप्ता से मुकाबला
करना उसके लिए मुश्किल ही होगा ।
विभाजन के बाद बनने वाले दूसरे डिस्ट्रिक्ट के लिए जो चुनाव
होगा उसमें डॉक्टर सुब्रमणियन के लिए इसलिए आसानी होगी क्योंकि उन्हें जो
क्षेत्र/जो क्लब्स मिलेंगे, उनमें उनकी स्थिति अच्छी है ही । उत्तर
प्रदेश के संपूर्ण और हरियाणा व दिल्ली के सटे हुए क्षेत्र के जो क्लब्स
अलग डिस्ट्रिक्ट के हिस्सा हो जायेंगे, उनमें ही डॉक्टर सुब्रमणियन को दीपक
गुप्ता और या शरत जैन से तगड़ी चुनौती मिल रही है - ऐसे क्लब्स जब अलग
डिस्ट्रिक्ट का हिस्सा हो जायेंगे तब डॉक्टर सुब्रमणियन के लिए चुनौती खुद-ब-खुद ही दूर हो जाएगी ।
जाहिर है कि डिस्ट्रिक्ट के विभाजन की स्थिति में, नुकसान उम्मीदवार के
रूप में शरत जैन का और नेताओं के रूप में अरनेजा गिरोह के नेताओं का ही
होना है । अरनेजा गिरोह के नेताओं की समस्या यह है कि वह खुद ही अपनी
ताकत उत्तर प्रदेश के संपूर्ण और हरियाणा व दिल्ली के सटे हुए क्षेत्र के
क्लब्स में ही देखते/पहचानते हैं - लेकिन यह क्लब्स दूसरे डिस्ट्रिक्ट के
हिस्सा हो जायेंगे; उन्हें जो क्लब्स मिलेंगे उनमें उनकी टुच्ची और घटिया
स्तर की राजनीति के लिए समर्थन नहीं मिलेगा । उम्मीदवार के रूप में शरत जैन के लिए समस्या यह होगी कि उन्हें रमेश अग्रवाल का 'आदमी' होने की सजा मिलेगी । डॉक्टर
सुब्रमणियन के लिए मजे की स्थिति यह होगी कि अभी उन्हें जिन दीपक गुप्ता
से तगड़ी चुनौती मिल रही है, वह दीपक गुप्ता दूसरे डिस्ट्रिक्ट में होंगे;
और जिन शरत जैन से उन्हें मुकाबला करना होगा, वह शरत जैन अपने समर्थक
अरनेजा गिरोह के नेताओं की करतूतों के बोझ के नीचे दबे होंगे ।
समझा जाता है कि अपनी राजनीतिक 'दुकान' को बंद होने से बचाने के
लिए अरनेजा गिरोह के नेता डिस्ट्रिक्ट के विभाजन को लेकर किए जा रहे विनोद
बंसल के प्रयासों में फच्चर फँसा सकते हैं । हालाँकि काउंसिल ऑफ
गवर्नर्स के कई सदस्यों का मानना और कहना है कि डिस्ट्रिक्ट जितना बड़ा हो
गया है, और बड़ा होने के कारण उसे सँभालना जितना मुश्किल होता जा रहा है,
उसे देखते हुए डिस्ट्रिक्ट को विभाजित हो ही जाना चाहिए; और यहाँ विभाजन को
टालना अब ज्यादा संभव है नहीं । यह विश्वास इसलिए भी है क्योंकि
विभाजन की प्रक्रिया में विनोद बंसल ने दिलचस्पी लेना शुरू किया है । अपनी
दिलचस्पी को उन्होंने जिस तरह से अपनी सक्रियता में बदल दिया है और काउंसिल
ऑफ गवर्नर्स की इमरजेंसी मीटिंग तक बुला ली है, उससे लग रहा है कि डिस्ट्रिक्ट के विभाजन को लेकर वह वास्तव में गंभीर हैं और इस बाबत उन्होंने अच्छी तैयारी की है ।
उम्मीद की जा रही है कि विनोद बंसल की इस तैयारी के चलते अमित जैन के
गवर्नर-काल में जो काम अधूरा छूट गया था, अब उनके गवर्नर-काल में वह पूरा
हो जायेगा ।