नई दिल्ली । इंटरनेशनल प्रेसीडेंट 'बनने'
की तैयारी कर रहे नरेश अग्रवाल ने मल्टीपल काउंसिल चेयरपरसन
जितेंद्र चौहान को ठिकाने लगाने के लिए जो रणनीति बनाई है, उसे 'साँप भी मर
जाए, और लाठी भी न टूटे' वाले मुहावरे को व्याख्यायित करने के लिए एक
प्रभावी उदाहरण के रूप में नोट किया जा सकता है । जितेंद्र चौहान के साथ नरेश अग्रवाल का कोई झगड़ा/लफड़ा नहीं है, लेकिन फिर
भी नरेश अग्रवाल ने उन्हें निपटाने की जो बात सोची है वह उनमें दूरदृष्टि
होने का परिचायक है । नरेश अग्रवाल दरअसल मल्टीपल में ज्यादा नेता नहीं
चाहते हैं; वह जान/समझ रहे हैं कि मल्टीपल में जितने ज्यादा नेता होंगे
उतना ही उनकी नाक में दम रहेगा । इसीलिए उन्होंने जितेंद्र चौहान के नेता
बनने से पहले ही पर कतर देने की योजना बना डाली है । मजे की बात यह हुई
है कि मल्टीपल काउंसिल चेयरपरसन पद के जिस चुनाव के जरिये जितेंद्र चौहान
ने मल्टीपल में नेता बनने की तैयारी की थी, मल्टीपल काउंसिल चेयरपरसन पद के
उसी चुनाव को नरेश अग्रवाल ने जितेंद्र चौहान के पर कतर देने के मौके के रूप में इस्तेमाल किया है ।
इस प्रसंग में गौर करने वाला तथ्य यह है कि डिस्ट्रिक्ट में जितेंद्र चौहान के सहजीव रतन जैन के साथ यूँ तो तनातनी वाले संबंध ही थे, लेकिन जब मौका आया तब मल्टीपल काउंसिल चेयरपरसन पद की सहजीव रतन जैन की उम्मीदवारी की डोर जितेंद्र चौहान के हाथ में ही दिखी । जितेंद्र चौहान ने दरअसल समझ लिया था कि उन्हें यदि अपने आप को मल्टीपल में नेता बनाना/साबित करना है तो उन्हें यह दिखाना/जताना होगा कि अगला मल्टीपल काउंसिल चेयरपरसन तो वह बनेगा, जिसे वह चाहेंगे । मल्टीपल काउंसिल चेयरपरसन पद के लिए सहजीव रतन जैन की उम्मीदवारी का झँडा उठाना उनके लिए मजबूरी इसलिए भी बना, क्योंकि एक तो सहजीव रतन जैन उनके ही डिस्ट्रिक्ट के हैँ; और दूसरे, मल्टीपल काउंसिल चेयरपरसन पद के लिए अन्य जो उम्मीदवार थे उनकी उम्मीदवारी के झंडे दूसरे नेताओं ने थाम रखे थे; और तीसरी बात यह कि मल्टीपल काउंसिल चेयरपरसन पद के लिए जो भी उम्मीदवार थे उनमें सहजीव रतन जैन का पलड़ा भारी दिख रहा था । जितेंद्र चौहान ने मौका ताड़ा और यह समझने में कोई देर नहीं की कि सहजीव रतन जैन की उम्मीदवारी के सहारे वह मल्टीपल में अपनी नेतागिरी का जलवा दिखा देंगे । डिस्ट्रक्ट में सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद पर अपने उम्मीदवार को जितवा पाने में असफल रहने के बाद तो जितेंद्र चौहान ने सहजीव रतन जैन की उम्मीदवारी का झँडा और भी कसकर पकड़ लिया । जितेंद्र चौहान को लगा कि डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में उनकी जो फजीहत हुई है उसकी भरपाई वह मल्टीपल की चुनावी राजनीति में कर लेंगे । यह भरपाई करने के लिए ही जितेंद्र चौहान कुछेक जगह सहजीव रतन जैन के चुनाव अभियान में उनके साथ गए ।
नरेश अग्रवाल ने जितेंद्र चौहान की इस सक्रियता में मल्टीपल की चुनावी राजनीति में एक और नेता के 'पैदा' होने को देखा । नरेश अग्रवाल की दूरदृष्टि ने उन्हें आगाह किया कि जितेंद्र चौहान को उन्होंने यदि यहीं नहीं रोका तो फिर भविष्य में उनके लिए समस्या होगी । नरेश अग्रवाल ने यह भी समझ लिया कि जितेंद्र चौहान को वह मीठे सपने दिखा कर ही सहजीव रतन जैन की उम्मीदवारी के समर्थन से अलग और दूर कर सकते हैं । चूहेदानी में लगे रोटी के टुकड़े की तरफ बढ़ते हुए बेचारे चूहे को यह आभास भी नहीं होता है कि यह जाल उसे पकड़ने के लिए बिछाया गया है । नरेश अग्रवाल ने जितेंद्र चौहान को ज़िम्मेदारी सौंपी कि उन्हें प्रयास करना चाहिए कि मल्टीपल में काउंसिल चेयरपरसन पद के लिए चुनाव नहीं होना चाहिए, क्योंकि चुनाव से लोगों के बीच मनमुटाव होगा और मल्टीपल की बदनामी होगी । नरेश अग्रवाल ने यह कहकर जितेंद्र चौहान में हवा भरी कि उन्हें विश्वास है कि वह यह 'काम' कर सकते हैं - तो जितेंद्र चौहान तो उड़ने लगे । उन्हें लगा कि नरेश अग्रवाल उन्हें इतनी तवज्जो दे रहे हैं, तो वह तो बिना कुछ किए-धरे ही नेता बन गये । जितेंद्र चौहान यह समझ ही नहीं पाए, या उन्होंने समझने की जरुरत ही नहीं समझी कि नरेश अग्रवाल लोगों में हवा भर कर उन्हें 'उड़ाने' की कला के बड़े ऊँचे कलाकार हैं ।
नरेश अग्रवाल यूँ तो मल्टीपल काउंसिल चेयरपरसन पद के चुनाव में तटस्थ दिखने का प्रयास कर रहे हैं, लेकिन जितेंद्र चौहान को जिस कलाकारी के साथ उन्होंने सहजीव रतन जैन की उम्मीदवारी के समर्थन से अलग किया, वह उनकी पक्षपाती भूमिका का नजारा पेश करता है । कई लोगों का कहना है कि नरेश अग्रवाल यदि सचमुच यह चाहते हैं कि मल्टीपल काउंसिल चेयरपरसन पद के चुनाव में राजनीति न हो तो जो पट्टी वह जितेंद्र चौहान को पढ़ा रहे हैं, उसे वह विनोद खन्ना और जेपी सिंह को क्यों नहीं पढ़ाते, जिन्होंने मल्टीपल को राजनीति का अखाड़ा बनाया हुआ है । नरेश अग्रवाल ऐसा इसलिए नहीं करेंगे क्योंकि विनोद खन्ना और जेपी सिंह की राजनीति उन्हेंं सूट करती है । जगदीश राय गोयल मल्टीपल काउंसिल चेयरपरसन बनेंगे तो नरेश अग्रवाल को कोई समस्या नहीं होगी, क्योंकि जगदीश राय गोयल तो सिर्फ़ रबड़ स्टैम्प बन कर रहेंगे और इस रबड़ स्टैम्प का इस्तेमाल करने वाले विनोद खन्ना और जेपी सिंह वही करेंगे जो उन्हें सूट करेगा । लेकिन यदि सहजीव रतन जैन मल्टीपल काउंसिल चेयरपरसन बनेंगे तो एक तो वह रबड़ स्टैम्प नहीं बनेंगे और दूसरे मल्टीपल में जितेंद्र चौहान के रुप में एक नेता और 'पैदा' हो जायेगा ।
नरेश अग्रवाल ने जितेंद्र चौहान को जिस तरह से फाँसा है उसमें उनका स्वार्थ तो दिखता है, लेकिन जितेंद्र चौहान उनके जाल में क्या सोच कर फँसे हैं यह उनके नजदीकियों की भी समझ में नहीं आ रहा है । जितेंद्र चौहान के नजदीकियों का ही कहना है कि जितेंद्र चौहान यदि यह सोच कर नरेश अग्रवाल के जाल में फँसे हैं कि ऐसा करके वह नरेश अग्रवाल की गुडबुक में आ जायेंगे, तो वह बड़े भ्रम में हैं । नरेश अग्रवाल की गुडबुक में तो वह आ जायेंगे - लेकिन वहाँ उनका नंबर सौवाँ होगा या पाँच सौवाँ, कौन जानता है; और फिर नरेश अग्रवाल की गुडबुक में दस नंबर के बाद जिनका भी नाम होता है - नरेश अग्रवाल उन्हें सिर्फ इस्तेमाल करते हैं, उनके काम नहीं आते । जितेंद्र चौहान के शुभचिंतकों का कहना है कि जितेंद्र चौहान को समझना चाहिए कि वह यदि नरेश अग्रवाल की गुडबुक के पहले दस नामों में अपना नाम लिखवाना चाहते हैं तो पहले उन्हें अपने आप को साबित करना होगा । मल्टीपल काउंसिल चेयरपरसन पद के लिए होने जा रहा चुनाव उन्हें अपने आप को साबित करने का मौका दे रहा है - चाहें तो वह इस मौके का फायदा उठा सकते हैं । अन्यथा उनके जैसे को - जो डिस्ट्रिक्ट में अपने उम्मीदवार को सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद का चुनाव न जितवा सके और मल्टीपल काउंसिल चेयरपरसन पद के 'अपने' उम्मीदवार को बीच में ही छोड़ कर निकल ले - नरेश अग्रवाल ही क्या, कोई भी भला नेता क्यों मानेगा ? जितेंद्र चौहान के साथ हमदर्दी ऱखने वाले लोगों का यही कहना है कि जितेंद्र चौहान को यदि मल्टीपल में अपनी धाक जमानी है और डिस्ट्रिक्ट में झटका खाई अपनी पहचान पर पड़ी धूल को साफ करना है तो उन्हें सहजीव रतन जैन की उम्मीदवारी का झँडा फिर से उठा लेना चाहिए और इस बात को समझना चाहिए कि मल्टीपल काउंसिल चेयरपरसन पद के चुनाव में जीत के साथ मुकुट भले ही सहजीव रतन जैन के माथे पर सजेगा, लेकिन नेतागिरी उनकी जमेगी ।
इस प्रसंग में गौर करने वाला तथ्य यह है कि डिस्ट्रिक्ट में जितेंद्र चौहान के सहजीव रतन जैन के साथ यूँ तो तनातनी वाले संबंध ही थे, लेकिन जब मौका आया तब मल्टीपल काउंसिल चेयरपरसन पद की सहजीव रतन जैन की उम्मीदवारी की डोर जितेंद्र चौहान के हाथ में ही दिखी । जितेंद्र चौहान ने दरअसल समझ लिया था कि उन्हें यदि अपने आप को मल्टीपल में नेता बनाना/साबित करना है तो उन्हें यह दिखाना/जताना होगा कि अगला मल्टीपल काउंसिल चेयरपरसन तो वह बनेगा, जिसे वह चाहेंगे । मल्टीपल काउंसिल चेयरपरसन पद के लिए सहजीव रतन जैन की उम्मीदवारी का झँडा उठाना उनके लिए मजबूरी इसलिए भी बना, क्योंकि एक तो सहजीव रतन जैन उनके ही डिस्ट्रिक्ट के हैँ; और दूसरे, मल्टीपल काउंसिल चेयरपरसन पद के लिए अन्य जो उम्मीदवार थे उनकी उम्मीदवारी के झंडे दूसरे नेताओं ने थाम रखे थे; और तीसरी बात यह कि मल्टीपल काउंसिल चेयरपरसन पद के लिए जो भी उम्मीदवार थे उनमें सहजीव रतन जैन का पलड़ा भारी दिख रहा था । जितेंद्र चौहान ने मौका ताड़ा और यह समझने में कोई देर नहीं की कि सहजीव रतन जैन की उम्मीदवारी के सहारे वह मल्टीपल में अपनी नेतागिरी का जलवा दिखा देंगे । डिस्ट्रक्ट में सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद पर अपने उम्मीदवार को जितवा पाने में असफल रहने के बाद तो जितेंद्र चौहान ने सहजीव रतन जैन की उम्मीदवारी का झँडा और भी कसकर पकड़ लिया । जितेंद्र चौहान को लगा कि डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में उनकी जो फजीहत हुई है उसकी भरपाई वह मल्टीपल की चुनावी राजनीति में कर लेंगे । यह भरपाई करने के लिए ही जितेंद्र चौहान कुछेक जगह सहजीव रतन जैन के चुनाव अभियान में उनके साथ गए ।
नरेश अग्रवाल ने जितेंद्र चौहान की इस सक्रियता में मल्टीपल की चुनावी राजनीति में एक और नेता के 'पैदा' होने को देखा । नरेश अग्रवाल की दूरदृष्टि ने उन्हें आगाह किया कि जितेंद्र चौहान को उन्होंने यदि यहीं नहीं रोका तो फिर भविष्य में उनके लिए समस्या होगी । नरेश अग्रवाल ने यह भी समझ लिया कि जितेंद्र चौहान को वह मीठे सपने दिखा कर ही सहजीव रतन जैन की उम्मीदवारी के समर्थन से अलग और दूर कर सकते हैं । चूहेदानी में लगे रोटी के टुकड़े की तरफ बढ़ते हुए बेचारे चूहे को यह आभास भी नहीं होता है कि यह जाल उसे पकड़ने के लिए बिछाया गया है । नरेश अग्रवाल ने जितेंद्र चौहान को ज़िम्मेदारी सौंपी कि उन्हें प्रयास करना चाहिए कि मल्टीपल में काउंसिल चेयरपरसन पद के लिए चुनाव नहीं होना चाहिए, क्योंकि चुनाव से लोगों के बीच मनमुटाव होगा और मल्टीपल की बदनामी होगी । नरेश अग्रवाल ने यह कहकर जितेंद्र चौहान में हवा भरी कि उन्हें विश्वास है कि वह यह 'काम' कर सकते हैं - तो जितेंद्र चौहान तो उड़ने लगे । उन्हें लगा कि नरेश अग्रवाल उन्हें इतनी तवज्जो दे रहे हैं, तो वह तो बिना कुछ किए-धरे ही नेता बन गये । जितेंद्र चौहान यह समझ ही नहीं पाए, या उन्होंने समझने की जरुरत ही नहीं समझी कि नरेश अग्रवाल लोगों में हवा भर कर उन्हें 'उड़ाने' की कला के बड़े ऊँचे कलाकार हैं ।
नरेश अग्रवाल यूँ तो मल्टीपल काउंसिल चेयरपरसन पद के चुनाव में तटस्थ दिखने का प्रयास कर रहे हैं, लेकिन जितेंद्र चौहान को जिस कलाकारी के साथ उन्होंने सहजीव रतन जैन की उम्मीदवारी के समर्थन से अलग किया, वह उनकी पक्षपाती भूमिका का नजारा पेश करता है । कई लोगों का कहना है कि नरेश अग्रवाल यदि सचमुच यह चाहते हैं कि मल्टीपल काउंसिल चेयरपरसन पद के चुनाव में राजनीति न हो तो जो पट्टी वह जितेंद्र चौहान को पढ़ा रहे हैं, उसे वह विनोद खन्ना और जेपी सिंह को क्यों नहीं पढ़ाते, जिन्होंने मल्टीपल को राजनीति का अखाड़ा बनाया हुआ है । नरेश अग्रवाल ऐसा इसलिए नहीं करेंगे क्योंकि विनोद खन्ना और जेपी सिंह की राजनीति उन्हेंं सूट करती है । जगदीश राय गोयल मल्टीपल काउंसिल चेयरपरसन बनेंगे तो नरेश अग्रवाल को कोई समस्या नहीं होगी, क्योंकि जगदीश राय गोयल तो सिर्फ़ रबड़ स्टैम्प बन कर रहेंगे और इस रबड़ स्टैम्प का इस्तेमाल करने वाले विनोद खन्ना और जेपी सिंह वही करेंगे जो उन्हें सूट करेगा । लेकिन यदि सहजीव रतन जैन मल्टीपल काउंसिल चेयरपरसन बनेंगे तो एक तो वह रबड़ स्टैम्प नहीं बनेंगे और दूसरे मल्टीपल में जितेंद्र चौहान के रुप में एक नेता और 'पैदा' हो जायेगा ।
नरेश अग्रवाल ने जितेंद्र चौहान को जिस तरह से फाँसा है उसमें उनका स्वार्थ तो दिखता है, लेकिन जितेंद्र चौहान उनके जाल में क्या सोच कर फँसे हैं यह उनके नजदीकियों की भी समझ में नहीं आ रहा है । जितेंद्र चौहान के नजदीकियों का ही कहना है कि जितेंद्र चौहान यदि यह सोच कर नरेश अग्रवाल के जाल में फँसे हैं कि ऐसा करके वह नरेश अग्रवाल की गुडबुक में आ जायेंगे, तो वह बड़े भ्रम में हैं । नरेश अग्रवाल की गुडबुक में तो वह आ जायेंगे - लेकिन वहाँ उनका नंबर सौवाँ होगा या पाँच सौवाँ, कौन जानता है; और फिर नरेश अग्रवाल की गुडबुक में दस नंबर के बाद जिनका भी नाम होता है - नरेश अग्रवाल उन्हें सिर्फ इस्तेमाल करते हैं, उनके काम नहीं आते । जितेंद्र चौहान के शुभचिंतकों का कहना है कि जितेंद्र चौहान को समझना चाहिए कि वह यदि नरेश अग्रवाल की गुडबुक के पहले दस नामों में अपना नाम लिखवाना चाहते हैं तो पहले उन्हें अपने आप को साबित करना होगा । मल्टीपल काउंसिल चेयरपरसन पद के लिए होने जा रहा चुनाव उन्हें अपने आप को साबित करने का मौका दे रहा है - चाहें तो वह इस मौके का फायदा उठा सकते हैं । अन्यथा उनके जैसे को - जो डिस्ट्रिक्ट में अपने उम्मीदवार को सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद का चुनाव न जितवा सके और मल्टीपल काउंसिल चेयरपरसन पद के 'अपने' उम्मीदवार को बीच में ही छोड़ कर निकल ले - नरेश अग्रवाल ही क्या, कोई भी भला नेता क्यों मानेगा ? जितेंद्र चौहान के साथ हमदर्दी ऱखने वाले लोगों का यही कहना है कि जितेंद्र चौहान को यदि मल्टीपल में अपनी धाक जमानी है और डिस्ट्रिक्ट में झटका खाई अपनी पहचान पर पड़ी धूल को साफ करना है तो उन्हें सहजीव रतन जैन की उम्मीदवारी का झँडा फिर से उठा लेना चाहिए और इस बात को समझना चाहिए कि मल्टीपल काउंसिल चेयरपरसन पद के चुनाव में जीत के साथ मुकुट भले ही सहजीव रतन जैन के माथे पर सजेगा, लेकिन नेतागिरी उनकी जमेगी ।