Sunday, August 4, 2019

रोटरी इंटरनेशनल प्रेसीडेंट पद के लिए देर से उम्मीदवारी प्रस्तुत करने के चलते शेखर मेहता के लिए 5 अगस्त को होने वाला चुनाव आसान तो नहीं है, लेकिन सुशील गुप्ता के इस्तीफे से बनी हमदर्दीपूर्ण स्थिति उनका काम बना भी सकती है

नई दिल्ली । रोटरी इंटरनेशनल के वर्ष 2021-22 के प्रेसीडेंट पद के लिए नोमीनेटिंग कमेटी की मीटिंग में शेखर मेहता की कामयाबी के लिए उनके समर्थकों व शुभचिंतकों ने भले ही फिंगर्स क्रॉस कर ली हों, लेकिन समर्थक व शुभचिंतक भी जानते हैं कि यह चुनाव कोई आसान चुनाव नहीं है । वर्ष 2021-22 के प्रेसीडेंट पद के लिए अधिकृत उम्मीदवार का चयन/चुनाव करने के लिए 17 सदस्यीय नोमीनेटिंग कमेटी की कल, यानि 5 अगस्त को बैठक हो रही है । वर्ष 2021-22 के प्रेसीडेंट पद के लिए आए नामांकनों में से ग्यारह नाम चुने गए हैं, जिनमें शेखर मेहता का नाम भी है । शेखर मेहता को अन्य दस उम्मीदवारों के साथ कल नोमीनेटिंग कमेटी के सदस्यों के सामने साक्षात्कार के लिए उपस्थित होना है । नोमीनेटिंग कमेटी के 17 सदस्यों में पीटी प्रभाकर तथा एमके पांडुरंगा सेट्टी के रूप में दो सदस्य भारत के हैं । उल्लेखनीय है कि पिछले वर्ष सुशील गुप्ता को वर्ष 2020-21 के प्रेसीडेंट के रूप में चुनने वाली नोमीनेटिंग कमेटी में शेखर मेहता खुद थे, और इस नाते उम्मीद की जाती है कि नोमीनेटिंग कमेटी में फैसले पर कैसे पहुँचा जाता है, उसके मैकेनिज्म से शेखर मेहता परिचित होंगे ही - और उसका फायदा वह अपनी उम्मीदवारी के लिए उठा सकते हैं । शेखर मेहता के समर्थकों व शुभचिंतकों को यह भी उम्मीद है कि सुशील गुप्ता के इस्तीफा देने के चलते इंटरनेशनल प्रेसीडेंट का चुनाव करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले नेताओं के बीच सुशील गुप्ता और भारत के प्रति जो हमदर्दी बनी होगी, उसका फायदा भी शेखर मेहता को मिल सकता है ।
हालाँकि इंटरनेशनल प्रेसीडेंट के चयन/चुनाव में होने वाली राजनीति से परिचित बड़े नेताओं का मानना/कहना यह भी है कि हालात तो शेखर मेहता की उम्मीदवारी के अनुकूल हैं, लेकिन समस्या की बात सिर्फ यह है कि अनुकूल हालात का लाभ उठाने के लिए जिस तरह की 'तैयारी' की जरूरत होती है, शेखर मेहता को उसके लिए पर्याप्त समय ही नहीं मिला - और इसलिए उनकी तैयारी थोड़ा कमजोर 'दिखती' है । दरअसल, किसी और को क्या - खुद शेखर मेहता को यह पता नहीं था कि इंटरनेशनल प्रेसीडेंट पद की चुनावी दौड़ में उन्हें इतना जल्दी कूदना पड़ जायेगा । अभी अगले रोटरी वर्ष में तो सुशील गुप्ता को प्रेसीडेंट बनना था; उसके तीन-चार वर्ष बाद भारत के उम्मीदवारों को अपने प्रयास शुरू करने थे । वह तो 26 अप्रैल को अचानक व अप्रत्याशित रूप से सुशील गुप्ता के इस्तीफा दे देने के बाद बनी स्थिति में शेखर मेहता को अभी ही अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत करने के लिए आनन-फानन में तैयार होना पड़ा । ऐसे में स्वाभाविक ही है कि जो उम्मीदवार आठ/नौ महीने पहले से अपनी उम्मीदवारी के पक्ष में समीकरण/गठजोड़ बना रहे थे, उनकी तुलना में शेखर मेहता की तैयारी कमजोर ही होगी । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में देर से अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत करने वाले उम्मीदवार को जैसी/जिन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, ठीक वैसी ही चुनौतियाँ इंटरनेशनल प्रेसीडेंट पद के चुनाव के संदर्भ में शेखर मेहता के सामने हैं - और ऐसे में जाहिर है कि इंटरनेशनल प्रेसीडेंट के लिए चुने जाने का मामला उनके लिए आसान नहीं है ।
शेखर मेहता के कुछेक नजदीकियों का इन पंक्तियों के लेखक से कहना/बताना यह भी है कि शेखर मेहता ने अपनी तैयारी को दो स्तरों पर केंद्रित किया हुआ है, और वह चुनावी खिलाड़ियों को नाराज करने की हद तक जा कर इस बार ही कामयाब होने के लिए अपनी कोशिशें नहीं करेंगे । पिछले रोटरी वर्ष में सुशील गुप्ता को अधिकृत उम्मीदवार चुनवाने के लिए नोमीनेटिंग कमेटी में जिस तरह की धींगामुश्ती हुई थी, शेखर मेहता अपनी उम्मीदवारी को लेकर उस स्तर पर जाने की कोशिश नहीं करेंगे; उनका प्रयास होगा कि इस बार यदि उनका काम आसानी से नहीं बनता है, तो वह अगले वर्ष के लिए अपना मौका बनाएँ । इसी बार कामयाब होने के लिए शेखर मेहता ऐसा कोई काम नहीं करना चाहेंगे, जिससे खिलाड़ी नेता खफा हों - और उनके लिए आगे का रास्ता मुश्किल बने । दरअसल माना/समझा यह जा रहा है कि शेखर मेहता की पहली कोशिश तो यह है कि इंटरनेशनल प्रेसीडेंट का चुनाव करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले नेताओं की गुडबुक में वह शामिल हों, ताकि इंटरनेशनल प्रेसीडेंट के गंभीर उम्मीदवारों में उनकी पहचान व गिनती होने लगे - और उसके चलते इस बार नहीं तो अगली बार उनके लिए इंटरनेशनल प्रेसीडेंट चुने जाने का मौका बन सके । शेखर मेहता के नजदीकियों का यह भी कहना/बताना है कि इस बार के चुनाव में सुशील गुप्ता की भी भूमिका होनी थी, और इस बार के चुनावी समीकरणों में उनकी भूमिका का भी महत्त्वपूर्ण हस्तक्षेप था - जो उनके इस्तीफा दे देने से गड़बड़ा तो गया है, लेकिन पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है । इसलिए एक संभावना यह भी है कि सुशील गुप्ता के सक्रिय न रहने के बावजूद उनका जो प्रभाव इस बार के चुनावी समीकरणों पर है, उसका फायदा हो सकता है कि शेखर मेहता को मिल जाए । क्या होगा, यह तो भारतीय समयानुसार 6 अगस्त की सुबह को ही पता चलेगा; लेकिन शेखर मेहता की उम्मीदवारी के चलते इंटरनेशनल प्रेसीडेंट पद का चुनाव भारतीय रोटेरियंस के लिए दिलचस्पी का विषय जरूर बन गया है ।