नई दिल्ली । रोटरी इंटरनेशनल के वर्ष 2021-22 के प्रेसीडेंट पद के लिए शेखर मेहता के अधिकृत उम्मीदवार चुने जाने से सुशील गुप्ता विरोधी रोटेरियंस को खासा तगड़ा झटका लगा है, और 26 अप्रैल को सुशील गुप्ता के इस्तीफे के बाद फूला हुआ उनका जोश का गुब्बारा एक बार फिर से पिचक गया है । शेखर मेहता को सुशील गुप्ता के खेमे का 'आदमी' तो माना ही जाता है, इंटरनेशनल प्रेसीडेंट पद पर शेखर मेहता की जीत को सुशील गुप्ता के ऑरा (आभामंडल) की जीत के रूप में भी देखा/पहचाना जा रहा है । इससे पहले सुशील गुप्ता के इस्तीफा देने से खाली हुआ वर्ष 2020-21 का प्रेसीडेंट पद होल्गर नेक को मिल जाने में भी सुशील गुप्ता की भूमिका को देखा/पहचाना गया था । उल्लेखनीय है कि इंटरनेशनल प्रेसीडेंट पद की चुनावी दौड़ में होल्गर नेक व शेखर मेहता अभी कहीं नजर नहीं आ रहे थे । होल्गर नेक को पर्याप्त समर्थन नहीं था, और शेखर मेहता के लिए सुशील गुप्ता के 'पूर्व प्रेसीडेंट' हो जाने तक इस बारे में सोचना भी असंभव था । शेखर मेहता तो अभी करीब तीन महीने पहले, सुशील गुप्ता का इस्तीफा होने के बाद उम्मीदवार बने थे । तीन महीने पहले कोई अपनी उम्मीदवारी की घोषणा करे, और प्रेसीडेंट चुन लिया जाए - रोटरी इंटरनेशनल के 114 वर्षों के इतिहास में इससे पहले ऐसा कभी नहीं हुआ । शेखर मेहता ने यह एक नया इतिहास रचा है, तो इसके पीछे रोटरी इंटरनेशनल में बने सुशील गुप्ता के ऑरा को ही देखा/पहचाना जा रहा है - और इस बात ने सुशील गुप्ता के विरोधियों और अवसरवादियों की 'खुशियों' पर जैसे ताला जड़ दिया है ।
उल्लेखनीय है कि स्वास्थ्य कारणों से सुशील गुप्ता के इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी पद से इस्तीफा देने के बाद सुशील गुप्ता के विरोधी नेताओं के मन बड़े गदगद थे । इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी चुने जाने के बाद सुशील गुप्ता से नजदीकियाँ बनाने और 'दिखाने' वाले महत्त्वाकांक्षी नेताओं ने - जिनमें उनके डिस्ट्रिक्ट के महत्त्वाकांक्षी नेता भी हैं - उनके इस्तीफा देते ही रंग बदलना शुरू कर दिया था । सुशील गुप्ता के विरोधियों और अवसरवादी नेताओं ने मान/समझ लिया था कि रोटरी इंटरनेशनल की 'व्यवस्था' तथा उसकी राजनीति में सुशील गुप्ता का प्रभाव खत्म हो गया है, और इसलिए उन्हें सुशील गुप्ता की परवाह करने की जरूरत नहीं है । लेकिन पहले होल्गर नेक और अब शेखर मेहता के इंटरनेशनल प्रेसीडेंट चुने जाने ने उनकी 'समझ' पर पत्थर गिरा दिए हैं । होल्गर नेक के बाद शेखर मेहता के इंटरनेशनल प्रेसीडेंट चुने जाने ने सुशील गुप्ता के विरोधियों और अवसरवादी नेताओं को तगड़ा करंट दिया है; दरअसल सुशील गुप्ता के प्रभाव को खत्म हुआ मान कर उन्होंने रोटरी में अपने जो जो मंसूबे बनाए थे, वह सब उन्हें फेल होते हुए दिख रहे हैं । होल्गर नेक के बाद शेखर मेहता के इंटरनेशनल प्रेसीडेंट चुने जाने से उन्हें यह मुश्किल लग रहा है कि सुशील गुप्ता की 'अनुपस्थिति' का वह कोई फायदा उठा सकेंगे । इससे दरअसल साबित हुआ है कि सुशील गुप्ता भले ही बीमार हों, और बीमारी के चलते वह प्रेसीडेंट नॉमिनी का पद छोड़ने के लिए मजबूर हुए हों - लेकिन रोटरी में उनका प्रभाव पहले जैसा ही बना हुआ है; और यह बात रोटरी में उनके विरोधियों तथा अवसरवादी महत्त्वाकांक्षी नेताओं के लिए काफी मुसीबतभरी है ।
शेखर मेहता की जीत और उसमें सुशील गुप्ता के 'असर' के एक प्रमुख कारण के रूप में रोटरी इंटरनेशनल में भारत के बढ़ते दबदबे को भी देखा/पहचाना जा रहा है । रोटरी इंटरनेशनल की सदस्यता तथा रोटरी फाउंडेशन में हिस्सेदारी के मामले में भारत की हैसियत जिस तरह से बढ़ रही है, उसे देखते हुए रोटरी इंटरनेशनल को 'नियंत्रित' करने वाले लोगों के लिए भारत के नेताओं की उपेक्षा करना और उन्हें अलग-थलग रखना अब मुश्किल होता जा रहा है । दक्षिण एशिया के जिन रोटरी नेताओं व पूर्व प्रेसीडेंट्स को भारत विरोधी व सुशील गुप्ता विरोधी के रूप में देखा/पहचाना जाता रहा है, उन्होंने भी वस्तुस्थिति को समझा/पहचाना है और अपने विरोध के स्वर को नीचा किया है । इसी संदर्भ में भारत विरोधी व सुशील गुप्ता विरोधी के रूप में देखे/पहचाने जाने वाले एक पूर्व प्रेसीडेंट की जुलाई के अंतिम सप्ताह में दिल्ली में हुई एक गुपचुप मुलाकात को महत्त्वपूर्ण घटनाचक्र के रूप में देखा/पहचाना गया । सुशील गुप्ता के नजदीकियों का दावा है कि उस गुपचुप मुलाकात में ही शेखर मेहता के इंटरनेशनल प्रेसीडेंट चुने जाने की पटकथा लिख दी गई थी ।