Wednesday, August 28, 2019

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3110 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी मुकेश सिंघल के जरिये राजनीतिक प्रभुत्व जमाने की पूर्व गवर्नर आईएस तोमर की तैयारी ने डिस्ट्रिक्ट में जो उथल-पुथल मचाई है, उसमें सतीश जायसवाल की उम्मीदवारी उनके लिए बड़ी चुनौती बनी; कमल सांघवी की बढ़ी राजनीतिक हैसियत ने भी उनकी मुश्किलों को बढ़ाया

बरेली । डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति को पिछले कई वर्षों से अपने नियंत्रण में रखे पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर आईएस तोमर अपने नियंत्रण को बनाए रखने के लिए अब उन्हीं लोगों को पुचकारने/मनाने में लगे हैं, जिन्हें खुद उन्होंने खुड्डे-लाइन लगा दिया था । पवन अग्रवाल को गच्चा देकर आईएस तोमर ने सतीश जायसवाल को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए अपना उम्मीदवार तो बना लिया है, लेकिन सतीश जायसवाल की चुनावी नाव कहीं बीच मँझधार में ही न डूब जाए - आईएस तोमर को इसकी चिंता सताने लगी है । दरअसल हाल-फिलहाल के वर्षों में डिस्ट्रिक्ट में सक्रिय हुए तथा प्रभावी बने रोटेरियंस के बीच आईएस तोमर का या तो 'परिचय' नहीं है और परिचय है तो पैठ नहीं है; कई रोटेरियंस तो बल्कि अलग अलग कारणों से आईएस तोमर को सबक सिखाने के चक्कर में हैं । कई लोगों को आईएस तोमर ने अपने व्यवहार व रवैये से अपना 'दुश्मन' बना लिया है । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी मुकेश सिंघल के जरिये डीआरएफसी (डिस्ट्रिक्ट रोटरी फाउंडेशन चेयरमैन) पद को लेकर आईएस तोमर ने जो राजनीति की, उसमें भी उन्हें बदनामी के अलावा और कुछ नहीं मिला है । आईएस तोमर को यह भी लगता है कि इंटरनेशनल डायरेक्टर कमल सांघवी उनके डिस्ट्रिक्ट में लोगों को उनके खिलाफ भड़काने का काम कर रहे हैं, और शेखर मेहता के इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी चुने जाने से कमल सांघवी की 'ताकत' व हैसियत और बढ़ गई है । उल्लेखनीय है कि मुकेश सिंघल उसी वर्ष डिस्ट्रिक्ट गवर्नर होंगे, जिस वर्ष शेखर मेहता इंटरनेशनल प्रेसीडेंट होंगे - ऐसे में आईएस तोमर के साथ मिलकर डीआरएफसी पद को लेकर किए गए उनके तमाशे की उन्हें 'भारी' कीमत चुकानी पड़ सकती है । इन्हीं सब स्थितियों के चलते आईएस तोमर के लिए डिस्ट्रिक्ट में अपनी चौधराहट को बचाये/बनाये रखना तथा मनमानी करते रहना एक बड़ी चुनौती है ।
यह चुनौती इसलिए भी है, क्योंकि आईएस तोमर को पिछले कुछ समय से लगातार झटके पर झटके लग रहे हैं । उल्लेखनीय है कि आईएस तोमर पहले तो बरेली के मेयर के चुनाव में बड़े अंतर से पराजित हुए । फिर रोटरी इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव में उन्हें कमल सांघवी से बड़ी हार मिली । यहाँ यदि सिर्फ हार मिलती तो भी कोई बड़ी बात नहीं होती - रोटरी की राजनीति में एक बार की हार को अगली बार की जीत में बदलने में देर नहीं लगती है; लेकिन आईएस तोमर ने जिस तरह से चुनाव को थोपा और चुनावी मुकाबले को वह जिस निम्न-स्तर पर ले गए, उससे उनकी साख व पहचान को खासी चोट पहुँची । इसके बाद, और ज्यादा बुरी स्थिति उनकी अपने डिस्ट्रिक्ट में डीआरएफसी पद को लेकर बनी, जहाँ उनकी 'होशियारी' ही उन पर भारी पड़ी - डीआरएफसी पद को लेकर की गई उनकी राजनीति ने ही उन्हें डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की राजनीति में फँसा दिया है । डीआरएफसी पद के मामले में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर किशोर कातरू के रवैये से आईएस तोमर को जोर का जो झटका लगा है, उसकी उन्होंने वास्तव में कल्पना भी नहीं की थी । किशोर कातरू के साथ उनके वर्षों के संबंध हैं; वह दावा करते हैं और बहुत से लोग उनके दावे को सही भी मानते हैं कि उन्होंने ही किशोर कातरू को रोटरी में आगे बढ़ाया है तथा डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनाया/बनवाया है । 12 वर्षों तक डीआरएफसी रहे आईएस तोमर को उम्मीद थी कि अगले डीआरएफसी को तय करते समय किशोर कातरू उनसे सलाह करेंगे और या तो उन्हें ही पद पर बने रहने के लिए राजी करने का प्रयास करेंगे और या उनसे पूछ कर डीआरएफसी चुनेंगे । किशोर कातरू ने इस मामले में लेकिन उन्हें कोई तवज्जो ही नहीं दी और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट दिनेश शुक्ला व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी मुकेश सिंघल के साथ मिल कर पूर्व गवर्नर शरत चंद्रा को डीआरएफसी चुन लिया । डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच चर्चा है कि आईएस तोमर को डीआरएफसी पद के संदर्भ में लिया/किया गया यह फैसला और फैसला करने का 'तरीका' पसंद नहीं आया, और उन्होंने मुकेश सिंघल के जरिये शरत चंद्रा को डीआरएफसी पद से - बैठने से पहले ही 'उतरवा' दिया ।
मजे की और बिडंवना की बात यह है कि पूर्व गवर्नर देवेंद्र अग्रवाल का डीआरएफसी बनना भी आईएस तोमर को पसंद नहीं है, लेकिन पसंद का डीआरएफसी बनाने/बनवाने का खेल उनके हाथ से निकल चुका है - इसलिए मन-मार कर उन्हें यह फैसला मंजूर करना ही पड़ा । डिस्ट्रिक्ट में लोगों को लगता है कि देवेंद्र अग्रवाल से 'बदला' लेने के लिए ही आईएस तोमर ने पवन अग्रवाल की उम्मीदवारी का साथ छोड़ा है । आईएस तोमर ने पहले पवन अग्रवाल की उम्मीदवारी का समर्थन करने की घोषणा की थी, लेकिन फिर उन्हें लगा कि पवन अग्रवाल तो देवेंद्र अग्रवाल के ज्यादा नजदीक हैं - इसलिए उन्होंने पवन अग्रवाल का साथ छोड़ कर सतीश जायसवाल को जबर्दस्ती उम्मीदवार बना/बनवा दिया । उम्मीदवार बनते ही सतीश जायसवाल ने हालाँकि मेहनत तो काफी की है, और लोगों के बीच तेजी से संपर्क-अभियान चलाया है; लेकिन उनके समर्थकों को भी लग रहा है कि पवन अग्रवाल की डिस्ट्रिक्ट में पहले से जो एक अच्छी व सकारात्मक पहचान है, उन्हें रोटरी के लिए काम करने वाले रोटेरियन के रूप में देखा/पहचाना जाता रहा है - उसके कारण पवन अग्रवाल से मुकाबला करना सतीश जायसवाल के लिए खासा चुनौतीपूर्ण होगा । असल में सतीश जायसवाल जिस तरह अचानक से उम्मीदवार बने हैं, उसके चलते लोगों के बीच उनकी उम्मीदवारी को लेकर एक नकारात्मक सोच बनी है । लोगों को लग रहा है कि आईएस तोमर ने अपनी खुन्नस व अपनी राजनीति के चक्कर में सतीश जायसवाल की उम्मीदवारी को डिस्ट्रिक्ट पर जबर्दस्ती थोप दिया है । आईएस तोमर को भी लगता है कि आभास हो रहा है कि उन्होंने सतीश जायसवाल को उम्मीदवार तो बना/बनवा दिया है, लेकिन उनकी उम्मीदवारी को समर्थन दिलवाना मुश्किल तो होगा ही । मुश्किल को दूर करने के लिए ही आईएस तोमर ने अब उन लोगों को फोन खड़खड़ाना शुरू किया है, जो पहले उनके साथ होते थे, लेकिन जो कई वर्षों से गुम हुए पड़े हैं । खास बात यह है कि अधिकतर लोग ऐसे ही हैं, जिन्हें खुद आईएस तोमर ने ही 'बेकार' समझ/मान कर अपने से दूर छिटक दिया था । दरअसल डिस्ट्रिक्ट में कई लोगों की पहचान आईएस तोमर के भरोसे/सहारे ही थी; आईएस तोमर ने जब तक उन्हें उपयोगी समझा/पाया, उन्हें अपने साथ रखा और फिर छोड़ दिया; वह भी गुमनामी में जा पड़े - लेकिन अब आईएस तोमर को लगता है कि वह गुमनामी के अँधेरे में पड़े उन लोगों की मदद से सतीश जायसवाल की चुनावी नाव को पार लगवा देंगे । डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में इस समय बदलाव को लेकर जो उथल-पुथल चल रही है, उससे लगता है कि आगे अभी और दिलचस्प नजारे देखने को मिलेंगे ।