Saturday, August 17, 2019

रोटरी इंटरनेशनल द्वारा प्रेसीडेंट नॉमिनी 'घोषित' होने से पहले ही गोवा में आयोजित हो रही डीजीएन मीट में शेखर मेहता को प्रेसीडेंट नॉमिनी के रूप में प्रस्तुत करने तथा 'दिखाने' की कार्रवाई रोटरी की 'व्यवस्था' का मजाक बनाने की कोशिश नहीं है क्या - और जिसमें खुद शेखर मेहता भी शामिल हैं !

नई दिल्ली । गोवा में आयोजित हो रही डीजीएन (डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी) मीट में शेखर मेहता को इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी के रूप में प्रस्तुत करने, 'दिखाने' और उनका स्वागत करने के मामले ने विवाद का रूप ले लिया है । कई वरिष्ठ रोटेरियंस का मानना/कहना है कि शेखर मेहता बड़े और अनुभवी रोटेरियन हैं, और अब तो वह इंटरनेशनल प्रेसीडेंट होने जा रहे हैं - इसलिए उनसे उम्मीद की जाती है कि वह रोटरी की 'व्यवस्था' का सम्मान करेंगे और कम से कम अपने नाम पर तथा अपने सामने रोटरी की व्यवस्था का मजाक नहीं बनने देंगे । उल्लेखनीय है कि रोटरी की 'व्यवस्था' के अनुसार, शेखर मेहता अभी इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी नहीं घोषित हुए हैं; अभी वह नोमीनेटिंग कमेटी द्वारा सेलेक्ट हुए हैं - व्यवस्था के अनुसार, एक समय सीमा में उनके इस सेलेक्शन को चुनौती दी जा सकती है, चुनौती मिलने पर चुनाव होगा और उस चुनाव में जीतने पर ही वह प्रेसीडेंट नॉमिनी होंगे; चुनौती न मिलने की स्थिति में उक्त समय सीमा पूरी होने पर उन्हें प्रेसीडेंट नॉमिनी घोषित किया जायेगा । रोटरी की यह 'व्यवस्था' प्रत्येक पद के लिए है - डिस्ट्रिक्ट गवर्नर, इंटरनेशनल डायरेक्टर और इंटरनेशनल प्रेसीडेंट बनने वाले को इस व्यवस्था से गुजरना ही होता है । गोवा में 16 से 18 अगस्त के बीच आयोजित हो रही डीजीएन मीट में शामिल होने वाले विभिन्न डिस्ट्रिक्ट्स के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी तथा इंटरनेशनल डायरेक्टर भरत पांड्या इसी व्यवस्था से गुजर कर अपने पदों पर पहुँचे हैं, लेकिन लगता है कि 'पूरे कुएँ में ही भाँग पड़ी हुई है', इसलिए किसी ने भी इस बात की न परवाह की और न जरूरत समझी कि उन्हें रोटरी की व्यवस्था का पालन करना चाहिए और उसके प्रति सम्मान दिखाना चाहिए । 'पूत के पाँव पालने में ही दिख जाते हैं' वाली कहावत को याद करते हुए सिर्फ कल्पना ही कर सकते हैं कि रोटरी इंटरनेशनल के पदाधिकारी के रूप में जो डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी अपने पहले ही कार्यक्रम में रोटरी की व्यवस्था का मजाक बना बैठे हों, वह अपने गवर्नर-काल में कैसे कैसे और क्या क्या गुल खिलायेंगे ?
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी तथा इंटरेनशनल डायरेक्टर ने क्या किया, यह तो चलो छोड़ो भी - खुद शेखर मेहता ने रोटरी की व्यवस्था के उल्लंघन होने पर ध्यान नहीं दिया, इस पर वरिष्ठ रोटेरियंस को बड़ी हैरानी है । उन्हें हैरानी इसलिए भी है कि यह 'हरकत' शेखर मेहता के प्रेसीडेंट नॉमिनी बनने की प्रक्रिया में मुसीबत भी खड़ी कर सकती है । रोटरी इंटरनेशनल के इतिहास में एक बार ऐसा हो चुका है कि नोमीनेटिंग कमेटी द्वारा सेलेक्ट होने के बाद करीब करीब इसी तरह की हरकतों के चलते एक अधिकृत उम्मीदवार को सचमुच प्रेसीडेंट नॉमिनी होने से रोक दिया गया था । उसी मामले का संज्ञान लेते हुए पिछले वर्ष, सुशील गुप्ता के प्रेसीडेंट नॉमिनी सेलेक्ट होने के बाद बहुत सावधानी रखी गई थी कि व्यवस्था के अनुसार, प्रक्रिया पूरी होने तक सुशील गुप्ता को प्रेसीडेंट नॉमिनी न कहा जाए और उनके चयन पर ज्यादा जोश न दिखाया जाए । लेकिन शेखर मेहता के मामले में वैसी सावधानी नहीं दिखाई जा रही है, और इसलिए उनके प्रेसीडेंट नॉमिनी सेलेक्ट होते ही तरह तरह के नाटक देखने को मिल रहे हैं । शेखर मेहता के प्रेसीडेंट नॉमिनी सेलेक्ट होते ही किसी ने दावा करना शुरू कर दिया कि अब शेखर मेहता उन्हें इंटरनेशनल डायरेक्टर चुनवा/बनवा देंगे; तो किसी ने बताना/दिखाना शुरू किया कि रोटरी फाउंडेशन के पैसों में घपलेबाजी के आरोप में उन्हें जो सजा मिली है, शेखर मेहता उसे माफ करवा देंगे । इंटरनेशनल डायरेक्टर भरत पांड्या तथा विभिन्न डिस्ट्रिक्ट्स के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी की देखरेख में होने वाले कार्यक्रम में प्रक्रिया पूरी होने से पहले ही शेखर मेहता को प्रेसीडेंट नॉमिनी घोषित करने का करतब कर दिया । इस तरह देखने में आ रहा है कि शेखर मेहता के प्रेसीडेंट नॉमिनी सेलेक्ट होते ही अपने अपने स्वार्थ पूरे करने के लिए बड़े बड़े पदों पर रहने वाले तथा बड़े पदों पर पहुँचने की कोशिश में लगे लोग 'सैंया भये कोतवाल' की 'फील' लेने लगे हैं और उसकी धुन पर नाचने लगे हैं ।
वरिष्ठ रोटेरियंस का मानना और कहना है कि दूसरे लोग क्या कर रहे हैं, इसे यदि जाने भी दें; तो देखने की बात यह है कि खुद शेखर मेहता क्या कर रहे हैं और क्या होने दे रहे हैं ? उन्हें तो कम से कम रोटरी की व्यवस्था का पालन होने/करने पर ध्यान देना चाहिए - तब तो और भी, जबकि अभी प्रेसीडेंट नॉमिनी उन्हें घोषित होना है । इंटरनेशनल प्रेसीडेंट पद के लिए देश के रूप में भारत की किस्मत और बदकिस्मती लगता है कि आगे-पीछे ही चल रही हैं - किस्मत की बात रही कि सुशील गुप्ता के रूप में नौ वर्ष बाद भारत को रोटरी इंटरनेशनल प्रेसीडेंट पद पर प्रतिनिधित्व करने का मौका मिलना तय हुआ, लेकिन बदकिस्मती ने तेजी से झपट्टा मारा और बीमारी के चलते सुशील गुप्ता को इस्तीफा देने के लिए मजबूर होना पड़ा और भारत से वह मौका छिन गया; शेखर मेहता के रूप में किस्मत ने एक बार फिर भारत के लिए अनुकूल हालात बनाए हैं । लोगों का मानना और कहना है कि सुशील गुप्ता के मामले में खुशियों ने जितनी जल्दी उदासी का चोला पहन लिया था, उससे सबक लेकर शेखर मेहता को सावधानी बरतने की जरूरत है, और कम से कम इतनी सावधानी रखने की जरूरत तो है ही कि अपनी तरफ से वह बदकिस्मती को दरवाजा खटखटाने का मौका न दें । शेखर मेहता के प्रेसीडेंट नॉमिनी सेलेक्ट होने की बात कई लोगों को हजम नहीं हो रही है, इसलिए शेखर मेहता को और भी सावधान रहने की जरूरत है - लेकिन गोवा में डीजीएन मीट में जो हुआ है; रोटरी इंटरनेशनल द्वारा प्रेसीडेंट नॉमिनी घोषित होने से पहले ही शेखर मेहता को प्रेसीडेंट नॉमिनी के रूप में प्रस्तुत करने तथा 'दिखाने' की जो कार्रवाई हुई है, उसे उनके विरोधियों का मौका देने के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है ।