नई दिल्ली । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के पदाधिकारियों के अधिकार निरस्त कर देने तथा जरूरी काम इंस्टीट्यूट की विभिन्न कमेटियों को सौंप देने के फैसले का इंस्टीट्यूट के वाइस प्रेसीडेंट अतुल गुप्ता ने काफी विरोध किया था, लेकिन प्रेसीडेंट प्रफुल्ल छाजेड़ के सख्ती दिखाने पर फिर अतुल गुप्ता को उनके सामने समर्पण करने के लिए मजबूर होना पड़ा । प्रफुल्ल छाजेड़ का कहना था कि नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में जो कुछ हो रहा है, उससे प्रोफेशन तथा इंस्टीट्यूट की बदनामी हो रही है, और इसे जारी नहीं रहने दिया जा सकता है । इंस्टीट्यूट के वरिष्ठ अधिकारियों के अनुसार, प्रफुल्ल छाजेड़ तो उसी समय कठोर फैसला करना चाहते थे जब नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल की वाइस चेयरपरसन श्वेता पाठक ने काउंसिल के कुछेक पदाधिकारियों व सदस्यों के खिलाफ पुलिस में रिपोर्ट की थी । अतुल गुप्ता ने लेकिन उस समय प्रफुल्ल छाजेड़ को कदम आगे बढ़ाने से रोक लिया था । प्रफुल्ल छाजेड़ की पहल से इंस्टीट्यूट के कार्यकारी सचिव राकेश सहगल ने उस समय मामले को निपटाने की कोशिश की थी, लेकिन उनकी कोशिशें शुरू होते ही अफवाह फैल गई - या फैला दी गई - की श्वेता पाठक ने इंस्टीट्यूट के सचिव के रवैये से नाराज होकर उनके खिलाफ भी पुलिस में रिपोर्ट कर दी है । इस अफवाह ने राकेश सहगल को आगे कोशिश करने से रोक दिया । इससे पहले सेंट्रल काउंसिल के कुछेक सदस्यों - विजय झालानी, चरनजोत सिंह नंदा, हंसराज चुग, प्रमोद जैन आदि ने भी रीजनल काउंसिल के सदस्यों के साथ अनौपचारिक मीटिंग करके हालात को ठीक करने का प्रयास किया था, लेकिन उनके प्रयासों का भी कोई नतीजा नहीं निकला था । रीजनल काउंसिल के एक चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी मेघराज के निधन ने लेकिन हालात ऐसे बना दिए कि उसी दिन शुरू हुई सेंट्रल काउंसिल की दो दिवसीय मीटिंग में प्रफुल्ल छाजेड़ ने नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के पदाधिकारियों के अधिकार निरस्त कर देने तथा कामकाज इंस्टीट्यूट की कमेटियों को सौंप देने का फैसला 'करवा' दिया । प्रफुल्ल छाजेड़ ने मीटिंग में इस मुद्दे को इस तरह 'उठवाया' कि अतुल गुप्ता के सामने समर्पण करने के आलावा कोई चारा नहीं रहा ।
अतुल गुप्ता दरअसल इसलिए इस तरह के कठोर फैसले के पक्ष में नहीं थे, क्योंकि इससे उनकी फजीहत होनी है । उल्लेखनीय है कि इंस्टीट्यूट के इतिहास में यह पहला मौका है, जबकि किसी रीजनल काउंसिल के पदाधिकारियों के अधिकार निरस्त किए गए हों । अतुल गुप्ता सेंट्रल काउंसिल में नॉर्दर्न रीजन का प्रतिनिधित्व करते हैं, और वह इस वर्ष वाइस प्रेसीडेंट हैं । इसलिए इस मामले को अतुल गुप्ता की लीडरशिप की असफलता के रूप में ही देखा/पहचाना जायेगा; और यही कहा/माना जायेगा कि जो अतुल गुप्ता अपने रीजन की काउंसिल में हालात को नियंत्रित नहीं कर पाए - वह इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट पद की जिम्मेदारी कैसे निभा सकेंगे ? नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में समस्याएँ थीं - समस्याएँ लेकिन कहाँ नहीं होती हैं ? अतुल गुप्ता को लगता था कि जो समस्याएँ हैं, वह अंततः खुद-ब-खुद हल हो जायेंगी - लेकिन इंस्टीट्यूट ने यदि कोई बड़ा फैसला लिया, तो मामला रिकॉर्ड पर आ जायेगा; और यह बात नॉर्दर्न रीजन से होने तथा वाइस प्रेसीडेंट होने के नाते उनके लिए फजीहत भरी होगी । मामला रिकॉर्ड पर न आए, इसके लिए अतुल गुप्ता जैसा जो हो रहा है वैसा होने देने के पक्ष में थे । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में अधिकतर समस्याएँ तरह तरह के भुगतान न होने के कारण हो रही थीं, जिनके लिए अतुल गुप्ता ने यह 'फार्मूला' भी सुझाया था कि उक्त भुगतान इंस्टीट्यूट की तरफ से कर दिए जाएँ । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के मामले में एक बार पहले भी ऐसा हो चुका है । अतुल गुप्ता का कहना था कि इससे रीजनल काउंसिल में झगड़ रहे पदाधिकारी अपने आप 'रास्ते' पर आ जायेंगे और उनके बीच का झगड़ा खत्म हो जायेगा । प्रफुल्ल छाजेड़ लेकिन इसके लिए तैयार नहीं हुए । दरअसल भुगतान के मामले जिन आधारों पर अटके थे - या अटकाए गए थे, उनके 'बने' रहते हुए मामले में इंस्टीट्यूट के भी फँसने के मौके बनते; जिससे बचने के लिए प्रफुल्ल छाजेड़ ने अतुल गुप्ता के 'फार्मूले' को हरी झंडी नहीं दी ।
प्रफुल्ल छाजेड़ को अतुल गुप्ता के रवैये पर इसलिए भी भरोसा नहीं हो रहा था, क्योंकि उन्हें 'बताया' जा रहा था कि नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में जो चल रहा है, उसके वास्तविक सूत्रधार अतुल गुप्ता ही हैं । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल की गतिविधियों से परिचित रहने वाले लोगों का मानना/कहना रहा कि यहाँ बबाल के बीज तो अतुल गुप्ता ने ही बोए, लेकिन बाद में फिर हालात उनकी पकड़ से छूट गए - और वह भी असहाय से हो गए; और वाइस प्रेसीडेंट के रूप में अपनी ईज्जत बचाने में लग गए । मजे की बात यह रही कि उनकी 'गुडबुक' में आने के लिए रतन सिंह यादव, अजय सिंघल, पंकज गुप्ता, गौरव गर्ग ने अपने अपने तरीके से हथकंडे अपनाना शुरू किए - इनमें भी गौरव गर्ग ने 'ऐतिहासिक' कदम उठाते हुए धरने की घोषणा कर डाली, जिसके लिए उन्होंने कुछेक काउंसिल सदस्यों का समर्थन भी जुटा लिया । रतन सिंह यादव व अजय सिंघल ने लेकिन चालाकी दिखाते हुए उनके धरने की हवा निकाल दी - उन्होंने हवा तो निकाल दी, लेकिन गौरव गर्ग को राजनीति के मार्ग से वह डिगा नहीं पाए । हद की बात तो यह हुई कि अपने पिता के निधन से उपजे निजी शोक के बीच भी गौरव गर्ग राजनीति करने से बाज नहीं आए; और जब उनके घर पर शोक/शुद्धि का कामकाज भी पूरा नहीं हुआ था, तब भी गौरव गर्ग वाट्स-ऐप संदेशों के जरिये राजनीतिक दाँव-पेंच चलने में मशगूल थे । पंकज गुप्ता प्रोफेशन के एक बड़े ग्रुप से जुड़े होने का फायदा उठाते हुए श्वेता पाठक व विजय गुप्ता की मदद से अपनी चाल आगे बढ़ा रहे थे । इस तरह की बातों से लगने लगा था कि नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में हालात जल्दी सुधरने वाले नहीं हैं । अतुल गुप्ता लेकिन तब भी किसी तरह के कठोर फैसले के पक्ष में नहीं थे । लेकिन मेघराज के असामयिक निधन ने स्थिति को एकदम से पलट दिया । मेघराज के निधन के लिए रीजनल काउंसिल के पदाधिकारियों के बीच चलने वाले झगड़े के कारण पगार का भुगतान न होने को जिम्मेदार माना गया और इस आरोप ने प्रेसीडेंट प्रफुल्ल छाजेड़ को यह विचार करने पर मजबूर किया कि नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के मामले को अब वह और अतुल गुप्ता की मर्जी पर नहीं छोड़ सकते हैं । संयोग से उसी दिन सेंट्रल काउंसिल की मीटिंग शुरू हुई; प्रफुल्ल छाजेड़ ने मीटिंग में ऐसी फील्डिंग सजाई कि नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के पदाधिकारियों के अधिकार छीन लेने का फैसला अंततः हो गया, और अतुल गुप्ता के सामने भी इस फैसले का समर्थन करने के अलावा कोई चारा नहीं बचा ।