Sunday, August 18, 2019

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के कर्मचारी मेघराज के असामयिक निधन से गुस्साए कर्मचारी इसके लिए काउंसिल के चारों पदाधिकारियों को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं, और माँग कर रहे हैं कि इनके खिलाफ मेघराज की 'हत्या' का मामला चले

नई दिल्ली । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के पदाधिकारियों के नाकारापन तथा अपने अपने अहंकारीपूर्ण रवैये के कारण चलने वाली उनकी आपसी लड़ाई ने काउंसिल के एक चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी मेघराज की जान ले ली है । 25/26 वर्ष का मेघराज अपने घर गया हुआ था, और वहाँ ह्रदयाघात के कारण उसकी इहलीला समाप्त हो गई । मेघराज की मृत्यु की खबर से गुस्साए कर्मचारियों का कहना है कि जिस तनाव के चलते उसे हृदयाघात हुआ, उसके लिए रीजनल काउंसिल के चारों प्रमुख पदाधिकारी जिम्मेदार हैं, और इसके लिए इन पर मेघराज की 'हत्या' का मुकदमा चलना चाहिए । उसके साथियों का कहना है कि पिछले माह मिलने वाली पगार के अभी तक न मिलने के कारण मेघराज बहुत ही परेशान था, और इसी परेशानी में उसकी जान चली गई । घर जा रहा मेघराज अपने परिवार के सदस्यों के लिए कुछ सामान ले जाना चाहता था, लेकिन पगार न मिलने के कारण वह अपने रोजमर्रा के खर्चे ही मुश्किल से चला पा रहा था - परिवार के सदस्यों के लिए सामान कहाँ से ले जाता ? घर जाने से पहले उसने अपनी पगार पाने के लिए प्रायः हर पदाधिकारी से गुहार लगाई, लेकिन वह सब हिंदी फिल्म 'दीवार' में बोले गए अमिताभ बच्चन के मशहूर डॉयलॉग को सुनाते मिले कि 'जाओ, पहले उसके साइन लेकर आओ' - और इस तरह उसे पगार नहीं मिली । उसके साथियों का कहना है कि वह बड़ा कलपता हुआ घर गया था, और घर पर भी वह इस बात को लेकर बहुत परेशान था कि उसके पास पैसे नहीं हैं और उसे अपने छोटे-मोटे खर्चों के लिए भी परिवार के दूसरे सदस्यों का मुँह देखना पड़ रहा है । इस स्थिति ने मेघराज को अपने परिवार के सदस्यों के बीच शर्मिंदगी तथा बेहद तनाव में ला दिया था, और इसी तनाव ने अंततः युवावस्था में ही उसकी जान ले ली । 
मेघराज के अलावा, रीजनल काउंसिल के बाकी कर्मचारी भी पगार न मिलने के कारण बुरी तरह परेशान हैं । कर्मचारियों का कहना है कि रीजनल काउंसिल के पदाधिकारियों की आपसी लड़ाई ने कर्मचारियों की जान को जोखिम में डाल दिया है । जरूरी खर्चे पूरे न होने के कारण कई कर्मचारी बुरी तरह तनाव में हैं, लेकिन रीजनल काउंसिल के पदाधिकारी इस सारे बबाल के लिए एक-दूसरे को जिम्मेदार ठहराते में लगे हुए हैं और मस्त हैं । उनकी अहंकारभरी आपसी लड़ाई के चलते भुगतान नहीं हो पा रहे हैं और इस वजह से काउंसिल की तरफ से प्रत्येक सप्ताह होने वाला सेमीनार कई सप्ताह से नहीं हो पा रहा है, जीएमसीएस के नए बैच नहीं बन पाने के कारण चार्टर्ड अकाउंटेंट छात्रों को भटकना पड़ रहा है, कर्मचारियों को पगार नहीं मिल पा रही है - जिसके चलते उनका जीवन तबाह हुआ पड़ा है । मसला क्या है ? मसला यह है कि सेक्रेटरी पंकज गुप्ता और ट्रेजरर विजय गुप्ता का कहना है कि रीजनल काउंसिल में जो भी काम हो रहे हैं, विभिन्न कामों के लिए जो भी वेंडर्स हैं, उनके साथ एग्रीमेंट होना चाहिए । उनका आरोप है कि चेयरमैन हरीश चौधरी जैन अपने साथियों के दबाव में एग्रीमेंट करने को लेकर तैयार नहीं हैं । लेकिन हरीश चौधरी जैन की तरफ से कहा जाता है कि यह लोग एग्रीमेंट की बात तो करते हैं, लेकिन एग्रीमेंट करने की तैयारी करने में कोई दिलचस्पी नहीं लेते हैं । हरीश चौधरी जैन का कहना है कि इन दोनों ने एग्रीमेंट न होने को एक बहाना व एक हथियार बनाया हुआ है, जिसका इस्तेमाल करते हुए इन्होंने रीजनल काउंसिल के कामकाज को बाधित किया हुआ है और पूरी व्यवस्था को छिन्न-भिन्न किया हुआ है । दूसरे लोगों को भी लगता है कि बात यदि सिर्फ एग्रीमेंट न होने की ही है, तो चारों पदाधिकारी मिलकर एग्रीमेंट कर क्यों नहीं लेते ? यहाँ लेकिन काउंसिल के चारों पदाधिकारियों का अपना अपना उनका अहंकार आड़े/आगे आ जाता है और इसके चलते कोई पहल नहीं हो पाती है ।
पिछले दिनों, भुगतान की समस्या को लेकर पंकज गुप्ता और विजय गुप्ता की तरफ से एक सुझाव यह भी आया था कि जिन खर्चों को लेकर एग्रीमेंट नहीं है, उन खर्चों के बारे में फैसला रीजनल काउंसिल की मीटिंग और या एक्जीक्यूटिव कमेटी की मीटिंग में हो । यह काम भी लेकिन नहीं हो पाया । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के मौजूदा हाल को - अभी तक के घोषित अंतिम सेमीनार, जो फिर नहीं हो सका था, से जुड़ा प्रसंग - बयान करता है । उक्त सेमीनार के रद्द होने की जो सूचना लोगों को मिली थी, उसमें वाइस चेयरपरसन श्वेता पाठक को जिम्मेदार बताया गया था; श्वेता पाठक ने इस पर जब बबाल मचाया और इसे मुद्दा बना कर जब पुलिस में रिपोर्ट कर दी, तब उक्त सूचना पर खेद व्यक्त करते हुए उसे वापस लेने वाला संदेश लोगों को भेजा । मजे की स्थिति यह है कि एक सेमीनार घोषित हुआ, और फिर वह रद्द हुआ - लेकिन रीजनल काउंसिल में कोई आधिकारिक रूप से यह बताने वाला नहीं है कि उक्त सेमीनार रद्द करने की नौबत आखिर क्यों आई और कौन उसके लिए जिम्मेदार है ? पदाधिकारियों के नाकारापन का यह एक बड़ा उदाहरण है । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के हालात इसलिए और भी खराब हैं क्योंकि यहाँ पदाधिकारियों के साथ-साथ दूसरे सदस्य भी अपनी अपनी राजनीति करने के मौके बनाते रहते हैं । पदाधिकारियों की मनमानियों पर लगाम लगाने तथा उनके फैसलों की जानकारी काउंसिल के सभी सदस्यों को करवाने की माँग के साथ गौरव गर्ग ने काउंसिल कार्यालय में धरना देने की घोषणा की, उन्हें काउंसिल के अन्य कुछेक सदस्यों का समर्थन भी मिल गया - लेकिन ऐन मौके पर रतन सिंह यादव ने उनके कार्यक्रम को पंक्चर कर दिया । दरअसल रतन सिंह यादव अगले वर्षों में चेयरमैन बनना चाहते हैं, और इसी चाहना में उन्हें डर हुआ कि अपने कार्यक्रम के जरिये कहीं गौरव गर्ग काउंसिल के सदस्यों के बीच पैठ न बना लें, इसलिए उन्होंने अपनी चालबाजी से गौरव गर्ग के कार्यक्रम में ही पंक्चर कर दिया । रतन सिंह यादव की चालबाजी सिर्फ इतने तक ही सीमित नहीं रही, बल्कि इससे आगे भी गई । वह काउंसिल की बातों की चर्चा सार्वजनिक रूप से नहीं करते हैं, लेकिन इस मामले की चर्चा उन्होंने खूब जमकर की । यह प्रसंग जिस समय का है, तब की तुलना में काउंसिल में हालात और बदतर ही हुए हैं - एक मामले में शिकायत पुलिस तक पहुँची है, और एक अन्य मामले में एक कर्मचारी को अपनी जान गँवाना पड़ी है, लेकिन पीछे तमाम नाटकबाजी करने वाले गौरव गर्ग और रतन सिंह यादव को काउंसिल के मामलों से जैसे अब कोई मतलब नहीं रह गया है । 
मेघराज के निधन ने लेकिन काउंसिल के कर्मचारियों को खासा उत्तेजित किया हुआ है, उनका कहना है कि काउंसिल के कुछेक सदस्यों के रवैये व व्यवहार से तंग आकर चेयरपरसन श्वेता पाठक जब पुलिस में शिकायत कर सकती हैं, तो मेघराज को जिन हालात में अपनी जान गँवाना पड़ी है उसकी जाँच के लिए भी पुलिस में मामला दर्ज करवाया जाना चाहिए । कर्मचारी मेघराज के असामयिक निधन के लिए रीजनल काउंसिल के चारों पदाधिकारियों को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं, और माँग कर रहे हैं कि इनके खिलाफ मेघराज की 'हत्या' का मामला चले ।