Saturday, October 8, 2016

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में पूजा बंसल को चेयरपरसन पद की मिली जिम्मेदारी ने रीजन काउंसिल के सत्ता समीकरणों का नए सिरे से गठित होने का मौका बनाया, और उसमें नए गुल खिलने की उम्मीद पैदा की

नई दिल्ली । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल की 13 सदस्यीय मैनेजमेंट कमेटी ने चार्टर्ड एकाउंटेंट्स इंस्टीट्यूट के इतिहास में पहला कलंकित अध्याय जोड़ा है, जिसमें वह खुद बिना पूर्णकालिक चेयरमैन के बिना पाँच महीने काम करेगी - इस कलंकित इतिहास को रचने के लिए कई लोग इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल के सदस्य राजेश शर्मा को भी कोस रहे हैं । लोगों का कहना है कि अपनी बेवकूफीभरी छोटी सोच से राजेश शर्मा ने रीजनल काउंसिल के पदाधिकारियों व सदस्यों को न केवल रीजन के लोगों के बीच, बल्कि दूसरे रीजन्स के पदाधिकारियों के बीच भी 'कार्टून' बना कर रख दिया है । जो कोई भी पूरे प्रसंग का रिकॉर्डेड घटनाक्रम देखता/सुनता/जानता है, वह इसी बात पर आश्चर्य करता है कि - नॉर्दर्न रीजन के लोगों ने करीब दस महीने पहले अपनी काउंसिल के लिए प्रतिनिधि चुने थे, या कार्टून चुने थे । रिकॉर्डेड घटनाक्रम के अनुसार, नॉदर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के चेयरमैन दीपक गर्ग 22 अगस्त को इंस्टीट्यूट प्रशासन पर सहयोग न करने के गंभीर आरोप लगाते हुए चेयरमैन के रूप में काम करने में असमर्थता व्यक्त करते हुए इस्तीफा दे देते हैं । 9 सितंबर को बुलाई गई रीजनल काउंसिल की मीटिंग में - आश्चर्यजनक रूप से, न दीपक गर्ग के इस्तीफे पर और न इंस्टीट्यूट प्रशासन पर सहयोग न करने के उनके आरोपों पर कोई चर्चा नहीं होती है । इसके बाद, 7 अक्टूबर को रीजनल काउंसिल की मीटिंग बुलाई जाती है, जिसमें दीपक गर्ग के इस्तीफे को स्वीकार करके वाइस चेयरपरसन पूजा बंसल को चेयरपरसन पद का भी कामकाज देखने के लिए अधिकृत करने का फैसला लिया जाता है ।
रीजनल काउंसिल सदस्यों के कार्टूनपने का पुख़्ता सुबूत इस सवाल में ही छिपा है कि 7 अक्टूबर को जो फैसला हुआ है, वह 9 सितंबर की मीटिंग में ही क्यों नहीं ले लिया गया था ? इस सवाल का सबसे दिलचस्प जबाव यही सुनने को मिल रहा है कि 7 अक्टूबर को लिया गया फैसला यदि 9 सितंबर की मीटिंग में ले लेते, तो काउंसिल सदस्य और पदाधिकारी अपना कार्टूनपना कैसे दिखाते और साबित करते ? अब ज़रा इस बात पर भी गौर करें कि दीपक गर्ग के इस्तीफ़ा देने के दिन से लेकर उनका इस्तीफा स्वीकार होने वाले दिन तक के 45 दिनों में रीजनल काउंसिल के पदाधिकारियों व सदस्यों ने किया क्या ? बेहिचक सीधा सा जबाव है कि इन दिनों में भी उन्होंने वही कुछ किया, जो यह पहले करते थे : इस्तीफ़ा देने के बावजूद दीपक गर्ग काउंसिल के कार्यक्रमों में चेयरमैन के रूप में खुशी खुशी शामिल होते रहे, और उनके संगी-साथी मीटिंग्स में सेल्फियाँ खींचते रहे । जाहिर है कि न दीपक गर्ग ने और न उनके संगी-साथियों ने और न दूसरे सदस्यों ने इंस्टीट्यूट प्रशासन पर लगाए दीपक गर्ग के आरोपों को गंभीरता से लिया । दीपक गर्ग का इस्तीफ़ा और उनके लगाए आरोप वास्तव में एक गंभीर मुद्दा है : दीपक गर्ग के आरोप यदि झूठे हैं, तो इस बात की जाँच होनी ही चाहिए कि आखिर किस स्वार्थ और षड्यंत्र के चलते उन्होंने इंस्टीट्यूट प्रशासन को बदनाम करने का काम किया; और यदि उनके आरोप सच हैं तो यह रीजनल काउंसिल के प्रत्येक सदस्य के लिए चिंता की बात होनी चाहिए । पर पिछले 45/47 दिनों में ऐसे कोई संकेत देखने को नहीं मिले हैं, जिनसे लगता हो कि किसी को भी दीपक गर्ग के आरोपों को लेकर ज़रा सी भी फ़िक्र हो । रीजनल काउंसिल के मौजूदा सदस्यों को वोट देने वाले लोगों को सोचना चाहिए कि उन्होंने इन्हें क्या इसलिए वोट दिए थे कि काउंसिल में जा कर यह सेल्फियाँ खींचे और इंस्टीट्यूट व प्रोफेशन को बदनाम करें, उनका मजाक बनाएँ ?
नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में जो ड्रामा चला, उसके रिकॉर्डेड पक्ष से काउंसिल सदस्यों के 'कार्टून' होने का पता चला, तो पर्दे के पीछे की कहानी उनका और भी घटिया रूप सामने लाती है । रिकॉर्डेड पक्ष में जो तमाम 'छेद' हैं, वह आभास देते हैं कि मामला सिर्फ उतना ही नहीं है - जितना कि दिख रहा है; बल्कि उससे कहीं ज्यादा बड़ा और गंभीर है । लोगों के बीच की चर्चाओं के अनुसार इस सारे तमाशे के वास्तविक सूत्रधार सेंट्रल काउंसिल के सदस्य राजेश शर्मा हैं, जिन्होंने भाँप लिया कि रीजनल काउंसिल के अधिकतर सदस्य निरे मूर्ख किस्म के हैं, और इन्हें जैसे चाहें वैसे हाँका जा सकता है । राजेश शर्मा ने इन्हें पट्टी पढ़ाई कि चेयरमैन बनने के लिए ज्यादा इंतजार क्यों करते हो; छह-छह महीने के हिसाब से तीन वर्ष में छह लोग चेयरमैन बन जाओ ! चेयरमैन बनने की दौड़ में लगे लोगों को यह फार्मूला तुरंत से पसंद भी आ गया, और वह राजेश शर्मा को अपना गुरु घोषित कर उनके बताए रास्ते पर चल पड़े । राजेश शर्मा खुद भी बड़ी अनोखी चीज हैं : आमतौर पर जो लोग बड़े बनना चाहते हैं, वह बड़े काम करने और बड़ी सोच रखने की जरूरत समझते हैं; राजेश शर्मा इस पचड़े में पड़ने की जरूरत नहीं समझते - बड़ा 'बनने' का उनका बड़ा आसान सा फार्मूला है और वह यह कि 'बड़े' लोगों के पीछे या दाएँ या बाएँ जबर्दस्ती घुस/घुसा कर फोटो खिंचवाओ और फिर उस फोटो को लोगों को दिखाओ - बस बड़े बन गए, और देखिए कितनी आसानी से बन गए । इसी तर्ज पर उन्होंने रीजनल काउंसिल के चेयरमैन-लोभी सदस्यों को जोड़ा और उन्हें बताया कि छह छह महीने के लिए चेयरमैन बनोगे, तो ज्यादा काम भी नहीं करना पड़ेगा और चेयरमैन भी कहलाने लगोगे । दीपक गर्ग का इस्तीफ़ा दरअसल इसी फार्मूले को क्रियान्वित करने के लिए उठाया गया कदम था ।
राजेश शर्मा के कहने में आकर रीजनल काउंसिल के सत्ता खेमे के लोगों ने कदम तो बढ़ा दिया - चर्चा तो यहाँ तक सुनी गई कि राजेश शर्मा की बातों में आकर पंकज पेरिवाल ने तो चेयरमैन पद की शपथ लेने के दौरान पहनने के लिए सूट चूज कर लिया था और उसे फिटिंग के अनुसार ऑल्टर करने के लिए भी दे दिया था - लेकिन इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट देवराज रेड्डी ने इंस्टीट्यूट और प्रोफेशन को मज़ाक बनाने की कोशिश करने वाले लोगों के ऐसे कान उमेंठे कि बेचारे न तो दर्द से कराह पाए और न कान छुड़ा पाए । इस बीच नॉर्दर्न रीजन की चंडीगढ़ ब्रांच में भी कुछ इसी तरह का तमाशा हुआ, और उन्होंने थोड़ी बहुत 'हेकड़ी' दिखाने की भी कोशिश की - जिसे देख कर राजेश शर्मा और उनके चंगु-मंगुओं को भी उम्मीद बँधी कि शायद उनके लिए भी कोई सम्मानजनक रास्ता निकल आए । दरअसल इसी उम्मीद में 9 सितंबर की मीटिंग में दीपक गर्ग के इस्तीफे को लेकर कोई बात या फैसला नहीं लिया गया । लेकिन इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट के रवैये में कोई बदलाव नहीं आया । राजेश शर्मा और उनके चंगु-मंगुओं के लिए मुसीबत की बात यह भी हुई कि सेंट्रल काउंसिल में नॉर्दर्न रीजन का प्रतिनिधित्व करने वाले बाकी सदस्यों ने उनकी हरकत की भर्त्सना ही की और उन्हें किसी भी तरह से समर्थन देने से साफ इंकार कर दिया । 'मरता क्या न करता' वाली तर्ज पर राजेश शर्मा और उनके चंगु-मंगुओं ने 7 अक्टूबर को आखिरकार वह फैसला कर लिया, जिसे वह 9 सितंबर को भी कर सकते थे - और जिसने न सिर्फ उनके सारे प्लान को चौपट कर दिया, बल्कि नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल और इंस्टीट्यूट के इतिहास में काला और कलंकित करने वाला अध्याय जोड़ दिया ।
वाइस चेयरपरसन पूजा बंसल को बाकी के पाँच महीनों में चेयरपरसन पद की जिम्मेदारियाँ निभाने का जो मौका मिला है, उसमें रीजन काउंसिल के सत्ता समीकरणों को नए सिरे से गठित होने के अवसर के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है । पूजा बंसल दरअसल सत्ता खेमे का हिस्सा थीं तो, लेकिन सत्ता खेमे में उनकी भूमिका एक किनारे खड़े मूक दर्शक की और समर्थक की ही थी - अब लेकिन सत्ता खेमे में उनकी भूमिका न सिर्फ महत्त्वपूर्ण बल्कि निर्णायक भी हो गई है । इससे स्वाभाविक ही है कि उनकी महत्त्वाकांक्षाओं को हवा मिलेगी । यही चीज नॉर्दर्न रीजन की चुनावी राजनीति में नए गुल खिलाएगी और उसके परिदृश्य को दिलचस्प बनाएगी ।