चंडीगढ़ । प्रमोद विज को अपने ही क्लब - रोटरी क्लब पानीपत मिडटाउन
में टीके रूबी को मुख्य अतिथि के रूप में आने से रोकने के लिए क्लब के
पदाधिकारियों के साथ बड़ी कठिन लड़ाई लड़नी पड़ी - इस लड़ाई को अंततः वह क्लब के प्रेसीडेंट के पिता से गुहार लगा कर ही जीत सके । इस पूरी लड़ाई में प्रमोद विज की बस एक ही रट रही कि टीके रूबी उनके क्लब में मुख्य अतिथि के रूप में यदि आए, तो राजेंद्र उर्फ़ राजा साबू के सामने उनकी नाक कट जायेगी । प्रमोद विज रोटरी में और डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच में यूँ तो अपने आप को एक बड़े नेता के रूप में प्रोजेक्ट करते हैं, किंतु यह जान कर उनकी साँस थम गई कि उनके क्लब के एक कार्यक्रम में टीके रूबी को मुख्य अतिथि के रूप में बुलाया जा रहा है । पहले
तो उन्होंने धौंस-डपट से क्लब के पदाधिकारियों पर दबाव डाला कि वह टीके
रूबी को क्लब के कार्यक्रम में न बुलाएँ; धौंस-डपट से बात नहीं बनी, तो वह
खुशामद पर उतरे; तब भी असफल रहने पर उन्होंने क्लब में झगड़ा करवाने की
तरकीब लगाई; बदकिस्मती ने वहाँ भी उनका काम नहीं बनने दिया । प्रमोद विज तब
फिर क्लब अध्यक्ष के पिता की शरण में गए, और वर्षों के परिचय का वास्ता देकर उनसे अनुरोध किया कि वह अपने बेटे को समझाएँ कि वह क्यों उनकी नाक कटवाने पर तुला है । क्लब अध्यक्ष को अपने पिता की बात मानने पर मजबूर होना पड़ा, और इस तरह टीके रूबी को दिया गया निमंत्रण वापस हुआ - और प्रमोद विज की नाक कटने से बची ।
टीके
रूबी डिस्ट्रिक्ट के गवर्नर्स खेमे के लोगों के लिए ऐसी हड्डी बन गए हैं,
जो रह रह कर उनके चुभती रहती है, और जिसके चुभने के दर्द से वह लगातार
कराहते रहते हैं । रोटरी क्लब पानीपत मिडटाउन में अभी हाल ही में जो उक्त तमाशा हुआ, वह दरअसल इसी चुभन और कराह का नया उदाहरण है । अधिकतर पूर्व गवर्नर्स बेचारों की यह सोच सोच कर ही साँस अटकी रहती है कि उनके क्लब के पदाधिकारी अपने किसी कार्यक्रम में कहीं टीके रूबी को न आमंत्रित कर लें । दरअसल
पिछले दिनों कैथल में आयोजित हुए इंटरसिटी कार्यक्रम में रोटेरियंस की जो
भारी भीड़ जुटी, उसे देख कर राजा साबू गिरोह के सदस्यों के कान फिर से खड़े
हो गए हैं । कैथल में आयोजित हुए इंटरसिटी कार्यक्रम के आयोजन की जिम्मेदारी टीके रूबी के नजदीकियों व
समर्थकों के पास थी । इस कार्यक्रम के प्रमुख कर्ताधर्ता जितेंद्र ढींगरा
थे । इससे पहले, पिंजौर और सहारनपुर में इंटरसिटी के जो कार्यक्रम हुए, वह
रोटेरियंस की उपस्थिति के लिहाज से बुरी तरह फ्लॉप रहे थे । इसी कारण
से, कैथल में रोटेरियंस के ज्यादा संख्या में मौजूद होने को टीके रूबी और
उनके साथियों के बने रहने वाले तथा बढ़ते प्रभाव के सुबूत के रूप में
देखा/पहचाना गया - और गवर्नर्स खेमे के लोगों के बीच किसी भी तरह से अपनी अपनी नाक बचाने
की कोशिशें एक बार फिर से तेज हुईं । इस चक्कर में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रमन अनेजा को यशपाल दास व मधुकर मल्होत्रा से फटकार तक सुनने को मिली कि कैथल में इंटरसिटी की जिम्मेदारी जितेंद्र ढींगरा को कैसे और क्यों दे दी गई ?
इन स्थितियों के कारण गवर्नर्स खेमे में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए 'अपना'
उम्मीदवार चुनने का काम और उलझ गया है । गवर्नर्स खेमे को इस वर्ष एक बार
फिर से जितेंद्र ढींगरा से मुकाबला करना है; और इसके लिए उनके सामने सुधीर चौधरी, नवजीत सिंह औलख और गुरदीप सिंह दीप में से किसी एक को चुनने की जिम्मेदारी है । सुधीर चौधरी के लिए पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर
हेमंत अरोड़ा बैटिंग कर रहे हैं । हेमंत अरोड़ा का तर्क है कि गवर्नर्स खेमे
की काली करतूतों पर पर्दा डालने के लिए उन्होंने चार्टर्ड एकाउंटेंट के रूप
में अपनी जो सेवाएँ दी हैं और अपनी प्रोफेशनल पहचान तक को जिस तरह से खतरे
में डाला है, उसके बदले में गवर्नर्स खेमा उनके उम्मीदवार के रूप में
सुधीर चौधरी को गवर्नर नहीं बनवा सकता क्या ? हेमंत अरोड़ा की राह में
सबसे बड़ा रोड़ा लेकिन मधुकर मल्होत्रा ने अटका रखा है । मधुकर मल्होत्रा ने
नवजीत सिंह औलख की उम्मीदवारी का झंडा उठा रखा है । मधुकर मल्होत्रा लोगों
के बीच डिस्ट्रिक्ट के सबसे ताकतवर पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर होने का प्रभाव बनाए हुए हैं, और अपने आप को राजा साबू व यशपाल दास के बाद तीसरे नंबर का नेता मानते/जताते हैं । उन्होंने
नवजीत सिंह औलख की उम्मीदवारी का झंडा पिछले वर्ष भी उठाया था, लेकिन फिर
ऐन मौके पर उन्हें यह झंडा छोड़ना पड़ा था । मधुकर मल्होत्रा के सामने मुसीबत
की बात यह है कि यदि इस वर्ष भी वह नवजीत सिंह औलख को गवर्नर्स खेमे का समर्थन नहीं दिलवा सके, तो फिर लोगों के बीच उनकी भारी फजीहत होगी ।
गुरदीप सिंह दीप अपने ही क्लब के सदस्य और पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर शाजु पीटर के भरोसे हैं, लेकिन
शाजु पीटर उनके लिए कुछ करते हुए नज़र ही नहीं आ रहे हैं । इस कारण से शाजु
पीटर अपने ही क्लब के सदस्यों के निशाने पर हैं ।
गवर्नर्स
खेमे के लिए समस्या और चुनौती की बात यह है कि पिछले वर्ष तो क्लब्स के
पदाधिकारियों की खुशामद करके और उन्हें तरह तरह से डरा-धमका कर उन्होंने
जितेंद्र ढींगरा को चुनाव हरवा दिया था, इस वर्ष लेकिन कोई जरूरी नहीं है कि वही फार्मूला फिर से सफल हो जाए । सयानों ने कहा भी है कि काठ की हांडी चूल्हे पर बार-बार थोड़े ही चढ़ती है । उम्मीदवार के रूप
में जितेंद्र ढींगरा ने जिस तरह से अपनी सक्रियताओं को संयोजित किया है,
तथा क्लब्स के पदाधिकारियों व अन्य प्रमुख लोगों के बीच अपनी पैठ बनाई है;
उसका मुकाबला करने के लिए बाकी के संभावित उम्मीदवारों में से किसी ने भी अभी तक कोई तैयारी या सक्रियता नहीं दिखाई है । सभी अभी दरअसल गवर्नर्स खेमे की तरफ से हरी झंडी मिलने का इंतज़ार कर रहे हैं । सुधीर चौधरी ने पिछले दिनों जरूर लोगों के साथ मेल-मुलाकात का सिलसिला शुरू किया था और अपने चुनाव अभियान में तेजी दिखाई थी, किंतु फिर वह भी घर बैठ गए । उनके
नजदीकियों का कहना है कि सुधीर चौधरी को लगा कि गवर्नर्स खेमे की तरफ से उन्हें
यदि हरी झंडी नहीं मिली, तो यह मेल-मुलाकातें क्या करेंगी - इसलिए अभी
चुपचाप घर बैठना ही ठीक है ।
राजा साबू गिरोह के नेता लोग जितेंद्र ढींगरा को रोकने के लिए इस वर्ष भी अपनी अपनी फजीहत करवायेंगे क्या - यह देखना वास्तव में दिलचस्प होगा ।