Wednesday, August 29, 2018

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की एक कमेटी के चेयरमैन के रूप में राजेश शर्मा चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के बीच रची/बनी अपनी बदनामी की कालिख को पोंछने के लिए जिस तरह की मनमानी कर रहे हैं, उसके सामने इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट नवीन गुप्ता आखिर मजबूर क्यों बने हुए हैं ?

नई दिल्ली । इंस्टीट्यूट की नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के ईस्ट एंड सीपीई स्टडी सर्किल ने आज शाम 'टैक्स ऑडिट एंड अवेयरनेस ऑन इन्वेस्टर प्रोटेक्शन' विषय पर आयोजित सेमीनार को जिस मखौलपूर्ण तरीके से संभव किया है, वह इस बात का एक पुख्ता उदाहरण है कि इंस्टीट्यूट में किस तरह का अंधेरखाता चल रहा है - और इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट बने बैठे नवीन गुप्ता काठ की मूर्ति बने हुए हैं । यूँ तो प्रायः हर प्रेसीडेंट के शासन में कुछेक लोग मनमानियाँ करते रहते हैं, और प्रेसीडेंट बेचारा धृतराष्ट्र की तरह आँख पर पट्टी बाँधे अँधा बना रहता है; लोगों का कहना हालाँकि यह भी है कि प्रेसीडेंट अपने जुगाड़-धंधे में रहता है और इसलिए दूसरे लोगों की मनमानियों पर ध्यान देने और उन पर रोक लगाने के लिए उसके पास समय ही नहीं होता है । लेकिन नवीन गुप्ता के प्रेसीडेंट-काल का तो गजब ही हाल है - ऐसा लगता है कि इंस्टीट्यूट में जैसे अराजकता का पूरा पूरा राज है; बड़े से बड़े काउंसिल मेंबर से लेकर छोटे छोटे पदाधिकारियों तक ने इंस्टीट्यूट की ऐसी बजा रखी है, जिसे देख/सुन कर लगता ही नहीं है कि इंस्टीट्यूट देश की एक जिम्मेदार संस्था है, जिसे चलाने के लिए नियम-कानून बने हुए हैं और उनका पालन करना होता है । प्रेसीडेंट के रूप में नवीन गुप्ता की हालत यह है कि सेंट्रल काउंसिल सदस्यों की तो बात छोड़िये, स्टडी सर्किल के पदाधिकारी तक मनमानी करते हुए कहते और दावा करते हैं कि नवीन गुप्ता तो उनकी जेब में हैं । कुछेक ब्रांचेज तथा स्टडी सर्किल के पदाधिकारियों पर पैसे लेकर सेमीनार में स्पीकर बनाने के गंभीर आरोप लगे हैं, इंस्टीट्यूट में इस बारे में शिकायतें हुई हैं, लेकिन इंस्टीट्यूट प्रशासन की तरफ से कार्रवाई तो दूर, जाँच तक होने के संकेत नहीं मिले हैं । इंस्टीट्यूट की काउंसिल्स के चुनाव नजदीक होने के कारण उम्मीदवार लोग सेमीनार में स्पीकर बनने के लिए पैसे दे रहे हैं, जिसके चलते सेमीनार सस्ते और फ्री हो गए हैं तथा ब्रांचेज व स्टडी सर्किल के पदाधिकारियों की जेबें भी भर रही हैं । स्टडी सर्किल पर परोक्ष व अपरोक्ष कब्जा किए कुछेक चार्टर्ड एकाउंटेंट्स चूँकि खुद भी रीजनल काउंसिल के उम्मीदवार हैं, इसलिए स्टडी सर्किल उनके लिए राजनीति करने का अड्डा भी बना हुआ है और पैसे बनाने का जरिया भी ।
बिलकुल नया मामला ईस्ट एंड सीपीई स्टडी सर्किल का है । इसने आज शाम 'टैक्स ऑडिट एंड अवेयरनेस ऑन इन्वेस्टर प्रोटेक्शन' विषय पर एक सेमीनार आयोजित किया । इस सेमीनार का लोगों को पहले जो निमंत्रण मिला, उसमें स्टडी सर्किल के सदस्यों से कोई फीस नहीं लेने की तथा गैर सदस्यों से तीन सौ रुपए फीस लेने की बात कही गई थी । लेकिन दो दिन बाद ही लोगों को सेमीनार के आयोजकों की तरफ से एक नया संशोधित निमंत्रण मिला, जिसमें हर किसी के लिए सेमीनार मुफ्त घोषित कर दिया गया था । हर किसी के लिए सेमीनार मुफ्त होने का चमत्कार इस कारण हुआ - जैसा कि संशोधित निमंत्रण पत्र में बताया गया - कि इस सेमीनार के आयोजन में इंस्टीट्यूट की 'कैपिटल मार्केट एंड इन्वेस्टर्स प्रोटेक्शन कमेटी' का सहयोग मिल गया । जाहिर है कि सेमीनार का खर्च इंस्टीट्यूट की उक्त कमेटी के जिम्मे हो गया । सवाल यह है कि एक स्टडी सर्किल द्वारा तय और घोषित किए जा चुके सेमीनार कार्यक्रम में इंस्टीट्यूट के एक कमेटी को ऐन मौके पर शामिल होने की जरूरत आखिर क्यों पड़ी ? इस सवाल की सामान्य सी पड़ताल ही इंस्टीट्यूट में फैली अंधेरगर्दी की पोल खोल देती है । दरअसल इंस्टीट्यूट की उक्त कमेटी के चेयरमैन राजेश शर्मा हैं, जो सेंट्रल काउंसिल में पुनर्निर्वाचित होने के लिए उम्मीदवार हैं । पिछले वर्ष 'सीए डे' फंक्शन के नाम पर प्रोफेशन व इंस्टीट्यूट की पहचान व साख को कलंकित करने तथा चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को अपमानित करने के आरोपों का शिकार होने के चलते राजेश शर्मा की लोगों के बीच खासी फजीहत है । राजेश शर्मा इंस्टीट्यूट के इतिहास में शायद अकेले सेंट्रल काउंसिल सदस्य हैं, जिनके लिए इंस्टीट्यूट के मुख्यालय में 'राजेश शर्मा चोर है' जैसे नारे गूँजे । राजेश शर्मा भाजपा नेताओं के साथ अपनी नजदीकियत दिखाते/जताते रहते हैं, लेकिन भाजपा नेता अक्सर ही चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को 'बेईमान' तथा बेईमानों के मददगार बताते रहते हैं और उन्हें अपने गिरेबाँ में झाँकने की सलाह देते रहते हैं - जिसके चलते चार्टर्ड एकाउंटेंट्स उनसे नाराज हैं । राजेश शर्मा को इस सब का खामियाजा भुगतना पड़ रहा है, और अपने चुनाव प्रचार के दौरान उन्हें लोगों की नाराजगी और विरोध झेलना पड़ रहा है ।
ऐसे में राजेश शर्मा को सेमीनारों का सहारा लेने की जरूरत पड़ रही है । 'कैपिटल मार्केट एंड इन्वेस्टर्स प्रोटेक्शन कमेटी' की तरफ से वह कार्यक्रम करें, तो उसमें खासा काम करना पड़ेगा और काम करना राजेश शर्मा के लिए झंझट का मामला है; इसलिए उन्होंने जुगाड़ लगाया है कि अपनी चेयरमैनी वाली कमेटी के जरिये वह हो रहे सेमीनारों में ही घुस जाएँ और अपना काम बनाएँ । कल ही आयोजित हुए पंचकुईयाँ रोड सीपीई स्टडी सर्किल के सेमिनार में भी उक्त कमेटी की भागीदारी थी, और वह सेमीनार भी लोगों के लिए मुफ्त हुआ था । मजे की और हैरानी की बात यह है कि इन दोनों सेमिनार्स में लोगों को चार-चार घंटे के सीपीई आवर्स भी मिल गए हैं । उल्लेखनीय है कि सीपीई आवर्स के अलॉटमेंट के लिए बड़े नियम और प्रावधान हैं, लेकिन इन दोनों मामलों में उन नियमों व प्रावधानों का खुला उल्लंघन हुआ है - और 'कंटीन्यूइंग प्रोफेशनल एजुकेशन कमेटी' के पदाधिकारी भी आँख पर पट्टी बाँधे बैठे हुए हैं । उक्त कमेटी के लोगों का कहना है कि जब प्रेसीडेंट नवीन गुप्ता ही 'अंधे' बने हुए हैं, तो हम ही क्या करें ? इस तरह 'कंटीन्यूइंग प्रोफेशनल एजुकेशन कमेटी' और 'कैपिटल मार्केट एंड इन्वेस्टर्स प्रोटेक्शन कमेटी' मजाक बन कर रह गई हैं, और ऐसा लगता है कि इनका काम सिर्फ राजेश शर्मा के चुनाव के प्रचार की व्यवस्था करना ही रह गया है । राजेश शर्मा के नजदीकियों का ही कहना है कि इन कमेटियों की भागीदारी के साथ आनन-फानन में अभी कुछेक और सेमीनार होंगे । राजेश शर्मा द्वारा इंस्टीट्यूट के संसाधनों के किए जा रहे इस दुरूपयोग की शिकायतें इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट नवीन गुप्ता से की गई हैं, लेकिन उनकी तरफ से इस मामले में अनदेखी ही की जा रही है । राजेश शर्मा जहाँ तहाँ कहते/बताते भी रहते हैं कि इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट नवीन गुप्ता तो उनकी जेब में रहते हैं । इस तरह की बातों/हरकतों ने इंस्टीट्यूट की पहचान और साख को जिस बुरी तरह से कलंकित किया है, वह कई लोगों को इंस्टीट्यूट के अभी तक के इतिहास का सबसे काला अध्याय लग रहा है ।