Sunday, August 12, 2018

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में अशोक अग्रवाल ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की अपनी उम्मीदवारी के पक्ष में समर्थन जुटाने के लिए रोटरी में अपनी सक्रियताओं व उपलब्धियों का सहारा लेना शुरू किया

गाजियाबाद । अशोक अग्रवाल ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी लड़ाई में अपने आप को आगे रखने के लिए अपनी सक्रियताओं और अपनी उपलब्धियों से रोटेरियंस को परिचित करवाने का जो काम शुरू किया है, उसने कई नए रोटेरियंस को चकित किया है और उन्हें लगा है कि इतना कुछ करने/पाने वाले अशोक अग्रवाल अभी तक डिस्ट्रिक्ट गवर्नर आखिर क्यों नहीं बने ? नए रोटेरियंस के बीच सवाल यही है कि कमजोर बैकग्राउंड और ज्यादा कुछ न करने वाले लोग भी जब गवर्नर बन गए हैं, तब अशोक अग्रवाल गवर्नर बनने के मामले में पीछे क्यों रह गए हैं ? अशोक अग्रवाल का रोटरी बैकग्राउंड और रोटरी में उनकी निरंतर सक्रियता का इतिहास वास्तव में प्रेरणापूर्ण है और किसी को भी प्रभावित कर सकता है । अशोक अग्रवाल वर्ष 2003-04 में अपने क्लब - रोटरी क्लब गाजियाबाद ग्रेटर के प्रेसीडेंट बने थे, और उसके दूसरे वर्ष में ही, वर्ष 2005-06 में वह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए अधिकृत उम्मीदवार का चयन करने वाली नोमीनेटिंग कमेटी के सदस्य बन गए थे । उन वर्षों में जो लोग डिस्ट्रिक्ट में सक्रिय थे, वह जानते हैं और बताते हैं कि सात/आठ क्लब्स का प्रतिनिधित्व करने वाले जोन में नोमीनेटिंग कमेटी की सदस्यता के लिए चुनाव कितना चुनौतीपूर्ण था, जिसे जीतने के लिए अशोक अग्रवाल को अपने साथियों/समर्थकों के साथ-साथ अपने विरोधियों को भी अपनी उम्मीदवारी के समर्थन में बनाए रखने को लेकर मेहनत तो करना ही पड़ी थी, साथ ही अपनी रणनीतिक कुशलता का भी इस्तेमाल करना पड़ा था ।
अशोक अग्रवाल ने नोमीनेटिंग कमेटी का उक्त चुनाव जिस रणनीतिक कुशलता के साथ लड़ा था, उसमें 'पूत के पाँव पालने में ही दिख जाते हैं' वाली कहावत को चरितार्थ होते देख कई लोगों ने मान/समझ लिया था कि अशोक अग्रवाल को रोटरी की राजनीति में काफी आगे तक जाना है । रोटरी की राजनीति में आगे तक जाने का मतलब डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनने से होता है, इसलिए कई लोग अशोक अग्रवाल को भावी उम्मीदवार/गवर्नर के रूप में देखने लगे । अशोक अग्रवाल ने लेकिन सभी को निराश किया और उम्मीदवारी के पचड़े से दूर ही रहने की घोषणा की । उनके क्लब से जेके गौड़ की उम्मीदवारी प्रस्तुत होने से लोगों ने मान लिया कि अशोक अग्रवाल गवर्नर बनने की बजाये, गवर्नर 'बनाने' के खेल में हिस्सेदारी करेंगे । जेके गौड़ को अशोक अग्रवाल के उम्मीदवार के रूप में देखा/पहचाना गया था; और जेके गौड़ पूरी तरह उन्हीं पर निर्भर रहे थे । जेके गौड़ की उम्मीदवारी की दौड़ के दौरान एक मजेदार किस्सा हुआ था - जेके गौड़ उम्मीदवार के रूप में वरिष्ठ रोटेरियन राजीव वशिष्ठ से मिलने पहुँचे थे; राजीव वशिष्ठ ने बातों बातों में उनसे कहा/बताया कि उनके सुनने में आया है कि अशोक अग्रवाल उनकी उम्मीदवारी से खुश नहीं हैं और उनकी उम्मीदवारी के समर्थन में नहीं हैं । यह सुनकर जेके गौड़ के तो जैसे होश ही उड़ गए । वह अगले ही दिन अशोक अग्रवाल को लेकर राजीव वशिष्ठ के यहाँ फिर पहुँचे - यह बताने/दिखाने के लिए कि देखिये, अशोक अग्रवाल उनकी उम्मीदवारी से बहुत खुश हैं और पूरी तरह से उनकी उम्मीदवारी के समर्थन में हैं । बाद के वर्षों में अशोक अग्रवाल ने कहीं यह कह दिया था कि वह उस वर्ष उम्मीदवार बनेंगे, जिस वर्ष आलोक गुप्ता उम्मीदवार बनेंगे । यह उस समय की बात है, जब अशोक अग्रवाल और आलोक गुप्ता के बीच संबंध गड़बड़ चल रहे थे । अशोक अग्रवाल की उक्त घोषणा का असर यह था कि पिछले रोटरी वर्ष में आलोक गुप्ता ने जब अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत करने की तैयारी शुरू की, तो सबसे पहला काम यह सुनिश्चित करने का किया कि अशोक अग्रवाल उनके साथ-साथ अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत न करें ।
यह दो किस्से अशोक अग्रवाल की राजनीतिक व रणनीतिक कुशलता की ठोस गवाही देते हैं । हालाँकि कुछेक लोग इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए अधिकृत उम्मीदवार का चयन करने वाली नोमीनेटिंग कमेटी के लिए रमेश अग्रवाल और जेके गौड़ के बीच हुए चुनाव में जेके गौड़ की पराजय के लिए अशोक अग्रवाल को जिम्मेदार ठहराते हुए कहते/बताते हैं कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में जेके गौड़ की हरकतों का बचाव करने के कारण अशोक अग्रवाल ने कई लोगों को नाराज किया है, जिसके चलते अब उनका पहले जैसा जलवा नहीं रह गया है । कुछेक लोगों को यह भी लगता है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में जेके गौड़ की हरकतों को देखते हुए लोग रमेश अग्रवाल की बद्तमीजियों को भी भूल गए और 'ट्रबल शूटर' के रूप में अशोक अग्रवाल उस स्थिति को हैंडल नहीं कर सके । उस झटके ने अशोक अग्रवाल के लिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के अपने चुनाव को खासा चुनौतीपूर्ण बना दिया है । अशोक अग्रवाल ने पिछले वर्षों में हुए चुनावों में सक्रिय भूमिका निभाई है, और अधिकतर बार अपनी भूमिका से 'अपने' उम्मीदवारों को सफलता दिलवाई है, कुछेक बार हालाँकि उनके तमाम प्रयत्नों के बावजूद 'उनके' उम्मीदवारों को पराजय का मुँह भी देखना पड़ा है । अशोक अग्रवाल के लिए चुनौती की बात यह है कि जो लोग उनकी सक्रियता के इतिहास से पूरी तरह परिचित हैं, वह तो जानते हैं कि रोटरी की चुनावी राजनीति में अशोक अग्रवाल के हिस्से में सफलताएँ ज्यादा हैं, असफलताएँ कम हैं; लेकिन जो लोग उनकी सक्रियता के इतिहास को पूरी तरह नहीं जानते हैं, वह आधी-अधूरी बातों के आधार पर ही उम्मीदवार के रूप में उनका मूल्याँकन करेंगे ।
अशोक अग्रवाल ने इसी चुनौती से निपटने के लिए अपनी सक्रियताओं और उपलब्धियों से लोगों को परिचित करने/करवाने का काम शुरू किया है । पुराने रोटेरियंस तो अशोक अग्रवाल को जानते ही हैं; नए रोटेरियंस को यह जान कर लेकिन जरूर आश्चर्य हुआ है कि अशोक अग्रवाल दो बार असिस्टेंट गवर्नर रहे हैं और तीन बार डिस्ट्रिक्ट पोलियो कमेटी के चेयरमैन रहे हैं । डिस्ट्रिक्ट पब्लिक इमेज कमेटी और डिस्ट्रिक्ट मेंबरशिप कमेटी के चेयरमैन रहने के साथ-साथ वह डिस्ट्रिक्ट एडमिनिस्ट्रेशन कमेटी के प्रमुख तथा डिस्ट्रिक्ट सेक्रेटरी के पद की जिम्मेदारी भी संभाल चुके हैं । इस वर्ष वह डिस्ट्रिक्ट एडवाईजर हैं ही । रोटरी में अपनी सेवाओं के लिए अशोक अग्रवाल बेस्ट रोटेरियन अवॉर्ड से भी नवाजे जा चुके हैं । अशोक अग्रवाल और उनके समर्थकों व शुभचिंतकों को उम्मीद है कि उनकी सक्रियता और उपलब्धियों की बात लोग जानेंगे, तो उससे डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए प्रस्तुत उनकी उम्मीदवारी को फायदा पहुँचेगा । अपनी सक्रियताओं और उपलब्धियों को अशोक अग्रवाल सचमुच अपनी उम्मीदवारी के समर्थन में ट्रांसफर कर/करवा सकेंगे या नहीं, यह देखना दिलचस्प होगा ।