नई दिल्ली । सुशील गुप्ता के इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी चुने जाने की खबर पर देश के रोटेरियंस नेताओं की नींद आज सूरज की पहली किरण फूटने से पहले ही जितनी जल्दी खुली है और उनके बीच खुशी की जो लहर देखने/सुनने को मिल रही है, वह अप्रत्याशित है और सचमुच एक अलग अनुभव है । वरिष्ठ रोटेरियंस याद करते हुए बताते हैं कि इससे पहले किसी भारतीय के रोटरी इंटरनेशनल प्रेसीडेंट चुने जाने पर ऐसा जोश और उत्साह नहीं देखा गया था, जैसा सुशील गुप्ता के मामले में देखा जा रहा है । उल्लेखनीय है कि सुशील गुप्ता से पहले भारत तीन बार इंटरनेशनल प्रेसीडेंट पद पर प्रतिनिधित्व कर चुका है - 1962-63 में नितीश लाहरी, 1991-92 में राजेंद्र उर्फ राजा साबू और 2011-12 में कल्याण बनर्जी के रूप में; सुशील गुप्ता 2020-21 में इंटरनेशनल प्रेसीडेंट का पदभार सँभालेंगे । पिछले कुछेक वर्षों से अशोक महाजन इंटरनेशनल प्रेसीडेंट बनने की चुनावी दौड़ में थे, जिन्हें पूर्व प्रेसीडेंट राजा साबू का सक्रिय समर्थन था - लेकिन उनकी चुनावी दाल नहीं गल सकी । सुशील गुप्ता भी पिछले कुछेक वर्षों से प्रेसीडेंट के चुनावी मैदान में अपनी सफलता के लिए फील्डिंग सजा रहे थे । इस वर्ष सुशील गुप्ता के लिए स्थितियों को अनुकूल माना/पहचाना तो जा रहा था, लेकिन उनकी सफलता में रोड़े अटकाने वाले नेताओं की भी कमी नहीं थी । सुशील गुप्ता के नजदीकियों का ही कहना है कि सुशील गुप्ता को यह जीत विरोधियों के जबड़ों से खींच कर निकालनी पड़ी है । जानकारों ने बताया है कि नोमीनेटिंग कमेटी में दूसरे उम्मीदवारों के लिए भी अच्छा समर्थन था, और एक मौके पर तो जीत सुशील गुप्ता के हाथ से फिसलती नजर आ रही थी, लेकिन उनकी वकालत करने वालों ने अपनी एकता न सिर्फ दृढ़ता के साथ बनाये रखी बल्कि ढिलमुल चल रहे सदस्यों को अपनी तरफ खींच लेने का भी काम किया और अंततः फैसला सुशील गुप्ता के पक्ष में करवा लिया । उल्लेखनीय है कि एशिया महाद्वीप के दो पूर्व इंटरनेशनल प्रेसीडेंट राजा साबू और केआर रवींद्रन तो सुशील गुप्ता की उम्मीदवारी के खिलाफ पूरी तरह खुलकर ताल ठोके हुए थे । रोटरी की खेमेबाजी में यह दोनों हालाँकि हैं तो एक ही खेमे में, लेकिन सुशील गुप्ता की उम्मीदवारी की खिलाफत करने के इनके कारण अलग अलग रहे । केआर रवींद्रन तो दरअसल सिर्फ इसलिए विरोध में रहे, ताकि भारत के रोटेरियंस के बीच उनकी नेतागिरी चलती रहे; जबकि राजा साबू ने करीब 28 वर्षों से चली आ रही अपनी खुन्नस के कारण सुशील गुप्ता के विरोध का झंडा उठाये रखा ।
दरअसल करीब 28 वर्ष पहले, राजा साबू को इंटरनेशनल प्रेसीडेंट पद के लिए अधिकृत उम्मीदवार चुने जाने के बावजूद, रोटरी क्लब दिल्ली मिडटाऊन के मनोहर मनचंदा की तरफ से मिले चैलेंज के कारण चुनाव का जो सामना करना पड़ा था - राजा साबू उसके लिए सुशील गुप्ता को जिम्मेदार ठहराते हैं । दरअसल उस समय मनोहर मनचंदा के खास समर्थकों में सुशील गुप्ता को देखा/पहचाना जाता था । 1986-87 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रह चुके सुशील गुप्ता उस समय पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में अपने डिस्ट्रिक्ट के साथ-साथ दूसरे डिस्ट्रिक्ट्स की चुनावी राजनीति में सक्रिय थे, और पोस्टल-बैलेट से होने वाले चुनाव में मनोहर मनचंदा के पक्ष में वोट जुटाने के काम में खासी दिलचस्पी ले रहे थे । सुशील गुप्ता की दिलचस्पी मनोहर मनचंदा को चुनाव तो नहीं जितवा सकी, लेकिन उसके कारण राजा साबू से सदा सदा का बैर उन्हें जरूर मिल गया । राजा साबू के साथ इतिहास ने जैसे बड़ा क्रूर मजाक किया है - 28 वर्ष पहले जिन सुशील गुप्ता के कारण उनके लिए इंटरनेशनल प्रेसीडेंट बनना चुनौतीपूर्ण हो गया था, उन्हीं सुशील गुप्ता के इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी चुने जाने से उनका जो थोड़ा-बहुत प्रभाव बचा हुआ था, उसके भी धूल में मिल जाने का खतरा पैदा हो गया है । राजा साबू को पिछले दो-तीन वर्षों में अपने डिस्ट्रिक्ट की घटनाओं के संदर्भ में लगातार जो चोट पर चोट पड़ी, और जिस चमत्कारिक ढंग से टीके रूबी को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का पद मिला - जिसके चलते राजा साबू की भारी किरकिरी हुई - उसके लिए राजा साबू ने सुशील गुप्ता को ही जिम्मेदार ठहराया है । डिस्ट्रिक्ट 3080 में राजा साबू के नजदीकी पूर्व गवर्नर्स लगातार सुशील गुप्ता को गलियाते रहे हैं । पिछले कुछेक वर्षों की घटनाओं से यह झलक तो मिलती रही है कि रोटरी इंटरनेशनल की राजनीति में राजा साबू का दखल कमजोर पड़ता गया है । हालाँकि अभी हाल ही में उन्होंने जिस तरह से रोटरी फाउंडेशन के ट्रस्टी गुलाम वहनवती से सिफारिश करवा कर जरूरी शर्तों को पूरा किए बिना ग्लोबल ग्रांट मंजूर करवा ली है, उससे लोगों को यह कहने का मौका मिला है कि रोटरी में राजा साबू की 'हैसियत' छोटी/मोटी 'बेईमानियाँ' करने की जरूर बची है - सुशील गुप्ता के इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी चुने जाने से पूर्व इंटरनेशनल प्रेसीडेंट राजा साबू की इस हैसियत के लिए भी लेकिन खतरा पैदा हो गया दिख रहा है ।
सुशील गुप्ता के प्रेसीडेंट नॉमिनी चुने जाने से रोटरी की इंटरनेशनल राजनीति के साथ-साथ भारत की रोटरी राजनीति में भी बड़े परिवर्तन होने का अनुमान लगाया जा रहा है - बल्कि यह कहना शायद ज्यादा सच होगा कि परिवर्तन तो हो रहे थे, जिनके नतीजे के रूप में सुशील गुप्ता को जीत मिली है; सुशील गुप्ता की जीत परिवर्तन की प्रक्रिया को और तेज करने का काम करेगी । सुशील गुप्ता यदि नहीं चुने जाते, तो परिवर्तन की उस प्रक्रिया को धक्का लगता । सुशील गुप्ता के नजदीकियों का कहना है कि इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी के चुनाव में रोटरी इंटरनेशनल के हाल-फिलहाल के पदाधिकारियों की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है, और उनकी भूमिका ने रोटरी इंटरनेशनल की राजनीति में कुंडली मारे बैठे पुराने नेताओं की भूमिका को पीछे धकेल दिया है । रोटरी इंटरनेशनल में यह जैसे नए मौसम के आने का संकेत है । भारत की रोटरी की राजनीति और व्यवस्था पर भी इसका असर पड़ने का अनुमान लगाया जा रहा है । हालाँकि सुशील गुप्ता पर फैसलों को टालने और उन्हें लटकाए रखने तथा अपने नजदीकियों का साथ न देने के गंभीर आरोप लगते रहे हैं; अपने रवैये के चलते उन्हें खुद भी उपेक्षा और अपमान का शिकार होना पड़ता रहा है । उन्हें अपने डिस्ट्रिक्ट में पिछले रोटरी वर्ष में निवर्त्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रवि चौधरी के हाथों अपमानित होना पड़ा है, और मौजूदा डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनय भाटिया भी रवि चौधरी के रास्ते पर ही चलते नजर आ रहे हैं - जिस कारण उनके डिस्ट्रिक्ट के राजनीतिक कारणों से बदनाम होने का खतरा पैदा हो रहा है । माना जाता रहा है कि सुशील गुप्ता पिछले वर्ष रवि चौधरी की और इस वर्ष विनय भाटिया तथा उनके नजदीकियों की हरकतों को इसलिए अनदेखा करते रहे, ताकि कोई विवाद पैदा न हो - जिससे उनके इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी पद के चुनाव पर कोई प्रतिकूल प्रभाव पड़े । लेकिन उम्मीद की जा रही है कि अब जब वह इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी चुन लिए गए हैं, तब वह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर तथा उनकी टीम के प्रमुख पदाधिकारियों की हरकतों को अनदेखा नहीं करेंगे । देखना दिलचस्प होगा कि सुशील गुप्ता के इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी चुने जाने का सचमुच में उनके अपने डिस्ट्रिक्ट तथा भारत की रोटरी राजनीति के समीकरणों पर कैसा क्या असर पड़ेगा ?