Wednesday, August 22, 2018

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल की उम्मीदवारी के लिए वोट जुटाने चंडीगढ़ गए रतन सिंह यादव अपनी ससुराल के लिए समय न निकाल पाने की बात कह कर भारी फजीहत का शिकार हुए

नई दिल्ली । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल की अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने चंडीगढ़ पहुँचे रतन सिंह यादव को सोशल मीडिया में कही गई अपनी ही एक बात के कारण खासी मुसीबत और फजीहत झेलना पड़ रही है । अपने चुनाव प्रचार के लिए चंडीगढ़ रवाना होने से पहले रतन सिंह यादव ने सोशल मीडिया पर एक कमेंट लिखा, जिसे पढ़कर लोगों को पता चला कि चंडीगढ़ में उनकी ससुराल है, लेकिन जहाँ वह जा/आ नहीं पाते हैं और इसे लेकर उनकी ससुराल वालों को उनसे शिकायत रहती है । रतन सिंह यादव का यह कहना ही उनके लिए भारी मुसीबत बन गया । चंडीगढ़ में कई लोगों ने उनसे पूछा कि आपके पास जब अपनी ससुराल वालों के लिए समय नहीं है, जिन्होंने आपको अपनी लड़की दी है - तो हमारे लिए आपके पास समय कैसे होगा, हम तो आपके कुछ लगते भी नहीं हैं ? रतन सिंह यादव से लोगों ने वहाँ पूछा कि अपने जीवन को संपूर्णता देने के लिए जीवनसंगिनी लेने जब आप ससुराल आए होंगे, तब तो खूब समय निकाल कर रिश्तेदारों और दोस्तों के साथ आए होंगे; लेकिन अपना काम निकल जाने के बाद ससुराल वालों को दिखाने/जताने/बताने लगे कि आपके पास उनके लिए तो समय ही नहीं है - ऐसे में, इस बात की क्या गारंटी है कि हमारा वोट लेकर अपना काम निकाल लेने के बाद आप हमें भी दिखाने/जताने/बताने नहीं लगोगे कि हमारे लिए तो आपके पास समय ही नहीं है ? लोगों ने उनसे पूछा कि आपके इस अहसानफरामोशी वाले रवैये को देखते हुए हम वही गलती क्यों करें, जो आपकी ससुराल वालों ने की - जो बेचारे आपके आने का इंतजार करते रहते हैं, लेकिन जिनके लिए आपके पास समय ही नहीं है ? 
रतन सिंह यादव को उम्मीद नहीं थी, कि यूँ ही अपनी बात में थोड़ा मजाक भरने की कोशिश के चलते उन्हें ऐसी फजीहत का शिकार होना पड़ेगा । लोगों के सवालों को उन्होंने मजाक में उड़ाने/टालने की कोशिश तो बहुत की, लेकिन लोगों को भी जैसे उनकी खिल्ली उड़ाने और खिंचाई करने का मौका मिल गया और उन्होंने रतन सिंह यादव की जमकर फजीहत की । चंडीगढ़ में हुई उनकी फजीहत की बात जब दिल्ली में उनके साथियों व अन्य लोगों को पता चली, तो उनका कहना रहा कि रतन सिंह यादव बेवकूफीभरी बातों के कारण अक्सर ही मजाक का विषय बनता रहता है, लेकिन फिर भी सबक नहीं सीखता है और न जाने कैसी कैसी बकवास करता रहता है । उनके कुछेक नजदीकियों ने ही इन पंक्तियों के लेखक को बताया कि उन्होंने रतन सिंह यादव को कई बार समझाया है कि थोड़ा कम बोला/लिखा कर, और बोलने/लिखने से पहले थोड़ा सोच/विचार कर लिया कर - लेकिन सोच/विचार करने से तो लगता है कि उसका पुराना बैर है और वह सोचने/विचारने की तो जैसे कोई जरूरत ही नहीं समझता है । रतन सिंह यादव के शुभचिंतकों का कहना है कि उन्होंने अपने साथ अपने ही जैसे लोग भी जोड़े हुए हैं, जो बिना सोचे/समझे कुछ भी बोलते रहते हैं । पिछले चुनाव के दौरान उनके एक घनघोर समर्थक ने उनकी उपलब्धियों को बखान करने के जोश में होश खोते हुए दावा किया कि वह इंस्टीट्यूट की कई कमेटियों में सदस्य रहे हैं; किसी ने पूछ लिया कि कृपया बताइये कि रतन सिंह यादव कौन कौन सी कमेटियों में सदस्य रहे हैं ? उस जोशीले समर्थक को तो जैसे साँप सूँघ गया, वह बेचारा क्या बताता ? रतन सिंह यादव ने मामले को सँभालने की बजाये यह कहते/कमेंट करते हुए हुए मामले को और हास्यास्पद बना दिया कि मैं अभी चुनाव प्रचार में व्यस्त हूँ, चुनाव हो जाने के बाद मैं बताऊँगा कि मैं इंस्टीट्यूट की किन किन कमेटियों में रहा हूँ ।
रतन सिंह यादव के नजदीकियों का कहना/बताना है कि फालतू और बेमतलब की बातें करने के साथ-साथ ऊँची ऊँची हाँकने तथा जुमलेबाजी करने का रतन सिंह यादव को जो शौक है, उसके कारण उन्होंने अपना मजाक बनवाया हुआ है । पिछले कुछेक महीनों में ही वह एक तरफ तो न्याय की और आदर्श की बड़ी बड़ी बातें करते/लिखते सुने गए हैं, और दूसरी तरफ रीजनल काउंसिल में होने वाली बेईमानियों और बदतमीजियों के लिए जिम्मेदार लोगों के समर्थन में खड़े दिखते रहे हैं । पिछले वर्ष राकेश मक्कड़ के चेयरमैन-वर्ष में रीजनल काउंसिल में बेईमानियों और बदतमीजियों के कई किस्से हुए, लेकिन मजाल है कि किसी भी मामले में रतन सिंह यादव ने मुँह खोला हो; हालाँकि मुँह तो उन्होंने कई बार खोला, लेकिन हर बार राकेश मक्कड़ का बचाव करने के लिए । दरअसल रतन सिंह यादव को नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के चुनाव में राकेश मक्कड़ का समर्थन चाहिए, इसलिए उन्होंने चेयरमैन के रूप में राकेश मक्कड़ की हर बेईमानी और हरकत पर या तो चुप्पी साध ली और या उनका बचाव किया । कई मौकों पर तो उन्होंने राकेश मक्कड़ की बेईमानी व बदतमीजी का विरोध करने वाले लोगों को ही निशाने पर लेने की कोशिश की । रतन सिंह यादव के इस दोहरे चरित्र को देखते हुए ही कई लोगों ने कहना शुरू किया कि रतन सिंह यादव यदि चुनाव जीत कर रीजनल काउंसिल में आ भी गए, तो इंस्टीट्यूट और प्रोफेशन का उससे ज्यादा ही नुकसान पहुँचायेंगे, जितना राकेश मक्कड़ ने पहुँचाया है । रतन सिंह यादव को जानने वाले लोगों का ही कहना है कि रतन सिंह यादव अपनी बातों और अपनी हरकतों से अपना असली 'चरित्र' बताते/दिखाते रहते हैं, जिसमें उन्हें उनकी जीवनसंगिनी देने वाले परिवार के लिए तो उनके पास समय नहीं है, लेकिन इंस्टीट्यूट व प्रोफेशन को कलंकित करने वाले राकेश मक्कड़ की 'सेवा' के लिए वह हर समय तैयार खड़े मिले/दिखे हैं । अपनी बातों और अपने व्यवहार से रतन सिंह यादव ने अपने ही चुनाव को खासा चुनौतीपूर्ण बना लिया है ।