गाजियाबाद । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनावी परिदृश्य में
अमित गुप्ता की उम्मीदवारी की स्थिति का आकलन करने के लिए उनके समर्थकों व
शुभचिंतकों की हुई मीटिंग ने चुनावी परिदृश्य का एक दिलचस्प नजारा पेश किया
है । नजारा दिलचस्प इसलिए माना गया क्योंकि इस मीटिंग
में कई ऐसे लोग शामिल हुए जिन्हें डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के एक
दूसरे उम्मीदवार रवि सचदेवा के समर्थकों व शुभचिंतकों के रूप में
देखा/पहचाना जाता है । इस स्थिति ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के तीसरे
उम्मीदवार अशोक अग्रवाल के नजदीकियों को बड़ी राहत दी है; क्योंकि उन्हें
लगता है कि यह स्थिति इस बात का संकेत और सुबूत है कि डिस्ट्रिक्ट में जो
लोग उनकी उम्मीदवारी के विरोधी हैं, उनके बीच इस बात को लेकर कंफ्यूजन है
कि वह अमित गुप्ता और रवि सचदेवा में से किस की उम्मीदवारी का झंडा उठाएँ ।
विरोधियों के इसी कंफ्यूजन में अशोक अग्रवाल के साथियों व समर्थकों को
अपनी राह आसान होती नजर आ रही है । उन्हें लग रहा है कि उनकी उम्मीदवारी के
विरोधी लोग इसी गफलत में पड़े रहेंगे कि वह अमित गुप्ता की उम्मीदवारी का
साथ दें, या रवि सचदेवा की उम्मीदवारी के समर्थन में रहें - और उनकी यही
गफलत इन दोनों उम्मीदवारों की स्थिति को कमजोर करने का काम करेगी, और इन
दोनों की कमजोरी स्वाभाविक रूप से अशोक अग्रवाल की उम्मीदवारी के लिए माहौल
को अनुकूल बनाने का काम करेगी । मजे की बात लेकिन यह है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव के संदर्भ में इस स्थिति
में अमित गुप्ता और रवि सचदेवा के समर्थक व शुभचिंतक भी अपने अपने तर्कों
से अपने अपने फायदे देख रहे हैं ।
अमित गुप्ता के समर्थकों व शुभचिंतकों का मानना/कहना है कि रवि सचदेवा के समर्थकों व शुभचिंतकों के अमित गुप्ता की उम्मीदवारी के साथ आ मिलने से अमित गुप्ता की उम्मीदवारी की ताकत बढ़ी ही है, और उनकी उम्मीदवारी के समर्थन-आधार ने एक ऊँची छलाँग लगाई है । अमित गुप्ता के समर्थकों व शुभचिंतकों को लगता है कि जो हुआ उसके चलते अमित गुप्ता की उम्मीदवारी को दोहरा लाभ हुआ है - रवि सचदेवा की उम्मीदवारी के समर्थकों व शुभचिंतकों के पाला बदल लेने से एक तरफ तो रवि सचदेवा की स्थिति कमजोर हुई है, और दूसरी तरफ अमित गुप्ता की स्थिति में गुणात्मक उछाल दर्ज हुई है । लेकिन रवि सचदेवा के नजदीकियों का कहना है कि महत्त्वपूर्ण यह नहीं है कि कौन किसकी मीटिंग में गया, महत्त्वपूर्ण यह देखना है कि वहाँ उसने 'किया' क्या ? उन्होंने बताया कि अमित गुप्ता द्वारा बुलाई गई मीटिंग में ज्यादातर लोगों ने उनकी उम्मीदवारी के अभियान की कमजोरियों को ही चिन्हित करने का काम किया; और इस तरह इस बात को रेखांकित किया कि अमित गुप्ता जिस तरीके से अपनी उम्मीदवारी के अभियान को चला रहे हैं, वह चुनाव के संदर्भ में नाकाफी है और अमित गुप्ता को अपने अभियान को एक आक्रामक शक्ल देना चाहिए । एक तरह से मीटिंग में जो लोग उपस्थित हुए, उन्होंने अमित गुप्ता के चुनाव-अभियान को सिर के बल खड़ा करने की ही कोशिश की; ऐसे में अमित गुप्ता की उम्मीदवारी के लिए चुनौती की बात यह हुई है कि वह मीटिंग में दी गई गई सलाह पर अमल करते हुए कैसे अपने चुनाव अभियान को पुनर्संयोजित करें ?
अमित गुप्ता के नजदीकियों की तरफ से इस बात का जबाव यह सुनने को मिला है कि जब 'नए' लोग एक-दूसरे के साथ जुड़ते हैं, तब उनके बीच सोच/विचार तथा व्यवहार की कुछ दिक्कतें होती ही हैं, जो धीरे-धीरे स्वतः दूर हो जाती हैं । अमित गुप्ता को जो नए समर्थक मिले हैं, उनके साथ सोच/विचार व व्यवहार की अभी जो दिक्कतें नजर आ रही हैं, वह जल्दी ही समाप्त हो जायेंगी और तब अमित गुप्ता की उम्मीदवारी को मिलने वाली ताकत का नजारा सामने आएगा । अमित गुप्ता और रवि सचदेवा के बीच समर्थकों/शुभचिंतकों को लेकर जो छीना-झपटी मची है, उसने अशोक अग्रवाल के समर्थकों व शुभचिंतकों को खासा उत्साहित किया है; उन्हें लगता है कि समर्थकों व शुभचिंतकों को लेकर मची यह छीना-झपटी अलग अलग तरीकों से अमित गुप्ता और रवि सचदेवा के चुनाव अभियान पर प्रतिकूल असर डालेगी - और जब तक यह मामला सेटल होगा, तब तक इन्हें काफी नुकसान हो चुका होगा; और उसके बाद का उनका समय उस नुकसान की भरपाई में बीतेगा । अशोक अग्रवाल के नजदीकियों को लगता है कि डिस्ट्रिक्ट में जो लोग उनके साथ नहीं हैं, उनके बीच यदि यह कन्फ्यूजन रहेगा कि वह अन्य किस उम्मीदवार के साथ जाएँ - तो उससे अशोक अग्रवाल की उम्मीदवारी को पहले मनोवैज्ञानिक और फिर व्यावहारिक फायदा ही मिलेगा । अमित गुप्ता की उम्मीदवारी की स्थिति का आकलन करने के लिए उनके समर्थकों व शुभचिंतकों की हुई मीटिंग ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव के संदर्भ में मजेदार नजारा यह बनाया है कि उक्त मीटिंग में उपस्थित लोगों की पहचान के कारण अमित गुप्ता के समर्थक तो इसमें अपना फायदा देख ही रहे हैं, अशोक अग्रवाल के नजदीकी भी खुश और उत्साहित हो रहे हैं ।
अमित गुप्ता के समर्थकों व शुभचिंतकों का मानना/कहना है कि रवि सचदेवा के समर्थकों व शुभचिंतकों के अमित गुप्ता की उम्मीदवारी के साथ आ मिलने से अमित गुप्ता की उम्मीदवारी की ताकत बढ़ी ही है, और उनकी उम्मीदवारी के समर्थन-आधार ने एक ऊँची छलाँग लगाई है । अमित गुप्ता के समर्थकों व शुभचिंतकों को लगता है कि जो हुआ उसके चलते अमित गुप्ता की उम्मीदवारी को दोहरा लाभ हुआ है - रवि सचदेवा की उम्मीदवारी के समर्थकों व शुभचिंतकों के पाला बदल लेने से एक तरफ तो रवि सचदेवा की स्थिति कमजोर हुई है, और दूसरी तरफ अमित गुप्ता की स्थिति में गुणात्मक उछाल दर्ज हुई है । लेकिन रवि सचदेवा के नजदीकियों का कहना है कि महत्त्वपूर्ण यह नहीं है कि कौन किसकी मीटिंग में गया, महत्त्वपूर्ण यह देखना है कि वहाँ उसने 'किया' क्या ? उन्होंने बताया कि अमित गुप्ता द्वारा बुलाई गई मीटिंग में ज्यादातर लोगों ने उनकी उम्मीदवारी के अभियान की कमजोरियों को ही चिन्हित करने का काम किया; और इस तरह इस बात को रेखांकित किया कि अमित गुप्ता जिस तरीके से अपनी उम्मीदवारी के अभियान को चला रहे हैं, वह चुनाव के संदर्भ में नाकाफी है और अमित गुप्ता को अपने अभियान को एक आक्रामक शक्ल देना चाहिए । एक तरह से मीटिंग में जो लोग उपस्थित हुए, उन्होंने अमित गुप्ता के चुनाव-अभियान को सिर के बल खड़ा करने की ही कोशिश की; ऐसे में अमित गुप्ता की उम्मीदवारी के लिए चुनौती की बात यह हुई है कि वह मीटिंग में दी गई गई सलाह पर अमल करते हुए कैसे अपने चुनाव अभियान को पुनर्संयोजित करें ?
अमित गुप्ता के नजदीकियों की तरफ से इस बात का जबाव यह सुनने को मिला है कि जब 'नए' लोग एक-दूसरे के साथ जुड़ते हैं, तब उनके बीच सोच/विचार तथा व्यवहार की कुछ दिक्कतें होती ही हैं, जो धीरे-धीरे स्वतः दूर हो जाती हैं । अमित गुप्ता को जो नए समर्थक मिले हैं, उनके साथ सोच/विचार व व्यवहार की अभी जो दिक्कतें नजर आ रही हैं, वह जल्दी ही समाप्त हो जायेंगी और तब अमित गुप्ता की उम्मीदवारी को मिलने वाली ताकत का नजारा सामने आएगा । अमित गुप्ता और रवि सचदेवा के बीच समर्थकों/शुभचिंतकों को लेकर जो छीना-झपटी मची है, उसने अशोक अग्रवाल के समर्थकों व शुभचिंतकों को खासा उत्साहित किया है; उन्हें लगता है कि समर्थकों व शुभचिंतकों को लेकर मची यह छीना-झपटी अलग अलग तरीकों से अमित गुप्ता और रवि सचदेवा के चुनाव अभियान पर प्रतिकूल असर डालेगी - और जब तक यह मामला सेटल होगा, तब तक इन्हें काफी नुकसान हो चुका होगा; और उसके बाद का उनका समय उस नुकसान की भरपाई में बीतेगा । अशोक अग्रवाल के नजदीकियों को लगता है कि डिस्ट्रिक्ट में जो लोग उनके साथ नहीं हैं, उनके बीच यदि यह कन्फ्यूजन रहेगा कि वह अन्य किस उम्मीदवार के साथ जाएँ - तो उससे अशोक अग्रवाल की उम्मीदवारी को पहले मनोवैज्ञानिक और फिर व्यावहारिक फायदा ही मिलेगा । अमित गुप्ता की उम्मीदवारी की स्थिति का आकलन करने के लिए उनके समर्थकों व शुभचिंतकों की हुई मीटिंग ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव के संदर्भ में मजेदार नजारा यह बनाया है कि उक्त मीटिंग में उपस्थित लोगों की पहचान के कारण अमित गुप्ता के समर्थक तो इसमें अपना फायदा देख ही रहे हैं, अशोक अग्रवाल के नजदीकी भी खुश और उत्साहित हो रहे हैं ।