नई
दिल्ली । इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की सेंट्रल काउंसिल में
छठवाँ वर्ष गुजार रहे अतुल गुप्ता को हाल-फिलहाल के दिनों में जिस तरह की
प्रतिकूल स्थितियों और आरोपों-शिकायतों का सामना करना पड़ा है, उसने उन्हें
सेंट्रल काउंसिल में अपने पुनर्निर्वाचन के प्रति शंकालु बना दिया है; और अपनी ही शंका को दूर करने के लिए उन्होंने सेंट्रल काउंसिल सदस्य के रूप में अपनी सक्रियताओं व उपलब्धियों को लेकर एक लंबा-चौड़ा खत लिखा और लोगों को भेजा है । अतुल
गुप्ता के इस खत को लेकर भी लोग मजे ले रहे हैं और चर्चा कर रहे हैं कि
अतुल गुप्ता की सक्रियता व उपलब्धियाँ इतनी 'खुफिया' रही हैं क्या, कि किसी
को दिखी ही नहीं - और इसीलिए अपनी सक्रियताओं व उपलब्धियों के बारे में
उन्हें लोगों को बताना पड़ रहा है । अतुल गुप्ता ने अपने इस खत में
'प्रोफेशन की समृद्धि के लिए मिलजुल कर काम करने' के सिद्धांत को अपनी
प्रेरणा के रूप में रेखांकित किया है । लोगों का कहना है कि अतुल गुप्ता
काश इस सिद्धांत को व्यवहार में भी उतार पाते, तो उन्हें अपने ही
साथी/सहयोगी रहे लोगों के विरोध और आरोप नहीं देखने/सुनने पड़ते । मजे की
बात यह है कि एक तरफ तो अतुल गुप्ता की पहचान एक 'पढ़े-लिखे' और 'विषयों'
को गंभीरता से समझने वाले चार्टर्ड एकाउंटेंट की रही है, लेकिन दूसरी तरफ
उन्हें बहुत स्वार्थी, घमंडी और अवसरवादी व्यक्ति के रूप में देखा/पहचाना
जाता है । उनकी खूबियों के कारण बहुत से, खासकर युवा चार्टर्ड एकाउंटेंट्स
उनसे प्रभावित हुए और उनके साथ जुड़े; लेकिन जल्दी ही जब उन्होंने अतुल
गुप्ता का स्वार्थी, घमंडी और अवसरवादी रूप देखा - तो उन्होंने अतुल गुप्ता
के खिलाफ होने में भी देर नहीं लगाई । शुरू के वर्षों में तो अतुल
गुप्ता अपने व्यवहार के चलते पैदा हुई नाराजगी को मैनेज करने में सफल रहे,
लेकिन समय बढ़ने के साथ-साथ उनके खिलाफ लोगों का, खासकर युवा चार्टर्ड एकाउंटेंट्स का गुस्सा उनके खिलाफ और मुखर व संगठित होता गया है ।
इसी का नतीजा रहा कि अंबाला, भटिंडा, लुधियाना, जालंधर आदि में अतुल गुप्ता को अपने ही साथी/सहयोगी रहे लोगों, खासकर युवा चार्टर्ड एकाउंटेंट्स से खूब खूब खरी-खोटी सुननी पड़ी । लोगों ने इस बात को लेकर सवाल पूछे और नाराजगी दिखाई कि पिछले चुनाव से पहले उन्होंने रेलवे का काम आने/निकलने का वास्ता देकर लोगों को काम मिलने/दिलवाने का जो वायदा किया था, बाद में उसकी सुध लेने की कोशिश उन्होंने क्यों नहीं की ? उल्लेखनीय है कि पिछले चुनाव से पहले अतुल गुप्ता ने लोगों को, खासकर युवा चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को रेलवे का काम मिलने/दिलवाने का वास्ता देकर खूब वोट बटोरे थे । उन्हें वोट देने वाले तथा उनकी उम्मीदवारी को वोट दिलवाने के लिए रात-दिन एक करने वाले लोगों ने बाद में लेकिन अपने आप को ठगा हुआ पाया । कईयों की शिकायत रही कि चुनाव के बाद तो अतुल गुप्ता सीधे मुँह बात तक नहीं करने को तैयार होते थे, तथा उनके वायदे की याद दिलाने पर बदतमीजी और करने लगते थे । अपने घमंडी और अवसरवादी व्यवहार के चलते अतुल गुप्ता को चंडीगढ़ में तो बहुत ही बुरी स्थिति का सामना करना पड़ा । चंडीगढ़ में नॉर्दर्न रीजन की पहली फोरेंसिक लैब के उद्घाटन अवसर पर इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट नवीन गुप्ता के साथ अतुल गुप्ता भी इस उम्मीद में गए कि वहाँ उन्हें बड़ी भीड़ के सामने बोलने का मौका मिलेगा, लेकिन प्रत्यक्षदर्शियों का कहना है कि अतुल गुप्ता का जब बोलने का नंबर आया तो सुनने वालों की संख्या कुल दस/बारह के करीब थी । हालाँकि उक्त कार्यक्रम ही बुरी तरह फ्लॉप रहा । प्रेसीडेंट नवीन गुप्ता के बोलते समय उपस्थित लोगों की संख्या मुश्किल से सौ के करीब थी, जिनमें आधे के लगभग छात्र थे । अतुल गुप्ता के लिए शर्मनाक स्थिति यह बनी/रही कि उन्हें तो एक अच्छे वक्ता के रूप में देखा/पहचाना जाता है, लेकिन फिर भी उनको सुनने में किसी ने दिलचस्पी नहीं ली । कुछेक लोगों ने कहा भी कि उन्होंने पहचान लिया है कि सेंट्रल काउंसिल सदस्य के रूप में अतुल गुप्ता एक बहुत मतलबी और धोखेबाज व्यक्ति है, ऐसे व्यक्ति की बातों को सुनने का क्या फायदा ?
अतुल गुप्ता के लिए बदकिस्मती की बात यह रही कि जब चंडीगढ़ में उन्हें सुनने के लिए दस/बारह लोग भी 'मजबूरी' में जुटे, लगभग उसी समय उसी चंडीगढ़ में आयोजित हुई सुधीर अग्रवाल की मीटिंग में तीन सौ के करीब लोग थे । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के पूर्व चेयरमैन सुधीर अग्रवाल सेंट्रल काउंसिल के उम्मीदवार हैं । उनकी मीटिंग में इंस्टीट्यूट के पूर्व प्रेसीडेंट वेद जैन मुख्य वक्ता के रूप में मौजूद थे । सुधीर अग्रवाल की मीटिंग की सफलता के शोर के बीच अतुल गुप्ता को श्रोता न मिलने से जो झटका लगा, उसने वास्तव में अतुल गुप्ता की बुरी हालत का ही सुबूत पेश किया है । इस बीच, नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल की सेक्रेटरी पूजा अग्रवाल बंसल ने सेंट्रल काउंसिल की अपनी उम्मीदवारी के संदर्भ में प्रस्तुत की गई अपनी उपलब्धियों की रिपोर्ट में रीजनल काउंसिल के स्टॉफ के प्रोवीडेंट फंड व सर्विस टैक्स से जुड़ी वर्ष 2010-11 से चली आ रही समस्या के हल के लिए किए गए उपाय का जिक्र करके अतुल गुप्ता की प्रशासनिक क्षमता पर ही सवाल खड़े कर दिए हैं । उल्लेखनीय है कि वर्ष 2010-11 में अतुल गुप्ता नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के चेयरमैन थे; चेयरमैन के रूप में स्टॉफ की नियुक्ति और उनके अधिकारों से जुड़े कामों की व्यवस्था के लिए अतुल गुप्ता ने एक बेंडर की नियुक्ति की थी, जो स्टाफ के प्रोवीडेंट फंड व सर्विस टैक्स के करीब 25 लाख रुपए लेकर भाग गया था । अतुल गुप्ता अपनी तीन-तिकड़मों से उस बेंडर के खिलाफ कार्रवाई को टलवाते रहे और इंस्टीट्यूट को करीब 25 लाख रुपए की चपत की बात को छिपाए रखने/रखवाने में सफल रहे; लेकिन दो वर्ष पहले कार्यकारी चेयरपरसन के रूप में काम करते हुए पूजा अग्रवाल बंसल ने वर्षों से लटके चल रहे इस मामले में कार्रवाई की । अपनी कार्रवाई को अपनी उपलब्धियों में शामिल करने और उसे लोगों के सामने लाने की पूजा अग्रवाल बंसल की कार्रवाई ने वास्तव में अतुल गुप्ता की प्रशासनिक अक्षमता को सामने लाने का काम किया है, और इस तरह अतुल गुप्ता के लिए फजीहत वाली स्थिति बनाई है ।
अतुल अग्रवाल इस बार का चुनाव इंस्टीट्यूट का प्रेसीडेंट बनने के नाम पर लड़ रहे हैं । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के चेयरमैन के रूप में उनके द्वारा की गई 'घपलेबाजी' और फिर उसे छिपाने को लेकर की गई उनकी कार्रवाई ने लेकिन उनकी अक्षमताओं की जो पोल खोली है, उससे उनके सामने गंभीर संकट खड़ा हो गया है । अपने आपको चारों तरफ से संकटों और मुसीबतों से घिरा पाकर अतुल गुप्ता ने अपनी सक्रियताओं और उपलब्धियों का सहारा लेने की सोची है, और लोगों के बीच उनका लेखा-जोखा प्रस्तुत किया है । अपनी सक्रियताओं और उपलब्धियों के विवरण से अतुल गुप्ता अपने अवसरवादी और घमंडी व्यवहार से पैदा हुई मुसीबतों का मुकाबला सचमुच कर सकेंगे क्या - यह देखना दिलचस्प होगा ।
इसी का नतीजा रहा कि अंबाला, भटिंडा, लुधियाना, जालंधर आदि में अतुल गुप्ता को अपने ही साथी/सहयोगी रहे लोगों, खासकर युवा चार्टर्ड एकाउंटेंट्स से खूब खूब खरी-खोटी सुननी पड़ी । लोगों ने इस बात को लेकर सवाल पूछे और नाराजगी दिखाई कि पिछले चुनाव से पहले उन्होंने रेलवे का काम आने/निकलने का वास्ता देकर लोगों को काम मिलने/दिलवाने का जो वायदा किया था, बाद में उसकी सुध लेने की कोशिश उन्होंने क्यों नहीं की ? उल्लेखनीय है कि पिछले चुनाव से पहले अतुल गुप्ता ने लोगों को, खासकर युवा चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को रेलवे का काम मिलने/दिलवाने का वास्ता देकर खूब वोट बटोरे थे । उन्हें वोट देने वाले तथा उनकी उम्मीदवारी को वोट दिलवाने के लिए रात-दिन एक करने वाले लोगों ने बाद में लेकिन अपने आप को ठगा हुआ पाया । कईयों की शिकायत रही कि चुनाव के बाद तो अतुल गुप्ता सीधे मुँह बात तक नहीं करने को तैयार होते थे, तथा उनके वायदे की याद दिलाने पर बदतमीजी और करने लगते थे । अपने घमंडी और अवसरवादी व्यवहार के चलते अतुल गुप्ता को चंडीगढ़ में तो बहुत ही बुरी स्थिति का सामना करना पड़ा । चंडीगढ़ में नॉर्दर्न रीजन की पहली फोरेंसिक लैब के उद्घाटन अवसर पर इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट नवीन गुप्ता के साथ अतुल गुप्ता भी इस उम्मीद में गए कि वहाँ उन्हें बड़ी भीड़ के सामने बोलने का मौका मिलेगा, लेकिन प्रत्यक्षदर्शियों का कहना है कि अतुल गुप्ता का जब बोलने का नंबर आया तो सुनने वालों की संख्या कुल दस/बारह के करीब थी । हालाँकि उक्त कार्यक्रम ही बुरी तरह फ्लॉप रहा । प्रेसीडेंट नवीन गुप्ता के बोलते समय उपस्थित लोगों की संख्या मुश्किल से सौ के करीब थी, जिनमें आधे के लगभग छात्र थे । अतुल गुप्ता के लिए शर्मनाक स्थिति यह बनी/रही कि उन्हें तो एक अच्छे वक्ता के रूप में देखा/पहचाना जाता है, लेकिन फिर भी उनको सुनने में किसी ने दिलचस्पी नहीं ली । कुछेक लोगों ने कहा भी कि उन्होंने पहचान लिया है कि सेंट्रल काउंसिल सदस्य के रूप में अतुल गुप्ता एक बहुत मतलबी और धोखेबाज व्यक्ति है, ऐसे व्यक्ति की बातों को सुनने का क्या फायदा ?
अतुल गुप्ता के लिए बदकिस्मती की बात यह रही कि जब चंडीगढ़ में उन्हें सुनने के लिए दस/बारह लोग भी 'मजबूरी' में जुटे, लगभग उसी समय उसी चंडीगढ़ में आयोजित हुई सुधीर अग्रवाल की मीटिंग में तीन सौ के करीब लोग थे । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के पूर्व चेयरमैन सुधीर अग्रवाल सेंट्रल काउंसिल के उम्मीदवार हैं । उनकी मीटिंग में इंस्टीट्यूट के पूर्व प्रेसीडेंट वेद जैन मुख्य वक्ता के रूप में मौजूद थे । सुधीर अग्रवाल की मीटिंग की सफलता के शोर के बीच अतुल गुप्ता को श्रोता न मिलने से जो झटका लगा, उसने वास्तव में अतुल गुप्ता की बुरी हालत का ही सुबूत पेश किया है । इस बीच, नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल की सेक्रेटरी पूजा अग्रवाल बंसल ने सेंट्रल काउंसिल की अपनी उम्मीदवारी के संदर्भ में प्रस्तुत की गई अपनी उपलब्धियों की रिपोर्ट में रीजनल काउंसिल के स्टॉफ के प्रोवीडेंट फंड व सर्विस टैक्स से जुड़ी वर्ष 2010-11 से चली आ रही समस्या के हल के लिए किए गए उपाय का जिक्र करके अतुल गुप्ता की प्रशासनिक क्षमता पर ही सवाल खड़े कर दिए हैं । उल्लेखनीय है कि वर्ष 2010-11 में अतुल गुप्ता नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के चेयरमैन थे; चेयरमैन के रूप में स्टॉफ की नियुक्ति और उनके अधिकारों से जुड़े कामों की व्यवस्था के लिए अतुल गुप्ता ने एक बेंडर की नियुक्ति की थी, जो स्टाफ के प्रोवीडेंट फंड व सर्विस टैक्स के करीब 25 लाख रुपए लेकर भाग गया था । अतुल गुप्ता अपनी तीन-तिकड़मों से उस बेंडर के खिलाफ कार्रवाई को टलवाते रहे और इंस्टीट्यूट को करीब 25 लाख रुपए की चपत की बात को छिपाए रखने/रखवाने में सफल रहे; लेकिन दो वर्ष पहले कार्यकारी चेयरपरसन के रूप में काम करते हुए पूजा अग्रवाल बंसल ने वर्षों से लटके चल रहे इस मामले में कार्रवाई की । अपनी कार्रवाई को अपनी उपलब्धियों में शामिल करने और उसे लोगों के सामने लाने की पूजा अग्रवाल बंसल की कार्रवाई ने वास्तव में अतुल गुप्ता की प्रशासनिक अक्षमता को सामने लाने का काम किया है, और इस तरह अतुल गुप्ता के लिए फजीहत वाली स्थिति बनाई है ।
अतुल अग्रवाल इस बार का चुनाव इंस्टीट्यूट का प्रेसीडेंट बनने के नाम पर लड़ रहे हैं । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के चेयरमैन के रूप में उनके द्वारा की गई 'घपलेबाजी' और फिर उसे छिपाने को लेकर की गई उनकी कार्रवाई ने लेकिन उनकी अक्षमताओं की जो पोल खोली है, उससे उनके सामने गंभीर संकट खड़ा हो गया है । अपने आपको चारों तरफ से संकटों और मुसीबतों से घिरा पाकर अतुल गुप्ता ने अपनी सक्रियताओं और उपलब्धियों का सहारा लेने की सोची है, और लोगों के बीच उनका लेखा-जोखा प्रस्तुत किया है । अपनी सक्रियताओं और उपलब्धियों के विवरण से अतुल गुप्ता अपने अवसरवादी और घमंडी व्यवहार से पैदा हुई मुसीबतों का मुकाबला सचमुच कर सकेंगे क्या - यह देखना दिलचस्प होगा ।