Wednesday, June 13, 2018

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की सेंट्रल काउंसिल के लिए अचानक से प्रस्तुत हुई पूजा बंसल की उम्मीदवारी नॉर्दर्न रीजन में चुनावी परिदृश्य को रोमांचक बनाने के साथ-साथ कई उम्मीदवारों को अपनी अपनी चुनावी रणनीति व तैयारी पर नए सिरे से विचार करने के लिए मजबूर भी करेगी

नई दिल्ली । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल की सेक्रेटरी पूजा बंसल ने सेंट्रल काउंसिल के लिए अपनी उम्मीदवारी की घोषणा करके लोगों को न सिर्फ चौंकाया है, बल्कि नॉर्दर्न रीजन में सेंट्रल काउंसिल की चुनावी राजनीति के समीकरणों में भी भारी उलटफेर के हालात बना दिये हैं । लोगों को चौंकाना लगता है कि पूजा बंसल की चुनावी राजनीति का स्थायी तत्त्व है । अभी करीब साढ़े तीन महीने पहले, उनका नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल का सेक्रेटरी बनना भी किसी चमत्कार से कम नहीं था । पिछले वर्ष नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में जिन लोगों के साथ उनका भारी झगड़ा रहा, और जिनकी फजीहत करने में उन्होंने कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी - उन्हीं लोगों के साथ इस वर्ष सत्ता शेयर करने का मौका मिलना, उनकी राजनीतिक कुशलता का ही परिणाम कहा जायेगा । रीजनल काउंसिल में 'सत्ता' के लिए संघर्ष कर रहे दूसरे लोग जहाँ ताकते रह गए, वहाँ पूजा बंसल सेक्रेटरी का पद पा गईं । रीजनल काउंसिल में अपने पहले टर्म के पहले ही वर्ष में पूजा बंसल वाइस चेयरमैन बनीं, और रीजनल काउंसिल में पहले वर्ष घटे नाटकीय घटनाचक्र में उन्हें छह महीने के लिए चेयरपर्सन के रूप में काम करने का मौका मिला । पहले वर्ष में जो नाटकीय घटनाक्रम हुआ, उसमें चमत्कार की बात यह रही कि जो लोग उस घटनाक्रम में भूमिका निभा रहे थे, उन्हें तो सिर्फ बदनामी मिली - फायदा एक अकेले पूजा बंसल को मिला । पूजा बंसल के साथ लेकिन सबसे बड़ा चमत्कार तो नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में उन्हें मिली जीत में देखने को मिला था । पिछले चुनाव में, पहली वरीयता के वोटों की गिनती में पूजा बंसल को मात्र 385 वोट मिले थे, और वह 28वें नंबर पर थीं - पहली वरीयता के वोटों की गिनती पूरी होने के बाद चलने वाली गिनती की प्रक्रिया में किसी को उम्मीद नहीं थी कि पूजा बंसल भी नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के 13 सदस्यों में शामिल हो जायेंगी; लेकिन चमत्कारिक रूप से सफलता पूजा बंसल की झोली में आ गिरी ।
 चमत्कारों और चौंकाने वाली घटनाओं व प्रसंगों से भरी पूजा बंसल की अभी तक की राजनीतिक यात्रा को देखते हुए ही सेंट्रल काउंसिल के लिए प्रस्तुत हुई उनकी उम्मीदवारी ने नॉर्दर्न रीजन के चुनावी खिलाड़ियों के बीच हलचल मचा दी है । पूजा बंसल की उम्मीदवारी को सेंट्रल काउंसिल के कुछेक मौजूदा सदस्यों तथा अगली काउंसिल में प्रवेश पाने की तैयारी कर रहे उम्मीदवारों के चुनावी गणित को बिगाड़ने का काम करते देखा/पहचाना जा रहा है । ऐसे हालात में जबकि सेंट्रल काउंसिल में नॉर्दर्न रीजन की एक सीट घटने की संभावना के चलते कुछेक मौजूदा सदस्यों के सामने अपनी सीट बचाने की चुनौती आ खड़ी हुई है, तथा आगामी काउंसिल में प्रवेश की तैयारी करने वाले उम्मीदवारों को मुकाबला कठिन होता हुआ लगा है - जिसके चलते कुछेक उम्मीदवार तो अपनी उम्मीदवारी से पीछे हटते देखे/सुने जा रहे हैं; पूजा बंसल ने अपनी उम्मीदवारी की घोषणा की है - तो इसे एक बड़ी परिघटना के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है । कुछेक लोग इसे इंस्टीट्यूट की राजनीति में पूजा बंसल के लिए आत्मघाती भी मान रहे हैं, लेकिन कई लोग उनके फैसले को उनकी सोची-विचारी रणनीति के रूप में भी देख रहे हैं और मान रहे हैं कि पूजा बंसल की उम्मीदवारी नॉर्दर्न रीजन में सेंट्रल काउंसिल के चुनावी परिदृश्य को निश्चित रूप से रोमांचक तो बनायेगी ही - जिसके चलते कई उम्मीदवारों को अपनी अपनी चुनावी रणनीति व तैयारी पर नए सिरे से विचार करने के लिए मजबूर होना पड़ेगा ।
लेकिन चुनावी राजनीति चूँकि कभी भी उतनी सीधी चाल नहीं चलती है, जितनी सीधी चाल की अधिकतर लोग उससे उम्मीद कर लेते हैं; उसकी चाल कब टेढ़ी हो जाये और 'पकड़' से बाहर निकल जाए पता ही नहीं चलता है - इसलिए उम्मीद की जा रही है कि पूजा बंसल की उम्मीदवारी ने जिस तरह से मौजूदा व संभावित भावी सदस्यों की चुनावी उम्मीदों और तैयारी को खतरे में डाला है, उसकी प्रतिक्रिया में वह चुप तो नहीं बैठेंगे और निश्चित रूप से ऐसा कुछ करेंगे जिससे पूजा बंसल की चुनावी तैयारी में बाधा पड़े । अनुमान लगाया जा रहा है कि जल्दी ही पूजा बंसल और या उनके पति मोहित बंसल के खिलाफ ऐसा कुछ किया जा सकता है, जिसमें उलझ कर पूजा बंसल अपना चुनाव भूल जाएँ । यहाँ यह याद करना प्रासंगिक होगा कि रीजनल काउंसिल के मौजूदा टर्म के पहले वर्ष में दीपक गर्ग के चेयरमैन पद से इस्तीफा देने के बाद वाइस चेयरपर्सन होने के नाते नियमानुसार पूजा बंसल को रीजनल काउंसिल के मुखिया की जिम्मेदारी मिलनी चाहिए थी, लेकिन रीजनल काउंसिल के सत्ताधारी ग्रुप के बेईमान लोगों ने उन्हें उक्त जिम्मेदारी आसानी से नहीं लेने दी थी और इंस्टीट्यूट प्रशासन के हस्तक्षेप के बाद ही उन्हें मुखिया की जिम्मेदारी मिल सकी थी; बाद में उनके काम में भी तरह तरह से अड़चने पैदा करने की कोशिश की गईं थीं । उसी किस्से को याद करते हुए कुछेक लोगों का कहना/बताना है कि सेंट्रल काउंसिल के लिए प्रस्तुत की गई पूजा बंसल की उम्मीदवारी के सामने उसी तर्ज पर अड़चनें पैदा करने की कोशिशें की ही जायेंगी । देखना दिलचस्प होगा कि उन अड़चनों से पूजा बंसल कैसे निपटती हैं - और अड़चनों से निपटने के उनके प्रयासों में कैसे क्या चमत्कार देखने को मिलेंगे ?