चंडीगढ़
। प्रवीन गोयल के गले में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की माला पड़ने में तो अभी
करीब सप्ताह भर का समय बाकी है, लेकिन मुसीबतों की माला लगता है कि अभी से उनके गले का फंदा बनने लगी है । अपने
गवर्नर-काल की डिस्ट्रिक्ट डायरेक्टरी के लिए इकट्ठा किए जा रहे
विज्ञापनों के रेट को छिपाने को लेकर प्रवीन गोयल संदेह और आरोपों के घेरे
में आ गए हैं । दरअसल हुआ यह कि डिस्ट्रिक्ट फाइनेंस कमेटी के पूर्व सदस्य
एमपी गुप्ता ने डिस्ट्रिक्ट डायरेक्टरी के विभिन्न पृष्ठों के रेट उनसे पूछ
लिए, जिस पर प्रवीन गोयल ने चुप्पी साध ली । एमपी गुप्ता को जब प्रवीन
गोयल से कोई जबाव नहीं मिला तो उन्हें दाल में कुछ काला नजर आया, और तब
उन्होंने डिस्ट्रिक्ट फाइनेंस कमेटी के चेयरमैन शाजु पीटर को यह कहते/बताते
हुए चिट्ठी लिखी कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट प्रवीन गोयल उन्हें
डिस्ट्रिक्ट डायरेक्टरी के विभिन्न पृष्ठों के विज्ञापन के रेट नहीं दे/बता
रहे हैं, इसलिए वह आवश्यक कार्रवाई करें । एमपी गुप्ता को लेकिन शाजु पीटर
से भी कोई जबाव नहीं मिला । यह बात जब डिस्ट्रिक्ट के लोगों के सामने आई
तो कई लोगों ने कहा/बताया कि प्रवीन गोयल ने उनसे डिस्ट्रिक्ट डायरेक्टरी
के लिए विज्ञापन तो माँगे हैं लेकिन रेट कार्ड नहीं दिया है - और इस तरह बात फिर बढ़ती ही गई । लोगों के बीच
हुई बातचीत से पता चला कि प्रवीन गोयल ने समान श्रेणी के विज्ञापनों के
लिए अलग अलग लोगों से अलग अलग दाम माँगे हैं, और शायद इसीलिए वह रेट कार्ड
देने में आनाकानी कर रहे हैं । इसी तरह की बातों के बीच आरोप लगे हैं कि
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट प्रवीन गोयल अपनी डिस्ट्रिक्ट डायरेक्टरी के लिए विज्ञापन जुटाने की आड़ में
घपलेबाजी कर रहे हैं और विज्ञापन के नाम पर लोगों से मनमाने दाम बसूल रहे हैं ।
एमपी गुप्ता को विज्ञापन के रेट न देने/बताने का प्रवीन गोयल ने अपने नजदीकियों को जो कारण बताया है, उसने मामले को और दिलचस्प व संदेहास्पद तथा आरोपपूर्ण बना दिया है । प्रवीन गोयल का कहना है कि एमपी गुप्ता रेट इसलिए नहीं पूछ रहे हैं, कि उन्हें विज्ञापन देना है; वह तो रेट इसलिए पूछ रहे हैं, ताकि उसमें वह कोई गड़बड़ी खोजें और फिर उन पर आरोप लगाने का काम करें । लोगों का कहना है कि यदि यह बात सच भी है, तो प्रवीन गोयल को इसमें परेशानी क्या है और क्यों है ? लोगों के बीच सवाल है कि प्रवीन गोयल ने क्या सचमुच डिस्ट्रिक्ट डायरेक्टरी के लिए विज्ञापन जुटाने के मामले में गड़बड़ी की हुई है, और उन्हें डर है कि एमपी गुप्ता या कोई और उन गड़बड़ियों को कहीं पकड़ न ले ? लोगों का कहना/पूछना है कि प्रवीन गोयल ने विज्ञापनों के मामले में यदि वास्तव में कोई घपला नहीं किया है, तो फिर उन्हें डर क्यों है कि एमपी गुप्ता को उन्होंने यदि रेट बताए तो वह उनकी घपलेबाजी पकड़ लेंगे ? प्रवीन गोयल के नजदीकियों और समर्थकों का भी मानना और कहना है कि एमपी गुप्ता द्वारा विज्ञापनों के रेट माँगने के बाद भी उन्हें रेट न देकर प्रवीन गोयल ने नाहक ही मुसीबत और बदनामी मोल ले ली है, और लोगों के दिमाग में शक के बीज बो दिए हैं । दरअसल डिस्ट्रिक्ट में पूर्व इंटरनेशनल प्रेसीडेंट राजेंद्र उर्फ राजा साबू की छत्रछाया में रहने वाले डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स पर बेईमानी करने के आरोप लगते और साबित होते रहे हैं; इसी चक्कर में एक डिस्ट्रिक्ट गवर्नर को दो दो बैलेंसशीट लानी पड़ी थीं तथा एक डिस्ट्रिक्ट गवर्नर को हेराफेरी के आरोप में उनके क्लब से ही निकल दिया गया है । इसलिए डिस्ट्रिक्ट में लोग राजा साबू की छत्रछाया में रहने वाले डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स के कामों और फैसलों को लेकर सतर्क हो गए हैं ।
लोगों की यही सतर्कता प्रवीन गोयल के लिए मुसीबत तथा घबराहट का कारण बन गई है । घबराहट में व्यक्ति जैसे रस्सी को भी साँप समझ लेता है, लगता है कि वैसे ही एमपी गुप्ता द्वारा विज्ञापन के रेट माँगे जाने को प्रवीन गोयल ने 'पकड़े' जाने के रूप में समझ लिया - और उन्होंने मान लिया कि वह रेट नहीं दे कर पकड़े जाने से बच जायेंगे । इस मामले में एमपी गुप्ता की चिट्ठी पर फाइनेंस कमेटी के चेयरमैन के रूप में शाजु पीटर द्वारा भी चुप्पी मार जाने से मामला और गड़बड़ा गया है । मजे की बात यह है कि इनके ही नजदीकियों और समर्थकों का कहना है कि विज्ञापन के रेट देने/बताने से बच/छिप कर प्रवीन गोयल और शाजु पीटर ने लोगों को यह सोचने के लिए प्रेरित किया है कि डिस्ट्रिक्ट डायरेक्टरी के लिए विज्ञापन जुटाने के मामले में जरूर ही ऐसी कोई बात है, जिसे यह दोनों लोगों से छिपाना चाहते हैं, और इस तरह इन्होंने अपने आप को मुसीबत व फजीहत के घेरे में फँसा लिया है । इनके नजदीकियों और समर्थकों का ही मानना और कहना है कि एमपी गुप्ता द्वारा विज्ञापनों के रेट कार्ड माँगते ही प्रवीन गोयल यदि उन्हें रेट कार्ड उपलब्ध करवा देते, तो बबाल न फैलता और प्रवीन गोयल आरोपों के घेरे में न फँसते । लोगों का कहना है कि इस प्रसंग से प्रवीन गोयल को सबक लेना चाहिए तथा अपने कार्यक्रमों के खर्चों को पारदर्शी बनाना/रखना चाहिए, जिससे कि कोई उन पर बेईमान होने का आरोप न लगा सके । कई लोगों को लेकिन यह भी लगता है कि राजा साबू और उनके गिरोह के पूर्व गवर्नर्स डिस्ट्रिक्ट गवर्नर से इतनी हेराफेरियाँ करवाते हैं, कि वह बेचारा चाहे भी - तो भी अपने कार्यक्रमों के खर्चों को लेकर पारदर्शी नहीं हो सकता है । यह देखना दिलचस्प होगा कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में प्रवीन गोयल कैसे राजा साबू और उनके गिरोह के पूर्व गवर्नर्स की बेईमानियों को अंजाम देते हैं, या अपने आप को उनसे बचाते हैं !
एमपी गुप्ता को विज्ञापन के रेट न देने/बताने का प्रवीन गोयल ने अपने नजदीकियों को जो कारण बताया है, उसने मामले को और दिलचस्प व संदेहास्पद तथा आरोपपूर्ण बना दिया है । प्रवीन गोयल का कहना है कि एमपी गुप्ता रेट इसलिए नहीं पूछ रहे हैं, कि उन्हें विज्ञापन देना है; वह तो रेट इसलिए पूछ रहे हैं, ताकि उसमें वह कोई गड़बड़ी खोजें और फिर उन पर आरोप लगाने का काम करें । लोगों का कहना है कि यदि यह बात सच भी है, तो प्रवीन गोयल को इसमें परेशानी क्या है और क्यों है ? लोगों के बीच सवाल है कि प्रवीन गोयल ने क्या सचमुच डिस्ट्रिक्ट डायरेक्टरी के लिए विज्ञापन जुटाने के मामले में गड़बड़ी की हुई है, और उन्हें डर है कि एमपी गुप्ता या कोई और उन गड़बड़ियों को कहीं पकड़ न ले ? लोगों का कहना/पूछना है कि प्रवीन गोयल ने विज्ञापनों के मामले में यदि वास्तव में कोई घपला नहीं किया है, तो फिर उन्हें डर क्यों है कि एमपी गुप्ता को उन्होंने यदि रेट बताए तो वह उनकी घपलेबाजी पकड़ लेंगे ? प्रवीन गोयल के नजदीकियों और समर्थकों का भी मानना और कहना है कि एमपी गुप्ता द्वारा विज्ञापनों के रेट माँगने के बाद भी उन्हें रेट न देकर प्रवीन गोयल ने नाहक ही मुसीबत और बदनामी मोल ले ली है, और लोगों के दिमाग में शक के बीज बो दिए हैं । दरअसल डिस्ट्रिक्ट में पूर्व इंटरनेशनल प्रेसीडेंट राजेंद्र उर्फ राजा साबू की छत्रछाया में रहने वाले डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स पर बेईमानी करने के आरोप लगते और साबित होते रहे हैं; इसी चक्कर में एक डिस्ट्रिक्ट गवर्नर को दो दो बैलेंसशीट लानी पड़ी थीं तथा एक डिस्ट्रिक्ट गवर्नर को हेराफेरी के आरोप में उनके क्लब से ही निकल दिया गया है । इसलिए डिस्ट्रिक्ट में लोग राजा साबू की छत्रछाया में रहने वाले डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स के कामों और फैसलों को लेकर सतर्क हो गए हैं ।
लोगों की यही सतर्कता प्रवीन गोयल के लिए मुसीबत तथा घबराहट का कारण बन गई है । घबराहट में व्यक्ति जैसे रस्सी को भी साँप समझ लेता है, लगता है कि वैसे ही एमपी गुप्ता द्वारा विज्ञापन के रेट माँगे जाने को प्रवीन गोयल ने 'पकड़े' जाने के रूप में समझ लिया - और उन्होंने मान लिया कि वह रेट नहीं दे कर पकड़े जाने से बच जायेंगे । इस मामले में एमपी गुप्ता की चिट्ठी पर फाइनेंस कमेटी के चेयरमैन के रूप में शाजु पीटर द्वारा भी चुप्पी मार जाने से मामला और गड़बड़ा गया है । मजे की बात यह है कि इनके ही नजदीकियों और समर्थकों का कहना है कि विज्ञापन के रेट देने/बताने से बच/छिप कर प्रवीन गोयल और शाजु पीटर ने लोगों को यह सोचने के लिए प्रेरित किया है कि डिस्ट्रिक्ट डायरेक्टरी के लिए विज्ञापन जुटाने के मामले में जरूर ही ऐसी कोई बात है, जिसे यह दोनों लोगों से छिपाना चाहते हैं, और इस तरह इन्होंने अपने आप को मुसीबत व फजीहत के घेरे में फँसा लिया है । इनके नजदीकियों और समर्थकों का ही मानना और कहना है कि एमपी गुप्ता द्वारा विज्ञापनों के रेट कार्ड माँगते ही प्रवीन गोयल यदि उन्हें रेट कार्ड उपलब्ध करवा देते, तो बबाल न फैलता और प्रवीन गोयल आरोपों के घेरे में न फँसते । लोगों का कहना है कि इस प्रसंग से प्रवीन गोयल को सबक लेना चाहिए तथा अपने कार्यक्रमों के खर्चों को पारदर्शी बनाना/रखना चाहिए, जिससे कि कोई उन पर बेईमान होने का आरोप न लगा सके । कई लोगों को लेकिन यह भी लगता है कि राजा साबू और उनके गिरोह के पूर्व गवर्नर्स डिस्ट्रिक्ट गवर्नर से इतनी हेराफेरियाँ करवाते हैं, कि वह बेचारा चाहे भी - तो भी अपने कार्यक्रमों के खर्चों को लेकर पारदर्शी नहीं हो सकता है । यह देखना दिलचस्प होगा कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में प्रवीन गोयल कैसे राजा साबू और उनके गिरोह के पूर्व गवर्नर्स की बेईमानियों को अंजाम देते हैं, या अपने आप को उनसे बचाते हैं !