मुंबई । पिछली बार के चुनाव में सेंट्रल काउंसिल की
अपनी सीट गवाँ बैठे श्रीनिवास जोशी इस बार के चुनाव में अपनी जीत पक्की
करने के लिए महेश मडखोलकर को चुनाव न लड़ने के लिए राजी करने के प्रयासों
में जुटे हैं, लेकिन रमेश प्रभु की उम्मीदवारी की चर्चा उनकी मुसीबतों को
बढ़ाने का काम कर रही है - जिसके चलते श्रीनिवास जोशी के लिए मामला 'आसमान
से टपके, खजूर पर अटके' जैसी हो गई है । उल्लेखनीय है कि पिछली बार की
अपनी पराजय के लिए श्रीनिवास जोशी, मंगेश किनरे और महेश मडखोलकर की
उम्मीदवारी को मानते/ठहराते हैं । दरअसल उनका ही नहीं, अन्य लोगों का भी
मानना और कहना है कि मुंबई से एक ही मराठी उम्मीदवार सेंट्रल काउंसिल का
चुनाव जीत सकता है । वर्ष 2012 में श्रीनिवास जोशी को इसी बात का अच्छा
फायदा मिला था, और वह जीतने वाले लोगों में छठवें नंबर पर रहे थे । वर्ष
2012 में सेंट्रल काउंसिल के लिए अच्छी जीत हासिल करने वाले श्रीनिवास जोशी वर्ष 2015 के चुनाव में
लेकिन 16वें नंबर पर लुढ़क गए । वर्ष 2015 में श्रीनिवास जोशी की
सेंट्रल काउंसिल की सीट मंगेश किनरे ने छीन ली । श्रीनिवास जोशी के लिए
संकट की बात यह रही कि पहले तो पहली वरीयता के वोटों की गिनती में
श्रीनिवास जोशी, मंगेस किनरे से करीब दो सौ वोट पीछे रहे; और फिर मंगेस
किनरे तो उछलते/बढ़ते 15वें स्थान से छठवें स्थान पर पहुँच गए, लेकिन
श्रीनिवास जोशी 17वें स्थान से बढ़ कर 16वें स्थान तक ही पहुँच पाए । इस
बुरे नतीजे को श्रीनिवास जोशी ने अपने अपमान के रूप में लिया है, और वह
लगातार दावा कर रहे हैं कि इस बार के चुनाव में वह पिछली बार हुए अपमान का
बदला लेंगे ।
पिछली बार हुए अपमान का बदला लेने के लिए
श्रीनिवास जोशी तरह तरह से महेश मडखोलकर पर दबाव बना रहे हैं कि वह इस बार
सेंट्रल काउंसिल के लिए अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत न करें । श्रीनिवास जोशी
उन्हें समझा रहे हैं कि वह यदि उम्मीदवार बनेंगे तो जीत तो नहीं ही
पायेंगे; इसलिए वह यदि इस बार उन्हें उम्मीदवार बनने दें, तो अगली बार वह
उनकी उम्मीदवारी का समर्थन करेंगे; श्रीनिवास जोशी ने महेश मडखोलकर से
वायदा किया है कि उन्हें बस एक बार चुनाव लड़ना है और पिछली बार के अपमान का
बदला लेना है । उल्लेखनीय है कि पिछली बार पहली वरीयता के वोटों की गिनती
में 1395 वोटों के साथ श्रीनिवास जोशी 17वें स्थान पर थे, तो महेश मडखोलकर
1254 वोटों के साथ 18वें स्थान पर थे । मंगेस किनरे 1603 वोटों के साथ
15वें स्थान पर थे । वेस्टर्न रीजन में सेंट्रल काउंसिल के 22 उम्मीदवारों
की गिनती का काम आगे बढ़ा तो श्रीनिवास जोशी और मंगेस किनरे के बीच का अंतर
कम हो रहा था; लेकिन महेश मडखोलकर के मुकाबले से बाहर होने पर मंगेस किनरे
को खासी बढ़त मिली । दरअसल महेश मडखोलकर के दूसरी वरीयता के वोटों में
बड़ा हिस्सा मंगेस किनरे को मिला, जिसके चलते श्रीनिवास जोशी के लिए फिर
मंगेस किनरे को पकड़ पाना मुश्किल हो गया । श्रीनिवास जोशी को लगता है
कि महेश मडखोलकर की उम्मीदवारी ने पहले तो पहली वरीयता के उनके वोटों में
सेंध लगाई और फिर दूसरी वरीयता के वोटों में भी वह पिछड़ गए; उनका आकलन है
कि महेश मडखोलकर यदि उम्मीदवार न होते, तो मंगेस किनरे को ज्यादा बढ़त नहीं
मिलती - और जो मिलती उसे वह कवर कर लेते । इसी आकलन के भरोसे, श्रीनिवास
जोशी इस बार प्रयास कर रहे हैं कि महेश मडखोलकर इस बार उम्मीदवार न बनें -
ताकि वह सेंट्रल काउंसिल का चुनाव जीत सकें और पिछली बार के अपमान का बदला ले सकें ।
श्रीनिवास
जोशी के साथ हमदर्दी रखने वाले लोगों का कहना हालाँकि यह भी है कि पिछली
बार की अपनी हार के लिए महेश मडखोलकर को जिम्मेदार ठहराकर श्रीनिवास जोशी
अपनी कमजोरियों पर पर्दा डालने का काम कर रहे हैं, और इस रवैये से वह पिछली
बार की हार को जीत में नहीं बदल सकेंगे । उनका कहना है कि श्रीनिवास
जोशी को इस तथ्य पर भी विचार करना चाहिए कि सेंट्रल काउंसिल में होते हुए
भी वह लोगों के बीच अपना समर्थन-आधार बनाए रखने व बढ़ाने में सफल क्यों नहीं
हुए, और क्यों मंगेस किनरे उनके समर्थकों का एक बड़ा हिस्सा ले उड़े ? महेश
मडखोलकर भी उनके समर्थकों के बीच सेंध लगाने में सफल रहे और वह समर्थक
दूसरी वरीयता का वोट भी श्रीनिवास जोशी को देने को तैयार नहीं हुए ।
श्रीनिवास जोशी के शुभचिंतकों का ही मानना और कहना है कि श्रीनिवास जोशी
यदि इसी चक्कर में पड़े रहे कि महेश मडखोलकर को सेंट्रल काउंसिल की चुनावी
लड़ाई से बाहर रख/रखवा कर वह पिछली बार के अपमान का बदला ले लेंगे, तो अब की
बार वह फिर अपमान का शिकार होंगे; इसलिए जरूरी है कि वह चुनावी परिदृश्य
का तथा अपनी कमजोरियों का ईमानदारी से आकलन करें और अपनी कमजोरियों को सचमुच में दूर करने का प्रयास करें । शुभचिंतकों की इस तरह की नसीहतों के साथ-साथ को-ऑपरेटिव सेक्टर में अच्छी दखल रखने वाले वरिष्ठ चार्टर्ड एकाउंटेंट रमेश प्रभु के उम्मीदवार बनने की चर्चा ने भी
श्रीनिवास जोशी के लिए मुसीबतों का बढ़ाने का ही काम किया है । दरअसल रमेश
प्रभु और महेश मडखोलकर के बीच अच्छे संबंध देखे/बताये जाते हैं; जिस बिना
पर लोगों को लगता है कि श्रीनिवास जोशी के दबाव में महेश मडखोलकर ने
सेंट्रल काउंसिल का चुनाव यदि नहीं भी लड़ा, तो वह रमेश प्रभु की उम्मीदवारी
का समर्थन करेंगे । इस तरह श्रीनिवास जोशी के लिए मामला 'आसमान से
गिरे, खजूर पर अटके' जैसा हो गया है । देखना दिलचस्प होगा कि पिछली बार की
अपनी हार का बदला लेने के लिए श्रीनिवास जोशी अपने ही शुभचिंतकों की नसीहत
पर ध्यान देते हैं या नहीं; और यदि देते हैं तो करते क्या हैं ?