Tuesday, June 12, 2018

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की नागपुर की राजनीति में 'जिंदा' रहने के लिए जुल्फेश शाह के पास वेस्टर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के चुनाव में 'लौटने' का ही विकल्प बचा है, लेकिन जो अभिजीत केलकर के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकता है

नागपुर । जुल्फेश शाह के वेस्टर्न इंडिया रीजनल काउंसिल का चुनाव लड़ने की संभावनापूर्ण चर्चाओं ने नागपुर से वेस्टर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के सदस्य अभिजीत केलकर के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी हैं । अभिजीत केलकर के समर्थकों व शुभचिंतकों को डर हो चला है कि जुल्फेश शाह यदि सचमुच रीजनल काउंसिल के लिए उम्मीदवार बने, तो अभिजीत केलकर के लिए कहीं अपनी सीट को बचा पाना मुश्किल न हो जाये । वर्ष 2012 में रीजनल काउंसिल के लिए जुल्फेश शाह और अभिजीत केलकर उम्मीदवार थे, अभिजीत केलकर जिसमें जुल्फेश शाह से काफी पीछे रह गए थे और हार गए थे । हालाँकि यह बात भी सच है कि अभिजीत केलकर की आज जो स्थिति है, वह वैसी नहीं हैं जो 2012 में थी - लेकिन फिर भी यह भी कोई दावे से कहने की स्थिति में नहीं है कि जुल्फेश शाह की उम्मीदवारी के प्रस्तुत होने पर भी अभिजीत केलकर के लिए सीट बचाने/निकालने में कोई समस्या नहीं होगी । जुल्फेश शाह ने पिछली बार सेंट्रल काउंसिल का चुनाव लड़ा था, और पहली वरीयता के वोटों की गिनती में 2144 वोटों के साथ वह सातवें नंबर पर रहे थे । पहली वरीयता में इतने अच्छे वोट पाने के बावजूद, दूसरी वरीयता के वोट पाने में कमजोर पड़ने के चलते वह कामयाब नहीं हो सके थे, और थोड़े से अंतर से पीछे रह गए थे । इस बार भी उनके सेंट्रल काउंसिल के लिए ही उम्मीदवार होने/बनने की उम्मीद की जा रही थी, और इसके लिए उन्होंने तैयारी भी शुरू कर दी थी ।
लेकिन प्रफुल्ल छाजेड़ के इंस्टीट्यूट का वाइस प्रेसीडेंट बनने से जुल्फेश शाह की सारी तैयारी पर पानी पड़ गया । पिछली बार के चुनाव में पहली वरीयता के वोटों की गिनती में जुल्फेश शाह का प्रदर्शन हालाँकि प्रफुल्ल छाजेड़ से बेहतर था, लेकिन उसके बावजूद प्रफुल्ल छाजेड़ कामयाब हो गए थे और जुल्फेश शाह रह गए थे । इस बार प्रफुल्ल छाजेड़ वाइस प्रेसीडेंट के रूप में चुनावी मैदान में होंगे और उम्मीद की जा रही है कि उन पर वोटों की बारिश होगी । प्रफुल्ल छाजेड़ पर होने वाली वोटों की बारिश में जुल्फेश शाह की उम्मीदवारी के बहने का खतरा सबसे ज्यादा है । प्रफुल्ल छाजेड़ की विदर्भ क्षेत्र की ब्रांचेज में अच्छी पकड़ है; पिछली बार वहाँ उन्हें भले ही पहली वरीयता के ज्यादा वोट न मिले हों, लेकिन इस बार जब वह वाइस प्रेसीडेंट के रूप में उम्मीदवार होंगे तो उन्हें वहाँ ज्यादा वोट मिलने की उम्मीद लगाई जा रही है - जो जुल्फेश शाह के समर्थन आधार पर सीधी चोट होगी । प्रफुल्ल छाजेड़ के कारण जुल्फेश शाह के लिए अपने पक्के समझे जाने वाले वोटों को भी बचा कर रख पाना मुश्किल होगा, और इस कारण से उनके लिए मुकाबला खासा मुश्किल हो गया नजर आ रहा है । जुल्फेश शाह के नजदीकियों और समर्थकों ने भी मान लिया है कि इस बार सेंट्रल काउंसिल का चुनाव जीत पाना जुल्फेश शाह के लिए मुश्किल ही नहीं, बल्कि असंभव ही है ।
ऐसे में, जुल्फेश शाह को इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति में अपना 'भविष्य' खत्म होता हुआ ही दिख रहा है । पिछली बार जुल्फेश शाह खुद तो सेंट्रल काउंसिल के चुनाव में सफलता नहीं ही पा सके थे, रीजनल काउंसिल के चुनाव में वह 'अपने' उम्मीदवार सतीश सारदा को भी कामयाबी नहीं दिलवा पाए थे । पिछले चुनाव में सतीश सारदा की उम्मीदवारी के पीछे जुल्फेश शाह को ही देखा/पहचाना गया था, और अभिजीत केलकर के साथियों/समर्थकों का साफ आरोप था कि जुल्फेश शाह ने सतीश सारदा की उम्मीदवारी को उनकी राह का रोड़ा बनाने के लिए ही प्रस्तुत किया/करवाया है । जुल्फेश शाह को खतरा यह दिख/लग रहा है कि इस बार भी वह यदि सेंट्रल काउंसिल का चुनाव नहीं जीते, जो निश्चित ही है, तो वह प्रोफेशन के लोगों की नजरों से लगातार ओझल ही रहेंगे और नए बने चार्टर्ड एकाउंटेंट्स तो उन्हें पहचानेंगे भी नहीं; और अगली बार कहीं अभिजीत केलकर सेंट्रल काउंसिल के लिए आ गए तो उनके मुकाबले अभिजीत केलकर का पलड़ा भारी रहेगा । इस खतरे से निपटने के लिए जुल्फेश शाह को जो उपाय सूझा है, वह रीजनल काउंसिल के लिए चुनाव लड़ने के लिए उन्हें 'तैयार' करता है । जुल्फेश शाह के नजदीकियों ने इन पंक्तियों के लेखक से बात करते हुए बताया है कि जुल्फेश शाह को लग रहा है कि रीजनल काउंसिल का चुनाव तो वह जीत ही जायेंगे और रीजनल काउंसिल सदस्य के रूप में वह प्रोफेशन के लोगों के बीच रह सकेंगे, जिसका फायदा अगली बार के चुनाव में उन्हें होगा । उनके चुनाव लड़ने की स्थिति में अभिजीत केलकर यदि रीजनल काउंसिल की अपनी सीट बचा पाने में असफल हो जाते हैं, तब तो जुल्फेश शाह के 'मजे ही मजे' हैं । नजदीकियों के अनुसार, जुल्फेश शाह ने वेस्टर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के लिए उम्मीदवारी प्रस्तुत करने को लेकर अभी कोई फाइनल फैसला तो नहीं किया है, लेकिन इस बात को अच्छे से समझ जरूर लिया है कि इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति में 'जिंदा' रहने के लिए उनके पास 'यही' एक विकल्प बचा है । नजदीकियों की इस तरह की बातों ने नागपुर के लोगों के बीच रीजनल काउंसिल के लिए जुल्फेश शाह की उम्मीदवारी की संभावना की चर्चा को हवा दी हुई है, जिसके नतीजे के रूप में अभिजीत केलकर और उनके साथियों की साँसे अटक सी गई हैं ।