चंडीगढ़
। पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर और रोटरी फाउंडेशन के ट्रस्टी सुशील गुप्ता
की सहमति तथा रोटरी इंटरनेशनल की रीजनल ग्रांट्स ऑफिसर चंद्रा पामर के आदेश
के बावजूद डीआरएफसी के रूप में शाजु पीटर ने डिस्ट्रिक्ट ग्रांट 1860814 को स्वीकृति देने की डिस्ट्रिक्ट गवर्नर टीके रूबी की माँग को खारिज करके एक बार फिर साबित कर दिया है कि रस्सी जल गई है, पर राजा साबू गिरोह के लोगों का बल अभी भी नहीं गया है - और डिस्ट्रिक्ट में मनमानी लूट-खसोट करने की कोशिशों से वह अभी भी बाज नहीं आ रहे हैं । पूर्व
इंटरनेशनल प्रेसीडेंट केआर रवींद्रन हाल ही में संपन्न हुए डिस्ट्रिक्ट
असेम्बली कार्यक्रम में 'जोर का झटका धीरे से' वाले अंदाज में बता गए हैं
कि रोटरी में राजा साबू और उनके डिस्ट्रिक्ट की अब पहले जैसी साख नहीं रह
गई है; राजा साबू और उनके साथी गवर्नर्स ने इस बात को कैसे लिया, यह तो वही
जानें, लेकिन शाजु पीटर की कार्रवाई 'बताती' है कि उन्होंने केआर रवींद्रन
की 'चेतावनी' भरे तथ्य की परवाह करने की जरूरत नहीं समझी है । अभी हाल
ही में, रोटरी इंटरनेशनल बोर्ड ने डिस्ट्रिक्ट 3080 के गवर्नर्स को 'सलाह'
दी है कि जिन मुद्दों पर उनके बीच मतभेद उभरते हैं, उन्हें आपस में
विचार-विमर्श करके स्वयं ही हल करें - लेकिन लगता है कि टीके रूबी को लेकर
राजा साबू और उनके साथी गवर्नर्स ने जिस तरह से अपना मुँह खुद ही नोच नोच
कर कर लहुलुहान कर लिया है, उससे उनका मन अभी भी भरा नहीं है और वह अभी
अपनी और फजीहत करवाने पर तुले हुए हैं ।
डिस्ट्रिक्ट ग्रांट 1860814 के मामले में शाजु पीटर ने जो रवैया 'दिखाया', उससे एक बार फिर लोगों को यह नजारा देखने को मिला कि टीके रूबी के मामले में राजा साबू और उनके साथी गवर्नर्स में 'डाउन सिंड्रोम' जैसी बीमारी के लक्षण न सिर्फ बने हुए हैं, बल्कि वह बढ़ते ही जा रहे हैं । इस बीमारी के शिकार लोगों में जो मानसिक विकार पैदा होता है, उसमें हालाँकि 'उचित देखभाल' से सुधार किया जा सकता है; लेकिन टीके रूबी को लेकर राजा साबू और उनके साथी गवर्नर्स में जो मानसिक विकार पैदा हुआ है, उसे रोटरी इंटरनेशनल के विभिन्न पदाधिकारियों के द्वारा किये गए 'उपचार' के बावजूद सुधारा नहीं जा सका है । इस बीमारी के शिकार राजा साबू और उनके साथी गवर्नर्स ने निवर्त्तमान इंटरनेशनल प्रेसीडेंट जॉन जर्म तक के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था, क्योंकि उन्होंने टीके रूबी को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर घोषित कर दिया था । डिस्ट्रिक्ट 3080 में ही नहीं, शायद किसी भी डिस्ट्रिक्ट में पहली बार यह देखने को मिला कि कॉलिज ऑफ गवर्नर्स की मीटिंग में इंटरनेशनल डायरेक्टर को शामिल होना पड़ा हो, ताकि गवर्नर्स के बीच विचार-विमर्श के जरिये मामलों को हल करने की 'सोच' बन सके । लेकिन बासकर चॉकलिंगम के जरिये रोटरी इंटरनेशनल पदाधिकारियों द्वारा किया गया यह प्रयास भी राजा साबू और उनके साथी गवर्नर्स की बीमारी दूर नहीं कर सका । एक सर्वमान्य समझ है कि व्यक्ति ठोकरें खाकर भी सबक सीखता है; टीके रूबी के मामले में राजा साबू और उनके साथी ठोकरों पर ठोकरें खाते रहे हैं लेकिन मजाल है कि उन्होंने कोई सबक सीखा हो । राजा साबू और उनके साथी गवर्नर्स ने टीके रूबी को 'गिराने' के लिए प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से डिस्ट्रिक्ट में तिकड़में कीं, रोटरी इंटरनेशनल में शिकायतें कीं, थाना-कचहरी तक किया - लेकिन इतने सब के बाद भी वह टीके रूबी का कुछ नहीं बिगाड़ पाए हैं । इस असफलता ने लगता है कि राजा साबू और उनके साथी गवर्नर्स की बीमारी को और बढ़ा दिया है, जिसका असर डिस्ट्रिक्ट ग्रांट 1860814 के मामले में शाजु पीटर द्वारा अपनाए गए रवैये में दिखता है ।
शाजु पीटर को उक्त 'बीमारी' ने किस कदर जकड़ा हुआ है, यह इसी से साबित है कि चंद्रा पामर को संबोधित पत्र में शाजु पीटर यह झूठ बोलने में भी नहीं हिचकिचाये कि उक्त ग्रांट का पूरा लाभ टीके रूबी के क्लब को मिलेगा । शाजु पीटर ने अपने इस पत्र में यह जताने का प्रयास किया है कि जैसे वह बहुत नियम-कानून से काम करने वाले व्यक्ति हैं; पर यदि वह सचमुच नियम-कानून से काम करते होते तो वर्ष 2015-16 की जो डिस्ट्रिक्ट ग्रांट उन्होंने अब बंद की है, वह जून 2016 में बंद हो गई होती । जून 2016 में बंद हो जाने वाली डिस्ट्रिक्ट ग्रांट को शाजु पीटर ने यदि दो वर्ष तक खोले रखा है, तो इसमें पीछे उनका वास्तवविक उद्देश्य डिस्ट्रिक्ट ग्रांट के पैसे को ग्लोबल ग्रांट में ट्रांसफर करवाने की तिकड़म के रूप में देखा गया है । राजा साबू और उनके साथी गवर्नर्स ग्लोबल ग्रांट को हड़प कर उससे अपने घूमने/फिरने और अपने संबंध बनाने का काम करने का जुगाड़ बनाये रखने में दिलचस्पी लेते हैं । शाजु पीटर ने जो डिस्ट्रिक्ट ग्रांट अब बंद की है, वह यदि जून 2016 में बंद हो गई होती, तो उसके बाद के दो वर्षों में मंजूर होने वाली डिस्ट्रिक्ट ग्रांट का पैसा क्लब्स को मिलता; लेकिन शाजु पीटर के बेईमानीपूर्ण रवैये से रमन अनेजा और टीके रूबी के गवर्नर-काल में डिस्ट्रिक्ट ग्रांट का पैसा ग्लोबल ग्रांट में ट्रांसफर हो गया है, जो प्रोजेक्ट्स के नाम पर राजा साबू व उनके साथी गवर्नर्स के घूमने/फिरने व संबंध बनाने के काम आयेगा । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में टीके रूबी ने एक प्रोजेक्ट के जरिये डिस्ट्रिक्ट ग्रांट का पैसा कुछेक क्लब्स के प्रोजेक्ट्स को दिलवाने का प्रयास किया था, जिसे लेकिन शाजु पीटर ने नियमों का हवाला देकर सफल नहीं होने दिया ।
खास बात यह रही कि शाजु पीटर की आपत्ति को लेकर टीके रूबी ने रोटरी इंटरनेशनल की रीजनल ग्रांट्स ऑफिसर चंद्रा पामर से भी बात की और चंद्रा पामर ने भी माना और कहा कि टीके रूबी की माँग को पूरा किया जा सकता है; पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर और रोटरी फाउंडेशन के ट्रस्टी सुशील गुप्ता ने भी टीके रूबी के दावे को उचित माना और उसके लिए समर्थन घोषित किया - लेकिन फिर भी शाजु पीटर ने टीके रूबी के आवेदन को स्वीकार करने से इंकार कर दिया है । ऐसा करते हुए शाजु पीटर को यह भी लगता है कि जैसे उन्होंने टीके रूबी को भी चोट पहुँचाई है । आरोपपूर्ण चर्चा यही है कि शाजु पीटर ने ऐसा इसलिए भी किया है कि टीके रूबी की कोशिशों के चलते डिस्ट्रिक्ट ग्रांट का पैसा यदि क्लब्स को मिल गया तो ग्लोबल ग्रांट के जरिये राजा साबू और उनके साथी गवर्नर्स को मिलने वाला पैसा कम पड़ जाता; राजा साबू और उनके साथी गवर्नर्स को ग्लोबल ग्रांट में पैसे की कमी न पड़ जाये, इसलिए शाजु पीटर ने चालाकी दिखाते हुए क्लब्स को मिल सकने वाली ग्रांट का पैसा मार लिया है ।
डिस्ट्रिक्ट ग्रांट 1860814 के मामले में शाजु पीटर ने जो रवैया 'दिखाया', उससे एक बार फिर लोगों को यह नजारा देखने को मिला कि टीके रूबी के मामले में राजा साबू और उनके साथी गवर्नर्स में 'डाउन सिंड्रोम' जैसी बीमारी के लक्षण न सिर्फ बने हुए हैं, बल्कि वह बढ़ते ही जा रहे हैं । इस बीमारी के शिकार लोगों में जो मानसिक विकार पैदा होता है, उसमें हालाँकि 'उचित देखभाल' से सुधार किया जा सकता है; लेकिन टीके रूबी को लेकर राजा साबू और उनके साथी गवर्नर्स में जो मानसिक विकार पैदा हुआ है, उसे रोटरी इंटरनेशनल के विभिन्न पदाधिकारियों के द्वारा किये गए 'उपचार' के बावजूद सुधारा नहीं जा सका है । इस बीमारी के शिकार राजा साबू और उनके साथी गवर्नर्स ने निवर्त्तमान इंटरनेशनल प्रेसीडेंट जॉन जर्म तक के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था, क्योंकि उन्होंने टीके रूबी को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर घोषित कर दिया था । डिस्ट्रिक्ट 3080 में ही नहीं, शायद किसी भी डिस्ट्रिक्ट में पहली बार यह देखने को मिला कि कॉलिज ऑफ गवर्नर्स की मीटिंग में इंटरनेशनल डायरेक्टर को शामिल होना पड़ा हो, ताकि गवर्नर्स के बीच विचार-विमर्श के जरिये मामलों को हल करने की 'सोच' बन सके । लेकिन बासकर चॉकलिंगम के जरिये रोटरी इंटरनेशनल पदाधिकारियों द्वारा किया गया यह प्रयास भी राजा साबू और उनके साथी गवर्नर्स की बीमारी दूर नहीं कर सका । एक सर्वमान्य समझ है कि व्यक्ति ठोकरें खाकर भी सबक सीखता है; टीके रूबी के मामले में राजा साबू और उनके साथी ठोकरों पर ठोकरें खाते रहे हैं लेकिन मजाल है कि उन्होंने कोई सबक सीखा हो । राजा साबू और उनके साथी गवर्नर्स ने टीके रूबी को 'गिराने' के लिए प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से डिस्ट्रिक्ट में तिकड़में कीं, रोटरी इंटरनेशनल में शिकायतें कीं, थाना-कचहरी तक किया - लेकिन इतने सब के बाद भी वह टीके रूबी का कुछ नहीं बिगाड़ पाए हैं । इस असफलता ने लगता है कि राजा साबू और उनके साथी गवर्नर्स की बीमारी को और बढ़ा दिया है, जिसका असर डिस्ट्रिक्ट ग्रांट 1860814 के मामले में शाजु पीटर द्वारा अपनाए गए रवैये में दिखता है ।
शाजु पीटर को उक्त 'बीमारी' ने किस कदर जकड़ा हुआ है, यह इसी से साबित है कि चंद्रा पामर को संबोधित पत्र में शाजु पीटर यह झूठ बोलने में भी नहीं हिचकिचाये कि उक्त ग्रांट का पूरा लाभ टीके रूबी के क्लब को मिलेगा । शाजु पीटर ने अपने इस पत्र में यह जताने का प्रयास किया है कि जैसे वह बहुत नियम-कानून से काम करने वाले व्यक्ति हैं; पर यदि वह सचमुच नियम-कानून से काम करते होते तो वर्ष 2015-16 की जो डिस्ट्रिक्ट ग्रांट उन्होंने अब बंद की है, वह जून 2016 में बंद हो गई होती । जून 2016 में बंद हो जाने वाली डिस्ट्रिक्ट ग्रांट को शाजु पीटर ने यदि दो वर्ष तक खोले रखा है, तो इसमें पीछे उनका वास्तवविक उद्देश्य डिस्ट्रिक्ट ग्रांट के पैसे को ग्लोबल ग्रांट में ट्रांसफर करवाने की तिकड़म के रूप में देखा गया है । राजा साबू और उनके साथी गवर्नर्स ग्लोबल ग्रांट को हड़प कर उससे अपने घूमने/फिरने और अपने संबंध बनाने का काम करने का जुगाड़ बनाये रखने में दिलचस्पी लेते हैं । शाजु पीटर ने जो डिस्ट्रिक्ट ग्रांट अब बंद की है, वह यदि जून 2016 में बंद हो गई होती, तो उसके बाद के दो वर्षों में मंजूर होने वाली डिस्ट्रिक्ट ग्रांट का पैसा क्लब्स को मिलता; लेकिन शाजु पीटर के बेईमानीपूर्ण रवैये से रमन अनेजा और टीके रूबी के गवर्नर-काल में डिस्ट्रिक्ट ग्रांट का पैसा ग्लोबल ग्रांट में ट्रांसफर हो गया है, जो प्रोजेक्ट्स के नाम पर राजा साबू व उनके साथी गवर्नर्स के घूमने/फिरने व संबंध बनाने के काम आयेगा । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में टीके रूबी ने एक प्रोजेक्ट के जरिये डिस्ट्रिक्ट ग्रांट का पैसा कुछेक क्लब्स के प्रोजेक्ट्स को दिलवाने का प्रयास किया था, जिसे लेकिन शाजु पीटर ने नियमों का हवाला देकर सफल नहीं होने दिया ।
खास बात यह रही कि शाजु पीटर की आपत्ति को लेकर टीके रूबी ने रोटरी इंटरनेशनल की रीजनल ग्रांट्स ऑफिसर चंद्रा पामर से भी बात की और चंद्रा पामर ने भी माना और कहा कि टीके रूबी की माँग को पूरा किया जा सकता है; पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर और रोटरी फाउंडेशन के ट्रस्टी सुशील गुप्ता ने भी टीके रूबी के दावे को उचित माना और उसके लिए समर्थन घोषित किया - लेकिन फिर भी शाजु पीटर ने टीके रूबी के आवेदन को स्वीकार करने से इंकार कर दिया है । ऐसा करते हुए शाजु पीटर को यह भी लगता है कि जैसे उन्होंने टीके रूबी को भी चोट पहुँचाई है । आरोपपूर्ण चर्चा यही है कि शाजु पीटर ने ऐसा इसलिए भी किया है कि टीके रूबी की कोशिशों के चलते डिस्ट्रिक्ट ग्रांट का पैसा यदि क्लब्स को मिल गया तो ग्लोबल ग्रांट के जरिये राजा साबू और उनके साथी गवर्नर्स को मिलने वाला पैसा कम पड़ जाता; राजा साबू और उनके साथी गवर्नर्स को ग्लोबल ग्रांट में पैसे की कमी न पड़ जाये, इसलिए शाजु पीटर ने चालाकी दिखाते हुए क्लब्स को मिल सकने वाली ग्रांट का पैसा मार लिया है ।