Thursday, March 22, 2018

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की राजनीति को छोड़ अनुज गोयल का विधान परिषद का टिकट जुगाड़ने में लगने और सेंट्रल इंडिया रीजनल काउंसिल के चेयरमैन ज्ञान चंद्र मिश्र के सेंट्रल काउंसिल का उम्मीदवार बनने की तैयारी में जुटने की खबरों ने उत्तर प्रदेश में इंस्टीट्यूट की राजनीति के समीकरण बिगाड़े

गाजियाबाद । अनुज गोयल के इंस्टीट्यूट की राजनीति में दिलचस्पी लेना छोड़ कर उत्तर प्रदेश में विधान परिषद की सदस्यता जुगाड़ने में लग जाने से मुकेश कुशवाह, मनु अग्रवाल, विनय मित्तल, अमरेश वशिष्ठ आदि ने राहत की जो साँस लेना शुरू किया था, उसमें ज्ञान चंद्र मिश्र की सेंट्रल काउंसिल के लिए दिखाई गई दिलचस्पी ने फिर से मुसीबत खड़ी कर दी है । उल्लेखनीय है कि मुकेश कुशवाह और मनु अग्रवाल सेंट्रल रीजन से चार्टर्ड एकाउंटेंट्स इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल में हैं, और इन्हें इस वर्ष दिसंबर में होने वाले चुनाव में पुनर्वापसी के लिए फिर से चुनाव का सामना करना है; जबकि विनय मित्तल और अमरेश वशिष्ठ सेंट्रल काउंसिल में प्रवेश करने की कोशिश के तहत चुनाव में उतरने की तैयारी करते सुने जा रहे हैं । विनय मित्तल पिछली बार चुनाव हार गए थे, और अमरेश वशिष्ठ पिछले तीन चुनावों से लगातार हारते आ रहे हैं । इन चारों को पिछले महीनों में यह देख कर खासा तगड़ा झटका लगा कि अनुज गोयल एक बार फिर से सेंट्रल काउंसिल का चुनाव लड़ने की तैयारी में जुट गए हैं, जिसके चलते वह ब्रांचेज के कार्यक्रमों में बाहर ही हाथ जोड़े खड़े मिल/दिख जा रहे हैं । लगातार तीन टर्म ही सेंट्रल काउंसिल में रहने के नियम के चलते अनुज गोयल को पिछली बार चुनाव से बाहर बैठना पड़ा था; हालाँकि बाहर बैठ कर भी उन्होंने अपने भाई जितेंद्र गोयल को सेंट्रल काउंसिल का चुनाव लड़वा दिया था - जितेंद्र गोयल लेकिन चुनाव हार गए थे, यद्यपि वोट उन्हें अच्छे मिल गए थे । जितेंद्र गोयल की हार से लोगों ने मान लिया था कि इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीती में अनुज गोयल के दिन पूरे हो गए हैं । अनुज गोयल लेकिन जब चुनाव की तैयारी करते नजर आए - तो मुकेश कुशवाह, मनु अग्रवाल, विनय मित्तल और अमरेश वशिष्ठ को डर हुआ कि सेंट्रल काउंसिल के चुनाव में अनुज गोयल की उम्मीदवारी उनमें से न जाने किसका खेल बिगाड़ दे ?
अनुज गोयल लेकिन चुनावी सीन से अचानक से गायब हो गए । अभी कुछ महीने पहले तक वह सेंट्रल रीजन की हर ब्रांच के हर प्रमुख कार्यक्रम में हाथ जोड़े बाहर ही खड़े मिलते/दिखते थे, किंतु काफी दिनों से रीजन के लोगों को वह न कहीं दिख रहे हैं और न उनके फोन और मैसेज लोगों को मिल रहे हैं । उनके शुभचिंतकों ने पता किया तो मालुम चला कि अनुज गोयल आजकल उत्तर प्रदेश विधान परिषद के सदस्य होने का जुगाड़ बैठाने में लगे हैं, और इसके लिए आजकल रामदेव की सेवा में हैं । उनके नजदीकियों का तो कहना/बताना है कि रामदेव की सिफारिश पर विधान परिषद की सदस्यता मिलने का अनुज गोयल को पूरा पूरा भरोसा है, इसलिए उन्होंने इंस्टीट्यूट की राजनीति से ध्यान हटा कर अपनी सक्रियता का केंद्र रामदेव तक सीमित किया हुआ है । उल्लेखनीय है कि अप्रैल 2012 में सेंट्रल इंडिया रीजनल काउंसिल की ब्रांचेज के चेयरमेंस की हरिद्वार में मीटिंग हुई थी, जिसमें एक वक्ता के रूप में रामदेव को भी बुलाया गया था । अनुज गोयल ने तभी से रामदेव से पींगें बढ़ाना शुरू कर दिया था । अनुज गोयल के नजदीकियों का कहना/बताना है कि रामदेव की सत्ताधारी नेताओं से नजदीकी का फायदा उठा कर अनुज गोयल ने उत्तर प्रदेश विधान परिषद के टिकट के लिए चक्कर चलाया है; और चूँकि उत्तर प्रदेश में जल्दी ही विधान परिषद के चुनाव होने हैं - इसलिए अनुज गोयल ने अपना सारा ध्यान रामदेव पर और विधान परिषद के टिकट पर लगाना शुरू किया है, और इस कारण से इंस्टीट्यूट के सेंट्रल काउंसिल के चुनावी परिदृश्य से वह गायब हैं ।
अनुज गोयल के इंस्टीट्यूट के चुनावी परिदृश्य से गायब होने पर मुकेश कुशवाह, मनु अग्रवाल, विनय मित्तल, अमरेश वशिष्ठ को एक बड़े दबाव से मुक्ति मिलने का अहसास हुआ और उन्होंने राहत की साँस ली थी । लेकिन यह बेचारे अभी राहत की साँस पूरी तरह ले भी नहीं पाए थे कि सेंट्रल इंडिया रीजनल काउंसिल के नए बने चेयरमैन ज्ञान चंद्र मिश्र की तरफ से सेंट्रल काउंसिल का उम्मीदवार बनने की तैयारियाँ शुरू होने की खबरें मिलने लगीं । ज्ञान चंद्र मिश्र ने जिस तरह से पिछली बार रीजनल काउंसिल का चुनाव जीता था, और जिन हालात में वह चेयरमैन बने हैं - उससे लोगों के बीच यह संदेश तो है ही कि उनका नेटवर्क भी अच्छा है और उनकी किस्मत भी तेज है । पिछले चुनाव के दौरान वह जिस पारिवारिक मुसीबत में घिरे थे, उसके कारण उन्हें चुनावी दौड़ से बाहर ही मान लिया गया था - लेकिन वह न सिर्फ चुनाव लड़े, बल्कि जीते भी तो इसे उनके प्रभावी नेटवर्क के सुबूत के तौर पर देखा गया । रीजनल काउंसिल के चेयरमैन के चुनाव में भी उनकी उम्मीदवारी के सामने ऐन मौके पर भारी मुसीबत खड़ी हो गयी थी, लेकिन फिर भी वह चेयरमैन बन गए - तो इसे उनकी तेज किस्मत के रूप में देखा/पहचाना गया है । इसीलिए माना/समझा जा रहा है कि ज्ञान चंद्र मिश्र ने यदि सचमुच सेंट्रल काउंसिल का चुनाव लड़ने का निश्चय कर लिए तो उनका प्रभावी नेटवर्क और उनकी तेज किस्मत उत्तर प्रदेश में सेंट्रल काउंसिल के दूसरे उम्मीदवारों के लिए मुसीबत खड़ी कर सकती है । इस तरह उत्तर प्रदेश में सेंट्रल काउंसिल उम्मीदवारों के लिए मामला 'आसमान से गिरे, खजूर पर अटके' की तर्ज पर 'अनुज गोयल से गिरे, ज्ञान चंद्र मिश्र पर अटके' जैसा हो गया है ।