लखनऊ । मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद के चुनाव में
डिस्ट्रिक्ट बी वन के फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर एके सिंह के वोट को
अपनी जेब में 'बताते' हुए निवर्त्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विशाल सिन्हा ने मल्टीपल ट्रेजरर बनने और नोट बसूलने के लिए दोनों खेमों के सदस्यों को ब्लैकमेल की जो चाल चली हुई है, उसने मल्टीपल की चुनावी राजनीति के नजारे को खासा दिलचस्प बना दिया है । उल्लेखनीय
है कि पिछले वर्ष विशाल सिन्हा ने मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन बनने के लिए
बहुत हाथ-पैर मारे थे; बाद में फिर वह वाइस चेयरमैन और या सेक्रेटरी बनने
के लिए भी तैयार हो गए थे - लेकिन उनकी तैयारी को किसी ने भी गंभीरता से
नहीं लिया । विशाल सिन्हा की दरअसल भारी बदनामी है और पैसों के मामले में
तो हर कोई उनसे अपनी जेब बचा कर रखना चाहता है, इसलिए पिछली बार दोनों
खेमों के नेताओं ने उन्हें अपने से दूर ही रखा । विशाल सिन्हा को लगता
है कि एके सिंह के वोट की बदौलत इस वर्ष वह दोनों खेमों के साथ सौदेबाजी कर
सकते हैं, और इस तरह मल्टीपल काउंसिल में पदाधिकारी होने/बनने की पिछले
वर्ष अधूरी रह गई अपनी हसरत को वह इस वर्ष पूरा कर सकते हैं । मजे की
बात यह है कि सोच, व्यवहार और खेमेबाजी के लिहाज से एके सिंह के वोट को
लीडरशिप के उम्मीदवार के रूप में देखे/पहचाने जा रहे पारस अग्रवाल के पक्ष
में देखा/समझा जा रहा है, लेकिन विशाल सिन्हा ने पारस अग्रवाल और उनके
नेता जितेंद्र चौहान को स्पष्ट कर दिया है कि एके सिंह का वोट तभी पक्का
समझियेगा, जब मुझे ट्रेजरर बना रहे हों । विशाल सिन्हा ने पैसों को लेकर इशारा करते हुए पारस अग्रवाल और जितेंद्र चौहान को यह भी बता दिया है कि तेजपाल खिल्लन ने एके सिंह के वोट के बदले में उन्हें मल्टीपल ट्रेजरर बनाने के साथ-साथ नोट भी देने/दिलवाने का आश्वासन दे दिया है ।
विशाल सिन्हा की इस हरकत ने एके सिंह की साख व पहचान पर गंभीर संकट खड़ा कर दिया है । एके सिंह डिस्ट्रिक्ट की खेमेबाजी में यूँ तो गुरनाम सिंह के खेमे में ही देखे/पहचाने जाते हैं, जिसमें विशाल सिन्हा सेकेंड-इन-कमांड हैं - लेकिन एके सिंह की डिस्ट्रिक्ट में अपनी एक साफ-सुथरी पहचान भी है, जिसका नतीजा है कि दूसरे खेमे के लोग भी उन्हें सम्मान से देखते हैं और उम्मीद करते हैं कि वह लायनिज्म को धंधा तथा अपनी बदतमीजियों का अड्डा बना देने वाले विशाल सिन्हा जैसे व्यक्ति के इशारों पर नहीं चलेंगे । यहाँ यह याद करना प्रासंगिक होगा कि सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में उनका चुनाव सर्वसम्मति से निर्विरोध हुआ था - और उनके विरोधी समझे जाने वाले खेमे के शिव कुमार गुप्ता के गवर्नर-काल में हुआ था । इस वर्ष हुए चुनाव में एके सिंह का समर्थन हालाँकि गुरनाम सिंह खेमे के उम्मीदवार के पक्ष में ही देखा/सुना गया, लेकिन चुनाव-अभियान के दौरान विशाल सिन्हा द्वारा की गई बदतमीजियों के साथ और या उनके समर्थन में उन्हें कभी नहीं देखा/पाया गया । एके सिंह ने अपनी भूमिका को बहुत ही गरिमा और शालीनता के साथ निभाया । विरोधी खेमे की तरफ से यह तो सुनने को मिला कि एके सिंह जब स्वयं सर्वसम्मति से निर्विरोध चुने गए थे, तब उन्हें भी चुनाव में तटस्थ रहना चाहिए था; लेकिन विरोधी खेमे की तरफ से यह सुनने को बिलकुल नहीं मिला कि चुनाव में उन्होंने कोई ऐसी भूमिका निभाई हो, जो उनके या लायनिज्म के और या डिस्ट्रिक्ट की गरिमा के खिलाफ हो । अपने डिस्ट्रिक्ट में ही नहीं, बल्कि मल्टीपल के दूसरे डिस्ट्रिक्ट के पदाधिकारियों के बीच एके सिंह की एक विशेष पहचान और साख है । वास्तव में, इसीलिए हर किसी को हैरानी है कि विशाल सिन्हा की ब्लैकमेल करने वाली राजनीति में वह अपना नाम और अपना वोट इस्तेमाल क्यों होने दे रहे हैं ? मल्टीपल काउंसिल की राजनीति के संदर्भ में विशाल सिन्हा की ब्लैकमेल करने वाली राजनीति के सामने एके सिंह असहाय कैसे और क्यों बन गए हैं ?
जैसा कि पहले ही कहा/बताया जा चुका है कि सोच, व्यवहार और खेमेबाजी के लिहाज से मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन के चुनाव में एके सिंह का समर्थन पारस अग्रवाल के साथ ही समझा/पहचाना जा रहा है । दरअसल तेजपाल खिल्लन जिस तरह की मनमानी और चालाकी/बेईमानी भरी राजनीति करते हैं, एके सिंह उसके साथ तालमेल नहीं बैठा पाते हैं - और इसीलिए मल्टीपल के विभिन्न डिस्ट्रिक्ट्स के फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स के बीच जो खेमेबाजी बनती नजर आ रही है, उसमें एके सिंह और तेजपाल खिल्लन अलग अलग समूहों का हिस्सा हैं । खेमेबाजी के लिहाज से गुरनाम सिंह लीडरशिप के साथ रहते ही हैं । इन संकेतों के भरोसे ही एके सिंह को पारस अग्रवाल के साथ समझा जा रहा है । इस स्थिति में विशाल सिन्हा ने भी अपनी दाल गला लेने की भी तिकड़म लगा ली है । अब यह बड़ा ओपन सीक्रेट है कि मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन के चुनाव में पैसों का लेन-देन होता ही है । विशाल सिन्हा यह भी जानते/समझते हैं कि एके सिंह अपने वोट के बदले में सौदेबाजी करने वाले व्यक्ति नहीं हैं, इसलिए उनके वोट के नाम पर विशाल सिन्हा ने सौदेबाजी करने के लिए जाल फैला लिया है । विशाल सिन्हा जान/समझ रहे हैं कि इस वर्ष मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन का चुनाव दोनों पक्षों के लिए बहुत ही महत्त्वपूर्ण है, इसलिए उनकी ब्लैकमेलिंग अवश्य ही कामयाब हो जाएगी । विशाल सिन्हा ने तो एके सिंह के वोट के भरोसे मल्टीपल काउंसिल में ट्रेजरर के पद के साथ-साथ नोट जुगाड़ने के लिए भी जाल फैला दिया है; लेकिन यह देखना दिलचस्प होगा कि एके सिंह अपने वोट का विशाल सिन्हा की ब्लैकमेलिंग के लिए इस्तेमाल होने देंगे क्या ?
विशाल सिन्हा की इस हरकत ने एके सिंह की साख व पहचान पर गंभीर संकट खड़ा कर दिया है । एके सिंह डिस्ट्रिक्ट की खेमेबाजी में यूँ तो गुरनाम सिंह के खेमे में ही देखे/पहचाने जाते हैं, जिसमें विशाल सिन्हा सेकेंड-इन-कमांड हैं - लेकिन एके सिंह की डिस्ट्रिक्ट में अपनी एक साफ-सुथरी पहचान भी है, जिसका नतीजा है कि दूसरे खेमे के लोग भी उन्हें सम्मान से देखते हैं और उम्मीद करते हैं कि वह लायनिज्म को धंधा तथा अपनी बदतमीजियों का अड्डा बना देने वाले विशाल सिन्हा जैसे व्यक्ति के इशारों पर नहीं चलेंगे । यहाँ यह याद करना प्रासंगिक होगा कि सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में उनका चुनाव सर्वसम्मति से निर्विरोध हुआ था - और उनके विरोधी समझे जाने वाले खेमे के शिव कुमार गुप्ता के गवर्नर-काल में हुआ था । इस वर्ष हुए चुनाव में एके सिंह का समर्थन हालाँकि गुरनाम सिंह खेमे के उम्मीदवार के पक्ष में ही देखा/सुना गया, लेकिन चुनाव-अभियान के दौरान विशाल सिन्हा द्वारा की गई बदतमीजियों के साथ और या उनके समर्थन में उन्हें कभी नहीं देखा/पाया गया । एके सिंह ने अपनी भूमिका को बहुत ही गरिमा और शालीनता के साथ निभाया । विरोधी खेमे की तरफ से यह तो सुनने को मिला कि एके सिंह जब स्वयं सर्वसम्मति से निर्विरोध चुने गए थे, तब उन्हें भी चुनाव में तटस्थ रहना चाहिए था; लेकिन विरोधी खेमे की तरफ से यह सुनने को बिलकुल नहीं मिला कि चुनाव में उन्होंने कोई ऐसी भूमिका निभाई हो, जो उनके या लायनिज्म के और या डिस्ट्रिक्ट की गरिमा के खिलाफ हो । अपने डिस्ट्रिक्ट में ही नहीं, बल्कि मल्टीपल के दूसरे डिस्ट्रिक्ट के पदाधिकारियों के बीच एके सिंह की एक विशेष पहचान और साख है । वास्तव में, इसीलिए हर किसी को हैरानी है कि विशाल सिन्हा की ब्लैकमेल करने वाली राजनीति में वह अपना नाम और अपना वोट इस्तेमाल क्यों होने दे रहे हैं ? मल्टीपल काउंसिल की राजनीति के संदर्भ में विशाल सिन्हा की ब्लैकमेल करने वाली राजनीति के सामने एके सिंह असहाय कैसे और क्यों बन गए हैं ?
जैसा कि पहले ही कहा/बताया जा चुका है कि सोच, व्यवहार और खेमेबाजी के लिहाज से मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन के चुनाव में एके सिंह का समर्थन पारस अग्रवाल के साथ ही समझा/पहचाना जा रहा है । दरअसल तेजपाल खिल्लन जिस तरह की मनमानी और चालाकी/बेईमानी भरी राजनीति करते हैं, एके सिंह उसके साथ तालमेल नहीं बैठा पाते हैं - और इसीलिए मल्टीपल के विभिन्न डिस्ट्रिक्ट्स के फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स के बीच जो खेमेबाजी बनती नजर आ रही है, उसमें एके सिंह और तेजपाल खिल्लन अलग अलग समूहों का हिस्सा हैं । खेमेबाजी के लिहाज से गुरनाम सिंह लीडरशिप के साथ रहते ही हैं । इन संकेतों के भरोसे ही एके सिंह को पारस अग्रवाल के साथ समझा जा रहा है । इस स्थिति में विशाल सिन्हा ने भी अपनी दाल गला लेने की भी तिकड़म लगा ली है । अब यह बड़ा ओपन सीक्रेट है कि मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन के चुनाव में पैसों का लेन-देन होता ही है । विशाल सिन्हा यह भी जानते/समझते हैं कि एके सिंह अपने वोट के बदले में सौदेबाजी करने वाले व्यक्ति नहीं हैं, इसलिए उनके वोट के नाम पर विशाल सिन्हा ने सौदेबाजी करने के लिए जाल फैला लिया है । विशाल सिन्हा जान/समझ रहे हैं कि इस वर्ष मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन का चुनाव दोनों पक्षों के लिए बहुत ही महत्त्वपूर्ण है, इसलिए उनकी ब्लैकमेलिंग अवश्य ही कामयाब हो जाएगी । विशाल सिन्हा ने तो एके सिंह के वोट के भरोसे मल्टीपल काउंसिल में ट्रेजरर के पद के साथ-साथ नोट जुगाड़ने के लिए भी जाल फैला दिया है; लेकिन यह देखना दिलचस्प होगा कि एके सिंह अपने वोट का विशाल सिन्हा की ब्लैकमेलिंग के लिए इस्तेमाल होने देंगे क्या ?