गाजियाबाद । अशोक अग्रवाल की उम्मीदवारी की प्रस्तुति ने
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनावी परिदृश्य में जितनी तेजी से तूफान
खड़ा किया था, वह तूफान उतनी ही जल्दी बैठ भी गया है । अशोक अग्रवाल की
उम्मीदवारी प्रस्तुत होते ही ऐसा माहौल बना जिसमें लगा कि अशोक अग्रवाल
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर (नॉमिनी) बस बन ही गए हैं । मजे की बात यह है कि ऐसा ही
माहौल पिछले तीन महीने से अमित गुप्ता को लेकर बना हुआ था । कई लोगों का
तो कहना रहा कि अमित गुप्ता ने तो डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में 'दिखना'
और व्यवहार करना शुरू भी कर दिया है । दरअसल जिन अन्य संभावित उम्मीदवारों
की चर्चा थी, उन्हें अमित गुप्ता के मुकाबले कमजोर समझा जा रहा था और इसलिए
दूसरों ने भी - और खुद अमित गुप्ता ने भी अपने आप को विजयी समझ लिया था ।
लेकिन जैसा कि राजनीति के बारे में कहा जाता है कि वह अक्सर चौंकाती है और
मजबूत दिख रहे समीकरणों को नष्ट-भ्रष्ट कर देती है । अमित गुप्ता ने
दूसरों की उम्मीदों पर पानी फेरा था, तो उनकी उम्मीदों को पानी में बहा
देने का काम अशोक अग्रवाल ने कर दिया । किंतु, जैसा कि शुरू में ही कहा गया
है कि अशोक अग्रवाल की उम्मीदवारी ने चर्चा में आते ही जो हवा बनाई थी, वह
तुरंत से निकल भी गई । असल में, जिन जिन नेताओं के समर्थन के दावे के
भरोसे अशोक अग्रवाल की उम्मीदवारी की हवा बनाई गई थी - हवा बनांते बनाते
ध्यान गया कि इन्हीं नेताओं के समर्थन के बूते तो जेके गौड़ ने इंटरनेशनल
डायरेक्टर पद का चुनाव करने वाली नोमीनेटिंग कमेटी की सदस्यता का चुनाव लड़ा
था, और रमेश अग्रवाल से बुरी तरह हार गए थे । अशोक अग्रवाल को जेके गौड़
के 'आदमी' के रूप में देखा/पहचाना जाता है । माना जा रहा है कि जिन
कमजोरियों के चलते जेके गौड़ तमाम अनुकूल स्थितियों और कई नेताओं के समर्थन
के बावजूद इंटरनेशनल डायरेक्टर पद की नोमीनेटिंग कमेटी का चुनाव हार गए थे, वह कमजोरियाँ अशोक अग्रवाल की भी मुसीबत बनेंगी
।
असल में, जेके गौड़ की बदनामी के अशोक अग्रवाल की तमाम 'खूबियों' पर भारी पड़ने के अंदेशे ने ही अशोक अग्रवाल की उम्मीदवारी की संभावनाओं को सवालिया बना दिया है । उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में जेके गौड़ ने डिस्ट्रिक्ट में भारी बदनामी कमाई है, और डिस्ट्रिक्ट के कई प्रमुख लोग उनकी धोखेबाजियों की शिकायत करते हुए सुने गए हैं । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में जेके गौड़ के रवैये से लोग किस हद तक नाराज हुए, इसे समझने के लिए एक ही उदाहरण काफी है - और वह यह कि लोगों को रमेश अग्रवाल अच्छे लगने लगे । गौर करने की बात यह है कि डिस्ट्रिक्ट में रमेश अग्रवाल की खासी बदनामी रही है, जिसका उन्हें रह रह कर खामियाजा भुगतना पड़ा है - लेकिन जेके गौड़ की बदनामी ने रमेश अग्रवाल की बदनामी के रंग को हल्का कर दिया, जिसका नतीजा इंटरनेशनल डायरेक्टर पद की नोमीनेटिंग कमेटी के चुनाव में देखने को मिला । अशोक अग्रवाल के लिए मुसीबत की बात यह है कि गवर्नरी के दौरान की जिन हरकतों के चलते जेके गौड़ को बदनामी और चुनावी पराजय का सामना करना पड़ा, उन हरकतों में अशोक अग्रवाल की भी बराबर की भूमिका देखी/पहचानी गई है - और उन हरकतों के लिए अशोक अग्रवाल को भी बराबर का जिम्मेदार माना/ठहराया जाता रहा है । उम्मीदवार के रूप में अशोक अग्रवाल के लिए यह एक बड़ी चुनौती की बात होगी कि जिन हरकतों के लिए जेके गौड़ को चुनावी पराजय के रूप में सजा मिल चुकी है, वैसी सजा से वह अपने आप को किसी भी तरह से बचा लें ।
अशोक अग्रवाल की उम्मीदवारी की वकालत करने वाले नेताओं का तर्क है कि जेके गौड़ का चुनावी मुकाबला रमेश अग्रवाल जैसे खिलाड़ी नेता से था, और अशोक अग्रवाल का मुकाबला अमित गुप्ता जैसे नौसिखिया से होना है - इसलिए अशोक अग्रवाल के साथ वैसा कुछ होने की उम्मीद नहीं की जा सकती है, जैसा जेके गौड़ के साथ हुआ । यह तर्क कुछ हद तक उचित तो है, लेकिन इसके पूरी तरह सच साबित होने की निर्भरता इस बात पर टिकी है कि चुनावी समीकरण क्या बनते हैं ? डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में प्रायः यह देखा जाता है कि चुनाव दो उम्मीदवारों के बीच नहीं, बल्कि दो खेमों के बीच होता है । अशोक अग्रवाल का खेमा लगभग तय है, अमित गुप्ता का खेमा अभी बनना है - इसलिए अभी से किसी नतीजे पर पहुँचना जल्दबाजी करना होगा । अनुभव के मामले में अशोक अग्रवाल का पलड़ा निश्चित रूप से भारी है, लेकिन उनके उस पलड़े पर बदनामी का बोझ भी है; अमित गुप्ता को इस बात का फायदा है कि लोगों के बीच उनकी कोई खास बदनामी नहीं है - लेकिन उनके लिए समस्या और चुनौती की बात यह है कि उनकी खूबियों से भी अभी लोगों का कोई परिचय नहीं है । अमित गुप्ता को जानने वाले यह तो बताते हैं कि वह धुन के पक्के हैं, जो काम करने की ठान लेते हैं उसे करने में फिर वह रम/जुट जाते हैं । यह बात यदि सच है और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए प्रस्तुत अपनी उम्मीदवारी को उन्होंने यदि वास्तव में गंभीरता से लिया तो उनके और अशोक अग्रवाल के बीच होता दिख रहा चुनावी मुकाबला सचमुच काँटे का होगा और दिलचस्प होगा ।
असल में, जेके गौड़ की बदनामी के अशोक अग्रवाल की तमाम 'खूबियों' पर भारी पड़ने के अंदेशे ने ही अशोक अग्रवाल की उम्मीदवारी की संभावनाओं को सवालिया बना दिया है । उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में जेके गौड़ ने डिस्ट्रिक्ट में भारी बदनामी कमाई है, और डिस्ट्रिक्ट के कई प्रमुख लोग उनकी धोखेबाजियों की शिकायत करते हुए सुने गए हैं । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में जेके गौड़ के रवैये से लोग किस हद तक नाराज हुए, इसे समझने के लिए एक ही उदाहरण काफी है - और वह यह कि लोगों को रमेश अग्रवाल अच्छे लगने लगे । गौर करने की बात यह है कि डिस्ट्रिक्ट में रमेश अग्रवाल की खासी बदनामी रही है, जिसका उन्हें रह रह कर खामियाजा भुगतना पड़ा है - लेकिन जेके गौड़ की बदनामी ने रमेश अग्रवाल की बदनामी के रंग को हल्का कर दिया, जिसका नतीजा इंटरनेशनल डायरेक्टर पद की नोमीनेटिंग कमेटी के चुनाव में देखने को मिला । अशोक अग्रवाल के लिए मुसीबत की बात यह है कि गवर्नरी के दौरान की जिन हरकतों के चलते जेके गौड़ को बदनामी और चुनावी पराजय का सामना करना पड़ा, उन हरकतों में अशोक अग्रवाल की भी बराबर की भूमिका देखी/पहचानी गई है - और उन हरकतों के लिए अशोक अग्रवाल को भी बराबर का जिम्मेदार माना/ठहराया जाता रहा है । उम्मीदवार के रूप में अशोक अग्रवाल के लिए यह एक बड़ी चुनौती की बात होगी कि जिन हरकतों के लिए जेके गौड़ को चुनावी पराजय के रूप में सजा मिल चुकी है, वैसी सजा से वह अपने आप को किसी भी तरह से बचा लें ।
अशोक अग्रवाल की उम्मीदवारी की वकालत करने वाले नेताओं का तर्क है कि जेके गौड़ का चुनावी मुकाबला रमेश अग्रवाल जैसे खिलाड़ी नेता से था, और अशोक अग्रवाल का मुकाबला अमित गुप्ता जैसे नौसिखिया से होना है - इसलिए अशोक अग्रवाल के साथ वैसा कुछ होने की उम्मीद नहीं की जा सकती है, जैसा जेके गौड़ के साथ हुआ । यह तर्क कुछ हद तक उचित तो है, लेकिन इसके पूरी तरह सच साबित होने की निर्भरता इस बात पर टिकी है कि चुनावी समीकरण क्या बनते हैं ? डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में प्रायः यह देखा जाता है कि चुनाव दो उम्मीदवारों के बीच नहीं, बल्कि दो खेमों के बीच होता है । अशोक अग्रवाल का खेमा लगभग तय है, अमित गुप्ता का खेमा अभी बनना है - इसलिए अभी से किसी नतीजे पर पहुँचना जल्दबाजी करना होगा । अनुभव के मामले में अशोक अग्रवाल का पलड़ा निश्चित रूप से भारी है, लेकिन उनके उस पलड़े पर बदनामी का बोझ भी है; अमित गुप्ता को इस बात का फायदा है कि लोगों के बीच उनकी कोई खास बदनामी नहीं है - लेकिन उनके लिए समस्या और चुनौती की बात यह है कि उनकी खूबियों से भी अभी लोगों का कोई परिचय नहीं है । अमित गुप्ता को जानने वाले यह तो बताते हैं कि वह धुन के पक्के हैं, जो काम करने की ठान लेते हैं उसे करने में फिर वह रम/जुट जाते हैं । यह बात यदि सच है और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए प्रस्तुत अपनी उम्मीदवारी को उन्होंने यदि वास्तव में गंभीरता से लिया तो उनके और अशोक अग्रवाल के बीच होता दिख रहा चुनावी मुकाबला सचमुच काँटे का होगा और दिलचस्प होगा ।