देहरादून
। सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए चुनावी बिगुल बज जाने के बाद
भी राजेश गुप्ता जिस तरह से चुनावी अभियान से गायब दिख रहे हैं, उससे लोगों
को आशंका होने लगी है कि कहीं मुकेश गोयल का दाँव इस बार उन्हें उल्टा पड़ने वाला तो नहीं है ? राजेश
गुप्ता की उम्मीदवारी के नाम पर खेमे में पड़ती दिख रही फूट को बचा लेने
में तो मुकेश गोयल कामयाब रहे हैं, लेकिन राजेश गुप्ता की उम्मीदवारी को
लेकर अपने लोगों में मुकेश गोयल वह जोश भरने में विफल होते नजर आ रहे हैं -
जिसके लिए वह विख्यात रहे हैं । मुकेश गोयल ने चुनाव के लिए सेना तो तैयार
कर ली है - उन्होंने अपनी 'सेना' में योद्धाओं की वृद्धि कर ली है, योद्धा
हथियारबंद भी हो गए हैं, और इस तरह सेना पूरी तरह सुसज्जित हो गई है;
लेकिन देखने में यह आ रहा है कि अधिकतर योद्धा जैसे असमंजस में हैं कि
उन्हें करना क्या है, उन्हें किसके लिए लड़ना है ? दरअसल मुकेश गोयल ने जिन राजेश गुप्ता के लिए सेना सजाई है, वह राजेश
गुप्ता ही सीन से गायब हैं और इसलिए उनके समर्थन में जुटे कई योद्धा/नेता
अपने आप को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं । मुकेश गोयल की तरफ से हालाँकि यह
बताते हुए योद्धाओं/नेताओं का हौंसला बनाए रखने का प्रयास हो रहा है कि
राजेश गुप्ता अभी एक पारिवारिक जिम्मेदारी निभाने में व्यस्त हैं, इसलिए
कुछ दिनों के लिए सीन से गायब रहेंगे - लेकिन जल्दी ही वह लोगों के बीच
सक्रिय होंगे । बात यदि सचमुच ऐसी ही होती, जैसी मुकेश गोयल बता रहे हैं तो
समस्या की कोई बात ही नहीं होती - समस्या की बात वास्तव में है ही
इसलिए कि राजेश गुप्ता ने अपने आप को अभी तक कभी भी उम्मीदवार के रूप में
'दिखाया' ही नहीं है । राजेश गुप्ता का हमेशा ही ऐसा 'व्यवहार' रहा है जैसे
कि उम्मीदवार बन कर वह डिस्ट्रिक्ट और डिस्ट्रिक्ट के लोगों पर कोई ऐहसान
कर रहे हैं । उनके इसी व्यवहार के कारण, मुकेश गोयल के अलावा - मुकेश गोयल खेमे में उनकी
उम्मीदवारी के अन्य समर्थक नेताओं में उनकी उम्मीदवारी को लेकर कोई उत्साह व सक्रियता नहीं
दिख रही है ।
अश्वनी काम्बोज ने इस स्थिति का फायदा उठाने की तैयारी 'दिखा' कर चुनावी परिदृश्य को रोचक बनाने का प्रयास किया है । कुछ दिन पहले तक हालाँकि उनकी तरफ से भी ढीलमढाल दिख रही थी और अपनी उम्मीदवारी को लेकर वह भी कन्फ्यूज से नजर आ रहे थे । लेकिन पिछले कुछ दिनों में अश्वनी काम्बोज ने जो सक्रियता दिखाई है, उसके कारण कई लोगों को वह चुनावी मुकाबले में वापसी करते हुए नजर आए हैं । मुकेश गोयल खेमे के ही कुछेक नेता कहने लगे हैं कि राजेश गुप्ता की पस्ती/सुस्ती में अश्वनी काम्बोज की चुस्ती यदि ऐसे ही बनी रही, तो मुकेश गोयल के लिए इस बार अपनी राजनीतिक साख बचाना मुश्किल हो जायेगा । मुकेश गोयल खेमे के कई नेता हालाँकि इस तर्क के साथ निश्चिंत भी दिख रहे हैं कि पिछले वर्ष अश्वनी काम्बोज अपनी तमाम ताकत झोंक देने के बाद भी बुरी तरह चुनाव हार गए थे, और उनकी हार का अंतर जितना बड़ा था - उसे पाट पाना उनके लिए किसी भी तरह से संभव नहीं होगा । अंकगणित के हिसाब से देखेंगे, तो यह तर्क उचित ही लगेगा - लेकिन राजनीति अंकगणित से ही नहीं होती है; उसमें केमिस्ट्री के घुमावदार पेंच भी होते हैं । पिछले वर्ष मुकेश गोयल खेमे के उम्मीदवार को यदि जोरदार जीत मिली थी - तो उसमें मुकेश गोयल की सांगठनिक क्षमता व रणनीतिक कुशलता का योगदान तो था, लेकिन उसके साथ-साथ उनके उम्मीदवार संजीवा अग्रवाल की वर्ष भर रही 'उदारतापूर्ण' सक्रियता का भी बराबर का योगदान था । मुकेश गोयल के कुछेक नजदीकी नेता जी-जान से संजीवा अग्रवाल के लिए लगे हुए थे; और पिछले वर्ष के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर शिव कुमार चौधरी की लूटखसोट व बदतमीजीपूर्ण हरकतों ने भी मुकेश गोयल खेमे के उम्मीदवार की जीत के अंतर को बढ़ाने में अमूल्य सहयोग दिया था ।
मुकेश गोयल खेमे के उम्मीदवार के रूप में संजीवा अग्रवाल को बड़ी जीत दिलवाने में जिन जिन फैक्टर्स का योगदान था, उनमें से अधिकतर फैक्टर्स इस बार पूरी तरह चूँकि गायब हैं - इसलिए पिछले वर्ष के बड़े अंतर के भरोसे रहना मुकेश गोयल खेमे के लिए इस बार आत्मघाती साबित हो सकता है । उम्मीदवार के रूप में संजीवा अग्रवाल और राजेश गुप्ता के व्यवहार और रवैये में जो भारी अंतर है, एक वही वोटों के अंतर को मिटा सकता है और या कम कर सकता है । हालाँकि खेमेबाजी और वोटों के गणित के लिहाज से मुकेश गोयल खेमे का पलड़ा अभी भी भारी ही दिख रहा है; और विरोधी खेमे के जो नेता अश्वनी काम्बोज के मददगार होने चाहिएँ, वह अभी भी अलग-अलग रूपों में अश्वनी काम्बोज का काम खराब करने का ही काम करते नजर आ रहे हैं; मुकेश गोयल खेमे के नेताओं को भरोसा है कि जैसे पिछले वर्ष शिव कुमार चौधरी की बदतमीजीपूर्ण हरकतों ने उनको मदद पहुँचाई थी - वैसे ही इस बार भी शिव कुमार चौधरी का संग-साथ अश्वनी काम्बोज की उम्मीदवारी का कबाड़ा करेगा । अश्वनी काम्बोज भी इस खतरे को समझ रहे हैं, और इसलिए वह कहीं दूरी और कहीं नजदीकी 'दिखा' कर सामंजस्य बनाने का प्रयास कर रहे हैं । एक उम्मीदवार के रूप में अश्वनी काम्बोज के व्यवहार में जो 'होशियारी' इस बार दिख रही है, उससे लग रहा है कि पिछले वर्ष की बड़ी पराजय से उन्होंने कई सबक सीखें हैं । जो सबक उनके द्वारा सीखे लग रहे हैं, उन पर वह यदि वास्तव में अमल कर सके - और प्रभावी व व्यावहारिक रूप से अमल कर सके तो कई लोगों को उम्मीद बन रही है कि वह सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट पद के चुनाव की केमिस्ट्री बदल सकते हैं ।
अश्वनी काम्बोज ने इस स्थिति का फायदा उठाने की तैयारी 'दिखा' कर चुनावी परिदृश्य को रोचक बनाने का प्रयास किया है । कुछ दिन पहले तक हालाँकि उनकी तरफ से भी ढीलमढाल दिख रही थी और अपनी उम्मीदवारी को लेकर वह भी कन्फ्यूज से नजर आ रहे थे । लेकिन पिछले कुछ दिनों में अश्वनी काम्बोज ने जो सक्रियता दिखाई है, उसके कारण कई लोगों को वह चुनावी मुकाबले में वापसी करते हुए नजर आए हैं । मुकेश गोयल खेमे के ही कुछेक नेता कहने लगे हैं कि राजेश गुप्ता की पस्ती/सुस्ती में अश्वनी काम्बोज की चुस्ती यदि ऐसे ही बनी रही, तो मुकेश गोयल के लिए इस बार अपनी राजनीतिक साख बचाना मुश्किल हो जायेगा । मुकेश गोयल खेमे के कई नेता हालाँकि इस तर्क के साथ निश्चिंत भी दिख रहे हैं कि पिछले वर्ष अश्वनी काम्बोज अपनी तमाम ताकत झोंक देने के बाद भी बुरी तरह चुनाव हार गए थे, और उनकी हार का अंतर जितना बड़ा था - उसे पाट पाना उनके लिए किसी भी तरह से संभव नहीं होगा । अंकगणित के हिसाब से देखेंगे, तो यह तर्क उचित ही लगेगा - लेकिन राजनीति अंकगणित से ही नहीं होती है; उसमें केमिस्ट्री के घुमावदार पेंच भी होते हैं । पिछले वर्ष मुकेश गोयल खेमे के उम्मीदवार को यदि जोरदार जीत मिली थी - तो उसमें मुकेश गोयल की सांगठनिक क्षमता व रणनीतिक कुशलता का योगदान तो था, लेकिन उसके साथ-साथ उनके उम्मीदवार संजीवा अग्रवाल की वर्ष भर रही 'उदारतापूर्ण' सक्रियता का भी बराबर का योगदान था । मुकेश गोयल के कुछेक नजदीकी नेता जी-जान से संजीवा अग्रवाल के लिए लगे हुए थे; और पिछले वर्ष के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर शिव कुमार चौधरी की लूटखसोट व बदतमीजीपूर्ण हरकतों ने भी मुकेश गोयल खेमे के उम्मीदवार की जीत के अंतर को बढ़ाने में अमूल्य सहयोग दिया था ।
मुकेश गोयल खेमे के उम्मीदवार के रूप में संजीवा अग्रवाल को बड़ी जीत दिलवाने में जिन जिन फैक्टर्स का योगदान था, उनमें से अधिकतर फैक्टर्स इस बार पूरी तरह चूँकि गायब हैं - इसलिए पिछले वर्ष के बड़े अंतर के भरोसे रहना मुकेश गोयल खेमे के लिए इस बार आत्मघाती साबित हो सकता है । उम्मीदवार के रूप में संजीवा अग्रवाल और राजेश गुप्ता के व्यवहार और रवैये में जो भारी अंतर है, एक वही वोटों के अंतर को मिटा सकता है और या कम कर सकता है । हालाँकि खेमेबाजी और वोटों के गणित के लिहाज से मुकेश गोयल खेमे का पलड़ा अभी भी भारी ही दिख रहा है; और विरोधी खेमे के जो नेता अश्वनी काम्बोज के मददगार होने चाहिएँ, वह अभी भी अलग-अलग रूपों में अश्वनी काम्बोज का काम खराब करने का ही काम करते नजर आ रहे हैं; मुकेश गोयल खेमे के नेताओं को भरोसा है कि जैसे पिछले वर्ष शिव कुमार चौधरी की बदतमीजीपूर्ण हरकतों ने उनको मदद पहुँचाई थी - वैसे ही इस बार भी शिव कुमार चौधरी का संग-साथ अश्वनी काम्बोज की उम्मीदवारी का कबाड़ा करेगा । अश्वनी काम्बोज भी इस खतरे को समझ रहे हैं, और इसलिए वह कहीं दूरी और कहीं नजदीकी 'दिखा' कर सामंजस्य बनाने का प्रयास कर रहे हैं । एक उम्मीदवार के रूप में अश्वनी काम्बोज के व्यवहार में जो 'होशियारी' इस बार दिख रही है, उससे लग रहा है कि पिछले वर्ष की बड़ी पराजय से उन्होंने कई सबक सीखें हैं । जो सबक उनके द्वारा सीखे लग रहे हैं, उन पर वह यदि वास्तव में अमल कर सके - और प्रभावी व व्यावहारिक रूप से अमल कर सके तो कई लोगों को उम्मीद बन रही है कि वह सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट पद के चुनाव की केमिस्ट्री बदल सकते हैं ।