नई दिल्ली । सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की उम्मीदवारी के लिए नामांकन भरने के दौरान के प्रदर्शन में मदन बत्रा के मुकाबले रमन गुप्ता का पलड़ा जिस तरह से भारी दिखा है, उसने मदन बत्रा के समर्थकों को भारी चिंता में डालते हुए दबाव में ला दिया है । दरअसल
नामांकन के दौरान के प्रदर्शन में रमन गुप्ता से पिछड़ जाने के कारण मदन
बत्रा के अभियान की दो खामियाँ एकदम से सामने आ गई हैं : रमन गुप्ता के
नामांकन के साथ पचास से अधिक क्लब्स के पदाधिकारियों के जुटने से एक तरफ तो
यह साफ हो गया है कि मदन बत्रा और उनके समर्थक नेता 'वायदे' और 'कमिटमेंट'
के जिस चप्पू के भरोसे चुनावी नाव के पार हो जाने की उम्मीद कर रहे हैं,
वह चप्पू ही उनकी नाव को बीच में ही डुबाते नजर आ रहे हैं; और दूसरी बात यह
कि मदन बत्रा के समर्थक नेताओं के बीच जरूरी तालमेल का अभी भी अभाव दिख
रहा है । रमन गुप्ता के नामांकन के समर्थन में क्लब्स की जो भीड़ जुटी,
उस पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए मदन बत्रा के समर्थक कुछेक नेताओं ने
कहा कि वह चाहते तो मदन बत्रा के समर्थन में उनसे ज्यादा क्लब्स इकट्ठा
कर/दिखा सकते थे । इस जबाव ने लोगों को सवाल करने/पूछने के लिए प्रेरित
किया कि फिर चाहा क्यों नहीं, करा क्यों नहीं, दिखाया क्यों नहीं ? यह
सवाल इसलिए महत्त्वपूर्ण हैं, क्योंकि मदन बत्रा के नामांकन के मौके को भी
'शो' बनाने की कोशिश तो हुई ही थी - वह तो उनका 'शो' जब बुरी तरह पिट गया,
तब वह कह/बता रहे हैं कि वह चाहते तो शो अच्छा कर सकते थे । यह तो ऐसी ही
बात हुई कि जब सामान लुट गया, तब सोचा गया कि सामान की सुरक्षा की जा सकती
थी - और इसी बात से जाहिर है कि मदन बत्रा और उनके समर्थक नेताओं में
सोच व तालमेल का अभाव है, जिसका फायदा रमन गुप्ता और उनके समर्थक नेता उठा
रहे हैं ।
मदन बत्रा और उनके समर्थक नेताओं के सामने इससे भी बड़ी मुसीबत लेकिन यह है कि 'वायदे' और 'कमिटमेंट' की याद दिला दिला कर वह लोगों को अपनी तरफ करने की जो कोशिश कर रहे हैं, उसका कोई सार्थक नतीजा निकलता/मिलता उन्हें नहीं नजर आ रहा है । उल्लेखनीय है कि दो वर्ष पहले भी मदन बत्रा ने सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए उम्मीदवारी प्रस्तुत की थी; उस वर्ष लेकिन वह अपने प्रतिद्धंद्धी उम्मीदवार रवि मेहरा के साथ एक समझौता करके चुनावी मैदान से हट गए थे । वास्तव में समझौता उनके और रवि मेहरा के बीच नहीं हुआ था, बल्कि दोनों के समर्थक नेताओं के बीच हुआ था । मदन बत्रा और उनके समर्थक नेताओं का कहना है कि उक्त समझौते के तहत मदन बत्रा को इस बार निर्विरोध सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर चुना जाना चाहिए - और निर्विरोध न सही, तो सभी लोगों को उनकी उम्मीदवारी का समर्थन करना चाहिए । उक्त समझौते में शामिल रहे नेताओं और लोगों का कहना लेकिन यह है कि मदन बत्रा और उनके समर्थक नेता समझौते की आधी बात बता कर डिस्ट्रिक्ट के लोगों को बरगला रहे हैं । उनके अनुसार, समझौता यह हुआ था कि मदन बत्रा अपनी उम्मीदवारी वापस लेंगे और सभी को साथ लेकर डिस्ट्रिक्ट में काम करेंगे, जिसके फलस्वरूप अगली बार सभी लोग उनकी उम्मीदवारी का समर्थन करेंगे । मदन बत्रा लेकिन उम्मीदवारी वापस लेकर घर बैठ गए और करीब करीब डेढ़ वर्ष तक उन्होंने डिस्ट्रिक्ट में लोगों को शक्ल भी नहीं दिखाई । पिछले वर्ष हुए चुनाव में उन्होंने उस वायदे का भी पालन नहीं किया जिसके तहत उन्हें सभी के साथ समान व्यवहार करना था और किसी एक खेमे के साथ नहीं होना/दिखना था । पिछले वर्ष मदन बत्रा ने गुरचरण सिंह भोला की उम्मीदवारी के समर्थन में सक्रियता दिखाई थी । इस तरह मदन बत्रा खुद ही समझौते की शर्तों से बाहर निकल गए थे । लोगों का कहना/पूछना है कि इसलिए अब वह किस मुँह से समझौते में हुए 'वायदे' और 'कमिटमेंट' की बात कर रहे हैं ।
मदन बत्रा की 'वायदे' और 'कमिटमेंट' की बात इसलिए भी समर्थन जुटाती नहीं दिख रही है, क्योंकि मदन बत्रा ने दो वर्ष पहले समझौते के तहत अपनी उम्मीदवारी को वापस लेने के बाद अपने आपको तमाम गतिविधियों से अलग कर लिया था और घर बैठ गए थे । लोगों का कहना है कि इससे लग रहा है कि मदन बत्रा को लायनिज्म में और डिस्ट्रिक्ट में कुछ करना नहीं है, उन्हें सिर्फ गवर्नर बनना है - 'वायदे' और कमिटमेंट' को लेकर मदन बत्रा यदि जरा भी जिम्मेदार होते तो न तो गतिविधियों से मुँह मोड़ते और न ही किसी एक खेमे का पक्ष लेते । मदन बत्रा और उनके समर्थक लोगों के बीच समर्थन जुटाने के लिए उनके लंबे समय से लायनिज्म में होने के तर्क का भी इस्तेमाल कर रहे हैं, पर यह तर्क उनके खुद के दोहरे रवैये को ही दिखा रहा है - लोगों का कहना है कि पिछले वर्ष तो उन्होंने यह तर्क माना नहीं था और यशपाल अरोड़ा के खिलाफ गुरचरण सिंह भोला को चुनाव लड़वा दिया था और अब कह रहे हैं कि जिसे लायनिज्म में ज्यादा वर्ष हुए हैं उसे बनाओ/जिताओ । इस तरह की बातों से लग रहा है कि मदन बत्रा और उनके समर्थक नेता अपने ही बुने/बनाये जाल में फँस गए हैं और उनके पास मदन बत्रा की उम्मीदवारी को जस्टीफाई करने के लिए उचित तर्क नहीं हैं । दरअसल रमन गुप्ता ने पिछले कुछ वर्षों की अपनी सक्रियता से दिखाया और साबित किया है कि लायनिज्म में उन्हें भले ही ज्यादा समय न हुआ हो, लेकिन लायनिज्म और डिस्ट्रिक्ट के लिए कुछ अच्छा और बड़ा करने की इच्छा और जिद उनमें बहुत है । कुछेक वर्षों में ही रमन गुप्ता ने जो जो और जैसे जैसे काम किए हैं, उनके सामने मदन बत्रा का तीस से भी अधिक वर्षों का लायन जीवन फीका फीका सा ही है । लगता है कि डिस्ट्रिक्ट के लोगों ने भी इस अंतर को समझ लिया है कि महत्त्वपूर्ण यह नहीं है कि कौन कितने समय से लायनिज्म में है, बल्कि महत्त्वपूर्ण यह है कि वह जितने समय से भी है उतने समय में उसने किया क्या है ? नामांकन के मौके पर रमन गुप्ता के समर्थन में जिस तरह से क्लब्स के पदाधिकारियों की भीड़ जुटी, उसने सेकेंड वाइस गवर्नर पद के चुनाव के संदर्भ में लोगों के मूड का संकेत देने का काम किया है - और इस संकेत ने मदन बत्रा और उनके समर्थक नेताओं को चिंता और परेशानी में डाल दिया है ।
मदन बत्रा और उनके समर्थक नेताओं के सामने इससे भी बड़ी मुसीबत लेकिन यह है कि 'वायदे' और 'कमिटमेंट' की याद दिला दिला कर वह लोगों को अपनी तरफ करने की जो कोशिश कर रहे हैं, उसका कोई सार्थक नतीजा निकलता/मिलता उन्हें नहीं नजर आ रहा है । उल्लेखनीय है कि दो वर्ष पहले भी मदन बत्रा ने सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए उम्मीदवारी प्रस्तुत की थी; उस वर्ष लेकिन वह अपने प्रतिद्धंद्धी उम्मीदवार रवि मेहरा के साथ एक समझौता करके चुनावी मैदान से हट गए थे । वास्तव में समझौता उनके और रवि मेहरा के बीच नहीं हुआ था, बल्कि दोनों के समर्थक नेताओं के बीच हुआ था । मदन बत्रा और उनके समर्थक नेताओं का कहना है कि उक्त समझौते के तहत मदन बत्रा को इस बार निर्विरोध सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर चुना जाना चाहिए - और निर्विरोध न सही, तो सभी लोगों को उनकी उम्मीदवारी का समर्थन करना चाहिए । उक्त समझौते में शामिल रहे नेताओं और लोगों का कहना लेकिन यह है कि मदन बत्रा और उनके समर्थक नेता समझौते की आधी बात बता कर डिस्ट्रिक्ट के लोगों को बरगला रहे हैं । उनके अनुसार, समझौता यह हुआ था कि मदन बत्रा अपनी उम्मीदवारी वापस लेंगे और सभी को साथ लेकर डिस्ट्रिक्ट में काम करेंगे, जिसके फलस्वरूप अगली बार सभी लोग उनकी उम्मीदवारी का समर्थन करेंगे । मदन बत्रा लेकिन उम्मीदवारी वापस लेकर घर बैठ गए और करीब करीब डेढ़ वर्ष तक उन्होंने डिस्ट्रिक्ट में लोगों को शक्ल भी नहीं दिखाई । पिछले वर्ष हुए चुनाव में उन्होंने उस वायदे का भी पालन नहीं किया जिसके तहत उन्हें सभी के साथ समान व्यवहार करना था और किसी एक खेमे के साथ नहीं होना/दिखना था । पिछले वर्ष मदन बत्रा ने गुरचरण सिंह भोला की उम्मीदवारी के समर्थन में सक्रियता दिखाई थी । इस तरह मदन बत्रा खुद ही समझौते की शर्तों से बाहर निकल गए थे । लोगों का कहना/पूछना है कि इसलिए अब वह किस मुँह से समझौते में हुए 'वायदे' और 'कमिटमेंट' की बात कर रहे हैं ।
मदन बत्रा की 'वायदे' और 'कमिटमेंट' की बात इसलिए भी समर्थन जुटाती नहीं दिख रही है, क्योंकि मदन बत्रा ने दो वर्ष पहले समझौते के तहत अपनी उम्मीदवारी को वापस लेने के बाद अपने आपको तमाम गतिविधियों से अलग कर लिया था और घर बैठ गए थे । लोगों का कहना है कि इससे लग रहा है कि मदन बत्रा को लायनिज्म में और डिस्ट्रिक्ट में कुछ करना नहीं है, उन्हें सिर्फ गवर्नर बनना है - 'वायदे' और कमिटमेंट' को लेकर मदन बत्रा यदि जरा भी जिम्मेदार होते तो न तो गतिविधियों से मुँह मोड़ते और न ही किसी एक खेमे का पक्ष लेते । मदन बत्रा और उनके समर्थक लोगों के बीच समर्थन जुटाने के लिए उनके लंबे समय से लायनिज्म में होने के तर्क का भी इस्तेमाल कर रहे हैं, पर यह तर्क उनके खुद के दोहरे रवैये को ही दिखा रहा है - लोगों का कहना है कि पिछले वर्ष तो उन्होंने यह तर्क माना नहीं था और यशपाल अरोड़ा के खिलाफ गुरचरण सिंह भोला को चुनाव लड़वा दिया था और अब कह रहे हैं कि जिसे लायनिज्म में ज्यादा वर्ष हुए हैं उसे बनाओ/जिताओ । इस तरह की बातों से लग रहा है कि मदन बत्रा और उनके समर्थक नेता अपने ही बुने/बनाये जाल में फँस गए हैं और उनके पास मदन बत्रा की उम्मीदवारी को जस्टीफाई करने के लिए उचित तर्क नहीं हैं । दरअसल रमन गुप्ता ने पिछले कुछ वर्षों की अपनी सक्रियता से दिखाया और साबित किया है कि लायनिज्म में उन्हें भले ही ज्यादा समय न हुआ हो, लेकिन लायनिज्म और डिस्ट्रिक्ट के लिए कुछ अच्छा और बड़ा करने की इच्छा और जिद उनमें बहुत है । कुछेक वर्षों में ही रमन गुप्ता ने जो जो और जैसे जैसे काम किए हैं, उनके सामने मदन बत्रा का तीस से भी अधिक वर्षों का लायन जीवन फीका फीका सा ही है । लगता है कि डिस्ट्रिक्ट के लोगों ने भी इस अंतर को समझ लिया है कि महत्त्वपूर्ण यह नहीं है कि कौन कितने समय से लायनिज्म में है, बल्कि महत्त्वपूर्ण यह है कि वह जितने समय से भी है उतने समय में उसने किया क्या है ? नामांकन के मौके पर रमन गुप्ता के समर्थन में जिस तरह से क्लब्स के पदाधिकारियों की भीड़ जुटी, उसने सेकेंड वाइस गवर्नर पद के चुनाव के संदर्भ में लोगों के मूड का संकेत देने का काम किया है - और इस संकेत ने मदन बत्रा और उनके समर्थक नेताओं को चिंता और परेशानी में डाल दिया है ।