Saturday, January 11, 2014

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3010 में सीओएल का चुनाव संजय खन्ना की गैर मौजूदगी में करवाने की विनोद बंसल की कार्रवाई को जेके गौड़ ने रमेश अग्रवाल की उम्मीदवारी को विनोद बंसल के समर्थन के रूप में व्याख्यायित किया

नई दिल्ली । जेके गौड़ ने रमेश अग्रवाल को सीओएल(काउंसिल ऑन लेजिसलेशन) चुनवाने का बीड़ा उठा कर सीओएल के चुनाव को दिलचस्प बना दिया है । डिस्ट्रिक्ट की काउंसिल ऑफ गवर्नर्स के सदस्यों के बीच यूँ तो जेके गौड़ की ऐसी हैसियत नहीं है कि वह उन्हें रमेश अग्रवाल के पक्ष में वोट देने के लिए राजी कर सकें, लेकिन अपने गवर्नर-काल की टीम के प्रमुख सदस्यों को चुनने की तैयारी करने के कारण जेके गौड़ को 'उक्त' हैसियत मिलती दिख रही है । उन्हें लगता है कि कुछेक पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर ऐसे जरूर हैं जो किसी पद के लालच में उनके कहने से रमेश अग्रवाल का समर्थन करने को निश्चित ही तैयार हो जायेंगे । उल्लेखनीय है कि जेके गौड़ से पहले गवर्नर का पदभार संभालने वाले संजय खन्ना ने तो अपनी टीम लगभग बना ली है; अब अगले चार-पाँच माह में जेके गौड़ को अपनी टीम के लिए प्रमुख सदस्यों को चुनना है । इस तरह जेके गौड़ के पास चूँकि देने के लिए पद हैं, इसलिए काउंसिल ऑफ गवर्नर्स के सदस्यों के बीच रमेश अग्रवाल के लिए समर्थन जुटाने की हैसियत उन्होंने पहचान/बना ली है । इसी हैसियत को जेके गौड़ ने रमेश अग्रवाल के लिए समर्थन जुटाने में लगा दिया है ।
रमेश अग्रवाल ने चूँकि अपने आप को जेके गौड़ के गवर्नर-काल में डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर के रूप में 'पोज' करना शुरू कर दिया है, उस नाते से वह भी जेके गौड़ के गवर्नर-काल के पदों का लालच देकर अपने लिए समर्थन जुटाने का प्रयास कर रहे हैं । मजे की बात है कि जेके गौड़ ने अभी तक अपने गवर्नर-काल के डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर का नाम नहीं लिया है; कोई इस बारे में उनसे पूछता भी है तो वह जवाब में यही कहते हैं कि वह अभी विचार कर रहे हैं । लेकिन रमेश अग्रवाल का कहना रहता है कि जेके गौड़ मेरे अलावा किसी और को डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनाने के बारे में सोच भी कैसे सकता है ? जो लोग जेके गौड़ की गतिविधियों को नजदीक से देख रहे हैं उनका कहना है कि पहले तो जेके गौड़ ने संकेत दिए थे कि वह सभी को साथ लेकर और सभी का विश्वास जीत कर काम करेंगे और किसी एक का पिटठू नहीं बनेंगे, लेकिन अब ऐसा लगता है कि वह पूरी तरह रमेश अग्रवाल की गिरफ्त में हैं; और उन्हें कहीं भी नाम लेना होता है तो उनके मुँह से रमेश अग्रवाल का ही नाम निकलता है । इसी भरोसे रमेश अग्रवाल अलग-अलग मौकों पर अलग-अलग लोगों के बीच दावा कर चुके हैं कि जेके गौड़ तो बस नाम का गवर्नर होगा, गवर्नरी तो मैं चलाऊँगा ।
सीओएल के उम्मीदवार के रूप में यूँ तो कई नाम सुने जा रहे हैं लेकिन मुख्य मुकाबला रमेश अग्रवाल और आशीष घोष के बीच होता दिख रहा है । आशीष घोष ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की जिम्मेदारी से निवृत्त होने के बाद देश और विदेश में रोटरी के कई बड़े और प्रमुख आयोजनों में जिम्मेदारी के पदों पर काम किया है और इस नाते से उन्हें रोटरी का व्यापक अनुभव है । रमेश अग्रवाल अभी करीब छह महीने पहले ही डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की जिम्मेदारी से निवृत्त हुए हैं और उन्हें रोटरी के किसी बड़े और प्रमुख आयोजन में जिम्मेदारी निभाने का मौका अभी तक नहीं मिला है । इस मूल्याँकन के आधार पर सीओएल के चुनाव में रमेश अग्रवाल के मुकाबले आशीष घोष का पलड़ा भारी माना जा रहा है । लेकिन रमेश अग्रवाल और उनके समर्थकों का मानना और कहना है कि चुनावी राजनीति में बाजी प्रायः 'खोटे सिक्के' ही जीतते हैं इसलिए आशीष घोष का व्यक्तित्व और प्रोफाइल चाहें कितना ही भारी हो, रमेश अग्रवाल की तीन-तिकड़मों का मुकाबला करना उनके लिए आसान नहीं होगा । पिछली बार के सीओएल के चुनाव का उदाहरण देते हुए वह तर्क भी करते हैं कि व्यक्तित्व और प्रोफाइल के आधार पर मुकेश अरनेजा का अशोक घोष से भला क्या मुकाबला है, लेकिन चुनाव में बाजी तो मुकेश अरनेजा के हाथ ही लगी थी न !
रमेश अग्रवाल और उनके समर्थकों को सीओएल के चुनाव के मौके पर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट संजय खन्ना की अनुपस्थिति में भी अपना फायदा नजर आ रहा है । उल्लेखनीय है कि नोमीनेटिंग कमेटी द्धारा सीओएल के लिए अधिकृत उम्मीदवार का चुनाव 21 जनवरी को होना निश्चित हुआ है, जिस दिन संजय खन्ना दिल्ली में नहीं होंगे । रमेश अग्रवाल और उनके समर्थकों का मानना और कहना है कि संजय खन्ना यदि होते तो वह आशीष घोष के लिए समर्थन जुटा सकते थे । और तो और, संजय खन्ना की गैर मौजूदगी में सीओएल का चुनाव करवाने की डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनोद बंसल की कार्रवाई को जेके गौड़ ने तो रमेश अग्रवाल की उम्मीदवारी को विनोद बंसल के समर्थन के रूप में व्याख्यायित कर दिया है । जेके गौड़ ने कुछेक लोगों के बीच तर्कपूर्ण दावा किया है कि विनोद बंसल सीओएल के लिए रमेश अग्रवाल की उम्मीदवारी के समर्थन में यदि नहीं होते तो ऐसे समय चुनाव क्यों करवाते, जबकि संजय खन्ना यहाँ नहीं हैं । विनोद बंसल ने हालाँकि इस बात को गलत बताया है । उनका कहना है कि डिस्ट्रिक्ट के कार्यक्रमों और संजय खन्ना के बाहर जाने की तारीखों का चक्कर ही कुछ ऐसा पड़ा कि सीओएल का चुनाव संजय खन्ना की अनुपस्थिति में करवाना मजबूरी ही बना है ।
रमेश अग्रवाल और जेके गौड़ जैसे उनके 'सिपाही' ने सीओएल के चुनाव को भी तिकड़मी, जुगाड़ु और गटर-छाप टाइप राजनीति में बदल दिया है । दरअसल इन्हें भी मालुम है कि काउंसिल ऑफ गवर्नर्स में रमेश अग्रवाल की कोई साख नहीं है और इस नाते उनके लिए कोई समर्थन नहीं है; अभी करीब छह महीने पहले तक डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में रमेश अग्रवाल को काउंसिल और गवर्नर्स में कई बार अपने फैसलों और अपनी कारस्तानियों के कारण अलग-थलग पड़ जाना पड़ा और अपमानित होना पड़ा है । उन्हीं सब बातों और अनुभवों को याद करते हुए रमेश अग्रवाल और उनके समर्थकों को लगता है कि उन्होंने यदि सीधे और साफ और गरिमापूर्ण तरीके से चुनाव लड़ा तो फिर उन्हें आशीष घोष से हारना ही पड़ेगा । सो, जीतने के लिए उन्हें हथकंडे अपनाने ही पड़ेंगे । इस मामले में आशीष घोष के मुकाबले रमेश अग्रवाल खुशकिस्मत हैं, क्योंकि रमेश अग्रवाल को अपने हथकंडे दिखाने/अपनाने के लिए जेके गौड़ का साथ/सहयोग मिल गया है ।