मेरठ । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर राकेश सिंघल ने
अंततः वह फैसला सुना ही दिया, जिसे सुनाने से इंकार करने के कारण पिछले
करीब दो महीने से उनकी भारी फजीहत और छीछालेदर हो रही थी । बेचारे राकेश
सिंघल - अभी तक लोग उनकी इस बात के लिए आलोचना कर रहे थे कि डिस्ट्रिक्ट
गवर्नर नॉमिनी पद के लिए आये नामांकनों की वैधता पर वह कोई फैसला नहीं ले
रहे हैं; लेकिन अब जब उन्होंने फैसला सुना दिया है तो लोग यह कहते हुए
उन्हें निशाना बना रहे हैं कि उन्हें यदि यही फैसला करना था तो फिर इतना
नाटक करने की क्या जरूरत थी ? राकेश सिंघल ने जो किया, उसे व्याख्यायित करने के लिए कुछ लोगों ने एक पुरानी कविता को
याद किया - ' खाया/पिया कुछ नहीं, गिलास तोड़ा बारह आना'; कुछ गर्म दिमाग और
बदतमीज स्वभाव वाले लोगों ने 'जूते भी खाये, और प्याज भी खाया' वाला
मुहावरा भी हवा में उछाला - लेकिन अधिकतर लोगों ने माना कि 'अंत भला तो
सब भला ।' ऐसे लोगों का मानना और कहना रहा कि राकेश सिंघल को अंततः
सद्बुद्धि आई, जिसके चलते उन्होंने झुकना स्वीकार किया और उनकी तथा डिस्ट्रिक्ट की और ज्यादा बदनामी होने से बच गई ।
हमारे यहाँ माना/कहा भी जाता है कि सुबह का भूला यदि शाम को घर लौट आये तो उसे भूला नहीं कहा जाता है ।
इस आधार पर लेकिन कई लोग अभी भी राकेश सिंघल को माफ़ करने के मूड में नहीं हैं । उनका तर्क है कि राकेश सिंघल कुछ भूले नहीं थे, उन्होंने षड्यंत्रपूर्वक एक योजना बनाई थी; और वह पश्चाताप करते हुए लौटे नहीं हैं, वह तब लौटे हैं जब लौटने के लिए मजबूर हुए हैं ।
राकेश सिंघल की षड्यंत्रपूर्ण योजना में अपना फायदा देख रहे डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के एक उम्मीदवार दीपक बाबू और उनके समर्थकों के लिए आश्चर्य की बात यह रही कि अभी पाँच-छह दिन पहले तक ताल ठोक रहे और 'देख लेंगे' 'निपट लेंगे' जैसे दावे कर रहे राकेश सिंघल ने अचानक से पलटी क्यों मार ली ? उल्लेखनीय
है कि 29 दिसंबर को होने वाली कॉलिज ऑफ गवर्नर्स की मीटिंग को ऐन मौके पर
स्थगित करके राकेश सिंघल ने यह स्पष्ट संकेत दे दिया था कि वह 'अपने' फैसले
में कॉलिज और गवर्नर्स की भी नहीं सुनेंगे । 31 दिसंबर को राकेश सिंघल के
घर पर संजीव रस्तोगी, सुनील गुप्ता, ब्रज भूषण तथा कुछेक अन्य लोगों की उपस्थिति में हुई अनौपचारिक मुलाकात में भी काफी गर्मागर्मी हुई थी,
जिसमें संजीव रस्तोगी को यहाँ तक धमकाया गया कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप
में मुरादाबाद में वह कैसे घुस पायेंगे । यहीं राकेश सिंघल ने एक बार फिर
यह घोषणा की कि पाँच जनवरी को मेरठ में होने वाली संजीव रस्तोगी की बॉन बॉयज मीटिंग में वह शामिल नहीं होंगे । इससे
लगा था कि राकेश सिंघल पूरी तरह से टकराव के मूड में हैं । लेकिन उसके
तुरंत बाद ही घटनाचक्र तेजी से घूमा और फिर राकेश सिंघल को जमीन पर आने में
देर नहीं लगी ।
टकराव का मूड दिखाने के तुरंत बाद ही
राकेश सिंघल को पहला झटका तब लगा जब रोटरी इंटरनेशनल की तरफ से उन्हें साफ
जबाव मिल गया कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव के संदर्भ में लिए
गए उनके फैसले को तभी स्वीकार किया जायेगा जब वह कॉलिज ऑफ गवर्नर्स द्धारा अनुमोदित होगा । इसके
साथ ही राकेश सिंघल को पता चला कि उनकी डिस्ट्रिक्ट कॉन्फरेंस में मुख्य
अतिथि के रूप में आमंत्रित पूर्व इंटरनेशनल प्रेसीडेंट राजेंद्र उर्फ़ राजा
साबू के कानों तक भी उनकी कारस्तानियों के किस्से पहुँच गए हैं और वह उनके
किये-धरे से नाराज हो रहे हैं । इसके अलावा, राकेश सिंघल के सामने यह
स्पष्ट होता ही जा रहा था कि डिस्ट्रिक्ट में उन्होंने जो झगड़ा पैदा किया
है उसके चलते उनकी डिस्ट्रिक्ट कॉन्फरेंस का कबाड़ा होना निश्चित ही है । इन सब बातों से राकेश सिंघल ने अपने आप को चारों तरफ से घिरा हुआ पाया और फिर उनके तेवरों ने ढीले होने में समय नहीं लिया ।
राकेश सिंघल ने तुरंत स्थितियों को सँभालने का ऑपरेशन शुरू किया और अपने लिए सम्मानजनक वापसी का एक फॉर्मूला तैयार किया । मुजफ्फरनगर में सरेआम उनकी जो फजीहत हुई थी, उसके लिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवार दिवाकर अग्रवाल को जिम्मेदार ठहराकर उन्होंने पहले दिवाकर अग्रवाल से माफी मँगवाने की शर्त रखी । पाँच जनवरी को मेरठ में होने वाली संजीव रस्तोगी की बॉन बॉयज मीटिंग के लिए राकेश सिंघल ने एक पटकथा तैयार की जिसके अनुसार पहले दिवाकर अग्रवाल द्धारा माफी माँगने का कार्यक्रम संपन्न होना था और फिर राकेश सिंघल को उनकी उम्मीदवारी को मान्यता देने की घोषणा करनी थी ।
दिवाकर अग्रवाल ने लेकिन माफी मॉँगने से इंकार कर दिया । उनका कहना रहा कि
मुजफ्फरनगर में जो कुछ भी हुआ, उसमें उनकी कोई भूमिका नहीं थी - जो कुछ भी
हुआ वह डिस्ट्रिक्ट के लोगों के गुस्से का इजहार था, उसके लिए वह माफी
क्यों माँगे । राकेश सिंघल ने तब सुझाव दिया कि माफी न सही, दिवाकर अग्रवाल
खेद तो प्रकट करें ताकि उनके लिए सम्मानजनक वापसी का मौका बन सके । डिस्ट्रिक्ट के कई
प्रमुख लोगों के हस्तक्षेप के बाद फार्मूला यही बना कि दिवाकर अग्रवाल खेद
व्यक्त करेंगे और फिर राकेश सिंघल उनकी उम्मीदवारी को स्वीकार करने की
घोषणा करेंगे ।
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट संजीव
रस्तोगी की बॉन बॉयज मीटिंग में पहले से तैयार पटकथा को क्रियान्वित करने
का माहौल बनाया गया - दिवाकर अग्रवाल ने बड़ी होशियारी से तैयार किये गए
बयान को पढ़ा जिसमें राकेश सिंघल के घावों पर मलहम लगाने की कोशिश की गई थी ।
उसके बाद राकेश सिंघल को अपने हिस्से की भूमिका निभानी थी - 'चोर चोरी
से जाये, हेराफेरी से न जाये' वाली कहावत को चरितार्थ करते हुए राकेश सिंघल
ने लेकिन इस मौके पर भी शरारत करने की कोशिश की । दिवाकर अग्रवाल की
उम्मीदवारी को सीधे-सीधे स्वीकार करने की बजाये उन्होंने इधर-उधर की बातें
करके निकलने की कोशिश की । उनके इस रवैये पर माहौल गर्म होना शुरू हो गया ।
राकेश सिंघल को लेकिन जल्दी ही समझ में आ गया कि दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी को स्वीकार करने के अलावा उनके पास कोई चारा बचा नहीं है - सो, चारों तरफ से घिर जाने के बाद राकेश सिंघल ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी को स्वीकार करने की घोषणा अंततः कर ही दी ।
राकेश सिंघल को लेकिन जल्दी ही समझ में आ गया कि दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी को स्वीकार करने के अलावा उनके पास कोई चारा बचा नहीं है - सो, चारों तरफ से घिर जाने के बाद राकेश सिंघल ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी को स्वीकार करने की घोषणा अंततः कर ही दी ।