चंडीगढ़
। पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर चेतन अग्रवाल सर्विस टैक्स डिपार्टमेंट में
सर्विस टैक्स से जुड़े मामले का प्रतिनिधित्व करने के लिए डिस्ट्रिक्ट के
क्लब्स के प्रेसीडेंट्स से पॉवर ऑफ अटॉर्नी माँगने/लेने के चलते मुसीबत में
फँस गए हैं । कुछेक प्रेसीडेंट्स ने उनसे दोटूक तरीके से पूछा है कि
सभी क्लब्स का प्रतिनिधित्व करने का अधिकार उन्हें किसने दिया है; आखिर
किसके कहने से उन्होंने यह तय कर लिया है कि सर्विस टैक्स डिपार्टमेंट में
डिस्ट्रिक्ट के सभी क्लब्स की तरफ से वह मामले की पैरवी करेंगे । चेतन अग्रवाल बेचारों
को राजेंद्र उर्फ राजा साबू का नाम लेकर प्रेसीडेंट्स के गुस्से से अपने आप
को बचाना पड़ा है । चेतन अग्रवाल ने लोगों को यह बताते हुए शांत करने का
प्रयास किया है कि सर्विस टैक्स के मुद्दे पर राजा साबू ने उन्हें
डिपार्टमेंट में पैरवी करने की जिम्मेदारी दी है । इस मामले में मधुकर
मल्होत्रा व हेमंत अरोड़ा से उनकी मदद करने के लिए कहा गया है ।
प्रेसीडेंट्स के भड़कने का कारण दरअसल यह भी रहा कि पॉवर ऑफ अटॉर्नी के
साथ-साथ चेतन अग्रवाल ने 100 रुपए प्रति सदस्य के हिसाब से पैसे जमा करने
और देने का फरमान भी प्रेसीडेंट्स को सुनाया । उन्होंने बताया कि सुप्रीम
कोर्ट में केस लड़ने के लिए पैसा खर्च करना होगा, और उसी खर्च को पूरा करने
के लिए डिस्ट्रिक्ट के प्रत्येक सदस्य से 100-100 रुपए लेना तय किया गया है
। मजे की बात यह रही कि चेतन अग्रवाल की तरफ से प्रेसीडेंट्स को जो पत्र
मिला, उसमें पॉवर ऑफ अटॉर्नी की तो बात थी, लेकिन पैसों की कोई बात नहीं
थी; इसके अलावा लोगों ने इस बात पर भी गौर किया कि अभी तो मामला चंडीगढ़
डिपार्टमेंट में है, मामला यदि बढ़ा और सुप्रीम कोर्ट तक जाने की बात आई भी -
तो यह अभी बहुत बाद की बात है, इसके लिए अभी से पैसे क्यों लिए जा रहे हैं
? लोगों को लगा कि सर्विस टैक्स मामले की आड़ में कुछेक पूर्व गवर्नर्स
ने पैसे बनाने/कमाने का खेल शुरू कर दिया है । इसीलिए उनका गुस्सा चेतन
अग्रवाल पर फूट पड़ा है । चेतन अग्रवाल यह कह कर अपनी जान बचाने की कोशिश करने के लिए मजबूर हो रहे
हैं कि वह जो कुछ भी कह और कर रहे हैं, उसे कहने और करने के लिए उन्हें
राजा साबू ने निर्देशित किया है ।
उल्लेखनीय है कि
सर्विस टैक्स के मुद्दे पर पिछले कुछ समय से डिस्ट्रिक्ट 3080, यानि राजा
साबू के डिस्ट्रिक्ट में खासा बबाल मचा हुआ है । सर्विस टैक्स डिपार्टमेंट
की तरफ से क्लब्स को सर्विस टैक्स चुकाने के मामले में सम्मन मिले हुए
हैं, और क्लब्स के पदाधिकारियों के लिए यह समझना मुश्किल बना हुआ है कि वह
करें तो क्या करें ? डिस्ट्रिक्ट के पदाधिकारियों व खास लोगों की
बेसिरपैर की बयानबाजियों ने मामले को और गंभीर बना दिया है । औरों को तो
छोड़ो, पूर्व इंटरनेशनल प्रेसीडेंट राजा साबू का रवैया तक इस मामले में गैर
जिम्मेदारी भरा रहा । डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में राजा साबू ने लोगों को
बताया था कि सर्विस टैक्स के मुद्दे पर किसी को भी चिंता करने की जरूरत
नहीं है, क्योंकि उच्च न्यायालय के दो फैसलों में रोटरी के हक में निर्णय
दिए गए हैं । किंतु कुछेक लोगों ने राजा साबू से जब उन दो फैसलों के
डिटेल्स जानने चाहे, जिनका सहारा लेकर वह डिपार्टमेंट को अपना जबाव भेज
सकें - तो राजा साबू बगलें झाँकने लगे । जाहिर है कि राजा साबू ने
डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में लोगों के सामने झूठा दावा किया । उन्हें आखिर
ऐसा झूठ बोलने की जरूरत क्यों पड़ी ? लोगों के लिए यह समझना भी मुश्किल हुआ
कि राजा साबू ने जानबूझ कर झूठ बोला, या उन्हें खुद को ही झूठ ही पता था ? इन
दोनों में से चाहे कोई सी भी बात सच हो, लेकिन राजा साबू के व्यवहार से एक
सच यह जरूर सामने आया कि डिस्ट्रिक्ट के पदाधिकारियों - यहाँ तक कि राजा
साबू ने भी सर्विस टैक्स के मामले को गंभीरता से नहीं लिया ।
मजे
की बात यह है कि एमपी गुप्ता द्धारा बार-बार सचेत किए जाने के बावजूद
डिस्ट्रिक्ट पदाधिकारियों ने सर्विस टैक्स मामले में लापरवाही दिखाई । एमपी
गुप्ता रोटरी क्लब चंडीगढ़ सिटी ब्यूटीफुल के वरिष्ठ सदस्य हैं, और
उन्होंने बार-बार लगातार डिस्ट्रिक्ट पदाधिकारियों को आगाह किया कि सर्विस
टैक्स के मुद्दे को गंभीरता से लेना चाहिए अन्यथा क्लब्स के पदाधिकारियों
को जो परेशानी होगी, वह तो होगी ही - साथ में रोटरी की बदनामी भी होगी । राजा
साबू से लेकर डिस्ट्रिक्ट के दूसरे प्रमुख लोगों का रवैया सर्विस टैक्स को
लेकर जहाँ लापरवाही वाला और विरोधपूर्ण है, वहाँ एमपी गुप्ता ने सर्विस
टैक्स को लेकर संजीदा व सकारात्मक रवैया अपनाया/दिखाया है । एमपी गुप्ता का
कहना है कि रोटेरियंस को सर्विस टैक्स को अपने 'दुश्मन' के रूप में नहीं,
बल्कि अपने 'दोस्त' के रूप में देखना/पहचानना चाहिए; और उससे होने वाले
फायदों पर गौर करना चाहिए । एमपी गुप्ता की दलील है कि अभी शुरू में सर्विस टैक्स को लेकर कुछेक व्यावहारिकतारूपी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है, लेकिन अंततः कुल मिलाकर इसमें सभी को
फायदा मिलेगा । एमपी गुप्ता के अनुसार, सबसे बड़ा फायदा तो यह होगा कि क्लब
व डिस्ट्रिक्ट में हिसाब-किताब रखना जरूरी हो जायेगा, जिससे कि पैसों की
हेराफेरी होना/करना मुश्किल हो जायेगा, और पैसे का सही सही इस्तेमाल हो सकेगा । एमपी गुप्ता की इस तरह की बातों ने डिस्ट्रिक्ट में लोगों को यह समझने का संकेत और मौका दिया है कि डिस्ट्रिक्ट के कुछेक बड़े नेता आखिर क्यों सर्विस टैक्स से डरे हुए नजर आ रहे हैं, और क्यों इससे बचने की वकालत व कोशिश कर रहे हैं ?
उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट में और कुछेक क्लब्स में अक्सर ही पैसों की हेराफेरी को लेकर तरह तरह के सवाल और बबाल सुनने/देखने को मिलते रहते हैं । हो
सकता है कि सभी मामलों में पैसों की हेराफेरी वास्तव में न होती हो; और
हिसाब-किताब छिपाने के पीछे वास्तविक कारण हिसाब-किताब रखने में बरती जा
रही अव्यवस्था ही हो - लेकिन इसके चलते आरोपों/प्रत्यारोपों का जो शोर
सुनाई देता है, वह जिम्मेदार लोगों को 'चोर' व 'ठग' के रूप में पहचान देने
का काम करता है । सर्विस टैक्स के घेरे में आने के बाद, इस तरह की बातें नहीं उठ सकेंगी और जिम्मेदार लोगों को नाहक ही 'चोर' व 'ठग' जैसे शब्दों से निशाना नहीं बनना पड़ेगा । ऐसे में, डिस्ट्रिक्ट के लोगों के लिए
यह समझना मुश्किल हो रहा है कि हिसाब-किताब को नियमित बनाने/बनवाने तथा
पैसों की हेराफेरी को बंद करवाने में सहायक हो सकने वाले सर्विस टैक्स के
घेरे का विरोध क्यों किया जा रहा है ? खास बात यह है कि डिस्ट्रिक्ट के
कुछेक बड़े खास लोग ही सर्विस टैक्स की व्यवस्था में शामिल होने का विरोध
करते हुए देखे जा रहे हैं । इसी से लोगों के बीच शक पैदा हो रहा है कि इसके विरोध के पीछे कहीं लूट-खसोट को बनाए रखने की नीयत तो काम नहीं कर रही है ? इसी शक के चलते, सर्विस टैक्स के मामले का प्रतिनिधित्व करने के लिए पॉवर ऑफ अटॉर्नी माँगने तथा चंदा जुटाने की भूमिका बनाने में चेतन अग्रवाल को लोगों के गुस्से का शिकार होना पड़ा है ।