Thursday, March 10, 2016

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3080 में राजा साबू के 'आशीर्वाद' के बावजूद मधुकर मल्होत्रा क्या प्रवीन चंद्र गोयल की उम्मीदवारी की संभावना को झंझटों में फँसा देने की तैयारी कर रहे हैं

चंडीगढ़ । राजेंद्र उर्फ राजा साबू - पूर्व इंटरनेशनल प्रेसीडेंट राजा साबू के क्लब से डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए नोमीनेटिंग कमेटी द्वारा चुने गए अधिकृत उम्मीदवार जितेंद्र ढींगरा के खिलाफ चैलेंजिंग उम्मीदवार घोषित हो जाने के बावजूद प्रवीन चंद्र गोयल अपनी चुनावी जीत को लेकर आशंकित बने हुए हैं । अपने नजदीकियों के बीच उन्होंने आशंका भरे सवाल किए हैं कि जिन पूर्व गवर्नर्स के भरोसे वह चुनावी मैदान में कूद पड़े हैं, वह पूर्व गवर्नर्स उन्हें चुनाव जितवा भी पायेंगे क्या ? अपनी आशंका, अपने डर और अपने सवाल को तर्कपूर्ण बनाने के लिए उन्होंने उदाहरण भी दिया कि इन्हीं पूर्व गवर्नर्स ने उन्हें अधिकृत उम्मीदवार चुनवाने को जिम्मा लिया था, लेकिन अपनी तमाम कोशिशों व तिकड़मों के बावजूद यह उन्हें अधिकृत उम्मीदवार चुनवा नहीं सके । प्रवीन चंद्र गोयल के पास डीसी बंसल का उदाहरणरूपी एक तर्क और है : प्रवीन चंद्र गोयल का कहना है कि डिस्ट्रिक्ट के सभी तुर्रमखाँ पूर्व गवर्नर्स ने डीसी बंसल को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी चुनवाने/बनवाने का बीड़ा उठाया था, लेकिन अपनी बेवकूफियों व हवाई दावों के चलते यह लोग अभी तक तो डीसी बंसल को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी नहीं बनवा सके हैं । प्रवीन चंद्र गोयल को डर है कि कहीं उनका हाल भी डीसी बंसल जैसा न हो ।
प्रवीन चंद्र गोयल को सबसे ज्यादा डर मधुकर मल्होत्रा से है । मजे की बात यह है कि मधुकर मल्होत्रा ही हैं जिन्होंने प्रवीन चंद्र गोयल को चुनाव जितवाने का बीड़ा अपने सिर उठाया हुआ है । लेकिन प्रवीन चंद्र गोयल उनकी ही भूमिका को लेकर आशंकित हैं । अपने नजदीकियों के बीच प्रवीन चंद्र गोयल ने आशंका जताई है कि मधुकर मल्होत्रा विश्वास करने योग्य व्यक्ति नहीं हैं - वह कहते कुछ हैं और करते कुछ और हैं; इसलिए उनके कहने पर विश्वास करने का मतलब है अपने पैरों पर खुद कुल्हाड़ी मारना होगा । मधुकर मल्होत्रा को लेकर प्रवीन चंद्र गोयल की आशंका और उनका डर इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि मधुकर मल्होत्रा और प्रवीन चंद्र गोयल एक ही क्लब में हैं और क्लब में परस्पर विरोधी खेमे में सक्रिय रहते आए हैं; दोनों ही एक दूसरे को नीचा दिखाने और पीछे धकेलने के प्रयास करते रहे हैं । मधुकर मल्होत्रा को जो लोग जानते हैं, वह मानते हैं और कहते भी हैं कि मधुकर मल्होत्रा कभी नहीं चाहेंगे कि उनके क्लब में कोई और - और खासकर क्लब में उनके विरोधी खेमे का कोई सदस्य डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बने । इसी कारण से, नोमीनेटिंग कमेटी के सामने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद लिए जिन उम्मीदवारों के नाम सामने थे - उनमें मधुकर मल्होत्रा का समर्थन प्रवीन चंद्र गोयल की बजाए नवजीत सिंह औलख को था । लोगों ने उनसे पूछा भी था कि अपने ही क्लब के प्रवीन चंद्र गोयल की बजाए वह दूसरे क्लब के नवजीत सिंह औलख की उम्मीदवारी का समर्थन क्यों कर रहे हैं ? मधुकर मल्होत्रा की तरफ से हर किसी को यही सुनने को मिला था कि प्रवीन चंद्र गोयल उनके क्लब के सदस्य जरूर हैं, लेकिन वह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनने लायक नहीं हैं । प्रवीन चंद्र गोयल को पक्का विश्वास है कि नोमीनेटिंग कमेटी में उनका जो खेल खराब हुआ और वह तमाम 'व्यवस्था' के बावजूद अधिकृत उम्मीदवार नहीं चुने जा सके, तो इसके लिए मधुकर मल्होत्रा ही जिम्मेदार हैं ।
प्रवीन चंद्र गोयल जिन लोगों से मधुकर मल्होत्रा को लेकर यह रोना रो रहे हैं, उनमें से कुछेक ने उन्हें यह कहते हुए ढाँढस बंधाने की कोशिश की है कि उन्हें डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी चुनवाना राजा साबू का उद्देश्य है, और मधुकर मल्होत्रा को तो राजा साबू के उद्देश्य को कामयाब बनाने की जिम्मेदारी मिली है - मधुकर मल्होत्रा भले ही आप को पसंद न करते हों, और न चाहते हों कि आप डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनें; लेकिन राजा साबू के उद्देश्य के खिलाफ जाना उनके बस की बात नहीं होगी, इसलिए आपको चिंता करने की जरूरत नहीं है । ऐसा कहने वालों को प्रवीन चंद्र गोयल से सुनने को मिला है कि आप मधुकर मल्होत्रा को नहीं जानते, वह बड़ी ऊँची चीज हैं । वह क्या कहेंगे और क्या करेंगे, इसे समझना आसान नहीं है । प्रवीन चंद्र गोयल को आशंका और डर दरअसल इस कारण से है क्योंकि वह देख रहे हैं कि चुनावी प्रक्रिया को लेकर असमंजस बना हुआ है और किसी के सामने यह स्पष्ट नहीं है कि चैलेंज करने तथा कॉन्करेंस देने के लिए समय-सीमा क्या है और चुनाव कब होगा ? प्रवीन चंद्र गोयल का कहना है कि जब सब कुछ तय है और राजा साबू ने उन्हें डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी चुनवाने का फरमान जारी कर दिया है, तथा सत्ता पक्ष के सभी लोग उनका फरमान पूरा करने के लिए तैयार हो गए हैं - तब फिर चुनावी प्रक्रिया को नियमानुसार और जल्दी से जल्दी पूरा क्यों नहीं करवा लिया जा रहा है, और चुनावी प्रक्रिया को लेकर नाहक ही मनमानी क्यों की जा रही है ? प्रवीन चंद्र गोयल तथा उनके शुभचिंतकों को लग रहा है कि चुनावी प्रक्रिया को लेकर की जा रही यह मनमानी उनका काम बिगाड़ सकती है, जैसा कि डीसी बंसल के मामले में हुआ है । उल्लेखनीय है कि डीसी बंसल के मामले में नाहक ही ऐसी ऐसी बेवकूफियाँ की गईं, जो उल्टी पड़ीं और बनता बनता काम बिगड़ गया । प्रवीन चंद्र गोयल को आशंका है तथा उन्हें डर है कि इस बार भी वैसा ही कुछ किया जा रहा है - और इस बार तो ऐसा लग रहा है जैसे कि जानबूझ कर किया जा रहा है । प्रवीन चंद्र गोयल इसीलिए मधुकर मल्होत्रा की भूमिका को लेकर सशंकित और डरे हुए हैं ।
इस वर्ष के चुनाव को लेकर चुनावी-प्रक्रिया के बाबत जो मनमानी होती हुई नजर आ रही है, उसमें सुना यह जा रहा है कि सत्ता खेमे के नेता इस वर्ष होने वाले वर्ष 2018-19 के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के चुनाव से पहले वर्ष 2017-18 के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का चुनाव करवाना चाहते हैं - और इसके लिए वर्ष 2018-19 के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के चुनाव की प्रक्रिया को मनमाने तरीके से लंबा खींच देना चाहते हैं । वर्ष 2017-18 के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद पर सत्ता खेमे की तरफ से डीसी बंसल का 'अधिकार' देखा जा रहा है, लेकिन मधुकर मल्होत्रा उनकी जगह नवजीत सिंह औलख को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर चुनवाना चाहते हैं । प्रवीन चंद्र गोयल तथा उनकी उम्मीदवारी के समर्थकों को लगता है कि वर्ष 2017-18 के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का चुनाव पहले करवाने का फार्मूला मधुकर मल्होत्रा का ही है, और इस फार्मूले के पीछे मधुकर मल्होत्रा की नीयत वर्ष 2018-19 के लिए उनकी जीत की संभावना को धूमिल करना और या झमेले में फँसा देने की है । सत्ता खेमे के नेताओं के लिए इस बात पर यकीन करना हालाँकि मुश्किल तो हो रहा है कि मधुकर मल्होत्रा ऐसा कोई काम करेंगे, जिससे कि राजा साबू की और ज्यादा फजीहत हो - लेकिन पिछले करीब एक वर्ष में राजा साबू की जैसी छीछालेदर हुई है, उसे ध्यान में रखते हुए लोगों को लग रहा है कि राजा साबू को जब अपनी इज्जत की खुद ही परवाह नहीं है, तो फिर मधुकर मल्होत्रा ही उनकी परवाह क्यों करेंगे ? इसी तरह की बातों ने, डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी राजनीति के संदर्भ में अनुकूल स्थितियों के बावजूद प्रवीन चंद्र गोयल को डराया हुआ है और मधुकर मल्होत्रा के इरादों में उन्हें अपनी उम्मीदवारी की संभावना झंझटों में फँसती/पड़ती नजर आ रही है । मजबूरी लेकिन उनकी यह है कि वह करें भी तो आखिर क्या करें ?