लुधियाना । सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए प्रस्तुत पवन आहुजा
की उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने के काम में पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर
हरीश दुआ ने हाल के दिनों में जिस तरह की सक्रियता दिखाई है, उससे
डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति से जुड़े कुछेक ऐसे प्रसंग लोगों को याद आ
रहे हैं - जो मौजूदा चुनावी लड़ाई में पवन आहुजा की उम्मीदवारी को
मनोवैज्ञानिक लाभ पहुँचाने का काम कर रहे हैं । इस संदर्भ में सबसे
मजेदार तथ्य यह है कि पवन आहुजा की तरह खुद हरीश दुआ भी डिस्ट्रिक्ट
कॉन्फ्रेंस की कॉल निकलने के बाद अचानक तरीके से उम्मीदवार बने थे, और
कैम्पेन के लिए कम समय मिलने के बावजूद चुनाव जीते थे । यानि कैम्पेन के
लिए कम समय मिलने के बावजूद चुनावी लड़ाई को कैसे जीता जा सकता है, इसका
हरीश दुआ को सत्यापित किया गया व्यावहारिक अनुभव है, जिसका फायदा स्वाभाविक
रूप से पवन आहुजा को मिलेगा ही । उल्लेखनीय है कि छह वर्ष पहले हरीश
दुआ का चुनाव मौजूदा डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रनवीर उप्पल से हुआ था - रनवीर
उप्पल लायन वर्ष के शुरू से ही उम्मीदवार बने हुए थे, और एक समय ऐसा लगता
था कि वह निर्विरोध ही चुन लिए जायेंगे; किंतु चुनाव के दिन नजदीक आते आते
डिस्ट्रिक्ट में ऐसा माहौल बना कि हरीश दुआ नाटकीय तरीके से उम्मीदवार बने
और चुनाव भी जीत गए । छह वर्ष पहले का घटना चक्र इस वर्ष जिस तरह से
दोहराया जाता नजर आ रहा है, उसमें बिरिंदर सिंह सोहल के लिए बदकिस्मती की
बात यह है कि उन्हें रनवीर उप्पल से यह सीखने को भी नहीं मिल रहा है कि
अचानक से जब आपके रास्ते में कोई आ जाता है, तो उससे निपटने के लिए क्या
क्या गलतियाँ नहीं करना चाहिए ? बिरिंदर सिंह सोहल की इससे बड़ी बदकिस्मती
और क्या होगी कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में जो रनवीर उप्पल लायन वर्ष
के शुरू से उनके साथ थे, और हर संभव तरीके से उनकी उम्मीदवारी की मदद कर
रहे थे - चुनाव से ठीक पहले उनके खिलाफ हो गए हैं ।
बिरिंदर
सिंह सोहल के लिए मुसीबत की बात यह रही कि उनकी उम्मीदवारी की राह में
काँटे बोने का काम खुद उनके पिता केएस सोहल तथा उनके राजनीतिक गुरू एचजेएस
खेड़ा ने किया है । उनके विरोधियों का ही नहीं, उनके शुभचिंतकों का भी मानना
और कहना है कि बिरिंदर सिंह सोहल तो व्यावहारिक बुद्धि रखते हैं और सभी को
साथ लेकर चलना चाहते हैं, किंतु अपने पिता और अपने राजनीतिक गुरू की
हरकतों के चलते उम्मीदवार के रूप में वह डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच
शर्मिंदगी वाली स्थिति में पहुँच/फँस गए हैं । कहने को तो बिरिंदर सिंह
सोहल मौजूदा लायन वर्ष के शुरू से ही उम्मीदवार हैं, लेकिन एक उम्मीदवार के
रूप में वह कभी भी लोगों के बीच नहीं गए और न ही वह लोगों से मिले ही ।
क्लब्स के लोगों की बात तो जाने दीजिए, कई एक पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स
तक का कहना है कि सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के उम्मीदवार के रूप
में बिरिंदर सिंह सोहल न तो कभी उनसे मिले, और न ही उन्हें कभी फोन तक किया
। दरअसल वह पूरी तरह आश्वस्त रहे कि उनके पिता और उनके राजनीतिक गुरू
ही उनकी नैय्या पार लगवा देंगे, और उन्हें कुछ करने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी
। उनके पिता और उनके राजनीतिक गुरू ने लेकिन लोगों को जोड़ने की बजाए लोगों
को अपने से दूर करने का काम किया । पिता और गुरू के भरोसे रहने के कारण ही
बिरिंदर सिंह सोहल का क्लब्स के लोगों व पदाधिकारियों के प्रति तो
उपेक्षापूर्ण रवैया था ही, पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स तक को वह अपमानित
करने से नहीं चूके । इसका प्रमाण तब मुखर रूप में सामने आया जब बिरिंदर
सिंह सोहल की तरफ से कुछेक पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स को तो महँगे गिफ्ट
मिले, जबकि अधिकतर पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स को सस्ते किस्म के गिफ्ट
देकर टरका दिया गया । पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स को इस तरह से अपमानित
करने को लेकर जब बिरिंदर सिंह सोहल से सवाल पूछे गए तो उनकी तरफ से यही सुनने को मिला कि उन्होंने तो वही किया, जो करने के लिए उनसे कहा गया ।
बिरिंदर
सिंह सोहल की उम्मीदवारी का परिवारवाद का वास्ता देकर पूर्व डिस्ट्रिक्ट
गवर्नर प्रीत कँवल सिंह ने जब विरोध किया था, तब केएस सोहल ने सिख होने का
वास्ता देकर प्रीत कँवल सिंह को मनाने का प्रयास किया था । उनके प्रयास पर
प्रीत कँवल सिंह ने लेकिन भारी बबाल मचा दिया था और उन्होंने सवाल उठाया था
कि लायनिज्म में हम परिवारवाद और सिखवाद चलायेंगे क्या ? इस मुद्दे पर
प्रीत कँवल सिंह को लोगों के बीच जब अच्छी शाबाशी व प्रशंसा मिली और केएस
सोहल की फजीहत हुई, तो केएस सोहल लोगों से माफी माँगने के लिए मजबूर हुए ।
यहाँ इस बात को याद करना प्रासंगिक होगा कि केएस सोहल तीन बार हारने/असफल
रहने के बाद, चौथी बार में कामयाब हो सके थे - जो इस बात का प्रमाण है कि
केएस सोहल को लोगों के बीच अपने लिए सम्मान और समर्थन जुटाने की कला नहीं
आती है । बिरिंदर सिंह सोहल के शुभचिंतकों का कहना है कि बिरिंदर सिंह
सोहल को अपने पिता की इस कमजोरी का पता होना चाहिए था, और गवर्नरी के चुनाव
में उनके साथ जो हुआ था उससे सबक लेकर अपनी उम्मीदवारी की बागडोर पूरी तरह
से अपने पिता को नहीं सौंपना चाहिए था । बिरिंदर सिंह सोहल के लिए
बदकिस्मती की बात लेकिन यह है कि उन्हें पिता तो पिता, गुरू भी अपनी
उम्मीदवारी के दुश्मन ही मिले । उनके राजनीतिक गुरु एचजेएस खेड़ा उनकी
उम्मीदवारी को दाँव पर लगा कर अपने जुगाड़ में लग गए - उन्होंने डिस्ट्रिक्ट
गवर्नर रनवीर उप्पल पर पहले तो दबाव बनाया कि वह उन्हें कन्वेंशन चेयरमैन
बनाए; रनवीर उप्पल ने जब उन्हें बताया कि कन्वेंशन चेयरमैन तो वह बना चुके
हैं, तो एचजेएस खेड़ा ने खुद को एमओसी बनाने की माँग रख दी - रनवीर उप्पल जब
इसके लिए भी राजी नहीं हुए तो एचजेएस खेड़ा ने उन्हें धमकी दे दी कि
बिरिंदर सिंह सोहल की तरफ से डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में जो सहयोग करने का
वायदा किया गया है, वह पूरा नहीं किया जायेगा और डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस को
खराब कर दिया जायेगा । इससे साफ हुआ कि बिरिंदर सिंह सोहल डिस्ट्रिक्ट
कॉन्फ्रेंस में जो पैसे खर्च करने वाले थे, उनके बदले में एचजेएस खेड़ा अपने
लिए पद जुगाड़ने में लगे थे - और उसमें असफल रहने पर उन्होंने ऐसा माहौल
पैदा कर दिया, जिससे कि बिरिंदर सिंह सोहल की बसी-बसाई 'दुनिया' उजड़ गई ।
केएस
सोहल और एचजेएस खेड़ा ने बिरिंदर सिंह सोहल के लिए जो मुसीबत खड़ी की, उससे
उबरने के लिए बिरिंदर सिंह सोहल को अब लोगों से मिलने-जुलने के लिए मजबूर
होना पड़ रहा है - उनकी इस मजबूरी की लोग लेकिन खिल्ली उड़ा रहे हैं । वह
जहाँ कहीं जाते हैं, और या किसी को फोन करते हैं तो कई जगह उन्हें सुनने को
मिलता है कि 'अब हमारी याद आई है' या 'अब क्यों बात रहे हो' या 'अब क्या लेने आए हो' आदि-इत्यादि ।
एचजेएस खेड़ा के रवैये से बिरिंदर सिंह सोहल के लिए जो मुसीबत खड़ी हुई है, उसमें पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर
हरीश दुआ की सक्रियता से और इजाफा हुआ है । एचजेएस खेड़ा के रवैये से दरअसल
डिस्ट्रिक्ट के कई पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स बुरी तरह खफा हैं, क्योंकि
एचजेएस खेड़ा समय समय पर उन्हें तरह तरह से अपमानित करते रहे हैं; बिरिंदर
सिंह सोहल की उम्मीदवारी के अभियान में भी कई पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स
को अपमानित होना पड़ा है - इसलिए उन सभी को अब एचजेएस खेड़ा से बदला लेने का मौका नजर आ रहा है । हरीश दुआ की चूँकि मल्टीपल में और उससे भी ऊपर की लायन-राजनीति में पकड़ व
पहचान बनी हुई है, इसलिए एचजेएस खेड़ा से निपटने की इच्छा रखने वाले लोगों
ने हरीश दुआ को समर्थन देकर उनके हाथ मजबूत किए हुए हैं । उल्लेखनीय है कि
प्रेसीडेंशियल अवॉर्ड प्राप्त हरीश दुआ मल्टीपल लॉयन क्वेस्ट चेयरमैन हैं,
जो पहले एचजेएस खेड़ा होते थे । इसके अलावा वह मल्टीपल काउंसिल के इस वर्ष
के चुनाव में नोमीनेशन कमेटी के चेयरमैन बनाए गए हैं । तीन वर्ष पहले, उनके गवर्नर-काल में डिस्ट्रिक्ट ब्लड बैंक को लेकर जो
काम हुआ था, जिसके उद्घाटन समारोह में नरेश अग्रवाल तथा अरुणा ओसवाल जैसे
बड़े नेताओं व पदाधिकारियों की उपस्थिति संभव हुई थी - उसके चलते हरीश दुआ
को डिस्ट्रिक्ट व मल्टीपल के लायन सदस्यों के बीच ही नहीं, बल्कि उससे भी ऊपर के लायन नेताओं व पदाधिकारियों की प्रशंसा मिली है । प्रेसीडेंशियल अवॉर्ड इसी प्रशंसा का प्रतिफल व सुबूत है । हरीश दुआ की यह प्रशंसा व
सफलता लेकिन चूँकि एचजेएस खेड़ा को पसंद नहीं आई, इसलिए उन्होंने हरीश दुआ
को डिस्ट्रिक्ट में अलग-थलग करने/रखने का प्रयास किया और उनके खिलाफ
षड्यंत्र करते रहे । एचजेएस खेड़ा के एक बड़े शिकार रहे हरीश दुआ को पवन
आहुजा की उम्मीदवारी की बागडोर, एचजेएस खेड़ा से निपटने की इच्छा रखने वाले
लोगों ने यही सोच कर सौंपी है कि हरीश दुआ ही इस चुनावी लड़ाई को प्रभावी व
निर्णायक तरीके से संयोजित कर सकते हैं । कुछेक लोगों को शुरू में
हालाँकि शक था कि अपने बिजनेस की व्यस्तताओं के बीच हरीश दुआ के लिए चुनावी
लड़ाई में सक्रिय भूमिका निभा सकना सचमुच संभव होगा क्या; किंतु हरीश दुआ
ने जिस तरह से पवन आहुजा की उम्मीदवारी के पक्ष में काम करना शुरू किया है,
उससे डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति का सारा नजारा बदल गया है ।