Monday, March 28, 2016

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए अशोक जैन की उम्मीदवारी के जरिए रमेश अग्रवाल ने शरत जैन को अलग-थलग करके सत्ता खेमे में फूट डालने तथा सत्ता खेमे से जुड़े लोगों को हतोत्साहित करने का जो काम किया है, उससे दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थक उत्साहित हुए हैं

नई दिल्ली । रमेश अग्रवाल ने अपने ही क्लब के अशोक जैन को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद का उम्मीदवार बना कर सत्ता खेमे के अधिकतर नेताओं को जिस तरह नाराज कर लिया है, उसके कारण अशोक जैन की उम्मीदवारी अपने शुरुआती चरण में ही मुसीबत में घिरती नजर आ रही है । इस मुसीबत में शरत जैन के रवैये के कारण और इजाफा और हो रहा है । शरत जैन यूँ तो भले व्यक्ति हैं, और किसी के भी खिलाफ सीधे सीधे कुछ कहने से बचते हैं - लेकिन अशोक जैन की उम्मीदवारी को लेकर जाहिर होने वाले उनके हाव-भाव लोगों को यह अहसास करवा रहे हैं कि अशोक जैन की उम्मीदवारी को लेकर वह खुश नहीं हैं । क्लब के उनके नजदीकियों का कहना है कि शरत जैन के अशोक जैन के साथ हालाँकि पुराने और गहरे संबंध हैं, लेकिन इस समय अशोक जैन की उम्मीदवारी जिस तरह आई है - उसमें शरत जैन को अपनी इम्पोर्टेंस घटती हुई नजर आ रही है, और इसलिए ही वह अशोक जैन की उम्मीदवारी को अपने खिलाफ रमेश अग्रवाल के एक षड्यंत्र के रूप में देख रहे हैं । कुछेक लोगों का तो यहाँ तक कहना है कि सत्ता खेमे के लोगों के बीच अशोक जैन की उम्मीदवारी के खिलाफ जो बातें हो रही हैं, उन्हें उकसाने व भड़काने का काम शरत जैन ही कर रहे हैं । कहा/बताया जा रहा है कि शरत जैन सत्ता खेमे के लोगों को बता/समझा रहे हैं कि अशोक जैन के उम्मीदवार रहते दीपक गुप्ता की चुनावी जीत और आसान हो जाएगी । सत्ता खेमे के लोगों को भी लग रहा है कि दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी में इस बार अलग-अलग कारणों से काफी दम दिखेगा/रहेगा, इसलिए उनका मुकाबला करने के लिए सत्ता खेमे को एक विशेष रणनीति अपनानी होगी । शरत जैन सत्ता खेमे के लोगों के दिल-दिमाग में यह बैठाने का प्रयास करते हुए सुने जा रहे हैं कि अशोक जैन को उम्मीदवार बना कर वास्तव में दीपक गुप्ता का रास्ता आसान बनाया जा रहा है; और यह सब रमेश अग्रवाल सिर्फ उन्हें (यानि शरत जैन को) क्लब में अलग-थलग करने के लिए कर रहे हैं । दरअसल अशोक जैन की उम्मीदवारी के कारण शरत जैन की गवर्नरी का सारा 'प्रभाव' धूल में मिलता हुआ दिख रहा है । 
उल्लेखनीय है कि शरत जैन की उम्मीदवारी को लेकर लोगों के बीच दो प्रभाव 'बन' रहे थे : एक प्रभाव शो-बाजी का था, और दूसरे प्रभाव का संदेश राजनीतिक था । शरत जैन की गवर्नरी के संबंध में अभी तक जो कार्यक्रम हुए हैं, उनमें खास तरह की कलात्मक डिजाइन देखी गई और इसके लिए लोगों के बीच शरत जैन की सोच व व्यावहारिकता की तारीफ हुई है । अशोक जैन की उम्मीदवारी के चलते इस तारीफ पर अब लेकिन ब्रेक लग गया है । शरत जैन का अब जो भी कार्यक्रम अच्छे से होगा, उसका श्रेय अशोक जैन के खाते में जाएगा - क्योंकि लोग तो यही मानेंगे/समझेंगे कि अशोक जैन लोगों के बीच अपनी उम्मीदवारी की छाप छोड़ने के लिए कार्यक्रम अच्छे से कर रहे हैं । ऐसे में, शरत जैन के लिए अपनी गवर्नरी की शो-बाजी दिखा पाना मुश्किल हो जाएगा । शरत जैन की गवर्नरी में लोगों को डिस्ट्रिक्ट की राजनीति भी बदलती हुई दिख रही थी : अनुमान लगाया जा रहा था कि शरत जैन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में रमेश अग्रवाल की चूँकि वैसी गुलामी नहीं करेंगे, जैसी गुलामी जेके गौड़ ने उनकी की है - इसलिए शरत जैन और रमेश अग्रवाल के बीच दूरियाँ बनेंगी/बढ़ेंगी, और इसका असर डिस्ट्रिक्ट के राजनीतिक समीकरणों पर भी पड़ेगा । किंतु अशोक जैन की उम्मीदवारी से इसकी संभावना घट जाएगी । अशोक जैन की उम्मीदवारी की आड़ में रमेश अग्रवाल के लिए शरत जैन को उनकी गुलामी करने के लिए मजबूर करना आसान जाएगा । शरत जैन का 'उससे' इंकार करना अशोक जैन की उम्मीदवारी को नुकसान पहुँचाने के रूप में देखा - या दिखाया जाएगा, और तब रमेश अग्रवाल के लिए शरत जैन को घेरना और भी आसान हो जाएगा । इसीलिए शरत जैन और उनके समर्थकों को लगता है कि रमेश अग्रवाल ने अशोक जैन को सचमुच डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनवाने के लिए नहीं, बल्कि शरत जैन पर सवारी गाँठने के लिए उम्मीदवार बनाया है ।
उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की अगली 'लड़ाई' शुरू होते ही रमेश अग्रवाल ने सत्ता खेमे की तरफ से दिल्ली के उम्मीदवार की आवाज लगाना शुरू कर दिया था । उनकी इस आवाज का सत्ता खेमे के बाकी लोगों ने भी समर्थन ही किया था । सत्ता खेमे के नेताओं का एकमात्र उद्देश्य दरअसल दीपक गुप्ता को 'घेरने' का था - जिसके जरिए उन्हें मुकेश अरनेजा और सतीश सिंघल को किनारे/ठिकाने लगाए रखने का विश्वास था । इस 'उद्देश्य' और 'विश्वास' को दिल्ली के उम्मीदवार के जरिये पाने की रणनीति को पूरी तरह से परफेक्ट माना/पहचाना गया था । सत्ता खेमे के कुछेक नेताओं ने दिल्ली के उम्मीदवार के रूप में रोटरी क्लब दिल्ली नॉर्थ के वरिष्ठ सदस्य ललित खन्ना को सक्रिय होने के लिए इशारा कर दिया था, और ललित खन्ना ने उम्मीदवार के रूप में काम करना तथा डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच पैठ बनाना शुरू कर दिया था । ललित खन्ना की उम्मीदवारी को सैद्धांतिक रूप से भी और व्यावहारिक रूप से भी उपर्युक्त समझा गया था । ललित खन्ना की व्यावहारिकता को लेकर कुछेक लोगों को कुछ शिकायत जरूर थी, लेकिन उनकी उम्मीदवारी का सैद्धांतिक पक्ष इतना स्ट्रॉंग है कि व्यावहारिकता संबंधी शिकायत हल्की पड़ गई । ललित खन्ना चूँकि मुकेश अरनेजा के क्लब के हैं, इसलिए माना जा रहा है कि ललित खन्ना के उम्मीदवार होने की स्थिति में मुकेश अरनेजा के हाथ बँध जायेंगे - और इससे सत्ता खेमे को एक अलग तरह की ताकत मिलेगी । सत्ता खेमा यह ताकत पाने की तरफ बढ़ता, उससे पहले रमेश अग्रवाल ने अशोक जैन की उम्मीदवारी के जरिए सत्ता खेमे में फूट डालने तथा सत्ता खेमे से जुड़े लोगों को हतोत्साहित करने का काम कर दिया ।
अशोक जैन की उम्मीदवारी के चलते सत्ता खेमे में पड़ी इस फूट ने तथा उनके बीच फैली निराशा ने दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थकों व शुभचिंतकों को उत्साहित किया है; उन्हें लग रहा है कि ललित खन्ना की उम्मीदवारी के चलते उन्हें जो खतरा महसूस हो रहा था - अशोक जैन की उम्मीदवारी ने उस खतरे को दूर कर दिया है, तथा दीपक गुप्ता की राह को आसान बना दिया है । दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के कुछेक शुभचिंतकों को हालाँकि यह भी लगता है कि अशोक जैन की उम्मीदवारी को लेकर सत्ता खेमे में जिस तरह की फूट और निराशा दिख रही है, और सत्ता खेमे के कई एक लोग अभी भी ललित खन्ना की उम्मीदवारी को हवा देने में लगे हैं - उससे अभी सत्ता खेमे की राजनीति के प्रति निश्चिन्त नहीं हुआ जा सकता है, और इसलिए दीपक गुप्ता की लापरवाही उनके लिए घातक भी साबित हो सकती है । रमेश अग्रवाल, शरत जैन और अशोक जैन के क्लब के लोगों का ही कहना है कि अशोक जैन को यदि लगेगा कि सत्ता खेमे के सभी लोगों का समर्थन उन्हें नहीं मिल रहा है, और सत्ता खेमे के लोग पूरे मन व तैयारी के साथ उनकी उम्मीदवारी के लिए काम नहीं कर रहे हैं, तो वह अपनी उम्मीदवारी वापस भी ले सकते हैं । इस तरह, अशोक जैन की उम्मीदवारी ने सत्ता खेमे की राजनीति को ही नहीं, बल्कि डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति को भी अनिश्चय के भँवर में फँसा दिया है ।