गाजियाबाद । विनय मित्तल को डिस्ट्रिक्ट ही नहीं, बल्कि मल्टीपल में मिली ऐतिहासिक जीत के साथ फर्स्ट
वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में शिव कुमार चौधरी की और सेकेंड वाइस
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के उनके उम्मीदवार के रूप में रेखा गुप्ता की जो
चुनावी दुर्गति हुई है, उसने मल्टीपल की चुनावी राजनीति में
दिलचस्पी रखने वाले विभिन्न डिस्ट्रिक्ट्स के नेताओं को खासा हैरान किया है
। मजे की बात यह है कि उनकी इस हैरानी के लिए खुद शिव कुमार चौधरी ही
जिम्मेदार हैं । मल्टीपल के दूसरे डिस्ट्रिक्ट्स के नेताओं के अनुसार, शिव
कुमार चौधरी दरअसल उनके सामने अपनी राजनीति की और लोगों के बीच अपने
असर/प्रभाव की ऐसी ऐसी तथा इतनी डींगें हाँकते/मारते रहे हैं कि अब जब
असलियत सामने आई तो पता चला कि शिव कुमार चौधरी के लिए किसी को चुनाव जितवा
पाना तो दूर की बात, उनका खुद का जीतना मुश्किल भरा है । विरोधी पक्ष
के कुछेक लोगों को अब इस बात का अफसोस हो रहा है कि उन्होंने शिव कुमार
चौधरी के खिलाफ नेगेटिव वोट डालने/डलवाने का कैम्पेन क्यों नहीं चलाया ?
उन्हें लग रहा है कि वह यदि थोड़ी सी भी दिलचस्पी लेते तो शिव कुमार चौधरी
के खिलाफ 51 प्रतिशत से अधिक वोट पड़ जाते । बिना कोई विरोधी कैम्पेन चलाए
ही, स्वतःस्फूर्त तरीके से लोगों के बीच पनपे/पैदा हुए विरोध के चलते शिव
कुमार चौधरी को जब इतने नेगेटिव वोट पड़ गए कि वह गवर्नर पद 'हारने' से बस
बाल बाल ही बच सके - तो समझा जा सकता है कि लोगों के बीच उनके प्रति कितनी
नापसंदगी है और उनका कितना विरोध है । मल्टीपल के दूसरे डिस्ट्रिक्ट्स
के नेताओं व पदाधिकारियों को यह जान कर तो और भी हैरानीभरा झटका लगा है कि
शिव कुमार चौधरी तथा सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के उनके उम्मीदवार
को पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर सुशील अग्रवाल तथा आपने आप को भावी इंटरनेशनल
डायरेक्टर के रूप में 'देख' रहे अरविंद संगल व अरुण मित्तल सहित
डिस्ट्रिक्ट के कई अन्य तुर्रमखाँ पूर्व गवर्नर्स सहित मौजूदा डिस्ट्रिक्ट
गवर्नर सुनील निगम का खुला व सक्रिय समर्थन मिल रहा था - लेकिन फिर भी वह
रिकॉर्ड-तोड़ चुनावी दुर्गति का शिकार हुए ।
मल्टीपल के
दूसरे डिस्ट्रिक्ट्स के नेताओं को शिव कुमार चौधरी की इस रिकॉर्ड-तोड़
चुनावी दुर्गति में दरअसल इसलिए दिलचस्पी हुई है, क्योंकि शिव कुमार चौधरी
ने अपने आप को मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन की चुनावी राजनीति में इन्वॉल्व
किया हुआ था, और वह यह इंप्रेशन देने का प्रयास कर रहे थे कि मल्टीपल
काउंसिल चेयरमैन के चुनाव में वह बड़ी और निर्णायक भूमिका निभायेंगे । मल्टीपल
के दो-तीन फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स के साथ ग्रुप 'बना' कर वह
मल्टीपल की राजनीति में अपनी भूमिका 'बनाने' का प्रयास कर रहे थे । शिव
कुमार चौधरी के इस प्रयास के भरोसे ही सुनील निगम भी मल्टीपल काउंसिल
चेयरमैन बनने का 'सपना' देखने लगे थे । डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति को
अपनी मुट्ठी में करने की सुनील निगम और शिव कुमार चौधरी की तिकड़मी कोशिशों
को लेकिन जैसा करारा झटका लगा है, उससे मल्टीपल की इनकी राजनीति भी चौपट हो
गई है ।
सुनील निगम और शिव कुमार चौधरी की जोड़ी तथा
उनके समर्थक तुर्रमखाँ नेताओं को डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में जो जोर
का झटका लगा है, वह सिर्फ वोटों की गिनती के मामले में मिली हार ही नहीं
है - बल्कि सोच की, मानसिकता की और रणनीति के मामले में मिली हार भी है ।
इस 'हार' का पहला संकेत तभी मिल गया था, जब विनय मित्तल के मुकाबले पर रेखा
गुप्ता को उम्मीदवार के रूप में लाया गया । इस 'फैसले' की प्रेरणा के
पीछे विनय मित्तल की स्थिति व हैसियत को कम आँकने की 'मूर्खता' काम कर रही
थी । सिर्फ इस तथ्य को ही अनदेखा नहीं किया गया कि विनय मित्तल पिछले कई
वर्षों से डिस्ट्रिक्ट की चुनावी लड़ाई के मैनेजमेंट के मुख्य साझीदार रहे
हैं, और इस नाते से चुनावी मोर्चे की 'संकरी गलियों' से तथा चुनावी लड़ाई को
प्रभावित करने वाले उतार-चढ़ावों से भी अच्छे से परिचित हैं - बल्कि इस
सच्चाई से भी ऑंखें मूँद ली गईं कि विनय मित्तल और मुकेश गोयल की जोड़ी एक
और एक दो का नहीं, बल्कि ग्यारह का जोड़ बनाती है । अनीता गुप्ता, एलएम
जखवाल व सुनील जैन जैसे 'खाड़कू' टाइप के नेताओं ने विनय मित्तल की
उम्मीदवारी को और ताकत दे दी थी । रेखा गुप्ता की उम्मीदवारी को बड़बोले शिव
कुमार चौधरी का समर्थन था, जो डिस्ट्रिक्ट के कई एक 'फूफा' टाइप के पूर्व
गवर्नर्स का समर्थन जुटाने में तो कामयाब रहे थे - लेकिन जिस तरह भारतीय
परिवारों में फूफा नाम के रिश्तेदार कुछ करने के लिए नहीं, बल्कि सिर्फ
अपनी खातिर/तवज्जो की चिंता करने और इसमें कमी रह जाने पर अच्छे भले काम
में विध्न-बाधा डालने से भी परहेज न करने के चलते बदनाम रहे हैं, उसी तर्ज पर 'फूफा' टाइप के पूर्व गवर्नर्स से रेखा गुप्ता की उम्मीदवारी को न तो कोई मदद मिलना थी - और वास्तव में न वह मिली ही ।
शिव
कुमार चौधरी तथा कई एक पूर्व गवर्नर्स का समर्थन रेखा गुप्ता की
उम्मीदवारी को मिल तो गया, किंतु वह चुनावी रणनीति बनाने तथा उसे
क्रियान्वित करने में बुरी तरह विफल रहा । चुनाव वाले दिन की घटना से इसे
समझा जा सकता है : चुनाव से पिछली शाम/रात मुकेश गोयल ने क्रेडेंशियल जारी
करने की माँग की, जिसे रेखा गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थक खेमे ने मान
लिया; किंतु सुबह होते होते विनय मित्तल की उम्मीदवारी के समर्थक खेमे
के नेताओं ने भाँप लिया कि यह माँग उन्हें उल्टी पड़ गई है क्योंकि रेखा
गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थकों ने मौके का फायदा उठा कर अपने पक्ष के
ज्यादा क्रेडेंशियल जारी कर दिए हैं । विनय मित्तल के समर्थक नेताओं ने
तुरंत पैंतरा बदला और वह क्रेडेंशियल जारी करने का विरोध करने लगे । इस
मुद्दे पर अनीता गुप्ता ने जो तांडव रचा और एलएम जखवाल व सुनील जैन ने
उनके इस तांडव के लिए जैसी फील्डिंग सजाई, उसे देख कर रेखा गुप्ता के
समर्थकों के छक्के छूट गए । वह बेचारे बस यही रट लगाते रहे कि क्रेडेंशियल
जारी करने की माँग मुकेश गोयल ने ही तो की थी । वह यह समझने में पूरी
तरह विफल रहे कि अनीता गुप्ता, एलएम जखवाल व सुनील जैन की तिकड़ी जो कर रही
है, वह दरअसल सुविचारित तरीके से तैयार किया गया 'माइंड-गेम' है, जिसका
उद्देश्य लोगों के बीच यह प्रभाव बनाना/दिखाना है कि वह दूसरे पक्ष पर भारी
हैं । क्रेडेंशियल के मुद्दे पर रेखा गुप्ता के समर्थकों ने जिस तरह से समर्पण किया, उससे विनय मित्तल के समर्थकों का उद्देश्य
पूरा हो गया । चुनाव वाले दिन लोगों के बीच चर्चा सुनी गई कि रेखा गुप्ता
के समर्थकों ने कुछेक गुंडे टाइप के लोगों को बुलाया हुआ है; विनय मित्तल
के समर्थकों ने इसका दो तरीके से इंतजाम किया - उन्होंने भी कुछेक गुंडे
टाइप के लोगों को तो बुलाया ही, साथ ही पुलिस भी बुला ली । विनय मित्तल के समर्थकों के इस दोतरफा इंतजाम को देख कर रेखा गुप्ता के समर्थकों के पसीने छूट गए । हालात
को प्रतिकूल देख कर सुशील अग्रवाल, कुञ्ज बिहारी अग्रवाल, अरविंद संगल आदि
तो पतली गली से निकल भागे; मुकाबला करने के लिए अरुण मित्तल, सुनील निगम,
शिव कुमार चौधरी रह गए । विनय मित्तल के समर्थकों को जब यह अहसास हुआ कि यह लोग भी चुनावी प्रक्रिया को पूरी किए बिना 'निकलने' के चक्कर में हैं, तो मुकेश गोयल ने मोर्चा संभाला और
उन्होंने इन्हें बता दिया कि चुनावी प्रक्रिया यदि पूरी नहीं की गई, तो वह
निवर्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुनील जैन को जिम्मेदारी सौंप कर चुनावी
प्रक्रिया पूरी करा लेंगे और शिव कुमार चौधरी को 51 प्रतिशत से अधिक नेगेटिव वोट रिपोर्ट करवा/दिखवा देंगे । मुकेश गोयल की यह धमकी काम कर गई, तथा डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में सुनील निगम ने 'अपने' उम्मीदवार की हार स्वीकार करने और उसकी सार्वजनिक घोषणा करने की औपचारिकता निभाई ।
सुनील निगम और शिव कुमार चौधरी को डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में जो तगड़ा वाला झटका लगा है, उसकी खबर में मल्टीपल के दूसरे डिस्ट्रिक्ट्स के पदाधिकारी तथा नेता जिस तरह से दिलचस्पी लेते देखे जा रहे हैं - उससे उनकी मल्टीपल की चुनावी राजनीति भी चौपट हो गई नजर आ रही है ।