नई दिल्ली ।
मुकेश अरनेजा ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए आशीष मखीजा की
उम्मीदवारी का समर्थन करने का संकेत देकर आलोक गुप्ता को एक बार फिर बीच
मँझधार में छोड़ देने का काम किया है । आशीष मखीजा
के उम्मीदवार 'बनने' की घटना जिस गुपचुप तरीके से घटित हुई, उससे आभास
मिलता है कि मुकेश अरनेजा की इस योजना में सतीश सिंघल भी शामिल हैं । सतीश
सिंघल हालाँकि अभी यह भी दिखाने/जताने का प्रयास कर रहे हैं कि आलोक गुप्ता
के प्रति उनके मन में बहुत प्यार और सम्मान है - लेकिन इस बात को नहीं
भूलना चाहिए कि राजनीतिक धोखे के तमाम उदाहरण प्यार और सम्मान की ओट में ही
घटित हुए हैं । खुद सतीश सिंघल ही मीठी मीठी बातों के जाल में फँसा कर सुभाष जैन के साथ धोखा कर चुके हैं - और इस बात को घटित हुए कोई बहुत समय नहीं बीता है
। सहज ही समझा जा सकता है कि सतीश सिंघल यदि सुभाष जैन के साथ रहने की बात
करते करते उनके साथ धोखा कर सकते हैं, तो आलोक गुप्ता के प्रति अपना प्यार
और सम्मान दिखाते दिखाते धोखा क्यों नहीं कर सकते हैं ? आशीष मखीजा का
नाम पेट्स (प्रेसीडेंट्स इलेक्ट ट्रेनिंग सेमीनार) के एसोसिएट ट्रेनर के
रूप में जिस छिपाछिपी तरीके से जुड़ा - उससे ही संकेत और आभास मिलता है कि
मुकेश अरनेजा ने आलोक गुप्ता की डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की उम्मीदवारी के साथ धोखा करने के लिए जो जाल बिछाया, उसे
बिछवाने में सतीश सिंघल की पूरी पूरी मिलीभगत रही है ।
उल्लेखनीय है कि पेट्स की तैयारी में सतीश सिंघल के कंधे से कंधा मिलाकर काम करने वाले खास पदाधिकारियों को भी इस बात की भनक नहीं मिली थी कि आशीष मखीजा के लिए एसोसिएट ट्रेनर जैसा नया पद ईजाद किया जा रहा है । ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि रोटरी में और डिस्ट्रिक्ट में इस तरह के किसी पद की व्यवस्था नहीं है । हालाँकि यह कोई बड़ी बात नहीं है - नई बातें, नई चीजें होती ही हैं, होनी भी चाहिएँ; बड़ी बात लेकिन यह है कि आशीष मखीजा के लिए जो नई व्यवस्था हुई, वह गुपचुप तरीके से हुई । सतीश सिंघल के साथ पेट्स की तैयारी में दिन-रात एक करने वाले पदाधिकारियों का कहना रहा है कि सतीश सिंघल वैसे तो छोटी से छोटी बात भी पूछ/बता कर अंजाम देते रहे - लेकिन एसोसिएट ट्रेनर का पद ईजाद करने जैसी बड़ी बात वह ऐन मौके तक 'पिए' रहे; और पेट्स की तैयारी में जुटे लोगों को भी यह बात तब पता चली, जब संबंधित प्रिंटिंग सामग्री इस्तेमाल के लिए उन्हें मिली । सतीश सिंघल की यह भूमिका संकेत और आभास देती है कि आलोक गुप्ता के साथ धोखा करने की मुकेश अरनेजा की योजना में सतीश सिंघल की पूरी मिलीभगत है - वह अभी आलोक गुप्ता को कभी छोटा भाई तो कभी बेटा बता कर उनके साथ जो प्यार और सम्मान दिखा/जता रहे हैं, वह सिर्फ इसलिए कि उन्हें अभी आलोक गुप्ता से अपने काम में मदद लेनी है ।
कई लोगों को हैरानी है कि आलोक गुप्ता के साथ तो मुकेश अरनेजा के वर्षों से अच्छे संबंध हैं, फिर मुकेश अरनेजा उनके साथ इस तरह से धोखा क्यों कर रहे हैं - और वह भी दूसरी बार । पहली बार, जेके गौड़ के सामने मुसीबत खड़ी करने के उद्देश्य से मुकेश अरनेजा ने पहले तो आलोक गुप्ता को उम्मीदवार बना/बनवा दिया था, लेकिन बाद में फिर वह आलोक गुप्ता को धोखा देकर जेके गौड़ से ही जा मिले थे । लेकिन यह हैरानी उन लोगों को ही हो रही है, जो मुकेश अरनेजा को जानते नहीं हैं - जो लोग उन्हें जानते हैं, उन्हें पता है कि मुकेश अरनेजा संबंधों/रिश्तों को ताश के पत्तों की तरह फेंटते रहते हैं और किसी के साथ भी धोखा कर देते हैं । इससे उन्हें जीवन में हासिल हालाँकि कुछ नहीं हुआ, उलटे नुक्सान ही हुआ है - लेकिन फिर भी वह बाज नहीं आते हैं । अपनी हरकतों के चलते वह अपने ही भाई/भतीजों द्वारा अपनी कंपनी से निकाले जा चुके हैं, और रोटरी में अपने क्लब से 'धकेले' जा चुके हैं - इसलिए आलोक गुप्ता के साथ धोखा करने के उनके फैसले से उन्हें जानने वालों को कोई हैरानी नहीं हुई है । लेकिन यह सवाल जरूर लोगों के बीच महत्त्वपूर्ण बना हुआ है, कि मुकेश अरनेजा ने अचानक से आलोक गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थन से हाथ क्यों खींच लिया है ?
मुकेश अरनेजा के नजदीकियों के अनुसार, मुकेश अरनेजा दरअसल आलोक गुप्ता और सतीश सिंघल के बीच बनती दिख रही नजदीकी से परेशान थे । आलोक गुप्ता चूँकि सतीश सिंघल की डिस्ट्रिक्ट टीम के प्रमुख सदस्य हैं, इसलिए पेट्स और दूसरे कार्यक्रमों की तैयारी के सिलसिले में उनकी सतीश सिंघल के साथ ज्यादा उठ-बैठ रही - जिसे मुकेश अरनेजा ने पसंद नहीं किया; इस बात पर लेकिन वह यदि आलोक गुप्ता का साथ छोड़ते, तो उन्हें सतीश सिंघल का साथ नहीं मिलता । सतीश सिंघल का साथ लेने के लिए मुकेश अरनेजा ने उन्हें उम्मीदवार के रूप में आलोक गुप्ता की कमजोरी की पट्टी पढ़ाई । मुकेश अरनेजा के नजदीकियों के अनुसार, उन्होंने सतीश सिंघल को समझाया कि ललित खन्ना की उम्मीदवारी से निपटने के लिए दिल्ली से कोई उम्मीदवार चाहिए होगा, क्योंकि आलोक गुप्ता के जरिए ललित खन्ना से निपटना संभव नहीं होगा । मुकेश अरनेजा ने सतीश सिंघल को यह भी समझाया कि अपने गवर्नर-काल में वह यदि 'अपने' उम्मीदवार को चुनाव नहीं जितवा सके, तो शरत जैन की तरह बड़ी बदनामी होगी । इस तरह की बातों से सतीश सिंघल को फुसलाते हुए मुकेश अरनेजा ने आशीष मखीजा के लिए रास्ता बनाने हेतु सतीश सिंघल को राजी कर लिया । मुकेश अरनेजा की इस हरकत से लेकिन एक मजेदार बात यह हुई कि आलोक गुप्ता के प्रति लोगों के बीच हमदर्दी सी पैदा हुई । जो लोग आलोक गुप्ता के साथ नहीं भी देखे/समझे जाते हैं, उन्हें भी आलोक गुप्ता के प्रति सहानुभूति दिखाते/जताते हुआ पाया/सुना जा रहा है । यानि मुकेश अरनेजा का समर्थन आलोक गुप्ता की उतनी मदद नहीं कर पाता, मुकेश अरनेजा द्वारा दिया गया धोखा उनकी जितनी मदद करता हुआ नजर आ रहा है । लोगों से मिल रही इस हमदर्दी को आलोक गुप्ता कैसे बचा कर और बढ़ाने का काम करते हैं - यह देखना दिलचस्प होगा ।
उल्लेखनीय है कि पेट्स की तैयारी में सतीश सिंघल के कंधे से कंधा मिलाकर काम करने वाले खास पदाधिकारियों को भी इस बात की भनक नहीं मिली थी कि आशीष मखीजा के लिए एसोसिएट ट्रेनर जैसा नया पद ईजाद किया जा रहा है । ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि रोटरी में और डिस्ट्रिक्ट में इस तरह के किसी पद की व्यवस्था नहीं है । हालाँकि यह कोई बड़ी बात नहीं है - नई बातें, नई चीजें होती ही हैं, होनी भी चाहिएँ; बड़ी बात लेकिन यह है कि आशीष मखीजा के लिए जो नई व्यवस्था हुई, वह गुपचुप तरीके से हुई । सतीश सिंघल के साथ पेट्स की तैयारी में दिन-रात एक करने वाले पदाधिकारियों का कहना रहा है कि सतीश सिंघल वैसे तो छोटी से छोटी बात भी पूछ/बता कर अंजाम देते रहे - लेकिन एसोसिएट ट्रेनर का पद ईजाद करने जैसी बड़ी बात वह ऐन मौके तक 'पिए' रहे; और पेट्स की तैयारी में जुटे लोगों को भी यह बात तब पता चली, जब संबंधित प्रिंटिंग सामग्री इस्तेमाल के लिए उन्हें मिली । सतीश सिंघल की यह भूमिका संकेत और आभास देती है कि आलोक गुप्ता के साथ धोखा करने की मुकेश अरनेजा की योजना में सतीश सिंघल की पूरी मिलीभगत है - वह अभी आलोक गुप्ता को कभी छोटा भाई तो कभी बेटा बता कर उनके साथ जो प्यार और सम्मान दिखा/जता रहे हैं, वह सिर्फ इसलिए कि उन्हें अभी आलोक गुप्ता से अपने काम में मदद लेनी है ।
कई लोगों को हैरानी है कि आलोक गुप्ता के साथ तो मुकेश अरनेजा के वर्षों से अच्छे संबंध हैं, फिर मुकेश अरनेजा उनके साथ इस तरह से धोखा क्यों कर रहे हैं - और वह भी दूसरी बार । पहली बार, जेके गौड़ के सामने मुसीबत खड़ी करने के उद्देश्य से मुकेश अरनेजा ने पहले तो आलोक गुप्ता को उम्मीदवार बना/बनवा दिया था, लेकिन बाद में फिर वह आलोक गुप्ता को धोखा देकर जेके गौड़ से ही जा मिले थे । लेकिन यह हैरानी उन लोगों को ही हो रही है, जो मुकेश अरनेजा को जानते नहीं हैं - जो लोग उन्हें जानते हैं, उन्हें पता है कि मुकेश अरनेजा संबंधों/रिश्तों को ताश के पत्तों की तरह फेंटते रहते हैं और किसी के साथ भी धोखा कर देते हैं । इससे उन्हें जीवन में हासिल हालाँकि कुछ नहीं हुआ, उलटे नुक्सान ही हुआ है - लेकिन फिर भी वह बाज नहीं आते हैं । अपनी हरकतों के चलते वह अपने ही भाई/भतीजों द्वारा अपनी कंपनी से निकाले जा चुके हैं, और रोटरी में अपने क्लब से 'धकेले' जा चुके हैं - इसलिए आलोक गुप्ता के साथ धोखा करने के उनके फैसले से उन्हें जानने वालों को कोई हैरानी नहीं हुई है । लेकिन यह सवाल जरूर लोगों के बीच महत्त्वपूर्ण बना हुआ है, कि मुकेश अरनेजा ने अचानक से आलोक गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थन से हाथ क्यों खींच लिया है ?
मुकेश अरनेजा के नजदीकियों के अनुसार, मुकेश अरनेजा दरअसल आलोक गुप्ता और सतीश सिंघल के बीच बनती दिख रही नजदीकी से परेशान थे । आलोक गुप्ता चूँकि सतीश सिंघल की डिस्ट्रिक्ट टीम के प्रमुख सदस्य हैं, इसलिए पेट्स और दूसरे कार्यक्रमों की तैयारी के सिलसिले में उनकी सतीश सिंघल के साथ ज्यादा उठ-बैठ रही - जिसे मुकेश अरनेजा ने पसंद नहीं किया; इस बात पर लेकिन वह यदि आलोक गुप्ता का साथ छोड़ते, तो उन्हें सतीश सिंघल का साथ नहीं मिलता । सतीश सिंघल का साथ लेने के लिए मुकेश अरनेजा ने उन्हें उम्मीदवार के रूप में आलोक गुप्ता की कमजोरी की पट्टी पढ़ाई । मुकेश अरनेजा के नजदीकियों के अनुसार, उन्होंने सतीश सिंघल को समझाया कि ललित खन्ना की उम्मीदवारी से निपटने के लिए दिल्ली से कोई उम्मीदवार चाहिए होगा, क्योंकि आलोक गुप्ता के जरिए ललित खन्ना से निपटना संभव नहीं होगा । मुकेश अरनेजा ने सतीश सिंघल को यह भी समझाया कि अपने गवर्नर-काल में वह यदि 'अपने' उम्मीदवार को चुनाव नहीं जितवा सके, तो शरत जैन की तरह बड़ी बदनामी होगी । इस तरह की बातों से सतीश सिंघल को फुसलाते हुए मुकेश अरनेजा ने आशीष मखीजा के लिए रास्ता बनाने हेतु सतीश सिंघल को राजी कर लिया । मुकेश अरनेजा की इस हरकत से लेकिन एक मजेदार बात यह हुई कि आलोक गुप्ता के प्रति लोगों के बीच हमदर्दी सी पैदा हुई । जो लोग आलोक गुप्ता के साथ नहीं भी देखे/समझे जाते हैं, उन्हें भी आलोक गुप्ता के प्रति सहानुभूति दिखाते/जताते हुआ पाया/सुना जा रहा है । यानि मुकेश अरनेजा का समर्थन आलोक गुप्ता की उतनी मदद नहीं कर पाता, मुकेश अरनेजा द्वारा दिया गया धोखा उनकी जितनी मदद करता हुआ नजर आ रहा है । लोगों से मिल रही इस हमदर्दी को आलोक गुप्ता कैसे बचा कर और बढ़ाने का काम करते हैं - यह देखना दिलचस्प होगा ।