नई दिल्ली । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट
रवि चौधरी और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी विनय भाटिया ने डिस्ट्रिक्ट की
चुनावी राजनीति का ठेकेदार बनने का प्रयास तो खूब किया, लेकिन डिस्ट्रिक्ट
के क्लब्स के पदाधिकारियों ने उन्हें ऐसी धूल चटाई है कि उसका स्वाद उन्हें
कई दिनों तक याद रहेगा । सुरेश भसीन की चुनावी जीत को लोग भले ही उनकी किस्मत के उपहार के रूप में देख/बता रहे हों, लेकिन किस्मत के इस उपहार को
पाने लायक बनने के लिए उन्होंने जो समर्थन प्राप्त किया - वह डिस्ट्रिक्ट
के तमाम राजनीतिक चौधरियों के लिए एक बड़ा सबक है । वोटों की गिनती के अंतिम
चरण में सुरेश भसीन से दो वोटों से पिछड़ जाने वाले अनूप मित्तल को लोगों
का जो समर्थन मिला, उसने डिस्ट्रिक्ट के राजनीतिक चौधरियों को मिले सबक को
और गहरा कर दिया है । उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट के राजनीतिक चौधरियों
ने सुरेश भसीन की उम्मीदवारी को तो कोई तवज्जो नहीं दी हुई थे, किंतु अनूप
मित्तल की सक्रियता ने उन्हें जरूर परेशान करने के साथ-साथ डराया हुआ था
- इसलिए अनूप मित्तल की उम्मीदवारी को वापस कराने/करवाने से लेकर उन्हें
चुनाव हरवाने के लिए चौधरियों ने सारे घोड़े खोले हुए थे । रवि चौधरी और
विनय भाटिया ने चौधरियों का भी चौधरी बनने की कोशिश में कमान अपने हाथ में
ले ली थी, और चौधरियों के उम्मीदवार के रूप में संजीव राय मेहरा को चुनाव
जितवाने के लिए वह जैसी जो घटिया हरकत कर सकते थे, वह उन्होंने की । इसके
बावजूद डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में वह संजीव राय मेहरा को अमरजीत सिंह, अतुल गुप्ता और रवि दयाल से ही
आगे कर पाए - अनूप मित्तल तथा सुरेश भसीन से वह पीछे ही रह गए ।
चुनावी नतीजों में सबसे बुरी स्थिति अमरजीत सिंह की रही - उन्हें अपने क्लब के वोट भी नहीं मिले । पहली वरीयता के वोटों की गिनती में अतुल गुप्ता को 3, रवि दयाल को 23, सुरेश भसीन को 29, संजीव राय मेहरा को 30, अनूप मित्तल को सबसे ज्यादा 37 वोट मिले । अतुल गुप्ता और रवि दयाल के मुकाबले से बाहर होने के बाद उन्हें मिले अन्य वरीयताओं के वोटों के बँटवारे के साथ संजीव राय मेहरा के वोटों की गिनती 35, सुरेश भसीन के वोटों की गिनती 38 और अनूप मित्तल के वोटों की गिनती 47 हो गई । इस तरह डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के चौधरियों के उम्मीदवार संजीव राय मेहरा चौथे चरण की गिनती में मुकाबले से बाहर हो गए । संजीव राय मेहरा को मिले अन्य वरीयताओं के वोटों की गिनती में पोल खुली कि उन्हें चुनाव जितवाने में लगे डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के चौधरियों की सोच कितनी घटिया थी और उन्होंने कैसे कैसे हथकंडे अपनाए थे । दरअसल संजीव राय मेहरा को मिले वोटों में हैरान कर देने वाला तथ्य यह पाया गया कि 35 में से 22 लोगों ने दूसरी वरीयता का वोट ही नहीं दिया था । अनुमान यह लगाया जा रहा है कि चौधरियों ने अपने 'आदमियों' को दूसरी वरीयताओं के वोट न देने की हिदायत दी होगी । इस हिदायत के पीछे उनका उद्देश्य क्या रहा होगा, यह तो वही जानें - लेकिन इतनी बड़ी संख्या में क्लब-अध्यक्षों का दूसरी वरीयताओं का वोट न देना डिस्ट्रिक्ट की राजनीति में नासमझी और टुच्चेपन के तत्वों के होने का तथ्य तो प्रस्तुत करता ही है ।
संजीव राय मेहरा को मिले 35 वोटों में से 22 ने भले ही दूसरी वरीयताओं के वोट नहीं दिए, लेकिन बाकी 13 ने दूसरी वरीयताओं के वोट दिए - और उनका बँटवारा सुरेश भसीन के लिए चकित करने वाला उपहार बन कर आया । पहले चरण की गिनती में तीसरे नंबर पर रहने वाले सुरेश भसीन चौथे चरण तक आते आते दूसरे नंबर पर तो आ गए थे, किंतु शुरू से ही पहले नंबर पर चल रहे अनूप मित्तल से वह अभी भी 9 वोट से पीछे थे । संजीव राय मेहरा के 13 वोटों के दूसरी वरीयताओं के वोटों में सुरेश भसीन ने 12 वोट पाकर लेकिन ऊँची छलाँग लगाई और अपने वोटों की संख्या को वह 50 पर ले गए । अनूप मित्तल को एक ही वोट मिला और उनके कुल वोटों संख्या 48 ही रह गई । वोटों की गिनती के अंतिम चरण में यह जो अप्रत्याशित चमत्कार हुआ, उसे भले ही किस्मत की बात कहा जा रहा हो - लेकिन इससे भी अंततः वही बात सच साबित हुई है जो सयानों ने कही है कि किस्मत भी उसी का साथ देती है, जो खुद प्रयत्न करता है । सुरेश भसीन पिछले कई वर्षों से लगातार उम्मीदवार हो रहे थे, और हार रहे थे - और बुरी तरह हार रहे थे । तमाम सक्रियता के बावजूद डिस्ट्रिक्ट के चौधरियों तथा अन्य नेताओं के बीच उनकी उम्मीदवारी के प्रति स्वीकार्यता का भाव नहीं बनता दिख रहा था । लेकिन फिर भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी थी, और वह लगातार अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने का प्रयत्न करते रहे । उनकी चुनावी जीत साबित करती है कि डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के चौधरियों और नेताओं की मदद के बिना भी लोगों का समर्थन जुटाया जा सकता है ।
डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के चौधरियों और नेताओं को असली चोट लेकिन अनूप मित्तल से लगी है । अनूप मित्तल चुनाव से करीब दो-ढाई महीने पहले ही अचानक से उम्मीदवार बने थे । वह जिस अचानक तरीके से उम्मीदवार बने थे, उससे डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के चौधरियों को तगड़ा झटका लगा था - और प्रायः सभी चौधरी उनकी उम्मीदवारी की खिलाफत में जुट गए थे । कुछेक चौधरियों ने कोशिश की कि वह अनूप मित्तल को अपनी उम्मीदवारी वापस लेने के लिए राजी कर लें - लेकिन अनूप मित्तल उन्हें जब उनकी बात सुनते/मानते नहीं दिखे तो उन्होंने अनूप मित्तल के खिलाफ ही मोर्चा खोल दिया । रवि चौधरी और विनय भाटिया का इस्तेमाल करते हुए, उनके जरिए अनूप मित्तल की उम्मीदवारी को नुकसान पहुँचाने के जो प्रयास किए गए - वह घटिया राजनीति के विलक्षण उदाहरण हैं । इसके बावजूद, वोटों की गिनती के अंतिम चरण में अप्रत्याशित रूप से अनूप मित्तल पिछड़ भले ही गए - लेकिन उन्होंने जिस तरह का समर्थन प्राप्त किया, वह डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के चौधरियों के लिए तगड़ा झटका तो है ही ।
चुनावी नतीजों में सबसे बुरी स्थिति अमरजीत सिंह की रही - उन्हें अपने क्लब के वोट भी नहीं मिले । पहली वरीयता के वोटों की गिनती में अतुल गुप्ता को 3, रवि दयाल को 23, सुरेश भसीन को 29, संजीव राय मेहरा को 30, अनूप मित्तल को सबसे ज्यादा 37 वोट मिले । अतुल गुप्ता और रवि दयाल के मुकाबले से बाहर होने के बाद उन्हें मिले अन्य वरीयताओं के वोटों के बँटवारे के साथ संजीव राय मेहरा के वोटों की गिनती 35, सुरेश भसीन के वोटों की गिनती 38 और अनूप मित्तल के वोटों की गिनती 47 हो गई । इस तरह डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के चौधरियों के उम्मीदवार संजीव राय मेहरा चौथे चरण की गिनती में मुकाबले से बाहर हो गए । संजीव राय मेहरा को मिले अन्य वरीयताओं के वोटों की गिनती में पोल खुली कि उन्हें चुनाव जितवाने में लगे डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के चौधरियों की सोच कितनी घटिया थी और उन्होंने कैसे कैसे हथकंडे अपनाए थे । दरअसल संजीव राय मेहरा को मिले वोटों में हैरान कर देने वाला तथ्य यह पाया गया कि 35 में से 22 लोगों ने दूसरी वरीयता का वोट ही नहीं दिया था । अनुमान यह लगाया जा रहा है कि चौधरियों ने अपने 'आदमियों' को दूसरी वरीयताओं के वोट न देने की हिदायत दी होगी । इस हिदायत के पीछे उनका उद्देश्य क्या रहा होगा, यह तो वही जानें - लेकिन इतनी बड़ी संख्या में क्लब-अध्यक्षों का दूसरी वरीयताओं का वोट न देना डिस्ट्रिक्ट की राजनीति में नासमझी और टुच्चेपन के तत्वों के होने का तथ्य तो प्रस्तुत करता ही है ।
संजीव राय मेहरा को मिले 35 वोटों में से 22 ने भले ही दूसरी वरीयताओं के वोट नहीं दिए, लेकिन बाकी 13 ने दूसरी वरीयताओं के वोट दिए - और उनका बँटवारा सुरेश भसीन के लिए चकित करने वाला उपहार बन कर आया । पहले चरण की गिनती में तीसरे नंबर पर रहने वाले सुरेश भसीन चौथे चरण तक आते आते दूसरे नंबर पर तो आ गए थे, किंतु शुरू से ही पहले नंबर पर चल रहे अनूप मित्तल से वह अभी भी 9 वोट से पीछे थे । संजीव राय मेहरा के 13 वोटों के दूसरी वरीयताओं के वोटों में सुरेश भसीन ने 12 वोट पाकर लेकिन ऊँची छलाँग लगाई और अपने वोटों की संख्या को वह 50 पर ले गए । अनूप मित्तल को एक ही वोट मिला और उनके कुल वोटों संख्या 48 ही रह गई । वोटों की गिनती के अंतिम चरण में यह जो अप्रत्याशित चमत्कार हुआ, उसे भले ही किस्मत की बात कहा जा रहा हो - लेकिन इससे भी अंततः वही बात सच साबित हुई है जो सयानों ने कही है कि किस्मत भी उसी का साथ देती है, जो खुद प्रयत्न करता है । सुरेश भसीन पिछले कई वर्षों से लगातार उम्मीदवार हो रहे थे, और हार रहे थे - और बुरी तरह हार रहे थे । तमाम सक्रियता के बावजूद डिस्ट्रिक्ट के चौधरियों तथा अन्य नेताओं के बीच उनकी उम्मीदवारी के प्रति स्वीकार्यता का भाव नहीं बनता दिख रहा था । लेकिन फिर भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी थी, और वह लगातार अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने का प्रयत्न करते रहे । उनकी चुनावी जीत साबित करती है कि डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के चौधरियों और नेताओं की मदद के बिना भी लोगों का समर्थन जुटाया जा सकता है ।
डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के चौधरियों और नेताओं को असली चोट लेकिन अनूप मित्तल से लगी है । अनूप मित्तल चुनाव से करीब दो-ढाई महीने पहले ही अचानक से उम्मीदवार बने थे । वह जिस अचानक तरीके से उम्मीदवार बने थे, उससे डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के चौधरियों को तगड़ा झटका लगा था - और प्रायः सभी चौधरी उनकी उम्मीदवारी की खिलाफत में जुट गए थे । कुछेक चौधरियों ने कोशिश की कि वह अनूप मित्तल को अपनी उम्मीदवारी वापस लेने के लिए राजी कर लें - लेकिन अनूप मित्तल उन्हें जब उनकी बात सुनते/मानते नहीं दिखे तो उन्होंने अनूप मित्तल के खिलाफ ही मोर्चा खोल दिया । रवि चौधरी और विनय भाटिया का इस्तेमाल करते हुए, उनके जरिए अनूप मित्तल की उम्मीदवारी को नुकसान पहुँचाने के जो प्रयास किए गए - वह घटिया राजनीति के विलक्षण उदाहरण हैं । इसके बावजूद, वोटों की गिनती के अंतिम चरण में अप्रत्याशित रूप से अनूप मित्तल पिछड़ भले ही गए - लेकिन उन्होंने जिस तरह का समर्थन प्राप्त किया, वह डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के चौधरियों के लिए तगड़ा झटका तो है ही ।