Saturday, February 9, 2013

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के वाइस प्रेसीडेंट का चुनाव चुनावी पंडितों के लिए चौंकाने वाला भी हो सकता है

नई दिल्ली । इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के वाइस प्रेसीडेंट पद की चुनावी लड़ाई अब पूरी तरह दिल्ली आ गई है और चूँकि इस लड़ाई के सारे खिलाड़ी और प्यादे दिल्ली आ गए हैं, इसलिए इस लड़ाई की सारी तीन-तिकड़में अब यहीं अपने को संभव करने में जुट गई हैं । वाइस प्रेसीडेंट पद की चुनावी लड़ाई के दिल्ली में केंद्रित हो जाने के चलते, इस लड़ाई के फिलबक्त सबसे बड़े खिलाड़ी समझे जाने वाले संजीव माहेश्वरी को एक बड़ा फायदा यह हुआ है कि अभी तक परदे के पीछे से उनका समर्थन करने वाले इंस्टीट्यूट के पूर्व अध्यक्ष अमरजीत चोपड़ा अब परदे के आगे आ गए हैं । मौजूदा वाइस प्रेसीडेंट सुबोध कुमार अग्रवाल के समर्थन के कारण संजीव माहेश्वरी की स्थिति पहले से ही अच्छी समझी जा रही है, उसमें अमरजीत चोपड़ा का समर्थन भी जुट जाने से उनके नजदीकियों को उनका कम 'बनता' हुआ दिख रहा है । हालाँकि कुछेक लोगों को लगता है कि सुबोध कुमार अग्रवाल और अमरजीत चोपड़ा का समर्थन संजीव माहेश्वरी के लिए 'बिल्ली के रास्ता काटने वाला काम करेगा' और संजीव माहेश्वरी के लिए भारी पड़ेगा ।
निलेश विकमसे ने इसका फायदा उठाना शुरू कर भी दिया है । उल्लेखनीय है कि निलेश विकमसे को भी वाइस प्रेसीडेंट पद के प्रबल दावेदार के रूप में देखा/पहचाना जाता रहा है, लेकिन संजीव माहेश्वरी की तुलना में उन्हें अभी तक पीछे ही पाया जा रहा था । लेकिन जैसे ही उन्हें भनक लगी है कि सुबोध कुमार अग्रवाल और अमरजीत चोपड़ा के समर्थन के कारण कुछेक लोग संजीव माहेश्वरी से बिदक रहे हैं और विरोधी लोगों ने सुबोध और अमरजीत की न चलने देने का 'फैसला' किया है, निलेश विकमसे उन विरोधी लोगों का समर्थन जुटाने में लग गए हैं । निलेश विकमसे की सक्रियता से संजीव माहेश्वरी के लिए खतरा तो पैदा हुआ है, लेकिन उनकी उम्मीद पंकज जैन की सक्रियता पर टिकी है । संजीव माहेश्वरी के समर्थक मान रहे हैं कि निलेश विकमसे और पंकज जैन के बीच आगे निकलने की जो होड़ है, वह संजीव माहेश्वरी का काम आसान करेगी । सेंट्रल काउंसिल के सदस्यों के बीच जो समीकरण बनते हुए दिख रहे हैं, उसमें संजीव माहेश्वरी, निलेश विकमसे और पंकज जैन - तीनों को अपनी अपनी जीत नज़र आ रही ।
इन तीनों के अपनी-अपनी जीत के दावों के बावजूद वेंकटेश्वरलु अपनी जीत को लेकर बिलकुल भी चिंतित नहीं दिख रहे हैं । संथानाकृष्णन के उम्मीदवारी से हटने के बाद वेंकटेश्वरलु को अपनी स्थति और भी सुरक्षित दिखने लगी है । वेंकटेश्वरलु की सेंट्रल काउंसिल सदस्यों के बीच अच्छी स्वीकार्यता है और उनका नाम किसी झगड़े-झंझट में भी नहीं सुना गया है । चरनजोत सिंह नंदा, नवीन गुप्ता और अनुज गोयल सेंट्रल काउंसिल सदस्यों के बीच अलग-अलग कारणों से बुरी तरह बदनाम होने के बावजूद नाउम्मीद नहीं हैं । उनकी तरफ से तर्क भी सुने जाते हैं कि बदनाम और घटिया आचरण रखने वाले वाले लोग क्या पहले (वाइस) प्रेसीडेंट नहीं बने हैं क्या ? नवीन गुप्ता के लिए तो बहुत ही कन्विंसिंग तर्क चर्चा में है - और वह यह कि उनके पिता एनडी गुप्ता तो बहुत ही बदनाम थे, लेकिन फिर भी वह (वाइस) प्रेसीडेंट बने ही थे न ? इस तरह के तर्कों और बदनामियों वाले सदस्यों के भी वाइस प्रेसीडेंट बनने की कोशिशों के चलते इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के वाइस प्रेसीडेंट के चुनाव का नजारा खासा दिलचस्प हो गया है ।
इस दिलचस्प नज़ारे में के रघु, संजय अग्रवाल और शिवाजी जावरे भी अपनी-अपनी उम्मीदवारी लेकर सक्रिय हैं । ये तीनों चूँकि अपने-अपने दम पर सक्रिय हैं इसलिए इनकी उम्मीदवारी का ज्यादा हल्ला नहीं है । संजय अग्रवाल और शिवाजी जावरे हमेशा ही अंडर ऐस्टीमेट किये जाने के शिकार बने हैं । नॉर्दर्न रीजन में संजय अग्रवाल और वेस्टर्न रीजन में शिवाजी जावरे को चुनाव में ही घेरने की चौतरफा कोशिश की गई थी और इनके चुनाव जीतने पर ही सवालिया निशान लगाये गए थे, लेकिन यह दोनों अपने अपने रीजन में अच्छे समर्थन के साथ चुनाव जीते । वाइस प्रेसीडेंट के चुनाव में भी - अभी तक लगभग वैसी ही कहानी दोहराई जाती दिख रही है; खिलाड़ी नेताओं का प्रचार इनके पक्ष में नहीं है लेकिन कई लोग हैं जो मान रहे हैं कि जैसा चमत्कार इन्होंने सेंट्रल काउंसिल के चुनाव में किया वैसा ही चमत्कार यह यहाँ भी कर दें तो आश्चर्य नहीं होगा । जो लोग ऐसा मान रहे हैं उन्होंने ऐसा मानने का कारण यह बताया कि संजय अग्रवाल और शिवाजी जावरे बहुत ही साफ-सुथरे तरीके से अपना अभियान चला रहे हैं और सचमुच इंस्टीट्यूट और प्रोफेशन के प्रति अपना कंसर्न दिखा/जाता रहे हैं । कई लोगों को लगता है कि इंस्टीट्यूट के वाइस प्रेसीडेंट का चुनाव चुनावी पंडितों के लिए चौंकाने वाला हो सकता है ।