Wednesday, February 27, 2013

विनोद बंसल को सुशील गुप्ता की नाराजगी के कारण शेखर मेहता के 'दरबार' से बाहर होना पड़ा है क्या ?

नई दिल्ली । शेखर मेहता ने हैदराबाद में आयोजित हो रही रोटरी साउथ एशिया समिट 2013 की तैयारियों से विनोद बंसल को जिस तरह दूर रखा है, उसे देख कर विनोद बंसल और उनके शुभचिंतकों को गहरा धक्का लगा है । धक्का लगने का कारण यह है कि अभी पिछले रोटरी वर्ष में ही कोलकाता में आयोजित हुए रोटरी इंस्टीट्यूट में शेखर मेहता ने विनोद बंसल को काफी तवज्जो दी थी । विनोद बंसल के लिए भी और दूसरे लोगों के लिए भी हैरानी की बात यही है कि करीब डेढ़ वर्ष की अवधि में ऐसा क्या हो गया जो इंटरनेशनल डायरेक्टर शेखर मेहता ने विनोद बंसल को अपनी 'कोटरी' से बाहर कर दिया है । विनोद बंसल के लिए ज्यादा तगड़े झटके की बात यह है कि शेखर मेहता ने इस बार मुकेश अरनेजा को अपेक्षाकृत ज्यादा तवज्जो दी है । मुकेश अरनेजा के पास समिट के प्रमोशन की जिम्मेदारी है । विनोद बंसल की शेखर मेहता द्धारा की गई उपेक्षा को देख/जान कर ही मुकेश अरनेजा ने समिट के प्रमोशन से विनोद बंसल को अलग-थलग रखा हुआ है और सिर्फ रमेश अग्रवाल और जेके गौड़ को आगे करके ही समिट को प्रमोट करने का काम कर रहे हैं ।
विनोद बंसल आने वाले वर्ष में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के पद पर होंगे और इस नाते से समिट के प्रमोशन में उनकी अपील ज्यादा कारगर होगी - लेकिन मुकेश अरनेजा ने उन्हें पूरी तरह अलग-थलग रखा हुआ है । किन्हीं-किन्हीं लोगों ने उनसे इस बारे में पूछा भी तो उन्होंने यह कहते हुए कि विनोद बंसल डीटीटीएस की तैयारी में व्यस्त होने के कारण समिट के प्रमोशन के लिए समय नहीं निकाल पा रहे हैं, ठीकरा विनोद बंसल के सिर पर ही फोड़ दिया है । विनोद बंसल और शेखर मेहता के बीच की नजदीकियों की जिन भी लोगों को जानकारी हैं, उनके लिए यह समझना सचमुच मुश्किल हो रहा है कि आखिर क्यों शेखर मेहता ने खुद तो विनोद बंसल को किनारे लगाया ही है, साथ ही नए-नए बने अपने खुशामदिये मुकेश अरनेजा से भी विनोद बंसल को अपमानित करवा रहे हैं ? डिस्ट्रिक्ट में ही नहीं, डिस्ट्रिक्ट से बाहर के भी कई लोग जानते हैं कि विनोद बंसल ने खुद से आगे बढ़-बढ़ कर शेखर मेहता की मदद की है - पिछले रोटरी वर्ष में शेखर मेहता की देख-रेख में कोलकाता में हुए रोटरी इंस्टीट्यूट के लिए शेखर मेहता को विनोद बंसल ने स्पोंसरशिप के जरिये बड़ी रकम तो दिलवाई ही थी, शेखर मेहता के हर दिल्ली दौरे पर वह उनकी सेवा में भी हाजिर रहते रहे हैं । इंटरनेशनल डायरेक्टर के रूप में शेखर मेहता ने भी प्रायः हमेशा ही विनोद बंसल को सेवा के बदले 'मेवा' उपलब्ध करवाई है । लेकिन अब अचानक से लोगों ने शेखर मेहता को विनोद बंसल से दूरी बनाते/रखते देखा है ।
शेखर मेहता ने पिछले रोटरी वर्ष में कोलकाता में आयोजित हुए रोटरी इंस्टीट्यूट में विनोद बंसल को जो अतिरिक्त तवज्जो दी थी, उसके चलते उन्होंने डीजीएन होने के बावजूद विनोद बंसल को एक कमेटी में लिया था । अलग-अलग कमेटियों के सदस्यों में पीडीजी स्तर के लोग ही थे, एक अकेले विनोद बंसल ही थे तो पीडीजी नहीं थे, लेकिन फिर भी वह एक कमेटी में थे । कमेटी में तो शेखर मेहता ने उन्हें इस बार भी रखा है, लेकिन उनका परिचय तक गलत दिया गया है - समिट की साइट पर उन्हें पीडीजी बताया गया है, जबकि पीडीजी होने में उन्हें अभी सोलह महीने हैं; अभी तो वह डीजी भी नहीं बने हैं । शेखर मेहता ने अभी भी विनोद बंसल को फंड जुटाने की ही जिम्मेदारी दी है । विनोद बंसल और उनके नजदीकियों को इसी बात का अफ़सोस है कि शेखर मेहता ने उन्हें बस एटीएम मशीन भर माना हुआ है ।
शेखर मेहता की 'कोटरी' से विनोद बंसल के बाहर होने के कारणों की पड़ताल करने वाले लोगों ने जाना/समझा है कि इस स्थिति के लिए खुद विनोद बंसल भी जिम्मेदार हैं । विनोद बंसल ने अपनी महत्वाकांक्षा में सिर्फ शेखर मेहता के साथ ही नजदीकी नहीं बनाई, बल्कि हर 'बड़े' आदमी के नजदीक होने की कोशिश की । उनकी इस कोशिश को देख/जान कर शेखर मेहता ने समझ लिया कि विनोद बंसल पर विश्वास नहीं किया जा सकता और उन्हें अपनी 'कोटरी' का सदस्य नहीं बनाया जा सकता । इस तरह, हर किसी के नजदीक होने की विनोद बंसल की कोशिश ने उन्हें शेखर मेहता से दूर कर दिया है । कुछेक बड़े नेताओं का कहना है कि शेखर मेहता की 'कोटरी' से पत्ता कटवाने का काम पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर सुशील गुप्ता ने किया है । सुशील गुप्ता को विनोद बंसल का राजेश बत्रा को डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनाना दरअसल पसंद नहीं आया । सुशील गुप्ता को हर वर्ष डिस्ट्रिक्ट गवर्नर से कुछ फेबर लेने होते हैं - विनोद बंसल को राजेश बत्रा के नजदीक देख कर सुशील गुप्ता ने समझ लिया कि उन्हें विनोद बंसल के गवर्नर-काल में उक्त फेबर नहीं मिल पाएंगे; लिहाजा उन्होंने शेखर मेहता के दरबार से विनोद बंसल की छुट्टी करवा दी । शेखर मेहता चूँकि सुशील गुप्ता के 'आदमी' माने जाते हैं, इसलिए सुशील गुप्ता का आदेश मान लेने में शेखर मेहता ने कोई देर नहीं की ।