नई दिल्ली । इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड
एकाउंटेंट्स की नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में चेयरमैन के चुनाव में
गोपाल कुमार केडिया द्धारा इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट सुबोध कुमार अग्रवाल
की मदद जुटाने की कोशिशों ने खासी गर्मी पैदा कर दी है । गोपाल कुमार
केडिया दरअसल इस वर्ष चेयरमैन बनने के लिए अपने आप को पूरी तरह उपर्युक्त
मान रहे हैं, लेकिन उनकी समस्या यह है कि जिन लोगों को चेयरमैन चुनना है,
उनके बीच उनके पक्ष में पर्याप्त समर्थन दिख नहीं रहा है । गोपाल कुमार
केडिया रीजनल काउंसिल में अभी वाइस चेयरमैन के पद पर हैं और अभी हाल ही
में हुए चुनाव में नॉर्दर्न रीजन में उन्हें सबसे ज्यादा वोट मिले हैं -
जिसे वह इस बात के सुबूत के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं कि उन्हें अनुभव
भी है और लोगों का समर्थन भी उनके साथ है; और इसलिए चेयरमैन बनने के लिए वह
सर्वथा उपर्युक्त हैं । लेकिन उनकी मुसीबत यह है कि जिन बातों को वह
अपनी 'उपलब्धियों' के रूप में देख/बता रहे हैं, उनकी वही उपलब्धियाँ उनकी
राह का रोड़ा बनी हुईं हैं ।
रीजनल काउंसिल में वाइस चेयरमैन होने को गोपाल कुमार केडिया भले ही अपनी उपलब्धि के रूप में देख/बता रहे हों, लेकिन दूसरे लोगों का कहना है कि उनके वाइस चेयरमैन होने के बावजूद रीजनल काउंसिल का यह वर्ष सबसे ख़राब वर्ष रहा है - क्या इससे यह साबित नहीं होता कि प्रतिकूल स्थितियों से निपटने की उनमें जरा भी काबिलियत नहीं है ? यह ठीक है कि रीजनल काउंसिल में इस वर्ष जो भी गड़बड़ियाँ रहीं, गोपाल कुमार केडिया उनके लिए सीधे तौर पर जिम्मेदार नहीं रहे हैं; लेकिन उन्होंने हालात को सँभालने की भी तो कोई कोशिश नहीं की, और यदि की तो सँभाल नहीं सके - और इस कारण से वाइस चेयरमैन होने के कारण चेयरमैन बनने के उनके तर्क का दम निकल जाता है । रीजन में ज्यादा वोट पाना भी गोपाल कुमार केडिया के लिए मुसीबत बन गया है । अगली बार सेंट्रल काउंसिल के लिए उम्मीदवार होने के लिए तैयारी कर रहे लोगों को गोपाल कुमार केडिया में एक दमदार प्रतिद्धन्द्धी दिख रहा है । उन्हें डर हो रहा है कि चेयरमैन होने के बाद गोपाल कुमार केडिया सेंट्रल काउंसिल के लिए उम्मीदवारी प्रस्तुत करेंगे और तब उनके लिए मुश्किलें खड़ी करेंगे - इसलिए उन्हें गोपाल कुमार केडिया को खींचे रखने में ही अपनी भलाई दिख रही है । गोपाल कुमार केडिया ऐसे लोगों को हालाँकि यह विश्वास दिलाने का हर संभव प्रयास कर रहे हैं कि सेंट्रल काउंसिल में उनकी कोई दिलचस्पी नहीं है, लेकिन कोई भी उनकी बात का भरोसा ही नहीं कर रहा है ।
गोपाल कुमार केडिया अपनी खूबियों के कमजोरियाँ बन जाने के कारण रीजनल काउंसिल के नए सदस्यों के बीच पूरी तरह अकेले और अलग-थलग पड़ गए नजर आ रहे हैं । इसके बावजूद खेल अभी भी उनके लिए पूरी तरह ख़त्म नहीं हुआ है । प्रतिकूल स्थितियों में भी गोपाल कुमार केडिया के लिए अपने पक्ष में मौका बनाने का अवसर छिपा हुआ है । गोपाल कुमार केडिया के लिए सबसे बड़ी चुनौती आठ सदस्यों वाला जो ग्रुप बना हुआ है, उसमें चेयरमैन पद के कई उम्मीदवारों के होने में गोपाल कुमार केडिया की उम्मीद बनी हुई है । उल्लेखनीय है कि नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के अगले सत्र के लिए चुने गए तेरह सदस्यों में से आठ सदस्यों का जो ग्रुप बना है, वह ऊपर से देखने पर तो बाकी बचे पाँच सदस्यों - जिनमें एक गोपाल कुमार केडिया भी हैं - को सत्ता से बाहर रखने का आभास देता है; लेकिन कई लोगों को लगता है कि ग्रुप बना चुके लोगों में चूँकि चेयरमैन पद के कई उम्मीदवार हैं इसलिए इस ग्रुप के एक बने रहने को लेकर संदेह है । आठ लोगों के ग्रुप में हंसराज चुग, विशाल गर्ग, राधे श्याम बंसल और राज चावला को चेयरमैन पद के घोषित उम्मीदवार के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है - और कई लोगों को लगता है कि जिस दिन चेयरमैन पद के लिए उम्मीदवार तय करने का मौका आएगा, उस दिन यह ग्रुप टूट जायेगा । ग्रुप के कर्ता-धर्ताओं को भी शायद इस बात का अंदेशा है, इसीलिये वह अभी तक चेयरमैन पद की उम्मीदवारी पर आपस में बात करने से बच रहे हैं ।
आठ सदस्यों के ग्रुप में टूट की यही आशंका गोपाल कुमार केडिया की उम्मीद को बनाये हुए है । गोपाल कुमार केडिया को ग्रुप से बाहर रह गए बाकी चार सदस्यों के समर्थन की भी उम्मीद है । यूँ तो 'यह' चारों अलग-अलग 'मिजाज' और खेमों के लोग हैं, लेकिन मजबूरी में यह एक हो सकते हैं - गोपाल कुमार केडिया के सामने चुनौती सिर्फ इस बात की है कि वह इन्हें अपने पक्ष में 'एक' कैसे करें ? यहीं इन्हें इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट सुबोध कुमार अग्रवाल की मदद की जरूरत नजर आती है । गोपाल कुमार केडिया को लगता है कि सुबोध कुमार अग्रवाल के दिलचस्पी लेने पर ग्रुप से बाहर रह गए चारों सदस्यों को उनके पक्ष में किया जा सकता है और फिर उसके बाद आठ सदस्यीय ग्रुप में तोड़-फोड़ करवा कर से उसके दो-तीन सदस्यों को अपनी तरफ कर लेने में भी कोई मुश्किल नहीं होंगी; और इस तरह वह चेयरमैन बन जायेंगे । किंतु सवाल यह है कि सुबोध कुमार अग्रवाल आखिर क्यों गोपाल कुमार केडिया की मदद करेंगे ? गोपाल कुमार केडिया को इसका भरोसा इस कारण से क्योंकि सुबोध कुमार अग्रवाल से उनका नजदीकी रिश्ता है । गोपाल कुमार केडिया कई मौकों पर सुबोध कुमार अग्रवाल को अपना साढु भाई बता चुके हैं । अब साढु भाई वाले रिश्ते में सुबोध कुमार अग्रवाल से गोपाल कुमार केडिया इतनी मदद की उम्मीद तो कर ही सकते हैं । सुबोध कुमार अग्रवाल भी चूँकि चुनावी राजनीति की तिकड़मों के ऊँचे खिलाड़ी हैं, इसलिए गोपाल कुमार केडिया की उनसे जो उम्मीद है वह संभव और प्रासंगिक दिखती है । इस संभावना को सच बनाने को लेकर गोपाल कुमार केडिया की जो सक्रियता है, उसके चलते नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में चेयरमैन पद का चुनाव खासा दिलचस्प हो गया है - और रोज नये-नये तमाशे देखने को मिल सकते हैं ।
रीजनल काउंसिल में वाइस चेयरमैन होने को गोपाल कुमार केडिया भले ही अपनी उपलब्धि के रूप में देख/बता रहे हों, लेकिन दूसरे लोगों का कहना है कि उनके वाइस चेयरमैन होने के बावजूद रीजनल काउंसिल का यह वर्ष सबसे ख़राब वर्ष रहा है - क्या इससे यह साबित नहीं होता कि प्रतिकूल स्थितियों से निपटने की उनमें जरा भी काबिलियत नहीं है ? यह ठीक है कि रीजनल काउंसिल में इस वर्ष जो भी गड़बड़ियाँ रहीं, गोपाल कुमार केडिया उनके लिए सीधे तौर पर जिम्मेदार नहीं रहे हैं; लेकिन उन्होंने हालात को सँभालने की भी तो कोई कोशिश नहीं की, और यदि की तो सँभाल नहीं सके - और इस कारण से वाइस चेयरमैन होने के कारण चेयरमैन बनने के उनके तर्क का दम निकल जाता है । रीजन में ज्यादा वोट पाना भी गोपाल कुमार केडिया के लिए मुसीबत बन गया है । अगली बार सेंट्रल काउंसिल के लिए उम्मीदवार होने के लिए तैयारी कर रहे लोगों को गोपाल कुमार केडिया में एक दमदार प्रतिद्धन्द्धी दिख रहा है । उन्हें डर हो रहा है कि चेयरमैन होने के बाद गोपाल कुमार केडिया सेंट्रल काउंसिल के लिए उम्मीदवारी प्रस्तुत करेंगे और तब उनके लिए मुश्किलें खड़ी करेंगे - इसलिए उन्हें गोपाल कुमार केडिया को खींचे रखने में ही अपनी भलाई दिख रही है । गोपाल कुमार केडिया ऐसे लोगों को हालाँकि यह विश्वास दिलाने का हर संभव प्रयास कर रहे हैं कि सेंट्रल काउंसिल में उनकी कोई दिलचस्पी नहीं है, लेकिन कोई भी उनकी बात का भरोसा ही नहीं कर रहा है ।
गोपाल कुमार केडिया अपनी खूबियों के कमजोरियाँ बन जाने के कारण रीजनल काउंसिल के नए सदस्यों के बीच पूरी तरह अकेले और अलग-थलग पड़ गए नजर आ रहे हैं । इसके बावजूद खेल अभी भी उनके लिए पूरी तरह ख़त्म नहीं हुआ है । प्रतिकूल स्थितियों में भी गोपाल कुमार केडिया के लिए अपने पक्ष में मौका बनाने का अवसर छिपा हुआ है । गोपाल कुमार केडिया के लिए सबसे बड़ी चुनौती आठ सदस्यों वाला जो ग्रुप बना हुआ है, उसमें चेयरमैन पद के कई उम्मीदवारों के होने में गोपाल कुमार केडिया की उम्मीद बनी हुई है । उल्लेखनीय है कि नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के अगले सत्र के लिए चुने गए तेरह सदस्यों में से आठ सदस्यों का जो ग्रुप बना है, वह ऊपर से देखने पर तो बाकी बचे पाँच सदस्यों - जिनमें एक गोपाल कुमार केडिया भी हैं - को सत्ता से बाहर रखने का आभास देता है; लेकिन कई लोगों को लगता है कि ग्रुप बना चुके लोगों में चूँकि चेयरमैन पद के कई उम्मीदवार हैं इसलिए इस ग्रुप के एक बने रहने को लेकर संदेह है । आठ लोगों के ग्रुप में हंसराज चुग, विशाल गर्ग, राधे श्याम बंसल और राज चावला को चेयरमैन पद के घोषित उम्मीदवार के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है - और कई लोगों को लगता है कि जिस दिन चेयरमैन पद के लिए उम्मीदवार तय करने का मौका आएगा, उस दिन यह ग्रुप टूट जायेगा । ग्रुप के कर्ता-धर्ताओं को भी शायद इस बात का अंदेशा है, इसीलिये वह अभी तक चेयरमैन पद की उम्मीदवारी पर आपस में बात करने से बच रहे हैं ।
आठ सदस्यों के ग्रुप में टूट की यही आशंका गोपाल कुमार केडिया की उम्मीद को बनाये हुए है । गोपाल कुमार केडिया को ग्रुप से बाहर रह गए बाकी चार सदस्यों के समर्थन की भी उम्मीद है । यूँ तो 'यह' चारों अलग-अलग 'मिजाज' और खेमों के लोग हैं, लेकिन मजबूरी में यह एक हो सकते हैं - गोपाल कुमार केडिया के सामने चुनौती सिर्फ इस बात की है कि वह इन्हें अपने पक्ष में 'एक' कैसे करें ? यहीं इन्हें इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट सुबोध कुमार अग्रवाल की मदद की जरूरत नजर आती है । गोपाल कुमार केडिया को लगता है कि सुबोध कुमार अग्रवाल के दिलचस्पी लेने पर ग्रुप से बाहर रह गए चारों सदस्यों को उनके पक्ष में किया जा सकता है और फिर उसके बाद आठ सदस्यीय ग्रुप में तोड़-फोड़ करवा कर से उसके दो-तीन सदस्यों को अपनी तरफ कर लेने में भी कोई मुश्किल नहीं होंगी; और इस तरह वह चेयरमैन बन जायेंगे । किंतु सवाल यह है कि सुबोध कुमार अग्रवाल आखिर क्यों गोपाल कुमार केडिया की मदद करेंगे ? गोपाल कुमार केडिया को इसका भरोसा इस कारण से क्योंकि सुबोध कुमार अग्रवाल से उनका नजदीकी रिश्ता है । गोपाल कुमार केडिया कई मौकों पर सुबोध कुमार अग्रवाल को अपना साढु भाई बता चुके हैं । अब साढु भाई वाले रिश्ते में सुबोध कुमार अग्रवाल से गोपाल कुमार केडिया इतनी मदद की उम्मीद तो कर ही सकते हैं । सुबोध कुमार अग्रवाल भी चूँकि चुनावी राजनीति की तिकड़मों के ऊँचे खिलाड़ी हैं, इसलिए गोपाल कुमार केडिया की उनसे जो उम्मीद है वह संभव और प्रासंगिक दिखती है । इस संभावना को सच बनाने को लेकर गोपाल कुमार केडिया की जो सक्रियता है, उसके चलते नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में चेयरमैन पद का चुनाव खासा दिलचस्प हो गया है - और रोज नये-नये तमाशे देखने को मिल सकते हैं ।