चंडीगढ़ । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दिलीप पटनायक ने
टीके रूबी के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी चुने जाने के नतीजे को अमान्य
घोषित करने का जो फैसला सुनाया है, उसने एक बार फिर साबित कर दिया है कि
राजा साबू को जो निर्णय स्वीकार नहीं होता है उसे वह किसी भी हद तक जाकर
बदलवा देते हैं । डिस्ट्रिक्ट में हर कोई (हर कोई मतलब जो इस फैसले से खुश हैं वह भी और जो नहीं खुश हैं वह भी)
मानता है कि दिलीप पटनायक इस तरह का मनमाना फैसला राजा साबू की सहमति के
बिना ले ही नहीं सकते हैं । यह फैसला लेने में जितनी देर हुई है, उससे
लोगों को यह भी लगता है कि दिलीप पटनायक शायद यह फैसला न लेना चाहते हों और
इसीलिए उन्होंने राजा साबू के इशारों को अनदेखा किया, लेकिन जब राजा साबू
ने 'सख्ती' दिखाई तब दिलीप पटनायक, टीके रूबी के चुने जाने के निर्णय को
अमान्य घोषित करने के लिए मजबूर हुए । गौर करने वाला तथ्य यह है कि 22
फरवरी को डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में नोमीनेटिंग कमेटी ने टीके रूबी को
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए चुना । इसके 47वें दिन बाद
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दिलीप पटनायक को 'पता चला' कि नोमीनेटिंग कमेटी के गठन
में और नोमीनेटिंग कमेटी द्धारा अपनाई गई प्रक्रिया में चूँकि
व्यवस्थासंबंधी दिशा-निर्देशों का पालन नहीं किया गया है, इसलिए
नोमीनेटिंग कमेटी के टीके रूबी को अधिकृत उम्मीदवार चुने जाने के निर्णय को
स्वीकार नहीं किया जा सकता । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर ने अब दोबारा से
नोमीनेटिंग कमेटी के गठन तथा डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव की प्रक्रिया शुरू करने की घोषणा की है ।
डिस्ट्रिक्ट
गवर्नर दिलीप पटनायक का यह फैसला रोटरी के इतिहास में अपनी तरह का अनोखा
फैसला है, जिसमें उन्होंने अपने द्धारा की गई गलतियों की सजा दूसरों को दी
है । रोटरी में चुनाव संबंधी बहुत झगड़े होते हैं, उनमें फैसले भी होते हैं -
लेकिन यह कभी देखने में नहीं आया कि 'अपराधी' खुद ही अपना अपराध स्वीकार
कर ले और अपने को सजा देने की बजाये दूसरों की 'गर्दन उड़ा' दे । चुनावी
प्रक्रिया में व्यवस्थासंबंधी दिशा-निर्देशों का पालन न होने का आरोप यदि
सच भी है, तो इसके लिए दोषी कौन है ? चुनावी प्रक्रिया में व्यवस्थासंबंधी
दिशा-निर्देशों के पालन को सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी डिस्ट्रिक्ट
गवर्नर के अलावा और किसकी होती है ? दिलीप पटनायक ने जो फैसला किया
उससे साबित हुआ है कि पहले तो उन्होंने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में अपनी
जिम्मेदारी का पालन नहीं किया; और जब इस बारे में शिकायत की गई तो बिना
किसी जाँच-पड़ताल के उन्होंने शिकायत को स्वीकार कर लिया और अपने आप को सजा
देने की बजाये नोमीनेटिंग कमेटी के सदस्यों तथा उनके द्धारा चुने गए अधिकृत
उम्मीदवार टीके रूबी पर तलवार चला दी ।
इस फैसले तक 'पहुँचने' के लिए व्यूहरचना तो बड़ी पक्की की गई, लेकिन इस व्यूहरचना का जो सारा तानाबाना है, वह व्यूहरचना के पीछे छिपे षड्यंत्र की खुद-ब-खुद पोल खोलता है । उल्लेखनीय है कि
नोमीनेटिंग कमेटी द्धारा अधिकृत उम्मीदवार के रूप में टीके रूबी के चुने
जाने के फैसले को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के एक अन्य उम्मीदवार डीसी
बंसल ने चेलैंज किया । चेलैंज के साथ-साथ उनकी तरफ से चुनावी प्रक्रिया की
गड़बड़ियों को लेकर शिकायत भी की गई । दोनों बातें एक साथ करने के पीछे
इरादा शायद यही रहा था कि चेलैंज को मान्य कराने के लिए जरूरी कॉन्करेंस
यदि नहीं जुटाई जा सकीं तो फिर शिकायत के आधार पर टीके रूबी के चयन को निशाना बनाया जायेगा । यही हुआ भी । चेलैंज को मान्य कराने के लिए जरूरी कॉन्करेंस जुटाई नहीं जा सकीं, जिस कारण चेलैंज वाला मसला तो अपने आप खत्म हो गया; और फिर चुनावी प्रक्रिया की गड़बड़ियाँ मुद्दा बन गईं । गड़बड़ियों की जाँच के लिए बाकायदा एक कमेटी बनी और कमेटी ने गड़बड़ियों को सही पाया और फिर इस आधार पर 22 फरवरी को डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में हुए चुनाव को अमान्य घोषित कर दिया गया । इस फैसले को कन्विंसिंग बनाने के लिए तानाबाना तो पूरा बुना गया; लेकिन इस तानेबाने में इतने झोल हैं कि यह साफ
पता चलता है कि 'फैसला' तो पहले ही कर लिया गया था और जैसे यह तय कर लिया
गया था कि टीके रूबी को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी नहीं ही बनने देना है ।
डिस्ट्रिक्ट
गवर्नर दिलीप पटनायक ने इन पँक्तियों के लेखक को झूठ बोल कर जिस तरह से
बहकाने की कोशिश की, उससे भी यह साबित होता हुआ नजर आया कि उन्होंने जो
किया, या उनसे जो करवाया गया उसे लेकर उनमें 'अपराध' का बोध है । इन पँक्तियों के लेखक ने इस फैसले के बारे में जानकारी पाने के लिए दिलीप पटनायक से मोबाइल पर बात की, तो
उन्होंने इस तरह का फैसला होने की बात से ही इंकार कर दिया । अपनी
व्यस्तता का वास्ता देकर उन्होंने ज्यादा बात करने से तो बचने की कोशिश की,
किंतु उक्त फैसला होने की बात को उन्होंने हरगिज हरगिज स्वीकार नहीं किया ।
दिलीप पटनायक का यह रवैया बताता है कि जो कुछ हुआ, उसे लेकर वह खुद बहुत
दुविधा में हैं और उसके साथ जुड़े 'दिखने' से बचने की कोशिश करना चाहते हैं ।
दरअसल, 22 फरवरी को डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में टीके रूबी
के अधिकृत उम्मीदवार चुने जाने के साथ ही यह सुना जाने लगा था कि
डिस्ट्रिक्ट के 'राजा' - पूर्व इंटरनेशनल प्रेसीडेंट राजेंद्र उर्फ राजा
साबू इस फैसले को किसी भी कीमत पर लागू नहीं होने देंगे । उल्लेखनीय है कि
राजा साबू के इस डिस्ट्रिक्ट में पिछले कई वर्षों से यह प्रथा बनी हुई है
कि नोमीनेटिंग कमेटी द्धारा चुने गए अधिकृत उम्मीदवार को कोई चेलैंज नहीं
करता है और अधिकृत उम्मीदवार ही डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी बनता है ।
इस बार लेकिन अधिकृत उम्मीदवार का नाम घोषित होने के साथ ही यह कहने/सुनने
में आने लगा कि डीसी बंसल अवश्य ही अधिकृत उम्मीदवार को चेलैंज करेंगे ।
नोमीनेटिंग कमेटी का फैसला आने से पहले वास्तव में हर किसी को डीसी बंसल के
अधिकृत उम्मीदवार के रूप में चुने जाने की उम्मीद थी । डीसी बंसल को राजा
साबू के उम्मीदवार के रूप में देखा/पहचाना जा रहा था । डिस्ट्रिक्ट में राजा साबू का जैसा जलवा है, उसके चलते कोई सपने में भी नहीं सोच सकता था कि नोमीनेटिंग कमेटी के सदस्य डीसी बंसल के अलावा अन्य किसी को चुन सकते हैं ।
नोमीनेटिंग कमेटी के अधिकतर सदस्यों ने लेकिन टीके रूबी में भरोसा जताया
और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए उन्हें चुना । यह फैसला आते ही
डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में उपस्थित रोटेरियन सकते में आ गए । किसी के लिए
भी विश्वास करना मुश्किल था कि डिस्ट्रिक्ट में राजा साबू की इच्छा के
विपरीत कोई फैसला हो सकता है । फैसला तो लेकिन हो गया । फैसला हो भले ही गया, किंतु साथ ही साथ यह सुनाई भी पड़ने लगा कि राजा साबू इस फैसले को मान्य नहीं होने देंगे । जो सुनाई पड़ा था, वह अंततः सच भी साबित हुआ ।
इसके लिए लेकिन डिस्ट्रिक्ट की प्रथा की बलि चढ़ानी पड़ी है । प्रथा हालाँकि लोग अपने फायदे के लिए ही बनाते हैं; और जब वह फायदे में रूकावट डालने लगती हैं तो उन्हें तोड़ने में भी नहीं हिचकिचाते हैं । डिस्ट्रिक्ट 3080 में - राजा साबू के डिस्ट्रिक्ट में भी यदि ऐसा ही हुआ है, तो इसमें आश्चर्य की भला क्या बात है ?
इसके लिए लेकिन डिस्ट्रिक्ट की प्रथा की बलि चढ़ानी पड़ी है । प्रथा हालाँकि लोग अपने फायदे के लिए ही बनाते हैं; और जब वह फायदे में रूकावट डालने लगती हैं तो उन्हें तोड़ने में भी नहीं हिचकिचाते हैं । डिस्ट्रिक्ट 3080 में - राजा साबू के डिस्ट्रिक्ट में भी यदि ऐसा ही हुआ है, तो इसमें आश्चर्य की भला क्या बात है ?