नई दिल्ली । नरेश गुप्ता देश के पहले ऐसे डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बने हैं जिनसे लायंस इंटरनेशल ने कार्यकाल खत्म होने से पहले गवर्नर पद के अधिकार छीन लिए हैं । देश
में लायनिज्म का यह साठवाँ वर्ष है - और इस साठवें वर्ष में डिस्ट्रिक्ट
321 ए थ्री के गवर्नर के रूप में नरेश गुप्ता ने लायनिज्म को जिस तरह
कलंकित किया है, वह अपने आप में बेमिसाल उदाहरण तो है ही; एक रिकॉर्ड भी है
। अपने और लायनिज्म के मुँह पर एक साथ कालिख पुतवाने का नरेश गुप्ता
ने जो 'कमाल' किया है, वह सिर्फ इस कारण से संभव हो सका क्योंकि उन्होंने
अपने आपको पूरी तरह हर्ष बंसल और डीके अग्रवाल के यहाँ गिरवी रख दिया और
अपने आप को उनकी कठपुतली बना लिया । डिस्ट्रिक्ट के मॉरटोरिअम में जाने
से उन गतिविधियों पर रोक लग गई है, जिन गतिविधियों ने पिछले करीब एक वर्ष
से डिस्ट्रिक्ट में लायनिज्म को एक गंदा नाला बना दिया था । डिस्ट्रिक्ट
में राजनीति और राजनीति के नाम पर फर्जीवाड़ा वर्षों से हो रहा था और
प्रत्येक नेता ने अपने अपने तरीके से फर्जी कामों में भूमिका निभाई हुई थी ।
लायनिज्म का तानाबाना लेकिन इतना विशाल और महान है कि वह तमाम तरह की
टुच्चईयों को झेल लेता है । लायनिज्म ने हर्ष बंसल को झेल लिया, जिसने
हर किसी से गालियाँ खाईं हैं - और सिर्फ गालियाँ ही नहीं, भरी मीटिंग में
लात-घूँसे भी खाए हैं ।
लायनिज्म किंतु तब हर्ष बंसल से हार गया, जब हर्ष बंसल ने ऐलान कर दिया कि वह किसी भी कीमत पर वीके हंस को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नहीं बनने देंगे । हर्ष बंसल चुनावी तरीके से तो वीके हंस को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनने से रोकने में विफल रहे और फिर उन्होंने गैर-लायनिस्टिक तरीके अपनाए - जहाँ लायनिज्म को हारना ही था । डीके अग्रवाल ने डिस्ट्रिक्ट में बहुत से लोगों को बनाया और बिगाड़ा है - इसके बावजूद वह डिस्ट्रिक्ट के एक सर्वमान्य नेता बने और सभी के बीच अपने लिए आधार बनाया; किंतु दीपक टुटेजा को 'बिगाड़ने' के अपने इरादे में वह इतनी दूर तक चले गए कि हर्ष बंसल जैसे घटिया व्यक्ति के साथ हाथ मिलाने से भी परहेज नहीं बनाये रख सके, तो डिस्ट्रिक्ट को मॉरटोरिअम में पहुँचाने के एक जिम्मेदार वह भी बने । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में राकेश त्रेहन के कुछेक 'खेल' विजय शिरोहा के कारण यदि कामयाब नहीं हो सके, तो राकेश त्रेहन के मन में उनके प्रति गुस्सा पैदा हुआ - यहाँ तक तो बात समझ में आती है; लेकिन यह गुस्सा एक लीचड़ किस्म के व्यक्तिगत विरोध में बदल जाये तो फिर हालात मॉरटोरिअम की तरफ ही जाते हैं । ओंकार सिंह रेनु लायनिज्म में कुछ अच्छा करने के इरादे से आते हैं और बहुत कुछ करते भी हैं; यह करते हुए वह डिस्ट्रिक्ट की राजनीति में एक पक्ष के साथ जुड़ जाते हैं - इसमें कोई गलती नहीं है; लेकिन एक पक्ष के साथ वह इस हद तक जुड़ जाते हैं कि उस पक्ष की राजनीति को साधने के लिए वह रीजन चेयरमैन होने के बाद जोन चेयरमैन बनना भी स्वीकार कर लेते हैं, तो यह घटिया लोगों के साथ सहभागी बनने का उदाहरण है ।
डिस्ट्रिक्ट के मॉरटोरिअम में जाने के लिए हर्ष बंसल, डीके अग्रवाल, राकेश त्रेहन जैसे लोग ही जिम्मेदार नहीं हैं - ओंकार सिंह रेनु जैसे लोग भी जिम्मेदार हैं । इसलिए जिम्मेदार हैं क्योंकि इन्होंने जो पाना/करना चाहा उसके लिए इन्होंने लिमिट क्रॉस करने में भी कोई हिचकिचाहट नहीं दिखाई । बात सिर्फ यह नहीं है कि इन्होंने फर्जीवाड़े किए और षड्यंत्र किए - वह तो दीपक टुटेजा और विजय शिरोहा ने भी किए । किसने नहीं किए ? कम/ज्यादा का अंतर भले ही हो, फर्जीवाड़े और षड्यंत्र के गंदे नाले में सभी ने हाथ धोये हैं । लायनिज्म में यदि चुनाव की व्यवस्था है, तो राजनीति तो होगी ही; और यदि राजनीति होगी तो फर्जीवाड़ा व षड्यंत्र भी होंगे - यह एक कठोर सच्चाई है; जो लोग बड़ी आदर्शात्मक बातें करते हैं या कर रहे हैं और धर्मात्मा 'दिखने' का प्रयास कर रहे हैं, वह झूठे और पाखंडी लोग हैं । बात फर्जीवाड़े और षड्यंत्र की नहीं है - बात दाल में नमक या नमक में दाल की है !
डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री मॉरटोरिअम में इसलिए नहीं गया क्योंकि इसमें राजनीति हुई और राजनीति में फर्जीवाड़ा व षड्यंत्र हुआ - यह सब तो यहाँ शुरू से हो रहा था । दूसरे डिस्ट्रिक्ट में भी खूब राजनीति होती है और खूब फर्जीवाड़े व षड्यंत्र होते हैं । यह कोई नई बात नहीं है । डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री मॉरटोरिअम में इसलिए गया क्योंकि यहाँ कुछेक नेताओं ने अपनी नकारात्मक राजनीति को सफल बनाने के लिए किसी भी हद तक जाने का फैसला लिया था । आरके शाह की चुनावी जीत में लायंस इंटनेशनल के फैसले के जरिये तथा विक्रम शर्मा के 'चयन' में अदालती कार्रवाई के जरिये फच्चर फँसा देने के बाद भी हालात बहुत खराब नहीं हुए थे; और इसी का नतीजा था कि दोनों पक्षों के नेता आरके शाह व विक्रम शर्मा को बारी बारी से गवर्नर 'चुन' लेने के फार्मूले पर लिए राजी हो गए थे । आरके शाह के समर्थक नेता पहला नंबर विक्रम शर्मा को भी देने को तैयार हो गए थे । पर यह हो न सका, क्योंकि विक्रम शर्मा के समर्थक नेताओं का उद्देश्य दरअसल 'कुछ' और था ! हर्ष बंसल को वीके हंस से दुश्मनी निकालनी थी; डीके अग्रवाल को दीपक टुटेजा से निपटना था; राकेश त्रेहन को विजय शिरोहा से बदला लेना था; नरेश गुप्ता को हर्ष बंसल व डीके अग्रवाल की गुलामी करनी थी; ओंकार सिंह रेनु को इन लोगों के सहारे 'आगे' बढ़ना था - और इस सबके लिए यह विक्रम शर्मा की उम्मीदवारी को 'इस्तेमाल' कर रहे थे ।
विक्रम शर्मा के समर्थक नेताओं को यदि सचमुच में विक्रम शर्मा को गवर्नर बनवाना होता, तो विक्रम शर्मा को वह आराम से गवर्नर बनवा लेते; पर वह तो अपनी अपनी राजनीति करने में लगे रहे और डिस्ट्रिक्ट को मॉरटोरिअम की भेंट चढ़ा बैठे । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नरेश गुप्ता यदि जरा सी अक्ल और जरा सा आत्मसम्मान दिखाते तो न तो डिस्ट्रिक्ट को इस तरह से बदनाम होना पड़ता और न खुद उन्हें इस तरह बेइज्जत होना पड़ता ।
लायनिज्म किंतु तब हर्ष बंसल से हार गया, जब हर्ष बंसल ने ऐलान कर दिया कि वह किसी भी कीमत पर वीके हंस को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नहीं बनने देंगे । हर्ष बंसल चुनावी तरीके से तो वीके हंस को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनने से रोकने में विफल रहे और फिर उन्होंने गैर-लायनिस्टिक तरीके अपनाए - जहाँ लायनिज्म को हारना ही था । डीके अग्रवाल ने डिस्ट्रिक्ट में बहुत से लोगों को बनाया और बिगाड़ा है - इसके बावजूद वह डिस्ट्रिक्ट के एक सर्वमान्य नेता बने और सभी के बीच अपने लिए आधार बनाया; किंतु दीपक टुटेजा को 'बिगाड़ने' के अपने इरादे में वह इतनी दूर तक चले गए कि हर्ष बंसल जैसे घटिया व्यक्ति के साथ हाथ मिलाने से भी परहेज नहीं बनाये रख सके, तो डिस्ट्रिक्ट को मॉरटोरिअम में पहुँचाने के एक जिम्मेदार वह भी बने । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में राकेश त्रेहन के कुछेक 'खेल' विजय शिरोहा के कारण यदि कामयाब नहीं हो सके, तो राकेश त्रेहन के मन में उनके प्रति गुस्सा पैदा हुआ - यहाँ तक तो बात समझ में आती है; लेकिन यह गुस्सा एक लीचड़ किस्म के व्यक्तिगत विरोध में बदल जाये तो फिर हालात मॉरटोरिअम की तरफ ही जाते हैं । ओंकार सिंह रेनु लायनिज्म में कुछ अच्छा करने के इरादे से आते हैं और बहुत कुछ करते भी हैं; यह करते हुए वह डिस्ट्रिक्ट की राजनीति में एक पक्ष के साथ जुड़ जाते हैं - इसमें कोई गलती नहीं है; लेकिन एक पक्ष के साथ वह इस हद तक जुड़ जाते हैं कि उस पक्ष की राजनीति को साधने के लिए वह रीजन चेयरमैन होने के बाद जोन चेयरमैन बनना भी स्वीकार कर लेते हैं, तो यह घटिया लोगों के साथ सहभागी बनने का उदाहरण है ।
डिस्ट्रिक्ट के मॉरटोरिअम में जाने के लिए हर्ष बंसल, डीके अग्रवाल, राकेश त्रेहन जैसे लोग ही जिम्मेदार नहीं हैं - ओंकार सिंह रेनु जैसे लोग भी जिम्मेदार हैं । इसलिए जिम्मेदार हैं क्योंकि इन्होंने जो पाना/करना चाहा उसके लिए इन्होंने लिमिट क्रॉस करने में भी कोई हिचकिचाहट नहीं दिखाई । बात सिर्फ यह नहीं है कि इन्होंने फर्जीवाड़े किए और षड्यंत्र किए - वह तो दीपक टुटेजा और विजय शिरोहा ने भी किए । किसने नहीं किए ? कम/ज्यादा का अंतर भले ही हो, फर्जीवाड़े और षड्यंत्र के गंदे नाले में सभी ने हाथ धोये हैं । लायनिज्म में यदि चुनाव की व्यवस्था है, तो राजनीति तो होगी ही; और यदि राजनीति होगी तो फर्जीवाड़ा व षड्यंत्र भी होंगे - यह एक कठोर सच्चाई है; जो लोग बड़ी आदर्शात्मक बातें करते हैं या कर रहे हैं और धर्मात्मा 'दिखने' का प्रयास कर रहे हैं, वह झूठे और पाखंडी लोग हैं । बात फर्जीवाड़े और षड्यंत्र की नहीं है - बात दाल में नमक या नमक में दाल की है !
डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री मॉरटोरिअम में इसलिए नहीं गया क्योंकि इसमें राजनीति हुई और राजनीति में फर्जीवाड़ा व षड्यंत्र हुआ - यह सब तो यहाँ शुरू से हो रहा था । दूसरे डिस्ट्रिक्ट में भी खूब राजनीति होती है और खूब फर्जीवाड़े व षड्यंत्र होते हैं । यह कोई नई बात नहीं है । डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री मॉरटोरिअम में इसलिए गया क्योंकि यहाँ कुछेक नेताओं ने अपनी नकारात्मक राजनीति को सफल बनाने के लिए किसी भी हद तक जाने का फैसला लिया था । आरके शाह की चुनावी जीत में लायंस इंटनेशनल के फैसले के जरिये तथा विक्रम शर्मा के 'चयन' में अदालती कार्रवाई के जरिये फच्चर फँसा देने के बाद भी हालात बहुत खराब नहीं हुए थे; और इसी का नतीजा था कि दोनों पक्षों के नेता आरके शाह व विक्रम शर्मा को बारी बारी से गवर्नर 'चुन' लेने के फार्मूले पर लिए राजी हो गए थे । आरके शाह के समर्थक नेता पहला नंबर विक्रम शर्मा को भी देने को तैयार हो गए थे । पर यह हो न सका, क्योंकि विक्रम शर्मा के समर्थक नेताओं का उद्देश्य दरअसल 'कुछ' और था ! हर्ष बंसल को वीके हंस से दुश्मनी निकालनी थी; डीके अग्रवाल को दीपक टुटेजा से निपटना था; राकेश त्रेहन को विजय शिरोहा से बदला लेना था; नरेश गुप्ता को हर्ष बंसल व डीके अग्रवाल की गुलामी करनी थी; ओंकार सिंह रेनु को इन लोगों के सहारे 'आगे' बढ़ना था - और इस सबके लिए यह विक्रम शर्मा की उम्मीदवारी को 'इस्तेमाल' कर रहे थे ।
विक्रम शर्मा के समर्थक नेताओं को यदि सचमुच में विक्रम शर्मा को गवर्नर बनवाना होता, तो विक्रम शर्मा को वह आराम से गवर्नर बनवा लेते; पर वह तो अपनी अपनी राजनीति करने में लगे रहे और डिस्ट्रिक्ट को मॉरटोरिअम की भेंट चढ़ा बैठे । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नरेश गुप्ता यदि जरा सी अक्ल और जरा सा आत्मसम्मान दिखाते तो न तो डिस्ट्रिक्ट को इस तरह से बदनाम होना पड़ता और न खुद उन्हें इस तरह बेइज्जत होना पड़ता ।