Friday, April 17, 2015

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए विनय भाटिया की उम्मीदवारी के अभियान का उत्साह जिस तरह उन्माद में बदल कर लोगों के बीच बदनामी प्राप्त कर रहा है, उसे देख/जान कर विनय भाटिया की उम्मीदवारी के समर्थकों व शुभचिंतकों को भी चिंता होने लगी है

फरीदाबाद । विनय भाटिया की जगह नवदीप चावला को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए उम्मीदवार बनाये जाने के 'सुझाव' सुने जाने से विनय भाटिया की उम्मीदवारी पर खतरे के बादल मंडराने लगे हैं । खतरे के यह बादल इसलिए और भी घने हैं क्योंकि यह 'सुझाव' ऐसे लोगों की तरफ से आ रहे हैं, जिन्हें विनय भाटिया की उम्मीदवारी के पक्के समर्थकों के रूप में देखा/पहचाना जाता है । विनय भाटिया की उम्मीदवारी के एक बड़े समर्थक नेता ने इन पँक्तियों के लेखक से बात करते हुए स्वीकार किया कि अगले रोटरी वर्ष के लिए जो चुनावी परिदृश्य बनता हुआ दिख रहा है, उसमें विनय भाटिया फिट नहीं लग रहे हैं; और इसलिए फरीदाबाद के लोग यदि सचमुच चाहते हैं कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर फरीदाबाद से हो तो उन्हें नवदीप चावला को उम्मीदवार बनाना चाहिए । नवदीप चावला की उम्मीदवारी हालाँकि दूर की कौड़ी लाने वाली बात है । नवदीप चावला के नजदीकियों का ही मानना और कहना है कि नवदीप चावला की इच्छा तो है, लेकिन अभी वह जल्दी में नहीं हैं । फरीदाबाद की रोटरी में अभी जो हुड़दंग है, उसके कारण भी वह अभी अपनी उम्मीदवारी लाने का जोखिम नहीं लेना चाहेंगे । वह जान/समझ रहे हैं कि अभी उम्मीदवारी लायेंगे तो यहाँ अभी जो हुड़दंगी किस्म के लोग सक्रिय हैं, वह उनके सिर पर बैठने की कोशिश करेंगे; इसलिए उम्मीदवारी के पचड़े से अभी दूर रहने में ही वह अपनी भलाई देख रहे हैं । नवदीप चावला की इस सोच के कारण विनय भाटिया की उम्मीदवारी के लिए कोई सीधा खतरा तो नहीं है, किंतु नवदीप चावला की उम्मीदवारी का 'सुझाव' जिस कारण से सामने आया है, वह कारण विनय भाटिया की उम्मीदवारी के लिए चुनौती जरूर है ।
दरअसल विनय भाटिया की उम्मीदवारी का उत्साह जिस तरह उन्माद में बदलता दिख रहा है, उसने विनय भाटिया की उम्मीदवारी के समर्थकों व शुभचिंतकों को भी चिंता में डाल दिया है । विनय भाटिया की उम्मीदवारी के अभियान में अभी तक फरीदाबाद की एकता का शोर-शराबा ज्यादा सुनाई पड़ रहा है - और यह शोर-शराबा उत्साह की सीमारेखा को तोड़ कर उन्माद की तरफ जाता हुआ दिख रहा है । पेट्स में इस उन्माद को देखते हुए यह सवाल उठे कि विनय भाटिया और उनके समर्थक रोटरी जैसे संगठन को अंतर्राष्ट्रीय से आंचलिक बना देने पर क्यों आमादा हैं ? और ऐसा करके वह रोटरी का व डिस्ट्रिक्ट का भला कैसे भला कर पायेंगे ? यह ठीक है कि चुनावी राजनीति में कोई भी उम्मीदवार शुरुआत जातिवाद व क्षेत्रवाद का सहारा लेकर करता है - लेकिन कामयाब होने के लिए फिर वह इसकी सीमाओं को भेद कर आगे बढ़ता है । विनय भाटिया भी अपनी उम्मीदवारी की शुरुआत यदि फरीदाबाद-फरीदाबाद की रट से करते हैं, तो इसमें कोई बुरी बात नहीं है - लेकिन यह रट यदि स्थाई टेक ही बन गई तो फिर मुसीबत हो सकती है । विनय भाटिया की उम्मीदवारी के समर्थकों व शुभचिंतकों को लगता है कि विनय भाटिया और उनका झंडा उठाये उनके साथ चल रहे लोग जिस तरह फरीदाबाद-फरीदाबाद पर अटक गए हैं, ऐसा न हो कि फिर वहीं अटके रह जाये । इस बात का दो तरह से नुकसान हो रहा है : एक तरफ तो फरीदाबाद के लोगों को डर हुआ है कि विनय भाटिया की यह राजनीति उन्हें एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन का नहीं, बल्कि एक आँचलिक संगठन का सदस्य बना देगी; दूसरी तरफ खतरा यह पैदा हुआ है कि फरीदाबाद-फरीदाबाद के जबाव में कहीं दिल्ली-दिल्ली का नारा लग गया, तो विनय भाटिया की उम्मीदवारी का क्या होगा ? केवल फरीदाबाद के भरोसे तो उनकी उम्मीदवारी की नैय्या पार नहीं लग पायेगी न । इस तरह की हरकतों से विनय भाटिया की उम्मीदवारी के कुछेक समर्थकों को उनके अभियान में मैच्योरिटी का अभाव दिख रहा है, और वह उनके समर्थन से हाथ खींचते दिख रहे हैं ।
रवि चौधरी के मामले से इस संबंध में सबक लिया जा सकता है । उल्लेखनीय है कि रवि चौधरी जब पहली बार उम्मीदवार बने थे, तब वह काली-काली जुल्फों के मालिक हुआ करते थे । उस समय कुछेक लोगों ने उन्हें सलाह भी दी थी कि उनकी जुल्फें उनकी उम्मीदवारी को नुकसान पहुँचायेंगी, इसलिए इन्हें कटवा लो । रवि चौधरी को तब लेकिन यह लगा था कि पिछला गवर्नर उनके साथ है, मौजूदा गवर्नर उनके साथ है, आने वाले तीन गवर्नर उनके साथ हैं, और सबसे बड़ी बात यह कि सड़क पर खड़े रिक्शेवाले को भी गवर्नर चुनवा/बनवा देने का दावा करने वाले मुकेश अरनेजा उनके साथ हैं - तो भला उनकी जुल्फें उन्हें क्या नुकसान पहुँचायेंगी । तमाम चौधरियों के समर्थन के बावजूद उस चुनाव में हुई उनकी हार में उनकी जुल्फों का कितना/क्या योगदान था, इसका तो पता नहीं; लेकिन सच यह देखने में आया कि इस बार रवि चौधरी जब दोबारा से उम्मीदवार बने तो अपनी जुल्फों को कटवा कर और बालों को रंगना छोड़ कर बने । इस बार मिली जीत में उनके बालों में दिखती सफेदी का योगदान हो या न हो लेकिन मॉरल ऑफ द स्टोरी तो यह है ही कि खुद रवि चौधरी भी स्वीकार करते नजर आये कि एक उम्मीदवार को मैच्योर 'दिखना' तो चाहिए ही ।
विनय भाटिया की उम्मीदवारी का अभियान अभी तक जिस तरह चल रहा है, उसमें हाय-हल्ला और शोर-शराबा ज्यादा नजर आ रहा है; और इस कारण उसमें मैच्योरिटी का अभाव दिख रहा है । इससे हो यह रहा है कि फरीदाबाद में ही लोग नाराज होने लगे हैं । अभी कोई खुल कर तो कुछ नहीं कह रहा है, लेकिन भीतर ही भीतर फैल रही नाराजगी को यदि समय रहते नहीं पहचाना गया और उसे नियंत्रित करने का प्रयास नहीं किया गया, तो यह नाराजगी महँगी पड़ सकती है । पेट्स के गिफ्ट स्पॉन्सर करने के मामले में विनय भाटिया और उनके सलाहकारों द्धारा तैयार की गई योजना की जैसी फजीहत हुई और फिर जिस तरह उन्हें पीछे हटने के लिए मजबूर होना पड़ा था, उससे भी उन्होंने कोई सबक नहीं लिया है । इन्हीं कारणों से विनय भाटिया की उम्मीदवारी के समर्थक नेता उनकी जगह दूसरे किसी को उम्मीदवार बनाने का सुझाव देने लगे हैं, तो यह स्थिति विनय भाटिया के रास्ते को मुश्किल तो बनाती ही है ।