जयपुर । इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव में एक उम्मीदवार के रूप में अशोक गुप्ता का व्यवहार और रवैया ही उनका दुश्मन बन गया है । उनके
समर्थक और शुभचिंतक तक हैरान हैं कि अशोक गुप्ता हर किसी से यह क्यों कहते
हैं कि इंटरनेशनल डायरेक्टर बनने में उनकी तो कोई दिलचस्पी नहीं है, और
उन्होंने तो बस अपने नजदीकियों के कहने में आकर नामाँकन भर दिया है । उनकी
इस बात से लोगों ने यही अनुमान लगाया है कि अशोक गुप्ता ने चुनाव होने से
पहले ही अपनी हार को स्वीकार कर लिया है और अपनी हार को पचाने के लिए अभी
से कहना शुरू कर दिया है कि उन्हें तो इंटरनेशनल डायरेक्टर बनने में कोई
दिलचस्पी है ही नहीं । अशोक गुप्ता के लिए एक मुसीबत की बात यह भी हुई
है कि अपने डिस्ट्रिक्ट में ही उनके विरोध का झंडा उठाए घूम रहे पूर्व
गवर्नर अनिल अग्रवाल को उन्होंने 'पटा' लिया है, तो उसके कारण उनके खासमखास
पूर्व गवर्नर रत्नेश कश्यप उनसे नाराज हो गए हैं । रत्नेश कश्यप को भय
है कि अनिल अग्रवाल के संबंध यदि अशोक गुप्ता के साथ सुधर गए, तो अशोक
गुप्ता के 'दरबार' में उनकी पोजीशन और पीछे हो जाएगी । रत्नेश कश्यप
इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए अधिकृत उम्मीदवार का चुनाव करने वाली
नोमीनेटिंग कमेटी में डिस्ट्रिक्ट का प्रतिनिधित्व करेंगे - और
नोमीनेटिंग कमेटी में अपनी दाल गलवाने के लिए अशोक गुप्ता को एक अकेले
रत्नेश कश्यप का ही सहारा है । इसलिए रत्नेश कश्यप की नाराजगी अशोक गुप्ता
के लिए कोई अच्छे संकेत नहीं हैं ।
अशोक गुप्ता को इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए अधिकृत उम्मीदवार का चुनाव करने वाली नोमीनेटिंग कमेटी के संयोजक विजय गुप्ता के 'रंग-ढंग' भी कुछ अच्छे नहीं लग रहे हैं; इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव में अलग अलग कारणों से दिलचस्पी रखने वाले अन्य कई लोगों की तरह अशोक गुप्ता को भी लगता है कि नोमीनेटिंग कमेटी की मीटिंग पंचकुला में रखवा कर विजय गुप्ता ने पूर्व इंटरनेशनल प्रेसीडेंट राजेंद्र उर्फ़ राजा साबू को चुनाव में हस्तक्षेप करने का मौका दिया है - जो अशोक गुप्ता के लिए परेशानी की बात है । उल्लेखनीय है कि उक्त मीटिंग पहले दिल्ली में होने की बात हुई थी, लेकिन दिल्ली को इस बिना पर खारिज कर दिया गया कि तब चुनाव पर पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर सुशील गुप्ता की छाया पड़ती । चुनाव को सुशील गुप्ता की छाया से बचाने के लिए राजा साबू की छाया में 'डाल' देने का विजय गुप्ता का तर्क किसी को भी हजम नहीं हो पा रहा है । हालाँकि विजय गुप्ता ने पंचकुला में मीटिंग करने/रखने का फैसला अपनी खुद की सुविधा के लिए किया बताया है; उनके इस दावे को लेकिन उनकी बहानेबाजी के रूप में देखा जा रहा है - लोगों का कहना है कि एक अपनी सुविधा के लिए उन्होंने नोमीनेटिंग कमेटी के कई सदस्यों के लिए परेशानी पैदा कर दी, जिनके लिए दिल्ली के मुकाबले पंचकुला पहुँचना परेशानी भरा होगा । दरअसल इस लचर दावे के कारण ही नोमीनेटिंग कमेटी के संयोजक के रूप में विजय गुप्ता की भूमिका संदिग्ध हो गई है ।
विजय गुप्ता की इस संदिग्ध भूमिका के कारण ही लगता है कि अशोक गुप्ता को अपनी सफलता की उम्मीद घटती हुई लगी है, और इसी नाउम्मीदी में उन्होंने लोगों से कहना/बताना शुरू कर दिया है कि इंटरनेशनल डायरेक्टर बनने में उनकी तो वास्तव में कोई दिलचस्पी है नहीं - बन गए तो ठीक है, काम कर लेंगे । अशोक गुप्ता के इस रवैए से उनकी उम्मीदवारी को सफल होते देखने वाले उनके समर्थकों व शुभचिंतकों को तगड़ा झटका लगा है । उन्हें लगा है कि इस तरह की बातों से तो अशोक गुप्ता अपनी पराजय को सुनिश्चित ही कर लेंगे । नोमीनेटिंग कमेटी के सदस्यों को लगेगा कि वह यदि अशोक गुप्ता को वोट करेंगे, तो अशोक गुप्ता तो उनका कोई अहसान मानेंगे ही नहीं - और इसलिए अशोक गुप्ता को दिया गया उनका वोट तो बट्टे-खाते में ही जाएगा । माना जाता है कि नोमीनेटिंग कमेटी के सदस्यों के भिन्न भिन्न तरह के 'स्वार्थ' होते हैं, और अपने उन स्वार्थों के पूरा होने के आश्वासन के भरोसे ही वह अपने वोट की 'दिशा' और 'दशा' निर्धारित करते हैं । ऐसे में, अशोक गुप्ता यदि यह कह रहे हैं कि इंटरनेशनल डायरेक्टर पद में उनकी कोई दिलचस्पी नहीं है - तो नोमीनेटिंग कमेटी के सदस्यों को अपना स्वार्थ उनसे पूरा होता नहीं 'दिखेगा' और इसलिए वह उन्हें वोट देने के बारे में सोचेंगे भी नहीं ।
इंटरनेशनल डायरेक्टर के चुनाव में दिलचस्पी रखने वाले कुछेक नेता हालाँकि 'इस' रवैये को अशोक गुप्ता की चाल के रूप में भी देख रहे हैं । इनका तर्क है कि अशोक गुप्ता ने कोई कच्ची गोलियाँ नहीं खेली हैं और वह बड़ा बारीक 'काटने' वाले व्यक्ति हैं - इसलिए यह मान लेना बेवकूफी ही होगी कि वह जो 'कह' रहे हैं, उससे हो सकने वाले नुकसान को वह नहीं समझ/पहचान रहे होंगे । ऐसा मानने और कहने वाले नेताओं का अनुमान है कि अशोक गुप्ता ने नोमीनेटिंग कमेटी का फैसला अपने पक्ष में करवाने के लिए एक अलग रणनीति बनाई है, और उस रणनीति को छिपा कर रखने तथा लोगों का ध्यान भटकाने के लिए उन्होंने यह कहना शुरू किया है कि इंटरनेशनल डायरेक्टर बनने में उनकी तो कोई दिलचस्पी नहीं है । दरअसल अशोक गुप्ता ने अपने मुखर विरोधी अपने ही डिस्ट्रिक्ट के पूर्व गवर्नर अनिल अग्रवाल को चुप करने/कराने का जो काम किया है, उसे जान/पहचान कर ही कुछेक लोगों को इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव में अशोक गुप्ता द्वारा अपनाई जा रही दोहरी रणनीति का शक हुआ है ।
उल्लेखनीय है कि अनिल अग्रवाल वास्तव में अशोक गुप्ता को फूटी आँख भी नहीं सुहाते हैं; अशोक गुप्ता के बारे में मशहूर है कि जो उन्हें नहीं सुहाता है, वह उसे पूरी तरह नेस्तनाबूद करके ही दम लेते हैं - अनिल अग्रवाल के प्रति भी उनका यही रवैया था, जिसके चलते अपने ही डिस्ट्रिक्ट में अनिल अग्रवाल के लिए बहुत थोड़ी सी ही जगह बची रह गई है । ऐसे में, अपने स्वभाव के विपरीत अशोक गुप्ता ने जिस तरह अनिल अग्रवाल को गले लगा लिया है - उससे उनके नजदीकियों के साथ साथ उनके विरोधियों को भी हैरानी हुई है; और इस हैरानी में ही कुछेक लोगों ने अशोक गुप्ता की इंटरनेशनल डायरेक्टर पद की चुनावी राजनीति की 'जरूरत' को देखा/पहचाना है । उन्हें लगता है कि अशोक गुप्ता ने इस तथ्य को समझ लिया है कि अनिल अग्रवाल के बस की और कुछ कर पाना भले ही न हो, लेकिन वह उनकी दोहरी रणनीति की पोल जरूर खोल सकेंगे । इसलिए अनिल अग्रवाल को 'चुप' करने के लिए अशोक गुप्ता ने अपने स्वभाव के विपरीत अनिल अग्रवाल को गले लगा लिया - जिसके बाद अशोक गुप्ता के खिलाफ छेड़े गए अपने अभियान को अनिल अग्रवाल ने भी रोक दिया है । अशोक गुप्ता द्वारा अनिल अग्रवाल के साथ किए गए इस मेल मिलाप की बात को जानते/समझते हुए ही लोगों को लगता है कि इंटरनेशनल डायरेक्टर बनने में दिलचस्पी न होने की कही जा रही बात के पीछे अशोक गुप्ता की कोई गहरी चाल है ।
इंटरनेशनल डायरेक्टर पद की पगड़ी पहनने में अशोक गुप्ता को सचमुच कोई दिलचस्पी नहीं है, और या ऐसा कह कर वह अपनी किसी छिपी चाल को सफल बनाने का प्रयास कर रहे हैं - यह बात जल्दी ही सामने आ जाएगी; लेकिन उनके इंटरनेशनल डायरेक्टर बनने में दिलचस्पी न होने की खुद उनके द्वारा ही कही जा रही बात ने इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनावी परिदृश्य को रोमांचक जरूर बना दिया है ।
अशोक गुप्ता को इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए अधिकृत उम्मीदवार का चुनाव करने वाली नोमीनेटिंग कमेटी के संयोजक विजय गुप्ता के 'रंग-ढंग' भी कुछ अच्छे नहीं लग रहे हैं; इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव में अलग अलग कारणों से दिलचस्पी रखने वाले अन्य कई लोगों की तरह अशोक गुप्ता को भी लगता है कि नोमीनेटिंग कमेटी की मीटिंग पंचकुला में रखवा कर विजय गुप्ता ने पूर्व इंटरनेशनल प्रेसीडेंट राजेंद्र उर्फ़ राजा साबू को चुनाव में हस्तक्षेप करने का मौका दिया है - जो अशोक गुप्ता के लिए परेशानी की बात है । उल्लेखनीय है कि उक्त मीटिंग पहले दिल्ली में होने की बात हुई थी, लेकिन दिल्ली को इस बिना पर खारिज कर दिया गया कि तब चुनाव पर पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर सुशील गुप्ता की छाया पड़ती । चुनाव को सुशील गुप्ता की छाया से बचाने के लिए राजा साबू की छाया में 'डाल' देने का विजय गुप्ता का तर्क किसी को भी हजम नहीं हो पा रहा है । हालाँकि विजय गुप्ता ने पंचकुला में मीटिंग करने/रखने का फैसला अपनी खुद की सुविधा के लिए किया बताया है; उनके इस दावे को लेकिन उनकी बहानेबाजी के रूप में देखा जा रहा है - लोगों का कहना है कि एक अपनी सुविधा के लिए उन्होंने नोमीनेटिंग कमेटी के कई सदस्यों के लिए परेशानी पैदा कर दी, जिनके लिए दिल्ली के मुकाबले पंचकुला पहुँचना परेशानी भरा होगा । दरअसल इस लचर दावे के कारण ही नोमीनेटिंग कमेटी के संयोजक के रूप में विजय गुप्ता की भूमिका संदिग्ध हो गई है ।
विजय गुप्ता की इस संदिग्ध भूमिका के कारण ही लगता है कि अशोक गुप्ता को अपनी सफलता की उम्मीद घटती हुई लगी है, और इसी नाउम्मीदी में उन्होंने लोगों से कहना/बताना शुरू कर दिया है कि इंटरनेशनल डायरेक्टर बनने में उनकी तो वास्तव में कोई दिलचस्पी है नहीं - बन गए तो ठीक है, काम कर लेंगे । अशोक गुप्ता के इस रवैए से उनकी उम्मीदवारी को सफल होते देखने वाले उनके समर्थकों व शुभचिंतकों को तगड़ा झटका लगा है । उन्हें लगा है कि इस तरह की बातों से तो अशोक गुप्ता अपनी पराजय को सुनिश्चित ही कर लेंगे । नोमीनेटिंग कमेटी के सदस्यों को लगेगा कि वह यदि अशोक गुप्ता को वोट करेंगे, तो अशोक गुप्ता तो उनका कोई अहसान मानेंगे ही नहीं - और इसलिए अशोक गुप्ता को दिया गया उनका वोट तो बट्टे-खाते में ही जाएगा । माना जाता है कि नोमीनेटिंग कमेटी के सदस्यों के भिन्न भिन्न तरह के 'स्वार्थ' होते हैं, और अपने उन स्वार्थों के पूरा होने के आश्वासन के भरोसे ही वह अपने वोट की 'दिशा' और 'दशा' निर्धारित करते हैं । ऐसे में, अशोक गुप्ता यदि यह कह रहे हैं कि इंटरनेशनल डायरेक्टर पद में उनकी कोई दिलचस्पी नहीं है - तो नोमीनेटिंग कमेटी के सदस्यों को अपना स्वार्थ उनसे पूरा होता नहीं 'दिखेगा' और इसलिए वह उन्हें वोट देने के बारे में सोचेंगे भी नहीं ।
इंटरनेशनल डायरेक्टर के चुनाव में दिलचस्पी रखने वाले कुछेक नेता हालाँकि 'इस' रवैये को अशोक गुप्ता की चाल के रूप में भी देख रहे हैं । इनका तर्क है कि अशोक गुप्ता ने कोई कच्ची गोलियाँ नहीं खेली हैं और वह बड़ा बारीक 'काटने' वाले व्यक्ति हैं - इसलिए यह मान लेना बेवकूफी ही होगी कि वह जो 'कह' रहे हैं, उससे हो सकने वाले नुकसान को वह नहीं समझ/पहचान रहे होंगे । ऐसा मानने और कहने वाले नेताओं का अनुमान है कि अशोक गुप्ता ने नोमीनेटिंग कमेटी का फैसला अपने पक्ष में करवाने के लिए एक अलग रणनीति बनाई है, और उस रणनीति को छिपा कर रखने तथा लोगों का ध्यान भटकाने के लिए उन्होंने यह कहना शुरू किया है कि इंटरनेशनल डायरेक्टर बनने में उनकी तो कोई दिलचस्पी नहीं है । दरअसल अशोक गुप्ता ने अपने मुखर विरोधी अपने ही डिस्ट्रिक्ट के पूर्व गवर्नर अनिल अग्रवाल को चुप करने/कराने का जो काम किया है, उसे जान/पहचान कर ही कुछेक लोगों को इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव में अशोक गुप्ता द्वारा अपनाई जा रही दोहरी रणनीति का शक हुआ है ।
उल्लेखनीय है कि अनिल अग्रवाल वास्तव में अशोक गुप्ता को फूटी आँख भी नहीं सुहाते हैं; अशोक गुप्ता के बारे में मशहूर है कि जो उन्हें नहीं सुहाता है, वह उसे पूरी तरह नेस्तनाबूद करके ही दम लेते हैं - अनिल अग्रवाल के प्रति भी उनका यही रवैया था, जिसके चलते अपने ही डिस्ट्रिक्ट में अनिल अग्रवाल के लिए बहुत थोड़ी सी ही जगह बची रह गई है । ऐसे में, अपने स्वभाव के विपरीत अशोक गुप्ता ने जिस तरह अनिल अग्रवाल को गले लगा लिया है - उससे उनके नजदीकियों के साथ साथ उनके विरोधियों को भी हैरानी हुई है; और इस हैरानी में ही कुछेक लोगों ने अशोक गुप्ता की इंटरनेशनल डायरेक्टर पद की चुनावी राजनीति की 'जरूरत' को देखा/पहचाना है । उन्हें लगता है कि अशोक गुप्ता ने इस तथ्य को समझ लिया है कि अनिल अग्रवाल के बस की और कुछ कर पाना भले ही न हो, लेकिन वह उनकी दोहरी रणनीति की पोल जरूर खोल सकेंगे । इसलिए अनिल अग्रवाल को 'चुप' करने के लिए अशोक गुप्ता ने अपने स्वभाव के विपरीत अनिल अग्रवाल को गले लगा लिया - जिसके बाद अशोक गुप्ता के खिलाफ छेड़े गए अपने अभियान को अनिल अग्रवाल ने भी रोक दिया है । अशोक गुप्ता द्वारा अनिल अग्रवाल के साथ किए गए इस मेल मिलाप की बात को जानते/समझते हुए ही लोगों को लगता है कि इंटरनेशनल डायरेक्टर बनने में दिलचस्पी न होने की कही जा रही बात के पीछे अशोक गुप्ता की कोई गहरी चाल है ।
इंटरनेशनल डायरेक्टर पद की पगड़ी पहनने में अशोक गुप्ता को सचमुच कोई दिलचस्पी नहीं है, और या ऐसा कह कर वह अपनी किसी छिपी चाल को सफल बनाने का प्रयास कर रहे हैं - यह बात जल्दी ही सामने आ जाएगी; लेकिन उनके इंटरनेशनल डायरेक्टर बनने में दिलचस्पी न होने की खुद उनके द्वारा ही कही जा रही बात ने इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनावी परिदृश्य को रोमांचक जरूर बना दिया है ।