Monday, September 18, 2017

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के चेयरमैन राकेश मक्कड़ ने सेंट्रल काउंसिल सदस्य अतुल गुप्ता से अपनी और राजेश शर्मा की खुन्नस निकालने के लिए छात्रों को भड़काया और इस्तेमाल किया है क्या ?

नई दिल्ली । इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के दिल्ली स्थित मुख्यालय के बाहर बोर्ड ऑफ स्टडीज के खिलाफ छात्रों द्वारा की गई नारेबाजी को सेंट्रल काउंसिल सदस्य अतुल गुप्ता के खिलाफ नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के सत्ताधारी नेताओं द्वारा छेड़ी गई लड़ाई के रूप देखा/पहचाना गया है । इस लड़ाई के मास्टरमाइंड के रूप में विवादों और आरोपों में घिरे रहे इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल के ही एक अन्य सदस्य राजेश शर्मा को देखा/पहचाना जा रहा है । अतुल गुप्ता बोर्ड ऑफ स्टडीज के चेयरमैन हैं; पिछले दिनों नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के पदाधिकारियों के खिलाफ पैसों की हेराफेरी और लूट के मामलों की पड़ताल में जो सुबूत मिले और जिसके कारण पदाधिकारियों को लूट के पैसे वापस करने तक के लिए मजबूर होना पड़ा - उसमें अतुल गुप्ता की भूमिका से रीजनल काउंसिल के पदाधिकारी बुरी तरह जले-भुने हुए हैं । अतुल गुप्ता की भूमिका से नाराजगी के चलते रीजनल काउंसिल में सत्ता खेमे के सदस्य नितिन कँवर ने मीटिंग में तमाम लोगों के सामने अतुल गुप्ता के साथ बदतमीजी भी की थी । समझा जाता है कि अतुल गुप्ता के साथ अपनी खुन्नस निकालने तथा राजेश शर्मा की हसरत पूरी करने के लिए ही रीजनल काउंसिल के चेयरमैन राकेश मक्कड़ ने अपने साथियों के साथ मिल कर पहले तो छात्रों को नाराज करने वाले हालात पैदा किए और फिर छात्रों को बोर्ड ऑफ स्टडीज तथा अतुल गुप्ता के खिलाफ नारेबाजी करने के लिए भड़काया और संगठित किया । कुछेक लोगों का दावा है कि नारेबाजी करने के लिए इकट्ठा हुए छात्रों में अधिकतर राकेश मक्कड़ के भाई की कोचिंग के छात्र ही थे ।
छात्रों की नाराजगी रीजनल काउंसिल द्वारा चलाई जा रही लाइब्रेरीज को बंद करने को लेकर है । मजे की बात यह है कि लाइब्रेरीज को चलाने की जिम्मेदारी रीजनल काउंसिल की है, और हाल ही में इन्हें बंद करने का फैसला भी रीजनल काउंसिल के चेयरमैन राकेश मक्कड़ ने लिया - लेकिन छात्रों ने आंदोलन बोर्ड ऑफ स्टडीज तथा उसके चेयरमैन अतुल गुप्ता के खिलाफ किया । दरअसल छात्रों को यह कहते/बताते हुए भड़काया गया कि लाइब्रेरीज चलाने में होने वाला खर्च बोर्ड ऑफ स्टडीज ने देने से मना कर दिया है, इसलिए लाइब्रेरीज को बंद किया जा रहा है । यह कहने/बताने में भी तथ्यों को छिपाया गया तथा सच्चाई को तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत किया गया - क्योंकि वास्तविक उद्देश्य छात्रों को भड़का कर उन्हें अतुल गुप्ता के खिलाफ इस्तेमाल करना था, और इस तरह अतुल गुप्ता से बदला लेना था ।
उल्लेखनीय है कि लाइब्रेरीज चलाने का खर्च रीजनल काउंसिल और बोर्ड ऑफ स्टडीज के पदाधिकारियों के बीच तकरार का एक बहुत पुराना कारण और मामला है । इस मामले को हल करने के लिए जिम्मेदारीपूर्ण प्रयास यूँ तो कभी भी नहीं हुए और हमेशा ही लीपापोती करते हुए मामले को आगे के लिए टाला जाता रहा है - लेकिन रीजनल काउंसिल की मौजूदा टर्म के पदाधिकारियों और खासकर मौजूदा चेयरमैन राकेश मक्कड़ ने तो गैरजिम्मेदारी में बेईमानी का भी जो तड़का लगाया है, उससे मामला काफी बिगड़ गया । राकेश मक्कड़ और उनके साथियों ने काउंसिल में लूट का जो नंगा-नाच किया हुआ है, उससे काउंसिल में और लाइब्रेरीज चलाने में बेमतलब के खर्चे बढ़ गए हैं । हाल-फिलहाल के पहले के वर्षों में लाइब्रेरीज चलाने का जो खर्च करीब 70/80 लाख रुपए आता था, वह पिछले वर्ष तूफानी गति से बढ़कर सवा करोड़ रुपए के करीब जा पहुँचा । रीजनल काउंसिल के बाकी सदस्यों ने कई बार सवाल उठाए कि लाइब्रेरीज चलाने का खर्च अचानक से आखिर बढ़ क्यों गया है ? राकेश मक्कड़ और उनके साथियों ने लेकिन न तो इस सवाल का जबाव दिया और न ही लाइब्रेरीज चलाने के खर्चों का कोई हिसाब-किताब दिया । बोर्ड ऑफ स्टडीज के पदाधिकारियों की तरफ से कई बार सुझाव दिया गया कि लाइब्रेरीज चलाने के खर्चे को कम किया जाए, लेकिन राकेश मक्कड़ और उनके साथियों ने काउंसिल में कभी इस बारे में बात करने और या ध्यान देने की जरूरत नहीं समझी ।
राकेश मक्कड़ और काउंसिल में पदाधिकारी उनके साथियों का कहना है कि लाइब्रेरीज के खर्चे पूरे करने के लिए काउंसिल के पास पैसे नहीं हैं, इसलिए वह लाइब्रेरीज खोले नहीं रख सकते हैं । मजे की बात है कि राकेश मक्कड़ के भाई को अनाप-शनाप भुगतान करने के लिए काउंसिल के पास पैसों की कमी नहीं है; अपने चहेतों को फोटोकॉपी के काम में लाखों रुपए का भुगतान करने के लिए पैसों की कमी नहीं है; दिनभर ऑफिस में पड़े रह कर राकेश मक्कड़ को अपने और अपने साथियों के ऊपर खाने-पीने में लाखों रुपए खर्च करने में भी पैसों की कमी नहीं है; ट्रेन से यात्रा करने के अधिकारी होने के बावजूद हवाई जहाज में यात्रा करने के लिए भी काउंसिल के पास पैसों की कमी नहीं है - लेकिन छात्रों के लिए लाइब्रेरीज चलाने के लिए काउंसिल के पास पैसे नहीं हैं । काउंसिल के हिसाब-किताब को काउंसिल सदस्यों से ही छिपाने को लेकर पिछले दिनों भारी विवाद हुआ; चारों तरफ से घिर जाने के बाद राकेश मक्कड़ और उनके साथी थोड़ा-बहुत हिसाब दिखाने को मजबूर हुए तो उसमें बहुत सी 'हेरा-फेरियाँ' पकड़ी गईं - जिसमें पूर्व चेयरमैन दीपक गर्ग और मौजूदा ट्रेजरर सुमित गर्ग काउंसिल के 'लूटे गए' पैसे काउंसिल को वापस करने के लिए मजबूर हुए । पोल खुलती तथा लूटे गए पैसे वापस करने की नौबत आते देख राकेश मक्कड़ और उनके साथी पदाधिकारियों ने 'जबरदस्ती' बजट पास करवाया, जिस पर आपत्ति दर्ज कराते हुए काउंसिल सदस्यों ने ही इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट को शिकायत की हुई है ।
इन बातों से सहज ही समझा जा सकता है कि लाइब्रेरीज बंद होने के लिए वास्तव में राकेश मक्कड़ और उनके साथी पदाधिकारियों का गैरजिम्मेदारना तथा 'लुटेरा' व्यवहार ही जिम्मेदार है । इनकी बेशर्मी लेकिन यह है कि इस स्थिति में भी इन्होंने राजनीति दिखा दी - और मामला बोर्ड ऑफ स्टडीज के पदाधिकारियों के सिर मढ़ दिया । छात्रों के हित में कुछ करना तो दूर, अपनी लूट को बचाने के लिए इन्होंने छात्रों का इस्तेमाल और कर लिया । लोगों के बीच चर्चा है कि छात्रों को भड़का कर उन्हें इस्तेमाल करने के पीछे दिमाग सेंट्रल काउंसिल सदस्य राजेश शर्मा का है । पिछले दिनों हुई बदनामी से राजेश शर्मा ने लगता है कि कोई सबक नहीं सीखा है : उल्लेखनीय है कि पिछले दिनों इंस्टीट्यूट के मुख्यालय में 'राजेश शर्मा चोर है' और 'राजेश शर्मा दलाल है' जैसे नारे राजेश शर्मा ने खुद और खूब सुने हैं - उम्मीद की जा रही थी कि उससे सबक लेकर वह इंस्टीट्यूट में हो रही 'चोरी' और 'दलाली' जैसे मामलों को समर्थन व शह देने से बाज आयेंगे, लेकिन इस नए प्रकरण से उक्त उम्मीद करने/रखने वाले लोगों को निराशा ही हुई है । राजेश शर्मा के दिशा-निर्देशन में राकेश मक्कड़ और उनके संगी-साथियों ने नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल को जिस तरह से लूट का अड्डा बनाया हुआ है, जिसके चलते छात्रों के लिए पहले तो परेशानी वाले हालात बने और फिर उन्हें इस्तेमाल किया गया - वह इंस्टीट्यूट में चल रही गंदी राजनीति का एक निहायत बेशर्मीभरा उदाहरण है ।