Friday, September 22, 2017

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3100 में गवर्नरी पाने के लिए अदालती कार्रवाई करने वाले दिनेश शर्मा और उनके सलाहकार पूर्व गवर्नर्स से बार बार फजीहत का शिकार होने के बावजूद इंटरनेशनल डायरेक्टर बासकर चॉकलिंगम इंटरनेशनल बोर्ड में दिनेश शर्मा को न्याय दिलाने का सचमुच प्रयास करेंगे क्या ?

सिकंदराबाद । दिनेश शर्मा द्वारा शुरू की गई अदालती कार्रवाई को बंद करवाने के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने की रोटरी इंटरनेशनल की कार्रवाई को लेकर कुछेक पूर्व गवर्नर्स ने जिस तरह से दिनेश शर्मा को भड़काने का काम किया है, उससे लग रहा है कि डिस्ट्रिक्ट के कुछेक पूर्व गवर्नर्स चाहते ही नहीं हैं कि डिस्ट्रिक्ट में हालात सुधरें और डिस्ट्रिक्ट पटरी पर लौटे । उल्लेखनीय है कि 14 सितंबर को दिल्ली में कुछेक पूर्व गवर्नर्स के साथ दिनेश शर्मा ने इंटरनेशनल डायरेक्टर बासकर चॉकलिंगम के साथ मुलाकात और बातचीत की । उस मुलाकात और बातचीत का कुल नतीजा यह निकला कि दिनेश शर्मा खुश और संतुष्ट होकर लौटे । पाँच दिन बाद दिनेश शर्मा और पूर्व गवर्नर्स को पता चला कि 15 सितंबर को रोटरी इंटरनेशनल ने दिनेश शर्मा की अदालती कार्रवाई को निरस्त करवाने के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था, जिसमें लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली थी । रोटरी इंटरनेशनल की तरफ से इसी तरह की दूसरी कोशिश कल, यानि 21 सितंबर को हुई, लेकिन उस कोशिश को भी मुँहकी खानी पड़ी । रोटरी इंटरनेशनल की इन कोशिशों को लेकर कुछेक पूर्व गवर्नर्स ने दिनेश शर्मा को यह कहते हुए भड़काने का काम किया है कि रोटरी इंटरनेशनल तुम्हारे साथ दोहरा खेल खेल रहा है, और तुम्हें उसके खेल में फँसना नहीं है और मजबूती से अपनी अदालती कार्रवाई को जारी रखना है ।
समझा जाता है कि डिस्ट्रिक्ट के कुछेक पूर्व गवर्नर्स अपनी करतूतों पर पर्दा डालने तथा डिस्ट्रिक्ट में अपने आप को प्रासंगिक बनाए रखने के लिए दिनेश शर्मा को मोहरे की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं - मजे की बात यह है कि दिनेश शर्मा भी खुशी खुशी उनके हाथों इस्तेमाल हो रहे हैं । हमारे यहाँ सयानों ने कहा/बताया है कि आदमी को जो चीज मुफ़्त में या सस्ते में मिल जाती है, आदमी उसकी कद्र नहीं करता है । दिनेश शर्मा के प्रसंग में दरअसल यही बात सही साबित होती दिख रही है । अलग अलग मौकों पर उन्हें कई बार कहते हुए सुना गया है कि उनकी कार्रवाई से यदि डिस्ट्रिक्ट और बर्बाद तथा रोटरी और बदनाम होती हो, तो उनकी बला से; उनकी बला से डिस्ट्रिक्ट और रोटरी भाड़ में जाए ! उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नरी करने का मौका तो दीपक बाबु को भी नहीं मिला, लेकिन डिस्ट्रिक्ट और रोटरी को लेकर ऐसे 'वचन' उनकी तरफ से सुनने को नहीं मिले । दोनों के रवैये में यह अंतर शायद इसीलिए है कि दीपक बाबु को गवर्नरी बहुत 'मेहनत' करने के बाद मिली थी, इसलिए उनके मन में उसके लिए कद्र थी और उन्हें गवर्नरी करने का मौका जब नहीं मिला तो थोड़ा बहुत असंतोष दिखा कर उन्होंने इसे अपनी किस्मत मान लिया; लेकिन दिनेश शर्मा को तत्कालीन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर संजीव रस्तोगी की होशियारी के चलते गवर्नरी सस्ते में मिल गई थी, इसलिए उनके मन में उसके लिए कद्र नहीं बन पाई और जब उन्हें अपनी गवर्नरी छिनती हुई दिखी तो वह डिस्ट्रिक्ट रोटरी को 'भाड़' में पहुँचाने की तैयारी में जुट गए ।
दिनेश शर्मा जिस डिस्ट्रिक्ट और रोटरी में सालों-साल रहे, जहाँ उन्होंने गवर्नर बनने के बारे में सोचा और बने, जहाँ वह अभी भी गवर्नरी करना चाहते हैं - वहाँ के बारे में उनकी ऐसी 'सोच' देख/सुन कर लोगों को लगा भी है कि वह यदि सचमुच में गवर्नर बन भी गए तो करेंगे क्या ? डिस्ट्रिक्ट की मौजूदा दशा/दिशा के लिए जिम्मेदार पूर्व गवर्नर्स पर दिनेश शर्मा की निर्भरता को देख कर यही लगता है कि तब वह दूसरे तरीके से डिस्ट्रिक्ट और रोटरी को भाड़ में पहुँचायेंगे ? गौर करने वाली बात यह है कि डिस्ट्रिक्ट के बदनाम पूर्व गवर्नर्स - जिन्हें रोटरी इंटरनेशनल से भी लताड़ मिली और जिनमें से कुछ अपनी हरकतों के कारण डिस्ट्रिक्ट के अभी तक के अंतिम गवर्नर संजीव रस्तोगी द्वारा अपनी टीम से निकाले गए - के हाथों की कठपुतली बने दिनेश शर्मा ने न तो रोटरी इंटरनेशनल के फैसले को स्वीकार करने के मामले में संजीदगी का परिचय दिया और न ही मामले को हल करने में व्यावहारिक समझदारी दिखाई । उल्लेखनीय है कि गवर्नरी पाने के लिए उनके अदालत जाने के बाद बासकर चॉकलिंगम की तरफ से उन्हें ऑफर मिला था कि वह यदि अदालती मामला वापस ले लेते हैं तो वर्ष 2017-18 से डिस्ट्रिक्ट को उसका स्टेटस वापस दिलवाने तथा उन्हें गवर्नरी दिलवाने की कार्रवाई शुरू करवाई जा सकती है । दिनेश शर्मा को लेकिन यह ऑफर पसंद नहीं आया; अपने सलाहकारों की सलाहानुसार उन्होंने जिद की कि पहले उन्हें गवर्नर माना/बनाया जाए, उसके बाद ही वह अपनी अदालती कार्रवाई को वापस लेंगे ।
रोटरी इंटरनेशनल की व्यवस्था से परिचित जिस भी व्यक्ति ने दिनेश शर्मा की यह बात सुनी, वह दिनेश शर्मा की अज्ञानता और बेवकूफी पर हँसा ही; हर किसी ने यही कहा कि न तो दिनेश शर्मा को कुछ पता है और न उनके सलाहकारों को । रोटरी इंटरनेशनल की व्यवस्था से परिचित हर व्यक्ति जानता है, और जो नहीं भी जानता है वह अपनी कॉमनसेंस से समझता है कि डिस्ट्रिक्ट 3100 को उसका स्टेटस वापस देने तथा गवर्नर अधिकृत करने का फैसला करने का अधिकार सिर्फ और सिर्फ इंटरनेशनल बोर्ड को है; बासकर चॉकलिंगम उस बोर्ड के एक सदस्य हैं और इस नाते उनका काम और अधिकार सिर्फ इतना है कि वह डिस्ट्रिक्ट और दिनेश शर्मा की वहाँ प्रभावी तरीके से पैरवी करें । बासकर चॉकलिंगम पैरवी के लिए जरूरी और अधिकृत फीडबैक के लिए इंटरनेशनल द्वारा डिस्ट्रिक्ट में नियुक्त पदाधिकारी संजय खन्ना पर निर्भर हैं । ऐसे में, दिनेश शर्मा और डिस्ट्रिक्ट के लोगों को बासकर चॉकलिंगम और संजय खन्ना के साथ सहयोगात्मक रवैया अपनाना चाहिए - लेकिन देखने में आया कि दिनेश शर्मा और डिस्ट्रिक्ट के प्रमुख लोग इन दोनों से ही लड़ने लगे और इनकी ही फजीहत करने में जुट गए । एक मौके पर बासकर चॉकलिंगम ने पूर्व गवर्नर्स से मिलने और बातचीत करने के लिए मेरठ में मीटिंग रखी, लेकिन पूर्व गवर्नर्स ने उस मीटिंग का ही बहिष्कार कर दिया ।
दिनेश शर्मा और उनके सलाहकार बने पूर्व गवर्नर्स का रवैया ऐसा रहा है जैसे कोई अपराधी न्यायालय के स्टॉफ तथा वकीलों से यह तर्क देते हुए झगड़ा कर ले कि उसे पता है कि उसके साथ न्याय नहीं होगा । उसकी आशंका यदि सच भी है तो भी न्यायालय के स्टॉफ व वकीलों से झगड़ा करके क्या वह न्याय पा लेगा ? दिनेश शर्मा और उनके सलाहकार बने पूर्व गवर्नर्स की बुद्धि में इतनी मोटी सी बात भी नहीं घुस पा रही है क्या कि रोटरी इंटनेशनल बोर्ड में डिस्ट्रिक्ट 3100 के मामले में रिपोर्ट भारत के इंटरनेशनल डायरेक्टर के रूप में बासकर चॉकलिंगम को ही देनी है, यह काम अमेरिका या जापान या जर्मनी या फ्रांस या ग्वाटेमाला या कोरिया या ऑस्ट्रेलिया या ब्राजील के इंटरनेशनल डायरेक्टर को नहीं देनी है; इसलिए बासकर चॉकलिंगम से यदि आपको शिकायतें हैं भी तो भी आपको अंततः उन्हीं से अपनी बात करनी है, उनसे लड़ना नहीं है या उनका बहिष्कार नहीं करना है । संजय खन्ना के मामले में भी पूर्व गवर्नर्स को इस सच्चाई को 'समझना' होगा कि उनकी ही करतूतों के कारण डिस्ट्रिक्ट को सजा मिली और वह नॉन-डिस्ट्रिक्ट स्टेटस में कर दिया गया तथा संजय खन्ना को उसकी जिम्मेदारी सौंप दी गई । जाहिर है कि संजय खन्ना तो मेहमान की तरह से हैं, उनके तौर-तरीके यदि पसंद नहीं भी आ रहे हैं तो भी अच्छा और जरूरी तो यह होना चाहिए कि उनके साथ मिल कर डिस्ट्रिक्ट को बुरी स्थिति से निकाला जाए, जिसके बाद संजय खन्ना की भी विदाई हो ही जाएगी । घर में कोई मेहमान आता है और उसकी बातें या उसका व्यवहार यदि पसंद नहीं भी आता है तो हम क्या उससे लड़ने लगते हैं ? डिस्ट्रिक्ट के बदनाम पूर्व गवर्नर्स का रवैया तो फिर भी समझ में आता है; उन्होंने तो न सुधरने की कसम खा रखी है - लेकिन दिनेश शर्मा ने अपने आप को जिस तरह से उनकी कठपुतली बना लिया है, उससे डिस्ट्रिक्ट का मामला उलझता ही जा रहा है ।